बाहर बारिश अभी भी जारी थी और बिजली के कड़कने के साथ ही साथ बादलों के गरजने का शोर भी वातावरण को बहुत ही भयावह बना रहा था तभी फ्लैट में अचानक अंधेरा हो गया,शायद पावर-सप्लाई बंद हो गई थी । वैसे अमूमन फ्लैट में ऐसा कभी होता तो नहीं था लेकिन आज न जाने क्यों पावर-कट हो गया था ।
हिमांशु नें तुरंत ही अपने मोबाइल की टॉर्च ऑन करके टेबल पर रख दी और फिर नीचे सोसायटी में कॉल करने लगा लेकिन सोसायटी का फोन इंगेज जा रहा था क्योंकि शायद सभी इस वक्त परेशान होकर फोन मिला रहे थे, ये जानने के लिए कि आखिर ऐसे बेवक्त बिजली क्यों चली गई और जनरेटर भी ऑन क्यों नहीं हुआ ?
"कोई बात नहीं,आप बैठ जाइए ! थोड़ी देर में लाइट आ जायेगी और वैसे भी ज़िंदगी में इतने अंधेरे देखे हैं कि अब मुझे इन अंधेरों से ज़रा भी डर नहीं लगता !", खुशी नें अपने चेहरे पर एक फ़ीकी सी मुस्कान लाते हुए कहा ।
हिमांशु अब खुशी के ठीक सामने दूसरी कुर्सी पर बैठ चुका था । अंधेरा सचमुच बहुत घना था और इस अंधेरे में बीच-बीच में जब बिजली कड़कती थी तो खिड़की के शीशे पर पड़ती हुई उसकी रोशनी से खुशी का चेहरा रौशन हो उठता था जिसे हिमांशु बहुत ही स्नेह के साथ अपलक निहारने लगता था क्योंकि कमरे में पर्याप्त अंधेरा होने के कारण उसमें उस वक्त किसी भी तरह के संकोच का कोई भाव नहीं आता था । इसी बीच हिमांशु की नज़र खुशी के माथे पर चमकते हुए पसीने पर पड़ी और वो अपनी जगह से उठकर हाथ वाला पंखा ढ़ूढ़ने लगा । वो पंखा ढ़ूंढ़ ही रहा था कि तभी लाइट आ गई !
"थैंक्स टू गॉड, चलिए अब आपकी उलझन तो कुछ कम हुई", खुशी नें हिमांशु की आँखों में झाँकते हुए कहा जैसे कि उसे अंदाजा लग गया था कि हिमांशु उसके माथे के पसीने को देखकर कुछ असहज हो गया था ।
अब खुशी नें अपनी बात को आगे बढ़ाना शुरू किया.... हिमांशु जी मेरे पति का व्यवहार मेरी शादी के दो महीनों तक तो बहुत अच्छा रहा लेकिन फिर वो धीरे-धीरे बदलने लगा और मैं उसके अंदर अचानक आये इस बदलाव का कारण बहुत कोशिशों के बाद भी नहीं जान पायी । दरअसल मेरी सासूमाँ मेरी इनसे शादी होने के दो साल पहले ही गुज़र चुकी थीं तो घर में सिर्फ़ ये और इनके पापा जी ही थे । शुरू-शुरू में इनके पापा जी का बर्ताव मेरे प्रति बिल्कुल एक पिता-पुत्री के जैसा ही था लेकिन फिर इनके बदलने के साथ ही पापा जी भी बदल गए और फिर एक दिन वो हुआ जिसका अंदाजा तो मैं सपने में भी नहीं लगा सकती थी ।
उस दिन भी बिल्कुल ऐसी ही बारिश हो रही थी जैसी कि आज हो रही है और मैं डिनर बनाने के बाद अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी और मेरे पति अभ्युदय उस दिन ऑफिस से कुछ देर से आने वाले थे तो बस मैं उनका इंतज़ार करती हुई बिस्तर पर पेट के बल लेटकर एक किताब पढ़ने लगी थी । मेरा पूरा ध्यान उस किताब में ही था, शायद इसी वजह से मुझे अपने रूम में किसी के आने पर उसके कदमों की आहट भी सुनाई न दी और फिर..... खुशी का गला बोलते-बोलते एकदम से सूख गया था जिसका एहसास होते ही हिमांशु अंदर किचेन से दौड़कर एक गिलास पानी ले आया और उसने पानी का वो गिलास खुशी की ओर बढ़ा दिया। इस बार भी खुशी नें एक ही साँस में पानी का पूरा गिलास खाली कर दिया और एक बार दोबारा वो अपनी आपबीती सुनाने लगी !
