श्रेयांश और प्रणय मोहन विलास पहुंचे । उन्होंने ऑटो वाले को पैसे दिए और मोहन विलास के सामने खड़े हो गए । प्रणय ने अपने फोन में चेक किया , उसी होटल का एड्रेस था जो उसने बुक किया था । दोनों ने बाहर से मोहन विलास देखा , नेट में डाली गई पिक से ज्यादा सुंदर अपने सामने देखने से वह लग रहा था ।
प्रणय ( होटल को बड़े ध्यान से देखते हुए ) - होटल तो काफी सुंदर लग रहा है यार । हां ...., छोटा जरूर है , लेकिन काफी अट्रेक्टिव है ।
श्रेयांश - हां...., यू आर राइट ।
दोनों अंदर आए , और रिसेप्सनिष्ट से अपनी बुकिंग कन्फर्म की । तो वह लैपटॉप में देखते हुए बोली ।
रिसेप्सनिष्ट - सर आपने बुकिंग करवाई जरूर थी , पर वो हमारे साइड से कन्फर्म नहीं की गई थी ।
प्रणय - व्हाट....!!!! ( उसने अपने मोबाइल में बुकिंग डिटेल्स देखी , तो उसे खुद पर गुस्सा आया , क्योंकि सच में उनकी बुकिंग कैंसल हो गई थी ) लेकिन हमारी बुकिंग कैंसल क्यों की गई ..???
रिसेप्सनिष्ट - सर....., हमारे यहां बैचलर्स का स्टे एलाऊ नहीं है । सिर्फ फैमिली ही स्टे कर सकती है । आपने जिस वेबसाइट से बुकिंग रिक्वेस्ट भेजी थी , उसमें ये सारी डिटेल्स हैं ।
ये सुनते ही श्रेयांश ने प्रणय को गुस्से से घूरा और उसने अपने सिर पर हाथ रख लिया । उसने खजुराहो से निकलते वक्त जब बुकिंग की थी , तब इस वेबसाइट पर जल्दी - जल्दी में ये डिटेल देखी ही नहीं थी । प्रणय रिसेप्सनिस्ट से यहां रुकने की परमिशन देने को कहने लगा और उसने एक्स्ट्रा पैसे देने की भी पेशकश की । लेकिन चूंकि उसे एलाऊ नहीं था , अपने सीनियर्स के बनाए रूल्स के खिलाफ जाना , तो उसने उसकी पेशकश खारिज कर दी । दोनो बात कर रहे थे और श्रेयांश बस अपनी गर्दन को टेढ़ा - मेढ़ा कर उसपर अपना एक हाथ फिराते हुए गुस्से से खा जाने वाली नजरों से प्रणय को घूर जा रहा था । उसका बस चलता , तो आज वह प्रणय को यहीं धो देता , बिना साबुन पानी के । तभी वहां एक अधेड़ उम्र के आदमी आए, और वहां आकार उन्होंने रिसेप्शनिस्ट से इस बहस बाजी का कारण पूछा तो उसने इसका कारण बता दिया । तो उस अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने प्रणय की तरफ रुख किया और कहा।
व्यक्ति - देखिए , मैं यहां का ऑनर हूं । कृपया आप लोग बताएंगे आप कहां से आए हैं । और क्या परेशानी है ।
प्रणय - हम मुंबई से हैं । यहां वेकेशंस पर घूमने आए हैं । खजुराहो से निकलते वक्त मैंने जब यहां के बारे में सर्च किया , तो यही होटल पहले दिखा और इसकी तारीफ भी बहुत लिखी थी , तो मैंने यहीं की बुकिंग ले ली । जल्दी - जल्दी में मैं ये रूल्स पढ़ नहीं पाया । अब हम तो यहां के बारे में जानते नहीं है , जब यहां रुकेंगे तब ही पता चलेगा । अब इन सबमें हम इतने कम समय में दूसरा होटल कहां ढूंढेंगे , क्योंकि उसमें तो हमें टाइम लगेगा । तब तक के लिए भले ही आप एक्स्ट्रा चार्जेज ले लीजिए, पर हमें कम से कम एक रात तो यहां स्टे करने दीजिए ।
व्यक्ति - मैं आपकी समस्या समझ रहा हूं । लेकिन आज तक हमने कभी किसी भी बैचलर्स को यहां एलाऊ नहीं किया है , हम भला कैसे आपको यहां एलाऊ कर दें ..??
