Mout Ka Khel - 23 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | मौत का खेल - भाग-23

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मौत का खेल - भाग-23

सिंड्रेला


इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने जब बूढ़े को मोबाइल पर कपड़े की तस्वीर दिखाई तो उसने उस पर एक नजर डालते हुए कहा, “हमारे लिए यह बता पाना बहुत मुश्किल है। यहां हर दिन सैकड़ों कपड़े सिलने के लिए आते हैं। कपड़ों के कोई चेहरे तो होते नहीं कि याद रह जाएं!”

बूढ़े मैनेजर की बात सुनने के बाद सोहराब ने उसे टैग का फोटो दिखाते हुए कहा, “यह टैग तो आपके यहां का ही है न....?”

बूढ़े ने टैग को ध्यान से देखते हुए कहा, “जी हां! इस टैग की डिजाइन हमने दो साल पहले तब्दील की थी। उसके बाद ही यह कपड़े सिले गए हैं।”

“क्या मुझे आपके दो साल के ग्राहकों की लिस्ट मिल सकती है?” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“हम ग्राहकों की प्रिवेसी का खासा ख्याल रखते हैं, लेकिन आप खुफिया विभाग से हैं तो खास ही होगा। मैं आपको फेहरिस्त दिलवाता हूं।” बूढ़े ने कहा और पास लगी घंटी के बटन को दबा दिया। कुछ देर में एक नौजवान उसके कमरे को नॉक करके अंदर आ गया। उससे बूढ़े ने कहा, “गाहकों की दो साल की लिस्ट का प्रिंट ले कर आइए।”

नौजवान कमरे से चला गया। सोहराब बूढे से कुछ और बातें करने लगा।

उधर, काउंटर वाली लड़की सोहराब को ग्रैंड पा के पास पहुंचाने के बाद फिर से आकर काउंटर पर बैठ गई। सलीम काउंटर पर ही खड़ा उसका इंतजार कर रहा था। उसके बैठते ही सलीम ने कहा, “आप बड़ी अच्छी हिंदी बोल लेती हैं!”

“हमारे ग्रैंड पा का कहना है कि जहां रहो वहां के कल्चर को अपना लो। इससे बिजनेस करने में आसानी होती है।” लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा।

“आप बहुत समझदार हैं।” सलीम ने कहा।

“मैं नहीं मेरे ग्रैंड पा।” लड़की ने कहा।

“आपका नाम क्या है?” सलीम ने उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए पूछा।

“सिंड्रेला।” लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा।

“यकीनन तुम सिंड्रेला ही हो।” सार्जेंट सलीम ने उसे गौर से देखते हुए कहा।

यकीनन सिंड्रेला बहुत खूबसूरत थी। उसकी बड़ी सी नीली आंखें किसी खूबसूरत झील सी थीं। उसकी त्वचा की रंगत गुलाबी थी। अखरोटी बालों में उसने पोनी बांध रखी थी। सलीम को अपनी तरफ यूं देखता पा कर वह दूसरी तरफ देखने लगी।

“मेरा नाम नहीं पूछोगी?” सलीम ने उसकी नीली आंखों में देखते हुए कहा।

“वह तो आप वैसे भी बताने वाले हैं।” सिंड्रेला की आंखों में शोखी थी।

“गरीब को प्रिंस मुजतबा सलीम कहते हैं।” सलीम ने आवाज में बनावटी वजन पैदा करते हुए कहा।

“गरीब तो आप कहीं से नहीं दिखते।” सिंड्रेला ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा।

“यह स्लैंग है।” सलीम ने जल्दी से कहा। सिंड्रेला के इस सवाल से उसकी रूमानियत को जैसे ब्रेक लग गया हो।

