Mout Ka Khel - 25 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | मौत का खेल - भाग-25

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मौत का खेल - भाग-25

मेंबरशिप

अबीर फंटूश रोड पर कार में बैठे-बैठे उकता गया था। उसने मेजर विश्वजीत को एक भद्दी सी गाली दी और कार को स्टार्ट कर दिया। वह यहां तक मेजर विश्वजीत और रायना का पीछा करते हुए आया था। उसे गेट पर ही रोक दिया गया था। उसका मूड इस वक्त बहुत खराब था। वह यहां से सीधे अपने ऑफिस गया। अपने चैंबर में पहुंचते ही वह कुर्सी पर बैठ गया और ग्लास उठा कर पानी पीने लगा।

यह एक बड़ा सा हाल था, जिसमें उस का ऑफिस था। इसे ऑफिस की जगह दीवानखाना कहना ज्यादा मुनासिब होगा। इसमें आराइश का हर सामान मौजूद था। हाल के एक कोने में बार था। जहां तमाम महंगी शराब सजी हुई रखी थी। पास ही फ्रिज थी। इसमें सॉफ्ट ड्रिंग, सोडा और पानी की बोतलें रखी हुई थीं। कुछ स्नैक्स वगैरा भी था। एक हिस्से में डबल बेड पड़ा हुआ था। उसे एक खूबसूरत वुडन पार्टीशन के जरिए ऑफिस से अलग किया गया था। चैंबर में रोशनी का कुछ इस तरह से इंतजाम था कि कोई भी बल्ब या ट्यूबलाइट नजर नहीं आती थी। यह भी पता नहीं चलता था कि यह रोशनी कहां से आ रही है। लगता था कि यह नेचुरल उजाला है। चैंबर के एक कोने में बड़े से गमले में स्नैक ट्री लगा हुआ था।

पानी पीने के बाद उसने बड़ी सी टेबल पर रखे बटन को दबा दिया। बेल बजते ही एक लड़की तेज कदमों से चलते हुए आ कर मेज के सामने खड़ी हो गई। लड़की काफी स्लिम और खूबसूरत थी। उसने हनीड्यू कलर का चुस्त टॉप और ऊपर छोटा सा क्रिमसन कलर का वेस्टकोट पहन रखा था। मिनी स्कर्ट का रंग भी वेस्टकोट जैसा ही था। उसने ब्रेडेड स्टाइल की चोटी बांध रखी थी। यह हल्के हाथों से गूंथी गई एक ढीली सी चोटी होती है। इसे दोनों तरफ से गूंथने के बाद बीच में ला कर मिला देते हैं। पफिंग इसकी खूबी होती है। एक लंबी सी लट लड़की के दाहिने रुखसार पर लटक रही थी। उसकी आंखों में अजब सी शोखी थी। ऐसा लगता था जैसे वह अभी कोई शरारत करने वाली है। इन्हीं आंखों की वजह से ही अबीर ने उसे अपनी सेक्रेटरी बनाया था।

उसका नाम सैम था। यह एक जहाज के कैप्टन की बेटी थी। वह जब भी जहाज लेकर बंदरगाह पर आता तो पास की एक बस्ती में ही ठहरता था। वहां उसकी एक माशूका रहती थी। उसका नाम रिवाना था। सैम उसी कैप्टन की बेटी थी। कैप्टन को जब पता चला कि रिवाना प्रेग्नेंट हो गई है, तो उस ने उधर जाना ही बंद कर दिया था। रिवाना उसे तलाशते हुए कई बार बंदरगाह भी आई, लेकिन उससे मुलाकात नहीं हो सकी। समय आने पर रिवाना को एक बेटी पैदा हुई। उसका नाम वीना रखा गया था। बाद में जानें क्यों उसने अपना नाम बदल कर अपने बाप के नाम पर सैम रख लिया था।

“जी सर!” लड़की ने कहा।

“ओह हां!” अबीर ने चौंकते हुए कहा। वह किसी सोच में गुम हो गया था। उसने कहा, “मेरे लिए वोदका का एक पैग बना लाओ।”

“हमारे बीच तय हुआ था कि आप ऑफिस टाइम में ड्रिंक नहीं करेंगे।” सैम ने कहा।

“ओह यस! मुझे याद है।” अबीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “इस में कुछ कंसेशन मिल सकता है क्या?”