श्रेयांश ( उनके पास आया और बोला ) - देखिए सर..., हम आपके रूल्स को समझते हैं । हम आपको डिस्टर्ब नहीं करेंगे । आज रात रुकने के लिए बस आप परमिशन दे दीजिए । हम आज से कल तक हर हाल में दूसरे होटल में रूम बुक कर लेंगे । आप भी हमारी प्रॉब्लम समझिए न ।
श्रेयांश के कहने पर वह उसकी बात पर सोचने लगे और प्रणय उसे हैरानी से देख रहा था , क्योंकि अभी तक तो ये यहां आने तक को राज़ी नहीं था , कितना सुनाया इसने मुझे रास्ते भर और अब इतने शांत तरह से बात कर रहा है , जैसे बहुत सीधा हो । श्रेयांश ने उसे देखा , तो उसने हड़बड़ा के नजरें फेर लीं ।
व्यक्ति - ठीक है, आप लोग यहां रुक सकते हैं । आज रात के लिए ।
प्रणय ( खुश होकर ) - थैंक्यू , थैंक्यू सो मच सर । और एक्स्ट्रा चार्जेज कितने देने पड़ेंगे..???
व्यक्ति ( मुस्कुराकर ) - नहीं....., हम आपसे कोई एक्स्ट्रा चार्जेज नहीं लेंगे । इनफैक्ट आप सिर्फ वन डे का पेमेंट बस कीजिए । ( रिसेप्शनिष्ट से ) इनसे एक्स्ट्रा चार्जेज नहीं लेना है और इनका सामान रूम में भिजवाइये ।
वो व्यक्ति चले गए और रिसेप्शनिस्ट ने उनकी बुकिंग की और सारी फॉर्मिलिटीज पूरी कर उन्हें उनके रूम की चाबी पकड़ाई । दोनों अपने रूम में आए और वहां का कर्मचारी उनका सामान रूम में रख गया । अब चूंकि यहां रुकने के लिए ही इतने रूल्स थे , इस लिए उन्हें एक ही रूम बड़ी मुश्किल से दिया गया था , जिसमें दोनो को आज की रात काटनी थी । दोनों अंदर आए , तो उन्हें बहुत बड़ा तो नहीं , लेकिन हां दो व्यक्ति के रहने लायक रूम दिखा । दरवाजे के सामने डबल बेड था , उसके दोनों साइड पर दो - दो ड्रार वाली टेबल के साथ उसपर रखा सुंदर सा टेबल लैंप था । बेड के बाएं साइड छोटा सा कबर्ड था , और सामने एल. ई.टीवी । कबर्ड के चार कदम बाद छोटी सी बालकनी थी , जहां से सामने की सिटी रोड और अगल - बगल के घरों के साथ , होटल के पीछे फैली हुई हरियाली दिखती थी । कुल मिलाकर स्वीट एंड सोवर जगह थी । प्रणय तो बस बालकनी में आकर वहां उसे छूकर गुजरती ठंडी हवा को महसूस कर रहा था और वहीं श्रेयांश मुंह बनाकर पूरा कमरा देख रहा था , क्योंकि उसे ये जगह बहुत छोटी लग रही थी । और लगे भी क्यों न ...., क्योंकि श्रेयांश मुंबई के टॉप लॉयर और बेस्ट बिजनेस मैन का बेटा था , जहां उसे किसी भी तरह की कोई कमी नहीं होती थी । जो मंगाया वो हाजिर , बड़े बड़े कमरे , सारी सुविधाओं से परिपूर्ण । बस अगर कमी थी तो शांति की , और सौहाद्र की । जिसे ढूंढने ही वो अपने जिगरी दोस्त के साथ एमपी की इन जगहों पर घूमने आया था । ( श्रेयांश और प्रणय के बारे में और जानकारी आगे के कहानी में समय - समय पर मिलती रहेगी ) । प्रणय बालकनी से अंदर आया और श्रेयांश से कहा ।
प्रणय - यार श्रेयू ( श्रेयांश का निक नेम, जिससे से प्रणय ही उसे बुलाता था ) ......, ये जगह तो एकदम मस्त है भाई , मतलब मेंटल पीस के लिए बेस्टम बेस्ट प्लेस है ये ।
श्रेयांश ( उसे घूरकर ) - काहे की बेस्ट..???? देख..., कितना छोटा रूम है और न ही यहां ऐसी कोई खास सुविधा है , जो हमारे मुंबई के होटल्स में होती है । मजबूरी में मुझे उनसे यहां रुकने की बात कहनी पड़ी , वरना अगर तेरी गलती नहीं होती , तो मैं कभी उनसे यहां रुकने की परमिशन नही मांगता ।