“आप किस स्टेट के प्रिंस हैं?” सिंड्रेला ने दोबारा पूछा।

“बंबेबो का।” सार्जेंट सलीम ने गंभीरता से कहा।

“लेकिन आपके दोस्त ने तो कहा था कि वह इंटलिजेंस से हैं... और यह बंबू स्टेट कहां है?” सिंड्रेला ने पूछा। उसकी आवाज में आश्चर्य का पुट था।

“बंबू नहीं बंबेबो स्टेट।” सार्जेंट सलीम ने शब्द को दुरुस्त किया। उसके बाद उसने कहा, “वह मेरे स्टेट का खुफिया महकमे का हेड है। मैं उसका हौसला बढ़ाने के लिए साथ आया हूं।”

“ग्रेट!” सिंड्रेला ने कहा।

तभी सार्जेंट सलीम को कदमों की आहट सुनाई दी। उसने देखा कि सोहराब चला रहा है। उसने सिंड्रेला से जल्दी से कहा, “अब हम कब मिलेंगे?”

“जब आप चाहें।” सिंड्रेला ने जवाब दिया और उसे एक कार्ड देते हुए कहा, “इस पर मेरा फोन नंबर है।”

सलीम ने कार्ड लेकर तुरंत कोट की अंदरूनी जेब में रख लिया। उसके बाद उसने जरा झुकते हुआ आहिस्ता से कहा, “हम जल्द मिलेंगे।”

सिंड्रेला ने आंखों से मुस्कुराते हुए कहा, “श्योर प्रिंस ऑफ बंबू।”

सलीम श्योर के आगे के शब्द ठीक से सुन नहीं सका, क्योंकि तभी उसका ध्यान सोहराब की तरफ चला गया था। सोहराब शॉप से बाहर निकल गया था। सलीम भी तेजी से उसके पास पहुंच गया।

सलीम ने घूम कर देखा, सिंड्रेला उसी की तरफ देख रही थी। उसने होशियारी दिखाते हुए सोहराब से धीमी आवाज में कहा, “प्लीज कार आप ड्राइव कर लीजिए... मैं जरा पाइप पीना चाहता हूं।”

सोहराब ने कुछ नहीं कहा और उससे कार की चाबी ले ली। सोहराब गेट खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। सलीम ने दूसरी तरफ का दरवाजा खोला और उसके बैठते ही कार आगे बढ़ गई।

सार्जेंट सलीम ने जेब से पाइप और वान गॉग का पाउच निकाला और पाइप में तंबाकू भरने लगा। पाइप सुलगाने के बाद उसने सोहराब से पूछा, “क्या नतीजा निकला?”

“वह बताने में असमर्थ हैं कि यह कपड़े किसने सिलवाए थे।” सोहराब ने बैक मिरर ठीक करते हुए कहा। वह नजर रखना चाहता था कि उसका पीछा तो नहीं किया जा रहा है।

“तुम अंदर क्यों नहीं आए थे?” कुछ देर बाद सोहराब ने पूछा।

“बस यूं ही।” सार्जेंट सलीम ने कंधे उचकाते हुए कहा।

“तुम आवारागर्द होते जा रहे हो!” सोहराब उसकी तरफ देखते हुए बोला।

“अब ऐसी बातें तो मत कीजिए।” सलीम ने मुंह बनाते हुए कहा।

“लड़की देखी और काम से जी चुरा लिया।” सोहराब की आवाज में गंभीरता थी।

“काम ही कर रहा था। मैंने सोचा कि आप अंदर तफ्तीश कर रहे हैं तो मैं बाहर पूछगछ कर लेता हूं।” सार्जेंट सलीम ने शब्दों में वजन पैदा करने की कोशिश की।

“क्या जानकारी मिली पूछगछ में?” सोहराब ने उसकी नकल की।

“बस पूछने ही वाला था कि तब तक आप आ गए... इसलिए बात अधूरी ही रह गई।” सलीम ने पाइप से कश लेते हुए जवाब दिया।

