Vishal Chhaya - 4 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | विशाल छाया - 4

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विशाल छाया - 4

(4)

हमीद ने दो एक बार सर को झटका दिया और फिर उठ कर दबे पाँव केबिन से बाहर निकला। उसका अनुमान गलत सिद्ध हुआ। यह लांच नहीं बल्कि एक छोटा सा स्टीमर था, जिसके शीशे चढ़े हुए थे। 

हमीद ने शीशों से झांक कर देखा। उसे यह अनुमान लगाना कठिन हो रहा था कि वह संसार के किस भाग में है, क्योंकि नदी के दोनों ओर ऊँची ऊँची पहाड़ियां थीं, जिस पर लम्बी नोक दार पत्तियों वाले वृक्ष दिखाई दे रहे थे। भौगोलिक ज्ञान के आधार पर हमीद इस नतीजे पर पहुंचा था कि ऐसे वृक्ष अपने देशों में नहीं पाये जाते। 

चांदनी फैली हुई थी, मगर आकाश पर चाँद का अर्ध भाग इस बात कि ओर संकेत कर रहा था कि वह तीन चार दिन के बाद होश में आया है, क्योंकि जिस दिन वह इन लोगों के पंजे में फंसा था उस दिन पूरे चाँद की रात थी अर्थात पूर्णिमा थी। 

सीढ़ियों द्वारा वह स्टीमर के उपरी खंड पर पहुंचा। यहाँ दो आदमी बैठे हुए अपलक पश्चिमी घाट की ओर देख रहे थे। हमीद की आहट पाकर भी वह नहीं चोंके। 

“कहो दोस्तों !” हमीद ने उन्हें सम्बोधित किया—”तुम्हारे पास दियासलाई होगी ?”

एक ने चुपचाप दियासलाई निकालकर हमीद की ओर बढ़ा दी और फिर उसी ओर देखने लगा। 

“अभी कोन गा रहा था ?” हमीद ने पूछा । 

दोनों में से किसी ने उत्तर नहीं दिया । 

“बोलते क्यों नहीं ?” हमीद चीख पड़ा । 

“यह दोनों गूंगे है !” एक मधुर आवाज सुनाई पड़ी । 

हमीद ने पलट कर देखा । यह वही सुनहरी लड़की थी जिसका नाम उस सूखी टांग वाले नारेन ने शशि बताया था । 

“गूंगे !” हमीद ने आश्चर्य से कहा” अभी तो मैंने इनसे दियासलाई मांगी थी और एक ने दी थी, फिर यह गूंगे कैसे है । ”

“तुम इन से कोई भी वस्तु मांगो, तुम्हें दियासलाई देंगे । ”

“इनको यह कैसे पता चलता है कि इनसे कोई वस्तु मांगी जा रही है ?”

“यह मैं नहीं जानती । ” शशि ने हंस कर कहा”मैं इन लागों को बहुत दिनों से देख रही हूँ । मगर मैंने न इन्हें कभी बोलते नहीं देखा न सुना । ”

“बकवास है । ” हमीद झल्ला कर बोला”तुम्हारा वह सूखी टांगो वाला साथी कहां गया ?”

“सूखी टांगो वाला ?”

“हाँ हाँ । ” हमीद दांत पीस कर बोला”मेरा मतलब नारेन से है । ”

“वह मेरा साथी नहीं है, बल्कि मेरा पति है । ”

“हम लोग पति को साथी ही कहते है । कुछ लोग हाथी भी कहते है, पता नहीं शब्द कोष में क्या लिखा है । तुमने शब्द कोष देखा है ?”

शशि हँसने लगी । उसके सफ़ेद दांत मोतियों के समान चमक रहे थे । 

“क्या तुम दाँतों के मंजन की किसी कम्पनी का विज्ञापन हो ?” हमीद ने पूछा । 

“नहीं तो । ” शशि ने चकित होकर कहा”मगर तुमने यह प्रश्न क्यों किया ?”

“इसलिये कि तुम अपने दाँतों का प्रदर्शन कर रही हो । ” हमीद ने कहा । 

“तुम हमारे शत्रु हो, मगर तुम्हारी बातों पर मुझे न जाने क्यों प्यार आता है । ” लड़की ने कहा । 

“क्या कहा, प्यार !” हमीद बिगाड़ गया”यह मनहूस शब्द मेरे सामने अब न लेना वर्ना अच्छा नहीं होगा....जानती हो मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ ?”

“नहीं ?”

“जब मेरे सामने कोई प्यार का नाम लेता है तो मुझे प्यास सताने लगती है...खून की प्यास, मेरा दिल इस समय चाह रहा है कि....

