Its matter of those days - 33 in Hindi Fiction Stories by Misha books and stories PDF | ये उन दिनों की बात है - 33

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ये उन दिनों की बात है - 33

फिर क्या था मैं तुरंत उससे मिलने को मचल उठी | इसलिए तुरंत नीचे उतर आई और फिर आईने के सामने जाकर अपने कपड़े और बाल ठीक करने लगी चूँकि सागर मेरे घर नहीं आ सकता था क्योंकि उसके पास कोई वजह भी नहीं थी लेकिन मैं उससे मिलने जा सकती थी क्योंकि हम दोनों बहनें कई बार दादी के यहाँ चले जाया करते थे |

फिर एक बार खुद को आईने में देखा तो कुछ अजीब सा लगा मुझे और कदम वहीं ठिठक कर रह गए | तब की बात और थी, तब मैं छोटी थी और सागर भी नहीं था यहाँ | अब मैं बड़ी हो रही थी शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से और भावनात्मक रूप से | बात-बात में शरम सी आने लगी थी, आईने के सामने से हटने का जी ही नहीं करता था, सजने सँवरने का मन करता था | चुपके से मम्मी की लिपस्टिक लगा लिया करती थी | जब मम्मी और नैना दोनों ही नहीं थी घर पर, तब मम्मी की साड़ी पहनी थी पहली बार |

अपने शरीर में कई तरह के बदलाव महसूस करने लगी थी | शरीर के उभार धीरे धीरे आकार ले रहे थे | किशोरावस्था से युवावस्था की ओर कदम बढ़ा चुकी थी अभी थोड़े से ही दिन पहले | उस दिन मम्मी मुझे बाजार ले गई थी | हम एक दूकान में घुसे जहाँ सिर्फ औरतें ही आती थी | शीला आंटी भी हमें वहीँ मिल गयी थी | उन्होंने इशारों में मम्मी से पूछा | मम्मी ने भी इशारों में ही जवाब दिया दिव्या के लिए | फिर उन्होंने यही कहा बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते है, है ना!!

पता नहीं मम्मियों को कैसे पता चल जाता है हमसे पहले, लेकिन अगर उन्हें पता नहीं चलेगा तो फिर किसे चलेगा | अरे भई!!! वे भी इस अवस्था से गुजर चुकी है और मैं अपनी इसी बात पर हँस दी थी |
फिर उन्होंने मेरी नाप की ब्रा मांगी | उस दिन पहली बार ब्रा पहनी थी मैंने | बहुत ज्यादा शर्म सी महसूस हुई थी मुझे | मम्मी बार-बार पूछे जा रही थी नाप तो ठीक है ना, पर मैं कुछ भी बता पाने में असमर्थ थी | फिर धीरे से कहा एकदम ठीक है |

जब मैंने कामिनी को बताया तो वो थोड़ा सा चौंक गई थी, क्योंकि हमारे ग्रुप में मैं ही पहली लड़की थी जिसने ब्रा पहनी थी

अभी से ही........उसने इतना ही कहा था |

मम्मी ने कहा है, पहनने को | कहा की आकार सही रहता है |

मिडी टॉपर, फ्रॉक अब इनसे धीरे धीरे नाता टूटने लगा था और सलवार कमीज से दोस्ती शुरू होने लगी थी | बाहर तो दूर की बात है, घर पर भी अब बिना चुन्नी के नहीं रह पाती थी | यहाँ तक की मिडी-टॉपर, और फ्रॉक पर भी चुन्नी लगा लेती थी |

और फिर लोग क्या कहेंगे? अगर उन्होंने मुझे देख लिया तो की इतनी रात गए दिव्या यहाँ क्या कर रही है!! इधर दिल सागर से मिलने को बेताब हुए जा रहा था, उधर दिमाग इन बातों से परेशान हुए जा रहा था | क्या करूँ, क्या ना करूँ, मजबूरियाँ ही मजबूरियाँ थी |
मन इन्हीं विचारों में खोया था | समय काफी हो गया था पता ही ना चला | ना जाने कब तक मैं आईने के सामने यूँ ही खड़ी रहती, अगर नैना ने आवाज ना दी होती |
मैं नीचे आई |

कमरे से बाहर आई तो सागर को देखकर एकदम से चौंक पड़ी | सागर यहाँ!! इस वक़्त!! हे भगवान!! कहीं ये मुझसे मिलने तो नहीं आया!! लेकिन फिर दादाजी को देखकर जान में जान आई |

सागर दरअसल मुझसे मिलने ही आया था | चूँकि मैं नहीं जा पाई थी इसलिए वो दादाजी के साथ हमारे घर ही आ गया था | हुआ यूँ की पापा और मामा दोनों खाना खाकर बाहर टहल रहे थे और उसी दौरान दादाजी भी टहलने निकले थे | तब वे तीनो साथ साथ हो लिए | उसे लगा की मैं नहीं आ पाऊँगी इसलिए वो भी दादाजी के साथ यहीं आ गया था | उसे देखकर मैं बहुत खुश हो गई थी | चेहरा ऐसे खिल उठा था जैसे कोई कली खिल उठ हो जब भंवरा उसे छूता है |
उसने ऊपर निगाह डाली और होले से मुस्कुरा दिया |

अरे दिव्या!! दादाजी आये हैं, चाय पानी लेकर आ, पापा ने मुझे देखकर कहा |
मम्मी और मामी तब छत पर ही थी |
मैं नीचे आई | अपनी चुन्नी अच्छे से ओढ़ ली मैंने |
सागर की नजरें मेरी ओर ही टिकी हुई थी, मैं खूब जान रही थी | दिल जोरों से धड़क रहा था उसे यहाँ अपने घर पर देखकर |

अंकल!! वॉशरूम किधर है? सागर ने पूछा |
वो बेटा उस तरफ है, पापा ने उसे बाथरूम जाने का रास्ता बताया |
दरअसल वो जानबूझकर उठा था | किचन से गुजरते ही हल्का सा खाँसा था वो और उसने एक चिट्ठी किचन की ओर फेंकी | मैंने तुरंत वो चिट्ठी उठा ली जिसमें लिखा था......."मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ", "अभी इसी वक़्त" |
ये लड़का समझता क्यों नहीं इतने लोगों के सामने कैसे मिलूं, चाय बनाते वक़्त अपने आपसे कहा मैंने |


तब तक मम्मी और मामी भी नीचे हॉल में आ गई थी | मैं सबके लिए चाय लेकर गई |
दिव्या बेटा, पढाई कैसी चल रही है? दादाजी ने चाय हाथ में लेकर पूछा |
अच्छी चल रही है दादाजी, मैंने जवाब दिया |
जब मैं सागर को चाय देने लगी तो उसने हलके से मेरे हाथ को छू लिया | उसकी इस बदमाशी पर मैंने आँखों से उसे मीठी सी झिड़की दी |
और सागर बेटा ट्वेल्थ के बाद क्या करने का सोचा है?
जी अंकल मन तो राइटर बनना चाहता है लेकिन दादाजी कहते है की इंजीनियरिंग भी करना है तो अभी फिलहाल उसी की तैयारियों में लगा हुआ हूँ, हँसते हुए सागर ने जवाब दिया |