(10)
“मैं कानूनी और गैर कानूनी मामले की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं तो यह जानना चाहता हूँ कि वह मुझे क्यों भेज रहा था ?”
“कैप्टेन हमीद !” शशि ने कहा”तुम और कर्नल विनोद शैतान के समान प्रसिध्ध हो । नारेन ने तुम्हारा चित्र उस देश को भिजवा दिया था जिससे तुम्हारे देश के संबंध कुछ अच्छे नहीं है और साथ में यह पत्र भी लिख दिया था कि हमीद राजेश के इलाके से गुजर कर दाखिल होगा । इसलिये उस देश के जासूस राजेश के आस पास मौजूद होंगे । वह तुम्हें देखते तो गिरफ़्तार कर ले जाते । तुम्हारा मौजूद होना ही उस देश के जासूसों के संदेह के लिये काफ़ी होता और फलस्वरूप तुम्हारे और उस देश के संबंध और खराब हो जाते । ”
हमीद यह रहस्य सुन कर चौंक पड़ा । उसका विचार तो यह था कि नारेन केवल एक स्मगलर है, मगर शशि की बातों ने उसे जैसे सोचने पर विवश कर दिया था कि नारेन की पीठ पर एक बहुत बड़ी शक्ति हाथ रखे हुये है । प्रगट है कि किसी देश में किसी दुसरे देश के जासूस का पाया जाना क्या मतलब रखता है ।
“मैं बहुत थक गई हूँ और अब मुझसे चला नहीं जा रहा । ” शशि ने कहा ।
“तो मत चलो । ” हमीद झल्ला कर बोला”मैं तुम्हें चलने के लिये विवश तो नहीं कर रहा हूँ । ”
“मुझे नींद लग रही है । ” शशि ने अंगड़ाई लेकर कहा ।
“तुम मेरी ओर से मर सकती हो । ” हमीद ने कहा ।
मगर यह सच्ची बात थी कि ख़ुद हमीद भी थक चूर हो गया था, और इधर उधर देखता जा रहा था कि यदि कोई सुरक्षित स्थान नजर आये तो वह भी थोड़ी देर सो सके ।
शशि एक वृक्ष के नीचे बैठ कर हांफने लगी थी । हमीद ने पलट कर उसकी ओर देखा और आगे बढ़ने लगा ।
पहाड़ियों के ऊँचे सिलसिले अब धीरे धीरे नीचे होते जा रहे थे और उन स्थानों पर नदी का पाट कुछ चौड़ा हो गया था । एक जगह पहुंच कर हमीद रुक गया ।
पहाड़ी से एक बहुत बड़ी चट्टान आगे की ओर निकली हुई थी, जिस पर से पानी की मोती सी धार निकल कर नदी में गिर रही थी । उसे झरना तो नहीं कहा जा सकता था, मगर द्रश्य था लुभावना ! चट्टान के नीचे अंदर की ओर एक गुफा सी बन गई थी जहां पत्थर की चिकनी सी सिल पड़ी है थी । ऐसा लगता था जैसे यहां कभी कोई आदमी अवश्य आया रहा होगा, इसलिये कि कपड़ों के कुछ टुकड़े दिखाई दे रहे थे ।
हमीद बगल से गुफा में प्रविष्ट हुआ । चारों ओर देखा, फिर कोट को तकिया बना कर लेट गया ।
थोड़ी ही देर में उसके खर्राटे गूंजने लगे ।
वह काफ़ी देर तक सोता रहा ।
अचानक उसकी नींद टूट गई । नींद खुलने का कारण वह हाथ था जो भरपूर तौर से उसके मुँह पर पड़ा था । वह चौंक कर उठ बैठा ।
शशि उसकी बगल में पड़ी बे खबर सो रही थी और शायद करवट लेटे समय उसका हाथ हमीद के चेहरे पर पड़ा था ।
“अरे मेरी मौत !” हमीद सर पर हाथ मार कर बडबडाया”कर्नल हार्ड स्टोन ठीक ही करते हैं जो औरतों से नफ़रत करते है । ”
फिर उसने शशि को झंझोड़ कर जगाया । शशि अंगड़ाई लेकर बैठ गई और निन्दासी आंखों से हमीद की ओर देखती हुई बोली”बड़ी अच्छी नींद लगी हुई थी । ”
“तुम यहां क्यों मरने आ गई थी ?” हमीद बोला ।
“मुझे डर लग रहा था । अगर कोई जानवर आकर मुझे चीर-फाड़ डालता तो ?”
“और अगर मैं ही तुम्हें चीर फाड़ डालूँ तो ?”