“कहीं और कंसेशन दे दूंगी। इसमें नहीं।” सैम ने शोखी से मुस्कुराते हुए कहा।

“इट्स ओके!” अबीर गंभीर हो गया था। उसने कहा, “मुझे फन टू सन क्लब की मेंबरशिप चाहिए। कैसे भी!”

“ओके सर!” सैम ने कहा और चली गई।

उसके जाने के बाद अबीर का गुस्सा फिर बढ़ गया था। उसने गुर्राते हुए धीमी आवाज में कहा, “मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं बुड्ढे खूसट।”

इसके बाद वह मोबाइल उठा कर गेम खेलने लगा।

कुछ देर बाद सैम वापस आ गई। उसने कहा, “सर! फन टू सन क्लब की सालाना मेंबरशिप फीस 74 लाख रुपये है। इसके अलावा क्लब के दो मेंबरों की रिकमंडेशन चाहिए होगी।”

“ओके मैं देखता हूं.... दो मेंबरों की रिकमंडेशन के बारे में भी और उस बुड्ढे को भी।” अबीर ने कहा और किसी के नंबर डायल करने लगा।

हुक्का

कुमार सोहराब ने तिरछी नजर से उस मेज की तरफ देखा। आने वाला आदमी अपने कपड़े लत्तों से पैसे वाला नजर आ रहा था। उसने रॉयल ब्लू कलर का कोट-पैंट बहन रखा था। साथ ही गोल्डन कलर की टाई बांध रखी थी। उसकी आंखों पर काला चश्मा था। बाल थोड़ा लंबे थे। पहले से बैठा आदमी शक्लो-सूरत से किसी भी हाल में भला नहीं लग रहा था। उसके माथे पर जख्म का एक गहरा निशान था। सर अंडे जैसा चिकना था। अलबत्ता उसने मूंछें काफी बड़ी-बड़ी रख रखी थीं। उसकी आखें बहुत छोटी थीं। उन में अजीब सी चमक थी।

“आप के स्टैंडर्ड का ख्याल करते हुए यहां बुलाया है। वरना मेरा क्या है... मैं तो किसी ढाबे पर भी बुला सकता था।” चिकनी खोपड़ी वाले ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी मुस्कुराहट में मक्कारी थी।

इंस्पेक्टर सोहराब ने हाथों में मेनू ले रखा था, लेकिन उसका ध्यान उन की बातों की तरफ ही था।

“बको!” आने वाले ने गुस्से से कहा।

“उस घटना के बाद से मेरा आदमी गायब है। मेरी साली को जबरन सिंगापुर ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया है।” चिकनी खोपड़ी वाले ने कहा।

“मैं इसका जिम्मेदार नहीं हूं।” आने वाले ने कहा, “तुम्हें एक काम सौंपा गया था, जिसे तुम नहीं कर सके। इस के बावजूद तुम्हें पूरे पैसे दिए गए।” इसके बाद वह आदमी उठ कर जाने लगा। उसने पलटते हुए कहा, “और हां... मुझे दोबारा फोन मत करना... वरना तुम सिंगापुर नहीं नार्थ पोल भेज दिए जाओगे। वहां से कोई आसानी से वापस नहीं आ पाता।”

जाने क्यों चिकनी खोपड़ी वाले ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह शांत बैठा रहा। सोहराब ने सलीम को घोस्ट की चाबी देते हुए धीमी आवाज में कहा, “गोल्डन कलर की टाई वाले उस आदमी का पीछा करो।”

