Yashoda Maiya, Rohini Maiya and Shri Krishna Dialogues in Hindi Mythological Stories by ARUANDHATEE GARG मीठी books and stories PDF | यशोदा मैया , रोहिणी मैया और श्री कृष्ण संवाद

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यशोदा मैया , रोहिणी मैया और श्री कृष्ण संवाद

कृष्ण बंधे हुए थे , आंगन में खंभे से और लगातार छूटने की कोशिश करते हुए यशोदा मैया से उनकी रस्सी खोलने की गुहार लगा रहे थे ....., जबकि यशोदा मैया उनकी सारी हरकतें देख रही थीं और भली भांति समझ रही थीं , उनकी शरारतें .....…,

श्री कृष्ण - मैया ......, थोलो न मुझे ......, त्यों बांध कल लखा है ?

मैया - कन्हैया......, ये तो तू भी जाने हे...., मैंने तोहे काहे बांधा है !

श्री कृष्ण - मैया...., वो सब झूथ बोल लहे थे , मैंने माथन नहीं चुलाया ।

मैया - तू बस उचित लल्ला और बाकी सब झूठे , ये बात तो मोहे न जमी तोरी कान्हा ।

श्री कृष्ण ( चिढ़ते हुए ) - मोले अलावा आपतो सब उछित लगे है मैया । आपतो अपने ही लल्ला पर विछवाछ नहीं है मैया...!!!???

मैया - तूने एसो कोई कार्य न कियो अब तक , के मैं तोह पर विश्वास कर सकूं ।

श्री कृष्ण ( डबडबाई नजरों से ) - छच में मैया...???!!!!

यहां यशोदा मैया थोड़ी सी पिघलीं , वे बाल कृष्ण की ओर बढ़ीं उनकी रस्सी खोलने ....., कि कन्हैया जी उनकी मंशा समझ उन्हें देख मुस्कुरा दिए , वो भी शरारत से । मैया उनकी मुस्कान देख सारा माजरा समझ गईं और वापस अपने काम की तरफ बढ़ते हुए बोलीं .....,

मैया - मोहे क्या तूने बाकी की गोपियों की भांति समझा है क्या कान्हा...???? जो तू मोरे समक्ष शरारत करेगा और मोहे पतो ही न चलेगा...!!!???

कन्हैया जी का मुंह उतर गया , अपनी मैया की बात सुनकर और अपने दिमाग की कलाकारी असलफल होते देख , उन्होंने मैया से कहा ।

श्री कृष्ण - मैया....., मैंने छच में आज माथन नहीं चुलाया । वो ताकी ( काकी ) और बाकी की दोपियां ( गोपियां ) डलती ( जलती ) हैं मोछे , इछी लिए तोछे छितायत तल रहीं थीं , मैंने छच में माथन नहीं चुलाया मैया । भलोसा कर मोला मैया .....।

मैया - नहीं लल्ला....., कोनो गोपी या तोरी काकी ..., मोसे झूठ नहीं बोलेगी । अरे तू नंदलाला है कन्हैया...., तोरे लिए कोनो भी बोल ...., बोले से पहिले , सब शत ( सौ ) बार सोचेंगी । तू अब मोहे, अपने इस मासूम से मुखड़े से मत उलझा , मैं खूब समझूं हूं तोरी लीलाएं कन्हैया....।

श्री कृष्ण - मैया....., दाऊ से पूंच लो , वो भी मेले चाथ थे , वो झूथ नहीं बोलेंगे ।

मैया - सब समझती हूं मैं लल्ला । वो तोहे दंड से बचाने को , नई - नई तरकीब ढूंढ रहा होगा । पर मैं न छोडूगीं आज तो लल्ला तोहे । अपने बाबा का जगह - जगह नाम इस भांति तू रोशन करेगा , इसकी उम्मीद न थी मोहे तोसे कान्हा । कितना समझाया तोहे कान्हा , लेकिन तू मानता ही नहीं है अपनी मैया की बात । आज तो मैं तोहे न छोडूंगीं लल्ला ।

तभी रोहणी मैया आईं और श्री कृष्ण को खंभे से बंधा देखा , तो तुरंत बोलीं ।

रोहिणी मैया - ये का किया यशोदा ...!!!!??? लल्ला को काहे बांध के रखा है ...????

मैया - जिज्जी ...., आपको जो नटखट लल्ला ....., मात्र नटखट न रहो , अब शैतान भी हो चुको है , पूरे नंदगांव की मटकियां तोड़त है और जब शिकायतें आवत हैं , तो आपको लल्ला अपनी मीठी - मीठी बातन में सबका उलझावत है । आज तो मैं इसे कड़ों से कड़ों दंड देकर ही मानूंगी ।

रोहिणी मैया - एसो न करो यशोदा.....। हमारो लल्ला कितनो प्यारो है , एक दम मासूम , इसके साथ ऐसो न करो ..... छोड़ दो इसे , हटा दो इसकी रस्सियां ।

श्री कृष्ण - वहीं तो बली मैया ...., मैं तब ( कब ) छे मैया को समछा लहा हूं । मैं इतनों मासूम दिखने वालो आपतो और मैया तो लल्ला , मैं भला तैसे माथन चुलाऊंगा । समछाओ न बली मैया , मोली मैया तो ।

मैया - जिज्जी....., आप इसकी बातन में न आना , ये बोहत नटखट है , छूटते ही फिर भाग जाओगो ।

रोहिणी मैया - न भागेगा यशोदा । खोल दे इसकी रस्सी , देख उके हस्त ( हाथ ) ...., लाल वर्ण हो गए हैं .... , ओहे दुख रहा होगा ।

मैया - जिज्जी....!!!!!

रोहिणी मैया ( आज्ञा देती हैं ) - मैंने कहा न यशोदा , खोल उकी रस्सी । मैं अपने लल्ला को ऐसे न देख सकती , खोल ..... ।

मैया ने श्री कृष्ण के हाथ देखे , तो उनकी आंखों से अश्रु धारा बह निकली , उन्हें अपने लल्ला को ऐसे बांधने की वजह से ....., खूब पछतावा हुआ । सच में श्री कृष्ण के हाथ रस्सी में रगड़ने की वजह से लाल हो चुके थे । उन्होंने जल्दी से श्री कृष्ण की रस्सी खोल दी और श्री कृष्ण को तो जैसे बैकुंठ सी खुशी मिल गई । उन्होंने छूटते ही दोनों मैया के चरण स्पर्श किए और दोनों के गले लगे और फिर "अभी आता हूं मैया" ......, बोलकर अपने नन्हें - नन्हें कदमों से बलराम दाऊ के पास पहुंचे और उनके साथ फिर से माखन की तलाश में गोपियों के घर चल दिए । जबकि दोनों मैया अपने दोनों पुत्रों की लीलाएं और उनका साथ देखकर खुश हो रही थीं और बार - बार बालाएं ले रही थीं , ताकि उन्हें किसी की नज़र न लगे ।

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