“मुझे हाथ लगा कर देखो... नदी में डूबते उभरते दिखाई दोगे । ” शशि ने हंस कर कहा”इस नदी में बड़े बड़े घड़ियाल और मगर मच्छ रहते है । ”

“और वह बेचारे अपनी मादा को खोजते होंगे । ” हमीद ने बात काटी । 

“क्या बात हुई ?” शशि ने पूछा । 

“तुम्हारे साथ कौन कौन है ?” हमीद ने बात बदल दी । 

“मेरे साथ यह दोनों है, सारंग है और दो रक्षक है । ”

हमीद बातें करता हुआ ऊपर से नीचे दरवाज़े तक आया और पालती मार कर वहीँ बैठ गया । 

“यहां बैठने का मतलब ?” शशि ने पूछा । 

“आओ तुम भी बैठो, फिर मतलब भी बता दूँगा । ”

शशि भी बैठ गई । 

हमीद ने झुक कर हाथ पानी में डाल दिया और लहरों से खेलता हुआ बोला”कितना ठंडा पानी है । आओ तुम भी लहरों से खेलो । ”

“मुझे यह बच्चों का खेल अच्छा नहीं लगता । ” शशि ने कहा । 

“दिल तोड़ने वाली बातें न करो शशि !” हमीद ने भराई हुई आवाज में कहा” मैं तुम्हें देख रहा हूँ ओर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे हम दोनों बहुत पहले एक गाँव के तालाब में नहाया करते थे । उछल कूद मचाया करते थे । एक दुसरे से लिपट जाया करते थे और...। ”

“शरीर कही के । ” शशि ने शर्माते हुये बात काट दी” तुम मुझसे इस प्रकार की बातें करते हो यह जानते हुये कि मैं विवाहित नारी हूँ । ”

“तो इससे अंतर ही क्या पड़ता है । ” हमीद ने कहा”मेरी चाची भी विवाहित नारी थी, मगर मेरे चाचा बराबर उन्हें छेड़ा करते थे । ”

“यह क्या बात हुई ?” शशि ने आश्चर्य से पूछा । 

“आह शशि ! बस यही न पूछो.....मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं ही चचा हूँ ओर तुम चची हो, इसलिये मेरा हक़ है कि मैं तुम्हें छेडू । ”

फिर उसने शशि का एक हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा और शशि उसकी ओर झुकती चली गई । 

“जंगली !” शशि ने कहा । 

“तुम्हें देख कर मुझे हबशिन याद आती है । ” हमीद हँस पड़ा”लो तुम भी पानी से खेलो । ”

यह बात हमीद ने ऊँची आवाज में कही थी और गर्दन उठा कर चारों ओर देखने लगा । उसे आश्चर्य हो रहा था कि इतनी ऊँची आवाज में बोलने के बाद भी कोई आदमी क्यों नहीं दिखाई दिया था । तो क्या शशि ने झूठ कहा था कि उसके साथ दो रक्षक भी है । 

फिर वह दोनों पाँव लटका कर बैठ गये । नहीं का जल उनके तलुओं को छूने लगा था । 

“क्या नदी में डूब मरने की सोच रहे हो ?” शशि ने व्यंग भरे स्वर में कहा । 

“तुम्हारे लिये तो चुल्लू भर पानी ही काफ़ी है, मगर मुझ जैसे शानदार आदमी के लिये नदी का जल भी काफ़ी नहीं है । ”

“इस ख़याल में न रहना ! नदी का तेज बहाव, नीचे की पथरीली चट्टानें तथा हिंसक जीव तुम्हारी लाश को चीथड़े चीथड़े कर डालेंगे । ” शशि ने कहा । 

“मेरी तो कामना ही यही है । ” हमीद ने सीने पर हाथ मार कर कहा”क्या तुमने वह शेर नहीं सुना ?”

“क्या ?”

“हुए हम जो मरके रुस्वा, हुए क्यों न गर्के दरिया । 

पड़े रहते मिसले मैंढक, कही गाँय गाँय करते । ”

और फिर हमीद इसी कि ओर जोर जोर से गाने लगा। तात्पर्य केवल यह था कि शायद कोई इधर आए, मगर कोई इधर नहीं आया। फिर वह दोनों हाथों के बल जरा और आगे खिसका। इस प्रकार उसकी पिंडलीयों तक पानी पहुंच गया। यहाँ पानी का बहाव और तेज था। 

“यह क्या करने जा रहे हो?” शशि ने ड़ाटा। 

“ढकेल दो ना “ हमीद ने मुस्कुरा कर कहा। 

और फिर दुसरे ही क्षण वह बहुत घोरे से नदी में उतर गया। 

शशि ने उसे पकड़ने के लिये हाथ बढाया, मगर इसे संयोग कहा जाए या हमीद की शामत, कि हमीद का बोज़ वह न संभाल सकी ख़ुद भी नदी में गिर पड़ी । 

उसके मुख से निकलने वाली चीख स्टीमर वालों ने सुनी या नहीं सुनी यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता था, क्यों कि स्टीमर सेंकडो गज आगे निकल गया, मगर किसी ने उसकी चिंन्ता नहीं की। शशि चीख रही थी और हमीद भी बौखला गया था क्योंकि एक तो पानी गहरा था और दुसरे पानी के अंदर नोकीली चट्टानें थीं। उसके शरीर में जलन हो रही थी। शशि उस पर लद गई थी, इसलिये हमीद को अपने बचने की आशा नहीं रह गई थी । 