सार्जेंट सलीम ने चाबी ले कर कोट की जेब में रखी और उठ कर रिस्पेशन की तरफ चला गया। जाने वाला जैसे ही गेट से बाहर निकला, वह तेजी से उस के पीछे लपका। जब वह बाहर पहुंचा तो देखा कि वह आदमी पार्किंग से कार निकाल रहा था। सलीम भी तेजी से घोस्ट की तरफ बढ़ गया। घोस्ट का गेट खोल कर उसने कार स्टार्ट कर दी और तेजी से उसे रोड पर ले आया। उसे बाईं तरफ कार जाती हुई नजर आ गई। उसने एक निश्चित दूरी बनाते हुए अपनी कार को उसके पीछे लगा दिया।

आगे वाली कार तेजी से भागी चली जा रही थी। सार्जेंट सलीम भी एक निश्चित दूरी बनाए हुए उसके पीछे लगा हुआ था। कुछ दूर जाने के बाद चौराहा आ गया। कार चौराहे से बाईं तरफ घूम गई। जब तक सलीम चौराहे पर पहुंचा, रेड लाइट हो चुकी थी। रेड लाइट देख कर सलीम भन्ना गया। कुछ देर बाद जब ग्रीन लाइट हुई तो वह तेजी से घोस्ट को आगे बढ़ा ले गया। उसने घोस्ट को फुल स्पीड में डाल दिया था। कुछ देर बाद ही उसे कार नजर आ गई। उसने घोस्ट की स्पीड धीरे-धीरे कम कर दी थी।

आगे वाली कार दाहिनी तरफ मुड़ रही थी। यह सड़क साहिली इलाके की तरफ जाती थी। सलीम ने भी कार को दाहिनी तरफ मोड़ दिया। समुंदरी साहिल से पहले एक बड़ा सा बाजार था। कार बाजार में दाखिल होते ही एक दुकान के सामने रुक गई। इसके बाद कार वाला कार से उतर कर दुकान में चला गया। सलीम कुछ दूर पर घोस्ट रोके उसके निकलने का इंतजार करता रहा। काफी देर बाद भी वह नहीं निकला तो सलीम को फिक्र होने लगी।

सलीम ने घोस्ट को सड़क के किनारे ही छोड़ दिया और उतर कर नीचे आ गया। वह टहलते हुए दुकान के सामने सड़क के उस पर जा कर खड़ा हो गया। उसने जेब से वान गॉग का पाउच और पाइप निकाला और उसमें तंबाकू भरने लगा। लाइटर से पाइप सुलगा कर वह हलके हलके कश ले रहा था। इस तरह से पांच-सात मिनट और गुजर गए। जब वह आदमी नहीं निकला तो सलीम ने पाइप की राख को झाड़ कर उसे जेब में रख लिया और टहलते हुए दुकान में घुस गया।

अंदर पहुंच कर उसका मन भन्ना गया। वह खड़े हो कर अपनी गुद्दी सहलाने लगा। वह आदमी उसे चोट दे गया था। दरअसल यह दुकान नहीं हुक्के का कारखाना था। अंदर कई कारीगर बैठे हुक्का बना रहे थे। यह काफी बड़ा कारखाना था। यहां से विदेशों में हुक्के सप्लाई किए जाते थे। यह कारखाना अंग्रेजों के जमाने में कायम हुआ था। बीच में जब हुक्के का चलन बंद हो गया तो यहां बीड़ी बनने लगी। हुक्के का फैशन लौटते ही इसके मालिक ने पुराना धंधा फिर अपना लिया था।

अंदर पहुंचने के बाद सार्जेंट सलीम ने देखा कि इस कारखाने में एक दूसरा रास्ता भी था, जो पीछे वाली गली में खुलता था। वह आदमी उधर से ही बाहर निकल गया था।

कारखाने के मैनेजर ने सलीम को हवन्नकों की तरह इधर उधर देखते पाया तो वह उठ कर उसकी तरफ आ गया। उसने पूछा, “जी आप को कुछ खूबसूरत हुक्के दिखाऊं?”