“मालूम होता है कि तुम्हें फिर भूख लग गई है ।” शशि ने मुस्कुरा कर कहा”मैं तुम्हारे लिये फल तोड़ लाई हूँ । ”
हमीद ने खा जाने वाली निगाहों से शशि की ओर देखा और घूंसा हिलाता हुआ वहां से उठ गया। शशि भी उसके पीछे चली।
संध्या होने में अभी दो तीन घंटे की देर थी इसलिए यात्रा फिर आरंभ हो गई। थोड़ी ही देर बाद हमीद को मैदान नजर आने लगा और फिर उसे एक बकरी भागते हुए दिखाई दी जो जंगली नहीं हो सकती थी। इसी आधार पर हमीद को यह विश्वास के लेना पड़ा कि यहाँ आसपास कोई न कोई आबादी अवश्य है।
उसने शशि से कहा—
“यहाँ गड़बड़ हो सकती है। आखिर तुम किस मार्ग से ले जा रही हो और कहाँ ले जा रही हो ?”
“मुझे आबादी तक का मार्ग मालूम था। ख़याल यह था कि यहाँ पहुंच कर अगर कोई जानने वाला मिल गया तो !”
“जानने वाला !” हमीद ने बात काटी “क्या तुम यहाँ किसी को जानती हो ?”
“मैंने कहा था कि मैं इधर आ चुकी हूं। नारेन यहाँ के लोगों को भरी संख्या में कपडे, पशुओं की दवाइयां और बंदूकें मुफ़्त सप्लाई करता है। ”
“मुफ़्त,” हमीद फिर चौंका ।
“हां, और इसके बदले वह हर साल इस इलाके के दस बारह नव जवान सुंदर और स्वस्थ लड़कियां ले जाता है। ”
“यह क्यों ?”
“यह मैं भी नहीं जानती!”
अचानक उन्हें रुक जाना पड़ा, क्योंकि बगल की चट्टान से तीन सर दिखाई दिए थे और उन्होंने चीख कर इनको रुकने के लिए कहा था। उनके हाथों में लम्बे लम्बे भाले थे और सरों पर गोल बालदार टोपियाँ थीं। इनके माथे उभरे हुए थेज़ रंग लाल स्वेत था। आंखें अंदर को धंसी हुईं थीं औए नाक चिपटी थी। सर के कुछ बाल, जो माथे पर लटके हुए थे, कौवे के पर के समान काले और चमकदार थे। वह तीनों बड़ी तेजी से बढ़ते आ रहे थे। समीप पहुंचते ही इनमें से एक ने हमीद के सीने पर भाले की नोंक रख दी। हमीद बौखला कर पीछे हट गया। फिर दुसरे ने संकेत से पूछा। शशि ने उसके उत्तर में जो कुछ भी कहा वह ऐसी भाषा में कहा कि हमीद समझ न सका। इन तीनों को चकित होना पड़ा। मगर एक ही क्षण बाद वह भी उसी भाषा में शशि से बातें करने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे शशि उन्हें किसी बात का यकीन दिलाना चाहती हो मगर वह विश्वास करने पर तैयार न हों।
हमीद चुपचाप खड़ा रहा। थोड़ी देर बाद शशि ने अपनी दोनों भुजाएँ खोलकर उनके सामने कर दीं। वह तीनों उसकी भुजाएं देख कर झुकते चले गये। तब शशि ने हमीद को संकेत किया। हमीद आगे बढ़ाज़ वह तीनों भी एक ओर चल दिये।
“मैं उन्हें यह विश्वास दिला रही थी कि हम उनके मित्र हैं। उन्हें मुझ पर तो विश्वास हो गया था। मगर तुम्हारे ऊपर उन्हें संदेह ही रहा था। मैंने उन्हें बताया कि तुम हाल में ही हमारे साथी बने हो। वह इस पर भी नहीं माने तब मैंने विवश हो कर अपनी भुजाओं वाला निशान दिखाया। ”
“यह निशान कैसा है?” हमीद ने पूछा।
शशि ने अपने होंठ मींच लिये और उसके चेहरे पर आतंरिक पीड़ा के चिन्ह प्रकट हो गये। ऐसा लगता था जैसे संसार का सारा विष उसने पी लिया हो। उसने भरे कंठ से कहा
“मैं वैश्या हूं। कदाचित उससे भी अधिक कोई घिनावनी वस्तु। मेरी भुजाओं का यह चिन्ह इस बात का प्रमाण है कि मैं कुमारी नहीं हूं, टोली का हर सदस्य मेरा सम्मान करने के लिये विवश है। मेरा शरीर नारेन के अतिरिक्त ओर कोई स्पर्श नहीं कर सकता। जब भी कोई नई लड़की आती है और नारेन उसे पसंद कर लेता है तो फिर वह नारेन के लिये रिज़र्व कर दी जाती है और फिर उसकी भुजाओं पर यह चिन्ह बनाया जाता है। ”
“तो इसमें बुराई क्या है। इसका मतलब यही तो हुआ कि तुम नारेन की पत्नी हो और पत्नी होना कोई बुराई नहीं है। ”
“पत्नी बड़ा सुंदर शब्द है, बड़ा ही पवित्र शब्द है यह मेरे नाम के साथ जोड़ कर इस शब्द की पवित्रता पर कीचड़ न डालो पत्नी किसी पुरुष की होती है, जानवर की नहीं और नारेन पुरुष नहीं जानवर है हिंसक पशु!”
