सालों पुरानी बात है।चार दशक से ज्यादा हो गए।जून का महीना था।मई और जून तो
सुबह धूप निकलते ही गर्मी का प्रकोप बढ़ने लगता जो दिन बढ़ने के साथ मे बढ़ता जाता।दोपहर होते होते तो लू के थपेड़े चलने लगते।ऐसी गर्मी में बरात में जाना।सहकर्मी जो दोस्त भी था।जिससे पारिवारिक सम्बन्ध भी थे।जो पड़ोसी भी था।उसके भाई की शादी में जाना था।अब पूरा आफिस तो जा नही सकता था।हम पांच तीन बुकिंग आफिस से और दो पार्सल आफिस से ।ये पांच थे। हमारे इंचार्ज मेहताजी,बाबा,भाटिया,सैनी और मैं।बाबा को हमारे साथ जाते देखकर ऑफिस वाले बोले।कुछ ने कुछ गड़बड़ जरूर होगी।बाबा जहा भी जाता है।अब जो भी हो।जाना तो था ही।
बारात दो बजे बस से रवाना होनी थी।एक बजे बारात को ले जाने वाली बस सड़क पर आकर खड़ी हो गई थी।बस का टाइम सभी को एक बजे का दिया गया था।कार्ड में दिए समय के अनुसार बस को दो बजे चल देना था।
लेकिन हम है हिंदुस्तानी।एक जापानी पर्यटक ने एक टिप्पणी कक थी,"हिंदुस्तानी हाथ मे घड़ी फैशन के लिए पहनते है।"
शादी ब्याह के मामले में रूठना मनाना खूब होता है।एक को जैसे तैसे तैयार करके लाया जाता तो दूसरा घर मे घुस जाता।जब दूसरे को वापस लेने जाते तब तक तीसरा टॉयलेट के बहाने खिसक लेता।दूल्हे के बड़ा भाई जो कर्ता धर्ता था रिश्तेदारों के आगे पीछे हाथ जोड़कर फिर रहा था।जैसे तैसे तीन बजे तक बरात ले जाने के तैयार हुई तो बेंड वाले नही आये थे।कुछ देर तक इन्तजार करने के बाद यह तय हुआ कि बस को रवाना कर दिया जाए।जगदीश बेंड वालों को लेकर आएगा।बस चलने पर राहत की सांस ली थी।अब भी तेज धूप थी।बस तेज धूप और गर्मी में आगे बढ़ने लगी।
सब भी बातो में मशगूल थे।हम आफिस के साथी भी।कभी कभी खिड़की की तरफ झाँकर देख लेते बस कहाँ से गुज़र रही है।बातो में पता हज नही चला कब एक घण्टा गुज़र गया और बस दाऊजी जा पहुंची।दाऊजी से बस को करणपुर जाने वाली सड़क पर मुड़ना था।ज्यो ही बस उस तरफ मुड़ी भटाक की जोरदार की आवाज के साथ टायर फटने की आवाज आयी थी।ड्राइवर ने धीरे धीरे ब्रेक लगाकर बस रोकी थी।ड्राइवर और कंडक्टर बस से उतरकर टायर चेक करने लगे।उन्हें देखकर बस में से एक एक करके सभी उतर गए थे।एक्स्ट्रा टायर बस में था नही।लिहाजा ड्राइवर और कंडक्टर ने टायर खोला और सही कराने के लिए ले गए।और इस कार्य मे आधा घण्टा लग गया था।
बस चलने को तैयार देखकर बाहर घूम रहे बाराती बस में लौट आये थे।आखिर कार बस चल ही पड़ी।काफी दूर तक डामर की सड़क पर चलने के बाद बस कच्ची सड़क पर आ गई थी।और फिर बस दोनो तरफ खेतो के बीच मे बनी कच्ची सड़क पर चलने लगी।और कुछ दूर चलने के बाद ड्राइवर बोला,"गांव किधर है?"
हमारे मोहल्ले के एक बुजुर्ग बोले,"सीधे चलते रहो।"
और बस चलती रही।काफी देर चलने के बाद ड्राइवर फिर बोला,"कितनी दूर और चलना है गांव किधर है?"
"हमे नही मलूमहम तो पहली बार आ रहे है।"एक साथ कई शब्द उभरे थे।"
ड्राइवर ने बस रोक दी।अपने से पीछे की सीट पर बैठे बुजुर्ग से बोला"बाबा आप बता रहे थे
(अगले भाग में शेष कथा