TEDHI PAGDANDIYAN - 14 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | टेढी पगडंडियाँ - 14

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टेढी पगडंडियाँ - 14

टेढी पगडंडियाँ

14

गाँव के एक आदमी ने कहा कि एक बार गाँव चलके देख लेते हैं । शायद अब तक किरण लौट आई हो । सबके मन में उम्मीद जाग उठी । हाँ हो सकता है , कुछ काम हो गया हो और वह शहर में अटक गयी हो । अब आखिरी बस पकङ कर घर आ गयी हो ।
वे सब गाँव लौट पङे ।
मंगर के दिल की धङकन काबू में न थी । बाकी लोग क्या बातें कर रहे हैं , उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था । वह बार बार सारे देवी देवता ध्या रहा था – हे ईश्वर मेरी बच्ची की रक्षा करना । वह जहाँ भी हो , सही सलामत हो ।
इसी तरह बातें करते एक दूसरे को हौंसला देते वे लोग गाँव पहुँचे । भानी दरवाजे के सामने जमीन पर ही बैठी राह तक रही थी । बीरा पिंजरे में बंद शेर की तरह इधर से उधर चक्कर काट रहा था । गुस्से और बेबसी से उसका चेहरा लाल हुआ पङा था । मंगर को अकेले आते देख वह भङक गया ।
गुस्से में भरा हुआ वह अपने दोस्त बलबीर के घर गया । उसका बजाज स्कूटर उठाकर अकेला ही शहर की ओर भाग गया । मंगर को बेटी की चिंता तो पहले से थी अब बेटे की भी हो गयी । ये लङका न जाने इतनी रात को कहाँ चला गया ।
बीरा शहर की सूनी सङकों पर यहां से वहाँ स्कूटर दौङाता रहा पर किरण का कोई पता न चलना था न चला । आखिर थक हार कर वह सुबह तीन बजे घर लौटा । मंगर और भानी ज्यों के त्यों भूखे प्यासे दरवाजे पर बैठे उसी का राह देख रहे थे । बेटे के लौटने से मंगर की आधी चिंता खत्म हुई ।
सुबह दिन निकलते ही वे फिर से किरण को ढूढने निकले । उसके कालेज के , क्लास के लङके लङकियों से पूछा पर किसी को कुछ पता होता तभी न बताते ।
आखिर हार कर वे सब थाने पहुँचे । मुंशी अपना रजिस्टर थामे रोजनामचा भर रहा था । एक दो सिपाही और थे जो अलग मूड में बैठे दिखाई दिये । इंसपैक्टर या थानेदार इस समय वहाँ नहीं थे । पत्ती के चौधरी ने आगे होकर हाथ जोङे – साहब , ये मंगर है । इसकी छोरी कल सुबह घर से कालेज के लिए निकली थी रोज की तरह । रोज तो शाम को चार , साढे चार बजे तक आ जाती थी । कभी बस छूट गयी तो साढे पाँच हद से हद पर आज तो अभी तक नहीं पौंची ।
ठीक है , वहाँ से कागज लेकर अर्जी लिख दो । - मुंशी ने अपने रजिस्टर से गरदन बिना उठाये कहा ।
उन सात आठ जनों में से राजू थोङा पढना लिखना जानता था । उसने एक कागज लेकर लिखना शुरु किया । सब लोगों ने अपने अपने मुताबिक लाइनें जुङवाई । आखिर अर्जी पूरी हो गयी तो वे उसे लेकर मुंशी के पास पहुँचे । मुंशी ने उन्हें सिर से पैर तक घूर कर देखा – “ ये लङकी कितने साल की है “ ?
“ जी होगी सत्रह अठ्ठारह साल की “ ।
“ सत्रह की या अट्ठारह की “ ?
मंगर ने उँगलियों पर हिसाब लगाया – “ जी अट्ठारह की “ ।
“ क्या करती थी “ ?
“ जी कालेज में पढने जावै थी “ ।
“ किसी के साथ कोई चक्कर था क्या “ ?
“ न जी लङकी तो सीधी सादी थी । कोई चक्कर न था “ ।
