The growing impact of modernity on Hindi language in Hindi Moral Stories by Dr Mrs Lalit Kishori Sharma books and stories PDF | हिंदी भाषा पर आधुनिकता के बढ़ते प्रभाव

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हिंदी भाषा पर आधुनिकता के बढ़ते प्रभाव

मानव ह्रदय में स्थित भाव एवं विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भाषा है। भाषा विचारों की सम वाहिका है । भाषा के अभाव में भाव मूक हो जाते हैं विचार वधिर और अभिव्यक्ति पंगु बन कर रह जाती है ।

किसी भी राष्ट्र की भाषा अपने समाज व राष्ट्रीय संस्कृति की भी सम वाहिका होती है। जो भाषा जितनी अधिक समृद्ध व सशक्त होती है वह उतनी ही महान संस्कृति का साक्षात्कार कराने में समर्थ होती है। ऐसी सशक्त भाषा ही जीवंत भाषा कही जा सकती है । संस्कृति की परिवर्तनशीलता के साथ- साथ जीवंत भाषा का स्वरूप भी निरंतर परिवर्तन होता रहता है। जिस भाषा का स्वरूप जितना अधिक लचीला होता है या यूं कहें कि जिस भाषा में विविध भाषाओं के गुणों को विभिन्न शब्दावली को संपादित करने की सामर्थ जितनी अधिक होती है वह भाषा उतने ही अधिक दीर्घ काल तक जीवंत बनी रहती है ।

भारतवर्ष में भी प्राचीन काल से आज तक अनेकों भाषाएं आई और लुप्त हो गई तथा वर्तमान में भी भारतवर्ष विविध भाषा भाषी देश होने पर भी हिंदी को जो महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है या जो सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त है उसका एकमात्र कारण है हिंदी में विभिन्न भाषाओं के शब्दों को समाहित करने की शक्ति। हिंदी की इस अपार क्षमता ने ही उसे आधुनिकता के सांचे में ढालने का काम किया है। दीर्घकाल से भारतीय जिस हिंदी भाषा का प्रयोग अपने संभाषण तथा लेखन में कर रहे हैं उसमें न जाने कितने असंख्य शब्द अरबी फारसी उर्दू व अंग्रेजी भाषा के भरे पड़े हैं जिनका प्रयोग हम सभी बड़ी ही सहजता व सरलता के साथ करते आ रहे हैं जैसे कफन अदालत नमाज आदि।

अंग्रेजी के शब्द, साड़ी, ब्लाउज, सॉरी, थैंक यू ,ट्रेन ,साइकिल (वाईसाइकल), जैकेट ,अंडरवियर ,टिफिन आदि।
आधुनिकता के प्रभाव से परिपूर्ण न केवल शिक्षित व्यक्ति अपितु बिना पढ़े लिखे लोग भी अंग्रेजी के अनेक शब्दों का प्रयोग बड़ी सहजता से करते हुए देखे जा सकते हैं।

भारत अनेक संस्कृतियों का संगम है। यहां आर्य आए यूनानी ईरानी कुषाण अरबी तुर्क यूरोपीय आदि आए और अपनी अपनी संस्कृति लाए। इन सभी संस्कृतियों का मिश्रित रूप है भारतीय संस्कृति। भारतीय संस्कृति ने अपने विकासशील रूप में जैन हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आदि की संस्कृतियों को भी समाहित किया और हम निरंतर आधुनिकता के पथ पर बढ़ते रहे। इस सांस्कृतिक आधुनिकता का ही प्रभाव है कि हिंदी भाषा में इन सभी संस्कृतियों को वहन करने वाली शब्दावली का विकास हुआ। यही कारण है कि मुस्लिम संस्कृति के सैकड़ों शब्द हिंदी शब्दकोश में भरे गए हैं हमारी अदालती शब्दावली आज भी उर्दू प्रधान है । भारत की सामाजिक संस्कृति उसकी विभिन्न भाषाओं में निहित है और भारतीय संविधान की धारा 351 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि हिंदी भाषा की प्रसार वृद्धि कर उसके विकास हेतु मूलतः संस्कृत से तथा गौणत : अष्टम अनुसूची में उल्लिखित अन्य भारतीय भाषाओं से शब्द ग्रहण कर हिंदी को समृद्ध बनाया जाए।

आधुनिकता के प्रभाव के कारण आज विज्ञान, व्यवसाय कंप्यूटर आदि के तकनीकी शब्दों को अंग्रेजी भाषा के स्वरूप में लिखने की अनुमति हिंदी भाषी लोगों को प्राप्त हो चुकी है। इन तकनीकी शब्दों को यथावत प्रयोग करने की स्वीकृति के कारण हिंदी अनुवाद की क्लिष्टता से बचा जा सकता है तथा विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी इस प्रयोग के कारण हिंदी भाषी लोगों के लिए परीक्षा उत्तीर्ण करना आसान हो गया है।

आधुनिकता का प्रभाव तथा खुली मानसिकता के कारण हिंदी का सरलीकरण तथा हिंदी के मानक रूप को भी हम सभी ने बड़ी सहजता के साथ स्वीकार कर लिया है।