प्रणय ( उसके पास आकर , बेड पर पसरते हुए बोला ) - अब भाई तुझे कहां ये जगह पसंद आएगी , सेवन स्टार होटल में ठहरने वाला इंसान कहां जाने इस छोटे से होटल की सुकून, शांति और खूबसूरती को ।
श्रेयांश ( उसके पेट पर घूंसा मार कर ) - तू मुझे ये सब बता रहा है , जिसने ये टूर प्लान किया ।
प्रणय ( जोर से लगने की एक्टिंग करते हुए ) - आह...., मार डाला रे इस सरफिरे मुंबई के साहब जादे ने । ( श्रेयांश ने उसे घूरा तो उसने कहा ) तूने एमपी घूमने का टूर बनाया था, लेकिन यहां तो तुझे मैं लाया हूं न ..!!!! देख , तेरे फाइव स्टार होटल्स में मैं खूब घूम लिया , अब थोड़ा सा सुकून भरी शांति में तू मेरे साथ घूम । मैंने यहां के बारे में नेट में बहुत कुछ पढ़ा है , पक्का तुझे यहां बहुत अच्छा लगेगा । बस तू अपनी ये सड़े हुए टमाटर जैसी शक्ल को साइड में रखकर , अच्छे मन से मेरे साथ यहां घूम , फिर तू खुद कहेगा कि यहां आकर हमने कोई गलती नहीं की ।
श्रेयांश - ऐसा नहीं होगा , देखना ।
प्रणय ( उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाकर ) - चल ठीक है , लगी शर्त..???
श्रेयांश ( उसकी हथेली में अपना हाथ रखकर ) - लगी शर्त , मैं जीता तो जो मैं मागूंगा तुझे देना होगा ।
प्रणय ( आंखें मटकाकर ) - अगर मैं जीता तो..???
श्रेयांश - जो तू कहेगा मैं करूंगा ।
प्रणय - ओके डन...। पर फिरहाल तू रेडी हो जा , मैं तुझे यहां की फेमस जगहों में से एक जगह लेकर चलता हूं आज , उसी बहाने तू थोड़ा भक्ति भी कर लेगा और तुझे थोड़ा सुकून भी मिलेगा ।
श्रेयांश मुंह बनाकर बड़बड़ाते " हुंह....., यहां और सुकून ....!!!!! " हुए बाथरूम चला गया , जो कि बालकनी के बगल में ही रूम से अटैच था ।
इधर अनुमेहा जब तैयार होकर रूम में आई , तो सुधा तो बस उसे देखती ही रह गई । वह उस सूट में बहुत प्यारी लग रही थी । सुधा ने उसे कंधो से पकड़ा और आइने के सामने ले जाकर उसे उसके सामने बैठाते हुए कहा ।
सुधा - बहुत प्यारी लग रही हो तुम ( अपनी आंख से काजल निकाल कर उसके कान के नीचे लगाते हुए बोली ) किसी की नज़र न लगे तुम्हें । ( अनुमेहा मुस्कुरा दी , सुधा मैचिंग इयररिंग्स उसे पहनाने के लिए उसकी बालियां उतरते हुए बोली ) अब जल्दी से ये वाली इयररिंग्स पहन लो और बालों को खुला रखो , इतने लंबे बाल हैं और उसे भी तुम जुड़े में जप्त किए रहती हो । थोड़ा उन्हें भी आजादी दो और इन बालियों को भी ।
अनुमेहा ( उसे रोकते हुए बोली ) - नहीं सुधा , हमें ये बालियां ही पहने रहने दो । इन्हें उतारने और पहनने में बहुत वक्त लगेगा । और तुम्हें तो पता है, हमें ये बालियां और बंधे हुए बाल ही अच्छे लगते हैं ।
सुधा ( उसके बाल खोलकर उसमें छोटा सा क्लचर लगाते हुए बोली ) - ठीक है, हम तुम्हारी ये बालियों वाली बात मान लेते हैं और तुम हमारी ये बालों को खुले रखने वाली बात मान लो । लो....., हमने इन्हें हाफ ओपन कर दिया है । इससे तुम्हारी भी बात रह जायेगी और हमारी भी ।
अनुमेहा ( मुस्कुराकर ) - ठीक है । अच्छा अब चलो....।
सुधा ( अपनी कमर पर हाथ रखकर ) - ऐसे....., बिना मेकअप, बिना काजल के तुम जाओगी ..???