“ पक्का किसी के साथ फँसी होगी । तुम लोग पहले तो निगरानी रखते नहीं हो । जब कांड करके भाग जाती हैं तो हमारे पास आ जाते हो । “
“ न जी हमारी किरण तो ऐसी न थी । जरूर किसी मुसीबत में होगी । “
“ फोटो है उसका “ ?
“ न जी फोटो तो नी लाये “ ।
“ तो ऐसा करो , फोटो ले आओ । अभी साहब आ जाते हैं तो हम अपने लेवल पर तफशीश करेंगे । कोई ऐसी बात जो तुम बताना चाहते हो “ ।
“ साहब हमें तो कुछ पता नहीं । लङकी जात है । पता नहीं किस हाल में होगी “ ।
“ हूँ ...” मुंशी फिर अपने रजिस्टर में गुम हो गया था ।
इन लोगों के पास गाँव लौट आने के सिवाय कोई चारा न था । सो ये लोग मन मार के गाँव लौट आये । आननफानन में यह खबर सारे टोलों में फैल गयी । जवानों की भुजाएँ फङकने लगी – ऐसे कैसे कोई हमारी लङकी को सरे बाजार उठाकर ले जा सकता है ।
जिनका मन रोज किरण को देख देख मचलता था पर मन की बात होठों तक लाते लाते रह जाते थे , अब हाथ मल रहे थे । देखते ही देखते लोगों की भीङ मंगर के दरवाजे पर जुटने लगी । हरिजन सुधार समिति , चमार भलाई समिति और हरिजन कल्याण समिति के मुख्य सदस्य आ गये – भई मंगर , अपने को इकला मत न समझियो । थाने की ईंट से ईंट बजा देंगे । तू हौंसला रख ।
इधर थानेदार और दो सिपाही पहुँचे सुखानंद । सीधे बङे सरदार की हवेली में । जाकर सत श्री अकाल बुलाई । अवतार सिंह अभी अंदर चन्न कौर के पास था । चन्न कौर अभी अभी घेर से वापिस आई थी ।
रात निरंजन ने भाभी के पैर पकङ लिये थे । भाभी अब तू ही भाई के गुस्से से हमें बचा सकती है । हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं था । वह तो जो हुआ , अचानक हो गया । निरंजन भाभी के सामने बिल्कुल बच्चा बन जाता था । एकदम सीधा सादा और मासूम । बाहर बेशक जितनी गुंडागरदी करले । यह सच था कि वह मन ही मन अपने भाई और भाभी की इज्जत करता था । उनसे भय खाता था । इस समय भाभी के पैर पकङे बैठा था । मुँह उसने चन्न कौर की गोद में छिपा लिया । हमें माफ कर दे भाभी । गुरनैब पास हाथ जोङे सिर झुकाये खङा था ।
“ अब कहाँ है वो लङकी “ ?
“ घेर वाले कमरे में “ ।
“ पहले से उसे जानते थे तुम दोनों “ ?
“ नहीं भाभी , आज पहली बार देखी थी “ ।
“ और तुम दोनों उठा लाये । घास की पंड समझी थी क्या जो चल पङे लेके । कुछ .... “ ?
“ न भाभी , तेरी सौह , हमने उसे छुआ भी नहीं । वह सही सलामत है घेर में । बस थोङी घबराई हुई है “ ।
“ आगे क्या इरादा है “ ।
“ भाभी उसकी बाँह पकङ कर लाया हूँ । बाकी जो तू कहेगी । जैसे कहेगी . वैसा ही होगा । तेरा हर कहना सिर मत्थे “ ।
“ चल सुबह देखूँगी , क्या करना है उसका । तू जा के सो । जसलीन तेरी राह देख रही है । और तू भी जा नैबे । बहु को कहना , दूध सम्हाल लेगी “ ।
जी बेबे ।
और वे दोनों चन्न कौर के पैर छू अपने अपने कमरों में सोने चले गये । चन्न कौर ने वह सारी रात अंगारों की सेज पर काटी । एक मिनट के लिये भी उसकी पलक न झपकी । क्या करेगी वह सुबह । कैसे सुलझाएगी इस मुसीबत को औऱ अवतार को कैसे बताएगी , यही सोचते सोचते आसमान में लाली दिखने लगी ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...