“जी मेरा मुंह तो खुद ही हुक्के जैसा खुला पड़ा है।” सार्जेंट सलीम ने धीमी आवाज में कहा।

“जी मैं समझा नहीं?” मैनेजर ने कहा।

“जी अभी एक साहब अंदर आए थे। मैं उन्हीं का बाहर इंतजार कर रहा था, लेकिन वह कहीं नजर ही नहीं आ रहे हैं!” सार्जेंट सलीम ने दाएं बाएं देखते हुए पूछा।

“वह तो तुंरत ही पीछे वाले रास्ते से निकल गए थे। कहने लगे कि एक पागल पीछे पड़ गया है।” मैनेजर ने सलीम को ध्यान से देखते हुए कहा। जैसे वह अंदाजा लगाना चाहता हो कि कहीं यह पागल वही तो नहीं।

सलीम ने उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए पूछा, “क्या आप उन्हें पहचानते नहीं हैं?”

“नहीं साहब... मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा।” मैनेजर ने कहा।

इसके बाद सलीम भी पीछे वाले दरवाजे से गली में चला गया। यह गंदी सी एक गली थी। वह गली से होते हुए एक लंबा चक्कर लगा कर जब कारखाने के सामने पहुंचा, तो एक बार फिर उसकी खोपड़ी कलाबाजी खाने लगी। उसका मन काफी जोर से चीखने को करने लगा। कारखाने के सामने खड़ी उस आदमी की कार गायब थी। वह सारा माजरा समझ गया। जब वह लंबा इंतजार करने के बाद अंदर पहुंचा तभी वह आदमी अपनी कार ले कर रफूचक्कर हो गया। इसका मतलब यह हुआ कि उसे पीछा करने का अंदाजा हो गया था।

सार्जेंट सलीम ने निगाहें उठा कर कारखाने की तरफ देखा। कारखाने के ऊपर बोर्ड तक नहीं लगा था, जिस से अंदाजा हो सके कि यह कारखाना है या दुकान है। सलीम को जाने क्यों गुस्सा आ गया। वह एक बार फिर कारखाने के अंदर घुस गया। उसने गेट से ही चिल्ला कर कहा, “कम से कम गेट के बाहर एक बोर्ड तो लगा लीजिए कि यहां आप आप हुक्का बनाते हैं।”

सलीम कारखाने से बाहर निकल आया और टहलते हुए अपनी कार तक पहुंच गया। उसने कार का गेट खोला और स्टीयरिंग संभाल ली। कार स्टार्ट की और उसे तेजी से आगे बढ़ा ले गया।

धमकी

गोल्डन कलर की टाई वाले आदमी के जाने के बाद भी चिकनी खोपड़ी वाला कुछ देर शेक्सपियर कैफे में बैठा रहा। उसके चेहरे से परेशानी साफ झलक रही थी। कुछ देर यूं ही बैठे रहने के बाद वह कैफे से बाहर निकल आया। उसकी चाल काफी सुस्त थी। बाहर निकल कर वह पार्किंग की तरफ बढ़ गया। वहां एक पुरानी सी कार खड़ी थी। उसने गेट खोला और स्टीयरिंग सीट पर बैठ गया। इग्निशन में चाबी लगा कर उसने कार स्टार्ट कर दी और कार आगे बढ़ गई। कैफे के कैंपस से कार सड़क पर पहुंची और दाहिनी तरफ मुड़ गई। अभी कार कुछ ही दूर गई होगी कि एक ठंडी चीज उसकी कनपटी से आ टिकी। इस के साथ ही उस की कनपटी पर दबाव बढ़ गया।

कार के पिछले हिस्से से फुफकारती हुई सी आवाज आई, “चुपचाप कार चलाते रहो। कोई चालाकी मत करना वरना इस चिकनी खोपड़ी में सूराख हो जाएगा। पिस्टल में साइलेंसर लगा हुआ है, इसलिए आवाज भी नहीं होगी।”
*** * ***

सलीम गोल्डन कलर की टाई वाले आदमी को तलाश सका?
चिकनी खोपड़ी वाला कौन था और उसका क्या अंजाम हुआ?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...