Why are some alphas silent? - 2 - Is the end good then all is well?? in Hindi Women Focused by Bushra Hashmi books and stories PDF | कुछ अल्फाज खामोश क्यों? - 2 - क्या अंत भला तो सब भला ??

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कुछ अल्फाज खामोश क्यों? - 2 - क्या अंत भला तो सब भला ??

मैं जब छोटा था तो मैंने कई टेलीविजन प्रोग्राम
में कहते सुना था कि अंत भला तो सब भला । कई बार ये ख्याल आता था क्या सच में ऐसा होता है की अंत में सब भला हो जाता है ? ये समझना मेरे लिए उतना ही जरूरी था जैसे दसवीं में सबको गणित में उत्तीर्ण होना ज़रूरी होता है ।
इसी सोच में मैं निकल पड़ा बस्ता लेकर स्कूल की ओर। तब मैं पढ़ने में थोड़ा निकम्मा था स्कूल जाना तो मेरे लिए कुछ ऐसा होता था जैसे की कोई पहाड़ सर पर आ गया हो धीरे धीरे कदमों से यह सोचते जा रहा था की अंत में सब भला होगा ही मुझे स्कूल नही जाना पड़ेगा उस समय मैं आठवीं का विद्यार्थी था और मेरे स्कूल आठवी तक ही थी वार्षिक परीक्षा आने वाली थी कुछ दो हफ्ते बचे थे स्कूल के अंत होने में कुछ दिन इसी खुशी में बीत गया परीक्षा आया चला गया अब मैं सोच ही रहा था की जीवन अब बहुत अच्छा होगा अपने पसंद की जिंदगी जीने को मिलेगी स्कूल से छुटकारा मिलेगा की तभी हेड मास्टर जी के पास प्रमाण पत्र लेने विद्यालय जाना था याद आया मां के साथ निकल पड़ा वहां उन्होंने मां को अन्य विद्यालय में प्रवेश परीक्षा देने के लिए कह जिससे मां ने हामी भर दी वो स्कूल बहुत सुंदर था मैने सोचा चलो इसमें पढ़ कर तो मैं बहूत प्रभावशाली दिखूंगा अपने मित्र और रिश्तेदारों के बीच तो मैंने भी प्रवेश परीक्षा के लिए हां कह दिया दूसरे ही दिन परीक्षा का दिन था मैं परीक्षा देने गया देकर खुशी खुशी लौटा की अब तो मैंने जैसे दुनिया जीत लिया हो सारे रिश्तेदारों और मित्रो को बता दिया था की अब तो मैं अच्छे स्कूल में जाकर कलेक्टर बन कर निकलूंगा करीब एक हफ्ते बाद रिजल्ट आया मैं गया और मुझे पता चला कि मैं उस परीक्ष में फेल मां मेरी साथ थी उन्होंने तो जैसे इसकी उम्मीद ही नही की थी ना ही मैंने मैं तो ये मान भी बैठा था की मैं तो पास हो ही जाऊंगा पर ये रिजल्ट तो मानो जैसे पहाड़ की तरह सर पर गिरा धड़ाम से मानो जैसे मेरी मन में बनाई दुनिया उजड़ गई हो मन में बहुत से ख्याल आ रहे थे की अब लोगो को क्या मुंह दिखाऊंगा मन बेचैन और दिमाग में अलग अलग ख्याल एक पल तो ये आया की आत्महत्या ही कर लूं पर दिल ने दिल को समझाया और इतनी हिम्मत भी तो नहीं थी मुझ में वक्त इसी कश्मक में बीतता गया और फिर किसी सरकारी स्कूल मैने दाखिला लिया स्कूल ऐसा की पहले दिन गया तो रो कर लौटा दर्रियां बिछाई जाती थी वहां पर जिस पर बैठना था १अगस्त से मैने जाना शुरू किया था अगले ही दिन गया तो कुछ लड़कियां बड़े ही उमंग से नृत्य कर रही थी वो इतना सुंदर नृत्य कर रही थी मानो जैसे उनके तलवे से ही ताल निकल रहा था मुझे आम तौर पर नृत्य देखना पसंद नही था ना ही मैं इसमें दिलचस्पी रखता था पर ना जाने कैसे मुझे नृत्य लुभाने लगी इसी तरह दिन बीतता गया और फिर एक दिन मेरी उसी लडकी से लड़ाई हो गई मैं उससे और वो मुझसे दूर होने लगी पर एक बात जो मैं हमेशा मानता था वो था उसका हुनर वो लाजवाब थी ।समय बीतता गया और हम नौवीं कक्षा से दसवीं में पहुंचे वही मेरी थोड़ी बहुत बात होना चालू हुई सिर्फ एक क्लासमेट की तरह फेयरवेल का दिन आया हम सभी परीक्षा के बाद अलग हो गए दूसरे स्कूल में एडमिशन लिया और उसने मेरे स्कूल के करीब ही एक स्कूल में एडमिशन लिया रास्ते में कभी कादर मिल जाती पर बातचीत नही होती थी इसी तरह टाइम बिता हम सब अब अलग अलग थे एक दिन फोन पर एक कॉल आई जिससे मैं दंग रह गया वो कॉल था मेरे ९वी की सहपाठी की उसने बताया कि निदा ने फांसी लगा ली और अपने जीवन का अन्त कर दिया ।क्यों किया मैं अब भी इस बात से महरूम था गया तो देखा मां रो रही थी उसकी जब उसने हाल पूछा तो उन्होंने बताया की उसके पिता उसे मेरे पास छोड़कर बचपन में ही चले गए थे मैने अकेले पढ़ाया लिखाया काबिल बनाया ।सपने देखे थी मैने उसके लिए की वो एक अच्छी डांसर बनेगी पर क्या ही कर लिया उसने जब मैने इस बात की तफ्तीश की तो पता लगा वो निदा उससे बचपन से प्यार करती थी और वो लड़का उससे ।उसने बताया था उसे की उसे एक अच्छी मॉडल बनना है पर रहना तुम्हारे ही साथ में है उस लड़के ने भी उसे वादा किया था की वो इसके साथ अपना जीवन गुजारेगा पर अंत में आकर उस लड़के ने माना कर दिया और इससे उसने जितने सपने देखे थें वो चूर चूर हो गया उसे अब अपनी जिंदगी में सब कुछ खत्म लगने लगा उसका सपना उसका चरित्र सब खत्म हो गया इसलिए उसने आत्महत्या की ।
अब सवाल ये था की क्या ये अंत भला अंत था?
या अभी कहानी में कुछ हिस्से बाकी है ??