वृक्ष की वह डाल जिसे देख कर हमीद ने छलांग लगाईं थी अब भी काफ़ी दूर थी। 

स्टीमर नजरो से ओझल हो चुका था। 

विनोद ने कार रोक दी और रमेश को उतार कर स्टडी में ले आया। सरला भी उसके साथ ही थी। 

“पता नहीं इसे कब होश आयेगा । ” सरला ने चिंता जनक स्वर में कहा “मेरे विचार से चिंता की कोई बात नहीं है, वैसे आपका क्या विचार है?”

विनोद इस प्रकार चोंका जैसे उसे कोई बात याद आ गई हो उसने ठंडी सांस खींच कर कहा

“चिंता की बात तो अवश्य है। ”

सरला झुक कर रमेश की ओर देखने लगी। उसके होंठ काँप रहे थे। 

“मै इसके लिए परेशान नहीं हूँ!” विनोद ने कहा। 

“फिर ?” सरला ने प्रश्नात्मक द्रष्टि से उसकी ओर देखा। 

“मै वास्तव में हमीद के लिए परेशान हूँ” विनोद ने कहा। ”मैं सोच रहा हूं कि कहीं वह किसी विपत्ति में न पड़ गया हो। ”

“वह आता ही होगा” सरला ने कहा” आपने तो ख़ुद ही उसे पाठ पढ़ाने के लिए जान बुझ कर छोड़ दिया था!” विनोद ने कहा”लेकिन यह भी तो आवश्यक नहीं है किमैं जो कुछ सोचूं वह सच ही साबित हो। ”

सरला मूर्खों के समान उसकी ओर देखने लगी। 

अचानक त्र्लिफों की घन्टीबजने लगी। 

“हेलो सिक्स नाईन ....कर्नल साहब है। ”

“हां

, मैं विनोद बोल रहा हूं ..रिपोर्ट ?”

“केप्टन साहब उसी सड़क पर गए है। मै उनके पीछे लगा हूं। ”

“उसने तुम्हें देखा तो नहीं ?”

“जी नहीं। ”

“टेबी का क्या समाचार है ?”

“वह इसी फ्लैट में है”। 

“ठीक है । एक घंटे बाद फिर रिपोर्ट देना”विनोद ने कहा और संबंध काट दिया। 

फिर वह अर्थ पूर्ण द्रष्टि से रमेश की ओर देखने लगा। कुछ क्षण बाद सरला ने कहा

“कुछ दिनों तक तुम्हें यहीं रहना होगा। ”

“और यह ?” सरला ने रमेश कि ओर देख कर पूछा। 

“इसे होश आ जायेगा। ”

विनोद इतना कह कर अपने पुस्तकालय में चला गया। अंदर द्वार बंद करके उसने एक अल्मारी खोली और फाइल निकाल कर मेज पर रखी। फिर मेज की दराज से एक दूसरी फाइल निकाली जिसमे समाचार पत्रों के तुकडे और कुछ चित्र थे। उसने इन दोनों वस्तुओं को मेज पार फैला दिया और गहन चिंता में डूब गया। 

फिर उसने विचित्र भाव में होंठ सिकोड़े और फिर असली अवस्था में आ गया। 

फिर उसने अपनी जेब से एक छोटे से केमरे जैसी वस्तु निकाली और उसका मुकबिका उस चित्र से करने लगा जो एक कागज़ पर बनी हुई थी और जिसके नीचे फ्रांसीसी भाषा में एक लम्बी इबारत लिखी हुई थी। बड़ी सावधानी से दोनों फाइलें उनके स्थान पर रख दी और फिर केमरा जेब में डाल कर लेबोरेटरी की ओर चला गया। 

लेबोरेटरी में पहुंच कर उसने एक बड़े शीशे के सामने उसी केमरे को चिपका दिया और सारे स्विच आफ़ कर के लाल वाला बल्ब जला दिया। फिर उसने मेज की दराज से फिल्म के छोटे २ टुकडे केमरे के रोल पर चढाए। फिल्म के उन टुकड़ों पर बिंदु बने नजर आ रहे थे। मगर जब लाल बल्ब का प्रकाश उन पर पड़ा तो सामने वाले शीशे पर जानवरों के चित्र दिखाई देने लगे। 

उसने संतोष की सांस ली। 

फिर उसने केमरे के रोल की फ़िल्में उतारी और स्विच आन करके लाल वाला बल्ब बुझा दिया। फिर वह केमरा उतरने ही जा रहा था कि टेलीफोन की घन्टी बजने लगी। एक्सटेंशन के यह फोन उसके हर कमरे में लगे हुए थे। उसने रिसीवर उठा कर कहा