आधुनिकता के कारण संपूर्ण विश्व आज एक परिवार तुल्य बन चुका है । इसी कारण यूरोप ,अमेरिका ,एशिया, ऑस्ट्रेलिया अफ्रीका, आदि अनेक महाद्वीपों के लगभग 100 विश्वविद्यालयों में हमारी हिंदी का पठन-पाठन बड़े ही सम्मानजनक रूप से किया जाता है। एक और भारतवासी हैं जो भावनात्मक स्तर पर हिंदी भाषा से जुड़े हैं और दूसरी और वे लोग हैं जो इस भाषा का अध्ययन अध्यापन शुद्ध भाषाई एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से करते हैं।

बीबीसी की हिंदी सेवा हुई आधुनिकता के प्रभाव की परिचायक है । हिंदी के ग्रंथों का चीनी बंगला अंग्रेजी आदि विभिन्न भाषाओं में अनुवाद- परंपरा भी आधुनिकता की द्योतक कही जा सकती है।

आधुनिकता के प्रभाव मैं जहां एक और हिंदी को अन्य भाषाओं की शब्दावली से सुशोभित कर उसका श्रंगार किया है और उसे जीवंतता प्रदान की है वहीं दूसरी ओर आधुनिकता की दौड़ में हम हिंदी भाषा को विच्छंखल करने से भी नहीं चूके हैं । आधुनिकता के नाम पर अंग्रेजीयत तथा अंग्रेजी मानसिकता के कारण हिंदी में इतनी अधिक अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने लगे हैं कि वह हिंदी कम अंग्रेजी अधिक लगती है। भाषा खिचड़ी बन चुकी है। ऐसी खिचड़ी भाषा का प्रयोग ना हमें अंग्रेज बनने देता है और ना ही हिंदुस्तानी रहने देता है इसका एक उदाहरण दृष्टव्य है----( एक पत्र का हिस्सा )

आदरणीय दीदी cum friend
Hi

May we you forgot me, haina ,पर मैं नहीं। How are you?आपका स्वास्थ्य कैसा है? Nothing is new.यदि कोई good news होगी तो आपको पता ही लग जाएगी। Mr hero ke Kya haal hain? के क्या हाल है? आदि।
Yours

उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि हमने अपनी हिंदी भाषा को कितना विकृत रूप प्रदान कर दिया है। हम अन्य भाषाओं के शब्दों को हिंदी में मिश्रित करने के लोभ में अपनी भाषा को ही भूलते जा रहे हैं। आधुनिकता का ऐसा प्रलोभन निश्चित ही हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा। एक और उदाहरण दृष्टव्य है

एक ग्रामीण द्वारा किसी के घर का रास्ता पूछे जाने पर एक आधुनिक नवयुवक का उत्तर ---
यहां से सीधे जाना फिर बाय मुड़ जइयो फिर राइट टर्न होकर एक तालाब मिलेगा उसके बंक ही बंक ( किनारे किनारे )चले जइयो।

अब बेचारे उस ग्रामीणों को बंक ही बंक की भाषा कहां तक समझ आएगी यह आप स्वयं सोच सकते हैं।

आधुनिकता का प्रभाव हिंदी भाषा के संगीत पक्ष पर भी व्यापक रूप से देखा जा सकता है। हिंदी भाषा का शास्त्रीय संगीत तथा लोक संगीत भी आधुनिकता की दौड़ में पॉप संगीत का रूप लेता जा रहा है।

आधुनिकता के प्रभाव के कारण ही हिंदी भाषा के शब्द उच्चारण तथा ध्वनियां पंगु होती जा रही हैं क्योंकि आधुनिकता के रंग में रंगी हमारी युवा पीढ़ी हिंदी भाषा का उच्चारण भी अंग्रेजी की तरह करने के प्रयास में लगी हुई है। यहां तक कि हिंदी का लेखन कार्य अंग्रेजी की भांति लाइन के ऊपर लिख कर किया जाने लगा है यह आधुनिकता की अंधी दौड़ नहीं तो और क्या है? इतना ही नही दक्षिण भारत की ऊटी आदि अनेक स्थानों पर तो हिंदी भाषा को अंग्रेजी के माध्यम से पढ़ा कर मानो हिंदी का उपहास ही उड़ाया जा रहा है ।

आधुनिकता के दुष्प्रभाव का एक जीता जागता प्रभाव ,हिंदी के सम्मान पर प्रश्नचिन्ह लग जाना भी है। यह आधुनिक बनने की मानसिकता का ही प्रभाव है कि हमें हिंदी आते हुए भी हम हिंदी नहीं बोलना चाहते यहां तक कि हिंदुस्तान देश में ही हिंदी भाषी व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखा जाता है। खेद का विषय यह है की भाषा जैसे लोक मंच के प्रश्न को हमने राजनीतिक मंच पर ला खड़ा किया है ।

वस्तुतः हिंदी मात्र एक भाषा नहीं अपितु यह भारत वासियों के जन जन के हृदय की एक पुनीत भावना है हमें इसका सम्मान करना चाहिए तथा इसकी समृद्धि वह प्रचार प्रसार हेतु सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए।


इति