“ओह... सो सॉरी... बाबू!” सोहराब ने मुस्कुराते हुए कहा।

“इट्स ओके...!” सलीम ने नाटकीय अंदाज में कहा।

“तो बात पूरी करने का तो आप इंतजाम कर ही आए होंगे।” सोहराब ने फिर से उसे छेड़ा।

“जिम्मेदार आदमी हूं। कोई काम बीच में छोड़ना मेरी फितरत नहीं है।” सलीम ने कहा।

“यह तो मुझे भी मालूम है कि तुम जिम्मेदार आदमी हो... इसीलिए मैंने तुम्हें चुना था।” सोहराब ने कहा।

“शुक्रिया।” सलीम ने मुंह से धुंआ छोड़ते हुए कहा।

“ऐसा करते हैं... इस केस से जुड़ी हुई जितनी भी महिलाएं है वह तुम्हारी तफ्तीश का हिस्सा हैं। बाकी मैं देखता हूं।”

“कौन सी महिलाएं।” सलीम ने खुशी छुपाते हुए पूछा।

“इस लड़की से तो तुम मिलोगे जरूर। इतना वक्त यूं तो नहीं दिया होगा उसे। इसके अलावा रायना... लाश घर में नजर आई महिला के साथ ही वह लड़की भी जिससे तुम थर्टी फर्स्ट की रात फ्लर्ट कर रहे थे।” सोहराब ने कहा।

थर्टी फर्स्ट नाइट के फ्लर्ट की बात सुन कर सलीम चौंक पड़ा। उसने तुरंत ही पूछा, “यह बात आप को कैसे मालूम?”

“मुझे यह भी मालूम है कि तुम उसे छोड़ने घर तक गए थे।” सोहराब ने कहा।

“इसका मतलब आप मेरी भी जासूसी करते हैं।” सलीम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।

“वह लड़की अपनी कार होटल की पार्किंग में ही छोड़ आई थी। वह कार वहां कई दिन खड़ी रही। पार्किंग इंचार्ज ने तुम्हें उस लड़की के साथ जाते हुए देखा था। उसने यह बात मैनेजर को बताई। मैनेजर ने तुम्हें फोन मिलाया था। तुम नाट रीचेबल थे... इसलिए मेरे पास फोन आ गया था।” इंस्पेक्टर सोहराब ने बताया। इसके बाद उसने घोस्ट सड़क के किनारे रोक दी।

छिछोरा


सन टू फन क्लब का यह स्पेशल रूम मेजर विश्वजीत के लिए मुस्तकिल बुक रहता था। वह यहां आए या न आए क्लब वालों को उसका किराया महीने की 30 तारीख को मिल जाया करता था। न एक दिन आगे और न एक दिन पीछे।

कमरे के अंदर मेजर विश्वजीत और रायना आसपास बैठे थे। रायना विश्वजीत और अपने लिए शराब के पैग बना रही थी। उसने एक पैग विश्वजीत को दे दिया और फिर अपना जाम भी उठा लिया। इसके बाद दोनों ने जाम को चीयर्स किया और होठों से लगा लिया। एक हल्का सा सिप लेने के बाद विश्वजीत ने कहा, “अबीर बहुत बुरा लड़का है। तुम मत करो उससे शादी!”

“तुम क्यों नहीं कर लेते मुझ से शादी?” रायना ने उसके कंधे पर सर टिकाते हुए कहा।

“मुझे तुम में इंट्रेस्ट है... लेकिन शादी में नहीं।” मेजर विश्वजीत ने कहा।

“अगर शादी करनी है तो शरबतिया से करो। मुझ से ज्यादा पैसा है उसके पास। तुम्हारा ख्याल रखेगा।” विश्वजीत ने पैग को होठों से लगाते हुए कहा।