हमीद का चहकना बंद हो गया। शशि की कहानी ने उसे सुस्त बना दिया था। वह चुप चाप चलता रहा।
अब यह लोग आबादी से गुजर रहे थे। फूस के बने हुए मकानों के सामने बूढ़े बच्चे इन्हें विचित्र निगाहों से देख रहे थे।
फिर वह लोग एक ऐसे मकान के सामने रुके जो दुसरे मकानों की अपेक्षा बड़ा था द्वार पर एक आदमी खडा था जो सूरत शक्ल से इस इमाके का सरदार मालूम हो रहा था। इनका स्वागत किया उसने और साफ अंग्रेजी में हमीद से बोला---
“तुम नये मालूम होए हो? अगर मादाम साथ न होतीं तो शायद हम तुमको मार डालते। ”
हीर वह शशि किओर मुड़ कर बोला—
“क्या प्रोग्राम है? आप इधर कैसे आयीं ? हमें हेड क्वार्टर से आप के बारे में कोई सूचना नहीं मिली!”
“हम लोग स्टीमर से रोजक जा रहे थे, मगर मार्ग में संयोग वश मैं स्टीमर से नदी में गिर पड़ी। इस जवान ने अपनी जान पर खेल कर मुझे बचा लिया। ”
“अब आप रोजक जायेंगे?”
शशि एक क्षण के लिये मौन रही, फिर उसने हमीद की ओर देखते हुए कहा—
“इस समय तो तुम हमें सीमा पार पहुंच दो। ”
“देखीये ! वर्षा आरंभ होने वाली है और दोनो ओर के मार्ग बंद होने वाले है। वर्षा कब आरंभ हो जाये कुछ नहीं कहा जा सकता, इसलिये आप सीमा पर नहीं कर सकतीं। आपको एक महीने तक हमारा अतिथि बन कर यहीं रहना होगा। ”
“तब तो विवशता है –” शशि ने धीरे से कहा।
फिर सरदार ने एक मकान इन लोगों के लिये खाली कराया और उसमें ठहरा दिया गया। अब सब व्यवस्था करके सरदार चला गया तो हमीद शशि पर उखड गया।
“मेरे ऊपर क्रोध करने से क्या लाभ!” शशि ने कहा”जब मार्ग ही बंद हो गया है तो मैं क्या कर सकती हूं। ”
“मैं भाग जाउंगा “ हमीद ने कहा।
“जान प्यारी नहीं है क्या?”
“डराती हो!” हमीद उखड गया।
“मान लो तुमको इन लोगों ने छोड़ भी दिया तो जाओगे कहाँ? न तो तुम्हें मार्ग मालूम है और न मुझे। ”
हमीद ने सख्ती से अपने होंठ मींच लिये और मुंह फेर कर लेट गया।
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सरला ने महसूस किया कि रेखा इस वातावरण में बहुत ही शांत नजर आ रही है। रोबी अवश्य परेशान थी। ऐसा लगता था जैसे उसकी समाज में यह न आ रहा हो कि उसे यहाँ क्यों लाया गया है। वह रेखा और सरला से बात करना भी पसंद नहीं कर रही थी। इसके विपरीत रेखा उसे बराबर छेडती रहती थी।
इन तीनों को एक आदमी सवेरे, दोपहर, शाम और रात में नाश्ता तथा खाना लाकर दे जाया करता था।
दो दिन इसी प्रकार बीत गये, और उनको यह भी नहीं मालूम हो सका कि वह क्यों गिरफ़्तार की गई है। तीसरे दिन रेखा ने कहा “वह अकेला आता है। अगर हम तीनों मिल कर उसे विवश कर दें तो कैसा रहे?”
“उसके हाथ में रिवाल्वर रहता है—” रोबी ने कहा—”अगर तुमने ऐसी कोशीश की तो सुहागिन बनने की इच्छा लिये हुए ही दुसरे संसार में पहुंच जाओगी। ”
“तुम बहुत डरपोक जान पड़ती हो” सरला ने कहा—
“शट अप –” रोबी ने कहा।
“ऐ ! जरा जबान संभल कर बातें करो वर्ना होटों की ये लाली मिट्टी में मिल जायेगी। ” सरला ने क्रोधित होकर कहा।
“शट अप !” रोबी बोली।
“जबान संभल कर बातें करो –” सरला ने कहा “वर्ना तुम्हारी खोपड़ी में ऐसा छेद हो जायेगा कि जिन्दगी भर न भर सकेगा। ”