मैं कुछ भी सोच या समझ पाती उससे पहले ही मुझे किसी नें पीछे से दबोच लिया ! वो पकड़ इतनी सख्त थी कि मैं पागलों की तरह छटपटाने लगी । मैं चीखना चाहती थी मगर उस शख्स नें अपने हाथों से मेरा मुँह दबा रखा था तो मेरी चीख भी मेरे ही अंदर घुटकर रह गई , मेरी आँखों के दोनों कोरों से आँसू बह रहे थे ! वो इंसान अब अपनी जीभ से मेरी गर्दन चाट रहा था जिससे मेरे पूरे शरीर में एक घृणा की लहर दौड़ गई और फिर मैंने ईश्वर को याद कर और अपनी पूरी ताकत लगाकर उसे पीछे की तरफ़ ज़ोर से धक्का दिया। मेरे इस प्रहार के लिए शायद वो बिल्कुल भी तैयार नहीं था और इस धक्के से वो छिटक कर दूर दीवार से लगकर गिरा !
मैं वहाँ से भागने के लिए जैसे ही पीछे मुड़ी तो उस शख्स को देखकर मानो कि मेरे पैरों तले की ज़मीन ही खिसक गई ! वो कोई और नहीं मेरे पति अभ्युदय के पापा जी थे । उन्हें देखकर मेरे पैर वहीं जड़ हो गए और इससे पहले कि मैं उनसे कुछ कह पाती हिमांशु जी मेरी आँखों के सामने अभ्युदय खड़ा था और उसे देखकर मुझे ऐसा लगा कि जैसे वो ये सबकुछ पहले से जानता है । फिर भी मैं दौड़कर उसके गले से जा लगी !
अभ्युदय...अभ्युदय पापा जी नें मेरे साथ...मैं बस रोती ही जा रही थी । मैं इसके आगे कुछ और कह पाती उससे पहले ही अभ्युदय के पापा जी चीख पड़े !
"अरे ! क्या मेरे साथ....मेरे साथ ? हम्म ! अरे ये मैं कोई अपने लिए नहीं कर रहा हूँ! तेरे लिए कर रहा हूँ! तेरे पति के लिए कर रहा हूँ ! ! धत्त साली....सारा मूड खराब कर दिया", ये कहते हुए वो मेरे कमरे से बाहर निकल गए लेकिन वो रात.... वो रात अपने साथ मेरा सुकून-चैन, मेरा सुख,मेरी खुशी सबकुछ अपने साथ ले गई...सब कुछ....कहते-कहते बिफर पड़ी खुशी !
हिमांशु उसे संभालना चाहता था लेकिन वो अपनी मर्यादा में बंधे होने के कारण चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठा रहा और बस इतना ही बोल सका कि...प्लीज़ खुशी जी सम्भालिए अपने आपको !
खुशी नें अपने दोनों हाथों से अपने गालों पर बेतरतीब बिखरे हुए मोतियों को पोंछ लिया और वो एक बार फिर हिमांशु की तरफ़ देखते हुए उसे अपनी जिंदगी की किताब के दुखभरे पन्नों से रूबरू कराने लगी ।
उस रात मुझे वो सच पता चला जिसनें मेरी पूरी की पूरी अरमानों की बगिया उजाड़कर रख दी ! मेरा पति अभ्युदय एक नपुंसक है और वो चाहते हुए भी कभी मुझे संतान-सुख नहीं दे सकता और ये सच अभ्युदय के माता-पिता सभी शादी से पहले से ही जानते थे और बल्कि उन लोगों नें तो अभ्युदय की शादी भी इसी सोच के साथ करवायी थी कि उसका ये सच कभी भी इस दुनिया,इस समाज के सामने नहीं खुलना चाहिए और बाद में मुझे ये भी पता चला कि अभ्युदय की माँ भी इसी सदमे में इस दुनिया से चली गईं !
"यहाँ तक तो फिर भी एक बार को मैं अपने को सम्भाल सकती थी लेकिन जब मुझे ये पता चला कि वो बाप-बेटे अब मुझसे ये चाहते हैं कि मैं अभ्युदय के पापा के साथ", ... ये कहते-कहते एक बार फिर से खुशी फूट-फूटकर रो पड़ी !