अनुमेहा - तुम तो जानती हो न , हमें ये सब नहीं पसंद ।
सुधा - अच्छा ठीक है । लेकिन सिर्फ काजल लगा लो , बहुत अच्छा लगता है तुम्हारी आंखों में ।
अनुमेहा ने हामी भर दी , तो सुधा ने अनुमेहा की आंखों में काजल लगाया और एक छोटी सी उसके ललाट पर काली बिंदी भी लगा दी । इतने में ही अनुमेहा की खूबसूरती में चार - चांद लग गए । दोनों ने अपना मोबाइल और पर्स उठाया और अपने दादा - दादी के रूम में आ गए । अनुमेहा सुधा के साथ उनके रूम में आई , जब सुजाता जी ( अनुमेहा की दादी ) , अभिराम जी ( अनुमेहा के दादा जी ) को दवाई दे रही थीं , क्योंकि उन्हें बीपी और शुगर की बीमारी थी । दोनों ने जब अनुमेहा और सुधा को देखा , तो मुस्कुरा दिए । अनुमेहा ने उनके सामने आकर शांत भाव से मुस्कुराते हुए कहा ।
अनुमेहा - दादा जी ....., हम आपको एक बात बताने आए हैं ।
अभिराम जी - हां बेटा , कहो न ।
अनुमेहा - हमने रीवा यूनिवर्सिटी में टॉप किया है ।
सुधा ( उसकी बात पूरी होने से पहले ही उछलकर ) - यूनिवर्सिटी का रिकॉर्ड तोड़ा है इसने बब्बा जी ( दादा जी ) , और पूरी यूनिवर्सिटी में फर्स्ट रैंक आई है इसकी ।
अभिराम जी और सुजाता जी ( खुश होकर ) - क्या...!!!!
अनुमेहा ने मुस्कुराकर हां में सिर हिला दिया और अभिराम जी के पैर छुने के लिए हाथ बढ़ाते हुए बोली ।
अनुमेहा - आशीर्वाद दीजिए दादा जी ।
अभिराम जी ( उसके हाथ बीच में ही रोकर गर्व से बोले ) - हमारे यहां बेटियां पैर नहीं छूती बेटा , कितनी बार बताया हैं हमने आपको । और आज तो आपने हमारा सर गर्व से ऊंचा कर दिया । पूरी यूनिवर्सिटी में हमारी नातिन ने टॉप किया , ये तो हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी की बात है ।
अनुमेहा - पर आप बड़े हैं और बड़ों का आशीर्वाद लेने में कैसी मनाही दादा जी ।
अभिराम जी ( मुस्कुराकर ) - बात तो आपकी बिल्कुल सही है बेटा । लेकिन हम लोग अपनी बेटी को पूजकर उनका कन्यादान करते हैं , और हर नवरात्र में अपने घर की दुर्गा ( बेटी ) की पूजा करते हैं , तो हम जिन्हें पूजते हैं उनसे भला अपने पैर कैसे छुआ लें बेटा ...??? हमारे यहां बेटियां देवी समान होती हैं , जो हमें आशीर्वाद देती हैं तब हमारा घर फलता फूलता है , भला उन्हें अपने पैरों पर झुकाकर हम उनका अपमान कैसे कर सकते हैं ।
अनुमेहा ( उनके गले लगकर ) - हम आपकी इस बहस में कभी नहीं जीत पाते दादा जी , लेकिन आप हमारे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद जरूर दीजिए , ये हमारा हक है । बाकी अगले जन्म में जब हम आपकी नातिन या बेटी बनेंगे , तो ऐसा कोई रिवाज़ नही निभाने वाले , बता रहे हैं हम पहले से आपको ।
अभिराम जी ( प्यार से उसके सिर पर हाथ रखकर बोले ) - ये तो अपनी - अपनी सोच है बेटा । बाकी हमारा आशीर्वाद तो हमेशा अपने बच्चों के साथ है । भगवान से प्रार्थना है , कि आपको जीवन में खूब तरक्की मिले और आप अपने सारे सपने पूरे करें ।
अनुमेहा उनकी बात सुनकर मुस्कुरा दी और उनसे अलग होकर अपनी दादी के पास गई , तो सुजाता जी अपनी आखों में नमी लिए मुस्कुराकर उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उसके माथे को चूमते हुए बोलीं ।
सुजाता जी - तुमने हमें वो खुशी दी है बेटा , जो हमारे किसी भी बच्चे ने नहीं दी । तुम हमारे खानदान की सबसे समझदार बेटी हो । भगवान करे तुम हमेशा ऐसे ही अपने दादा जी का नाम रोशन करती रहो और हमेशा अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो , भगवान तुम्हें हर मुसीबत से बचाकर रखे ।
