friendship (friendship), enmity and quarrel in Hindi Philosophy by Rajesh Sheth books and stories PDF | मित्रता (दोस्ती) , दुश्मनी और झगड़ा

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मित्रता (दोस्ती) , दुश्मनी और झगड़ा

मित्रता (दोस्ती)

१. दैनिक जीवन में, व्यवहार करते समय, हम बहुत से व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं। यह संपर्क शायद हर रोज होता है या कभी कभी और यह पहली बार और आखिरी बार।
२. इस संपर्क द्वारा एक-दूसरे के बीच एक संबंध( रिश्ता )बनता है या बना हुआ संबंध और भी मजबूत होता है जब संपर्क बार-बार होता है .।
३. दोस्ती या मित्रता, इस प्रकार के रिश्ते का नमूना है जो निम्नलिखित स्तर पर हो सकता है।
अ). बौद्धिक_विचारों में मिलजुल
ब). भावुक _ भावनाओं में मिलजुल
क). कार्य _ कामकाज में मिलजुल
४. दोस्ती हो जाती है, तब दोनों पक्ष का दृष्टिकोण एक जैसा होता है और दूसरे पक्ष को सही तरह समझने लगते हैं।
५. दोस्ती में "स्वार्थ " को स्थान नहीं है ,मगर दूसरे को हर पल मदद देने के लिए उत्सुकता होती है।
६. दोस्ती का रिश्ता , कभी-कभी खून के रिश्ते से भी ज्यादा देखा गया है।
७. अमानवीय दृष्टिकोण अपनाने से ,आजकल पहले जैसी मित्रता कम हो गई है और धंधाकिय (स्वार्थी) मित्रता ने जन्म लिया है।
८. मानववादी विचारवादी मानती है कि विश्व का मानवीयकरण मित्रता से हो सकता है , जब हम सब मानवीय दृष्टिकोण अपनाएं , और एक दूसरे के दृष्टिकोण से देखें और समझे।

दुश्मनी

१. जब कोई एक पक्ष, दूसरे पक्ष को आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक या मानसिक रूप से हानि पहुंचाता है तब दुश्मनी पैदा होती है।
२. जब दोनों पक्ष का हित एक ही हो, अथवा एक का हित, दूसरे का अहित है, तब दोनों पक्ष में दुश्मनी जन्म लेती है।
३. यह दोनों पक्ष, राष्ट्र, राज्य, समाज, धर्म या परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, पड़ोसी, मित्र, सह कार्यकर या अनजान व्यक्ति भी हो सकते हैं। इसे बाहरी दुश्मनी कहते हैं।
४. जब व्यक्ति, अपने दिल और दिमाग के बीच, गंभीर उलझन या तनाव में पड़ जाता है, तब वह खुद अपने आपका दुश्मन बन जाता है। इस परिस्थिति में सामने दूसरा बाहरी पक्ष नहीं है। इसे आंतरिक दुश्मनी करते हैं।
५. इस दुश्मनी के प्रश्न को सुलझा के लिए कुछ मानव वादी कदम इस प्रकार है।

अ) बाहरी दुश्मनी : दूसरों की
दृष्टि से परिस्थिति के बारेमें सोचना, दोनो पक्ष विजयी ऐसा समझौता, समाधान और सक्रिय अहिंसक वर्तन अपनाना।

ब) आंतरिक दुश्मनी : चिंतन करके अपने दिल की भावना और दिमाग के विचार को सही तरह समझना, समझौता और समाधान, दिल और दिमाग के बीच करना, बीच का रास्ता निकालना।

झगड़ा

१. जब हम एक दूसरे के नजदीक होते हैं तब अपने व्यवहार में झगड़ा या कलह हो सकता है, जैसे कि दो पड़ोसी राष्ट्रों मे, महोल्ले के दो पड़ोसी के बीच या परिवार और सगे संबंधी के अंदर।
२. कभी-कभी छोटी बातों से, झगड़ा बड़ा स्वरूप लेता है और यह विवाद झगड़े का, हिंसा में परिवर्तन होता है।
३. बरसों से चली आती मित्रता, अच्छा व्यवहार ,कुछ पलों में झगड़े के कारण चौपट हो जाती है।
४. झगड़े करने वाले व्यक्ति में और परिवार में तनाव होता है, भय का वातावरण पैदा होता है, मन की शांति चली जाती है, अविश्वास का जन्म होता है और
वह स्वार्थी हो जाता है। ५. ५.झगड़े, दो व्यक्ति के बीच सीमित नहीं है, कभी-कभी यह दूसरी तीसरी पीढ़ी तक ,कई बरसोसे तक चलती है और लोग भूलते नहीं है।

५. झगड़े का मूल है, अपना दृष्टिकोण । ज्यादातर जब एक का दृष्टिकोण दूसरे के दृष्टिकोण से तालमेल नहीं रखता है , जब एक का हित, दूसरे का अहित है या दोनों का हित एक ही, चीज में है , तब कलह या झगड़ा होता है।
७. झगड़े का समाधान करने के लिए लोग तटस्थ, निपक्ष व्यक्ति या संस्था (कोर्ट, अदालत )का सहारा लेते हैं।
८. मानववादी विचारधारा मानती है कि सारे विश्व के झगड़े का समाधान हो सकता है, जब लोग एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझे, मित्रतापूर्ण वातावरण में मुक्त बातचीत करें ,पहले के बुरे अनुभव को दूर रखें और ऐसा रास्ता निकालें ताकि किसी प्रकार भेदभाव ना रहे और लंबे समय तक सभी पक्ष का समाधान रहे और मित्रता बढ़ती रहे।