इस बार हिमांशु चाहकर भी खुद को अपनी जगह से उठने से रोक नहीं पाया और वो झटके से उठकर खुशी के बिल्कुल नज़दीक जाकर खड़ा हो गया और फिर वो अपने दोनों हाथों से खुशी के बहते हुए आँसुओं को पोंछनें लगा !
खुशी नें अपना चेहरा हिमांशु के हाथों से ढक लिया और फिर वो बहुत देर तक सिसकियाँ लेकर रोती रही !
"सॉरी" , खुशी नें खुद को सम्भालने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा जिसपर "इट्स ओके", बोलता हुआ हिमांशु एक बार फिर से खुशी से दूर हटकर अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गया ।
अभी दो महीने पहले ही अभ्युदय के पापा जी का देहांत हो गया जिसके बाद हम दोनों वो घर छोड़कर यहाँ शिफ्ट हो गए हैं लेकिन उन काले सायों नें मेरा पीछा करना यहाँ भी नहीं छोड़ा बल्कि अब तो वो और भी विकराल रूप धारण कर चुके हैं । अभ्युदय की समाज के सामने खुद को मर्द साबित करने और अपनी करोड़ों की प्रॉपर्टी के लिए एक वारिस की ललक नें उसे पूरी तरह से पागल बना दिया है । अब वो बात-बात पर मुझसे लड़ता-झगड़ता है और अब वो मुझे नीचा दिखाने का कोई भी मौका अपने हाथ से नहीं जाने देता है फिर चाहे वो मेरा इंडियन-ड्रेसेज़ पहनना हो या फिर उसका मुझे जबर्दस्ती वैस्टर्न-ड्रेसेज़ पहनाना हो ! ! !
"तो अब वो तुमसे क्या चाहता है, सॉरी... मेरा मतलब आपसे !", हिमांशु नें गंभीर होते हुए पूछा !
वो मुझसे एक औलाद चाहते हैं,एक वारिस फिर वो चाहे उसे किसी डेटिंग एप के थ्रू मिले या फिर कहीं किसी को अपनी दौलत के बल पर ही क्यों न खरीदना पड़े !
अब आप ये तो ज़रूर ही सोच रहे होंगे हिमांशु जी कि आखिर मैं उसे छोड़ क्यों नहीं देती ? ? ?
तो इसका जवाब भी एक लम्बी कहानी में छुपा है , हिमांशु जी लेकिन आप परेशान न हों ! मैं आपको अपनी एक और कहानी सुनाकर और ज्यादा तंग नहीं करूँगी ! आप बस इतना समझ लीजिए कि मैं, मेरी माँ , मेरा छोटा भाई और मेरे पिताजी हम सब पर, हमारे पूरे परिवार पर अभ्युदय के मम्मी-पापा जी के बहुत एहसान हैं और मेरी माँ नें भी मरते समय बस मुझसे यही माँगा था कि मैं हमेशा इस परिवार की बनकर रहूँ और हमेशा इनकी भलाई ही चाहूँ लेकिन मेरी माँ को शायद इस परिवार का अर्धसत्य ही पता था वरना वो मुझसे ऐसा वचन कभी भी न लेतीं !
और हिमांशु जी अगर मैं एक बार को ये सब भूल भी जाऊँ और अभ्युदय से दूर चली भी जाऊँ तो भी मुझे पता है कि वो इतना पावरफुल आदमी है कि वो मुझे सामदाम , दण्डभेद कुछ भी करके, किसी भी कीमत पर अपनी ज़िंदगी में वापिस ले आयेगा तो हिमांशु जी उसका और मेरा साथ तो अब मेरी आखिरी साँस के छूटने के साथ ही छूटेगा और ऐसा नहीं है कि मैंने इसके लिए कोशिश नहीं की लेकिन मेरी किस्मत नें मुझे वहाँ भी धोखा ही दिया । वो कहते हैं न कि उस ऊपर वाले नें जिसे जितनी साँसें बख्शी हैं वो तो उसे लेनी ही पड़ेंगी फिर चाहे वो हंसकर लो या रोकर !
बारिश रुक चुकी थी और समय भी काफी बीत चुका था और ये बीतता हुआ समय अपने साथ न जाने किस नये वक्त के आने का आगाज़ कर रहा था ? ? ?
जानने के लिए मिलें इस सफ़र के अगले तथा अंतिम पड़ाव पर.... क्रमशः
लेखिका...
💐निशा शर्मा💐