अनुमेहा मुस्कुराकर उनके गले लग गई । तभी माहौल सेंटी होता देख , सुधा अभिराम जी के पास आई और उनसे मुंह बनाकर बोली ।
सुधा - सारा लाड़ प्यार आप दोनों अपनी इसी नातिन पर लुटाइएगा । हमें तो आप दोनों भूल ही गए ।
अभिराम जी ( उसकी तरफ बाहें फैलाकर बोले ) - अरे ऐसे कैसे । आप तो हमारी सबसे प्यारी और नटखट नातिन हैं । भला आपको कैसे भूल सकते हैं..!!! और ये बताइए , आपका रिजल्ट कैसा रहा..???
अनुमेहा ( सुजाता जी से अलग होकर , दोनों की तरफ देखते हुए बोली ) - आपकी इस नातिन ने पूरी क्लास में टॉप किया है । पूरी क्लास में सेकंड आई है ।
अभिराम जी ( उनके गले लगी सुधा के, प्यार से सिर पर हाथ फेरकर ) - अरे वाह...!!!! , हमारी ये नटखट शैतान नातिन भी इतनी होशियार है , ये तो हमें पता ही नहीं था । आपके साथ हमारा आशीर्वाद हमेशा है बेटा , आप भी बुलंदियों को छुएं और हमेशा सबकी लाड़ली बनी रहें ।
सुधा ( मुस्कुराकर ) - थैंक्यू बब्बा जी ।
फिर वह अभिराम जी से दूर होकर सुजाता जी के गले लगी और उन्होंने भी उसे भर - भरकर आशीर्वाद दिया । दोनों उन्हें बता कर , मंदिर की ओर बढ़ गई । सुधा अपनी स्कूटी लाई थी , तो उन्हें मंदिर पहुंचने में मुश्किल से दस मिनट का समय लगा । सुधा ने पार्किंग एरिया पर अपनी स्कूटी खड़ी की और अनुमेहा जुगल किशोर जी के प्रसाद के लिए पेड़े ( छोटे आकार की पन्ना में अधिकतर मंदिरों में भोग लगाए जाने वाली फेमस खोबे की मिठाई ) लेने चली गई । पेड़े लेने के बाद अनुमेहा मुख्य द्वार पर चली आई , जहां सुधा पहले से खड़ी थी । दोनों ने वहीं पास में लगे नल से पैर धोए और मंदिर के अंदर आ गई । आज एकादशी थी , इस लिए मंदिर में भीड़ कुछ ज्यादा ही थी । अनुमेहा और सुधा ने पहले प्रसाद दान पेटी के ऊपर रखी बढ़ी सी थाल में रखा , और किशोर जी को देखते हुए दोनों मन ही मन अपने उज्जवल भविष्य की कामना करने लगी , इसके साथ ही उनके जीवन में आए इस खुशी के अवसर के लिए उन्हें धन्यवाद भी किया । तभी पंडित जी ने उनका प्रसाद भगवान को अर्पित कर वापस उसी थाल में रखा । अनुमेहा ने वो प्रसाद की थैली उठा ली और पंडित जी से दोनों ने प्रसाद लिया , फिर वहां से निकलकर परिक्रमा करने के लिए बढ़ गई । दोनों खंबे के दूसरी ओर आई और वहां खड़े पंडित जी को थार के प्रसाद के लिए पैसे दिए और फिर परिक्रमा के लिए बढ़ गई । पांच कदम चलने के बाद उन्हें गर्भ गृह में किशोर जी और राधा जी की छोटी मूर्ति के दर्शन हुए और फिर उन्होंने सात परिक्रमा लगाई और वापस से आकर वहीं मंदिर परिसर में बैठ गई । और दोनों ही " ॐ नमः वासुदेवाय " का इक्यावन बार जाप करने लगी । जाप पूरा होते ही दोनों ने थार का प्रसाद लिया और फिर बगल के दरवाजे से मंदिर के बाहरी परिसर में आई और फिर हनुमान जी की छोटी से मंदिर को उन्होंने प्रणाम किया और फिर वहीं बने बड़े से कुएं में , कछुए ( जो कि विष्णु के अवतार माने जाते हैं ) और मछली ( ये भी विष्णु के ही अवतार में से एक हैं ) के दर्शन किए और जैसे ही आगे बढ़ने को हुई , कि अनुमेहा की नज़र एक व्यक्ति पर गई, जो कि पेड़े का कुछ भाग उस बड़े से कुएं में डाल रहा था । अनुमेहा ने देखा , तो तुरंत उसके पास आई और उसे रोकते हुए कहा ।
अनुमेहा - ये क्या कर रहे हैं आप..????
व्यक्ति - दिख नहीं रहा , कुएं में उपस्थित भगवान ( कछुए और मछलियों ) को भोग लगा रहा हूं ।
अनुमेहा - और ऐसा करने के लिए आपको किसने कहा..??
व्यक्ति - कहने की क्या जरूरत हैं , हम तो बहुत समय से यहां इन्हें इस तरह पेड़े डाल कर भोग लगाते हैं , और यहां की अधिकतर जनता यही करती है ।
अनुमेहा ( कुएं के पास लगे बोर्ड की तरफ इशारा करते हुए बोली ) - क्या आपको वो नोटिस दिखाई नहीं पड़ रहा है , जहां साफ - साफ शब्दों में लिखा है , कि कुएं में इस तरह का कोई पदार्थ न डालें , जिससे यहां रहने वाले जीवों को किसी भी तरह की क्षति पहुंचे ।
व्यक्ति - तो मैं कौन सा ज़हर खिला रहा हूं उन्हें , भगवान है वो , विष्णु के अवतार , जैसे मूर्ति को भोग लगता है , वैसे ही इन्हें भी भोग लगा रहूं ।
सुधा ( अनुमेहा के पास खड़ी होकर व्यक्ति से बोली ) - एक बात बताइए सर आप , आपके घर में जो एक्वेरियम होगा , क्या उसमें उपस्थित मछली और कछुओं को भी आप वही खाना देते हैं , जो आप खाते हैं ।
व्यक्ति ( थोड़ा चौड़ाते हुए ) - नहीं....., उन्हें भला वो खाना कैसे देंगे हम , अगर हम उन्हें अपने खाने वाला भोजन देंगे , तो वे जीव बीमार पड़ जायेंगे । वैसे भी उनका खाना अलग होता है , और हम उन्हें वही देते हैं , ये इंसानों का खाने वाला अनाज नहीं ।
अनुमेहा - तो सर ...., जब आपके घर के एक्वेरियम में रहने वाले जीवों का भोजन अलग है , तो कुएं में रहने वाले जीव उनसे अलग हैं क्या...???? ( ये सुनकर व्यक्ति ने अपना सिर झुका लिया ) जिस तरह आपके घर में रहने वाले जीवों का खाना अलग है , उन्हें उनके पाचन शक्ति के अनुसार भोजन आप देते हैं , वैसे ही मंदिर के कुएं में रहने वाले जीवों का खाना भी अलग होता है । जो कि यहां का ट्रस्ट उन्हें समय - समय पर देता है । तो फिर आप लोग अपने भोजन की चीजें , जो कि कुएं में डालने से इन जीवों का ग्रास बनेगी और फिर उन्हें बीमारी होगी , उसे इस कुएं में क्यों डालते हैं ...??? आपके घर में पलने वाले जीव , जीव हो गए । और बाहर पलने वाले जीव मामूली इंसान ...!!!!! सर एक बात कहूं....., विश्वास और अंधविश्वास में सिर्फ एक धागे की चौड़ाई जितना फर्क होता है । आप लोग ये जो मनुष्य का अनाज इस कुएं में डालकर ये सोचते हैं , कि इससे भगवान प्रसन्न होंगे , ये सरासर अंधविश्वास की श्रेणी में आता है । जबकि आपके इस अंधविश्वास का परिणाम ये जीव भुगतते हैं और जिसके कारण इनकी अल्प समय में ही मृत्य हो जाती है । ये विष्णु के अवतार हैं , इस लिए इन्हें पूजा जाता है । लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं , कि आप इन्हें सिंदूर चढ़ाएं , हल्दी कुमकुम चढ़ाए ( कुएं में डालना ) , इन्हें अपने खाने की सामग्री दें । ये सब करके आप लोग पुण्य नहीं, बल्कि पाप करते हैं । और फिर शिकायत करते हैं भगवान से , कि हमें अपने जीवन में इतने कष्टों से क्यों नवाजा ।
सुधा ( अनुमेहा की बात का समर्थन करते हुए ) - हम अपनी दोस्त की बातों से पूरी तरह सहमत हैं । ( व्यक्ति के सामने हाथ जोड़ कर शांत भाव से ) अगर आपको हमारी बातें थोड़ी सी भी समझ में आई हों , तो प्लीज ऐसा दोबारा मत कीजिएगा और दूसरों को ऐसा करने से रोकिएगा भी । मासूम जीवों को अंधविश्वास की बलि मत चढ़ने दीजिए , क्योंकि उनका भी इस संसार में रहने का उतना ही अधिकार है , जितना कि हम मनुष्यों का ।
व्यक्ति ( ने कुएं में डालने वाले पेड़े को वापस अपनी थैली में डाला और नम्र भाव से दोनों से बोला ) - हमें माफ कर दीजिए , जो ऐसी दृढ़ता हमने की । और प्लीज हाथ मत जोड़िए । आप दोनों ने जो कहा , वो शत प्रतिशत सही है । गलती हमारी और हमारे साथ उन सभी लोगों की है , जो विश्वास और अंधविश्वास के बीच का अंतर नहीं समझ पाते । और इससे सिर्फ हम ही नहीं , बल्कि हमारे यहां रहने वाले अधिकतर व्यक्ति ग्रसित हैं। आप लोगों की बातें हमें बहुत अच्छे से समझ आ गई हैं । अब हम न ही ऐसा करेंगे और न ही किसी और को ऐसा करने देंगे । ( कुएं में खेलते कछुए और मछली को देखते हुए ) क्योंकि इनका जीवन बचाना भी हम मनुष्यों का ही काम हैं । हमें सच से अवगत कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
दोनों ने उस व्यक्ति का आभार व्यक्त किया और फिर मंदिर परिसर में आगे की ओर बढ़ गई । वहां उन्हें एक बरगद का वृक्ष दिखा और उसी के नीचे एक महादेव की पिंडी थी । दोनों ने वहां दर्शन किए । वहीं बने पास में उन्होंने विष्णु जी के दर्शन किए और एक और शिव के बने मंदिर में माथा टेका और फिर मंदिर परिसर के दाहिने ओर आ गईं । वहां उन्हें एक तुलसी का पेड़ मिला , और किशोर जी के मंदिर में तुलसी के पेड़ के होने का बहुत महत्व होता है , क्योंकि तुलसी वृंदा का रूप हैं । वृंदा और विष्णु जी की कहानी शास्त्रों में प्रचलित हैं , जिसके बारे में अधिकतर भारतीयों को ज्ञान होता ही हैं । दोनों परिसर के सामने आई , वहां उन्होंने शिव पार्वती , हनुमान जी और संतोषी मां के दर्शन किए और फिर दोबारा तुलसी के पेड़ की तरफ बढ़ गई , जिसके सामने मंदिर का दूसरा द्वार था । मौसम आज कुछ ठीक नहीं था । काले बादल घिरे थे और जल्द ही पानी बरसने की आशंका नज़र आ रही थी । दोनों बातें करते हुए उसी ओर बढ़ रही थी, कि तभी अनुमेहा किसी से बहुत जोर से टकराई , जिससे उसके कंधे में हल्की सी अंदरूनी चोट लग गई और वह अपना कंधा पकड़ कर खड़ी हो गई .........।
अब ये कौन है , जिससे अनुमेहा टकराई .....!!!??? गेस कीजिए और बताइए , कि आपको क्या लगता है , कौन होगा वो पर्सन...?? 😊😊😊
क्रमशः
इस मंदिर की खासियत, इसका महत्व और थार किस तरह का प्रसाद होता है , ये सब अगले भाग में बताया जायेगा । अभी मंदिर परिसर में विराजे छोटे - छोटे मंदिर और कुएं को दर्शाना जरूरी था , इस लिए इस भाग में इन्हें दर्शाया गया ।
धन्यवाद 🙏🏻