“शरबतिया बूढ़ा हो चला है। दूसरा मैं रखैल नहीं बन सकती किसी की।” रायना ने कहा।

“अबीर छिछोरा लड़का है। उसने बिटक्वाइन से अनाप शनाप पैसे कमा लिए हैं... लेकिन उसमें क्लास नहीं हैं।” मेजर विश्वजीत ने कहा।

“मुझे छिछोरे पसंद हैं।” रायना ने हंसते हुए कहा।

“ओह रीयली!” मेजर विश्वजीत ने उसकी तरफ देखते हुए थोड़ा गुस्से से कहा।

“एक्चुअली वह एक सच्चा प्रेमी है। मेरे ऐशो आराम का पूरा ख्याल रखेगा। मेरे सारे नाज नखरे उठाएगा। सबसे अच्छी बात यह है कि वह उम्र में मुझ से छोटा है।” रायना ने कहा।

“तो क्या बेटा बनाने जा रही हो उसे?” मेजर विश्वजीत ने तंज कसते हुए कहा।

“तुम नहीं समझोगे मेजर!” रायना ने कहा और पैग से सिप लेने लगी। उसके बाद उसने आगे कहा, “यह कम उम्र के लौंडे छिछोरे तो होते हैं... लेकिन बड़े फरमाबरदार होते हैं। आपका हर हुक्म गुलाम बन कर मानते हैं।”

“तुम हो बहुत कमीनी!” मेजर ने कहा। उस की आवाज में थोड़ा सा रूखापन था।

इसे रायना ने भांप लिया था। उस ने तुरंत ही जवाब दिया, “सब सोहबत का असर है।”

उसकी इस बात पर मेजर विश्वजीत खामोश हो गया। रायना दूसरा पैग बनाने लगी। इसमें वाइन ज्यादा थी और सोडा कम था। अपना पैग उठाते हुए मेजर विश्वजीत ने कहा, “ओके... ओके... तुम अगली पार्टी में उसे भी साथ लाना।”

फायर


सोहराब ने घोस्ट को सड़क के किनारे रोकने के बाद किसी के फोन मिलाए। उधर से फोन रिसीव होते ही उस ने कहा, “डॉ. वीरानी की लाश कहां मिली थी?”

कुछ देर वह दूसरी तरफ की आवाज सुनता रहा। उसके बाद उस ने कहा, “मोबाइल पर लोकेशन भेज दो।”

सोहराब ने फोन काटने के बाद जेब में रख लिया और कार को आगे बढ़ा दिया। घोस्ट की रफ्तार ज्यादा तेज नहीं थी। कुछ देर बाद उस के फोन पर बीप की आवाज आई। उस ने फोन सार्जेंट सलीम को देते हुए कहा, “लोकेशन आ गई है। चेक कर के मुझे रास्ता बताओ!”

सार्जेंट सलीम ने मोबाइल हाथ में ले लिया और मैसेज देखने लगा। उस के बाद उस ने शोहराब को पता बता दिया। इस के साथ ही घोस्ट की रफ्तार काफी तेज हो गई। घोस्ट शहर पार कर के सिसली रोड की तरफ जा रही थी। रोड पर कोई गाड़ी नजर नहीं आ रही थी। सोहराब ने घोस्ट की रफ्तार और बढ़ा दी।

पहाड़ियों का सिलसिला शुरू हो गया। घोस्ट तेजी से सड़क पर भागी जा रही थी। अचानक एक चट्टान की आड़ से एक कार निकली और वह सोहराब की कार का पीछा करने लगी। शुरू में सोहराब ने कोई नोटिस नहीं लिया, लेकिन जैसे ही उसे एहसास हुआ कि कोई कार उस का पीछा कर रही है। उसने चेक करने के लिए अपनी कार की रफ्तार काफी धीमी कर दी। पीछा करने वाली कार की रफ्तार अब भी तेज थी। जब दोनों के बीच फासला काफी कम रह गया तो पीछे की कार से दो फायर किए गए।

*** * ***


क्या सोहराब और सलीम उस फायर से बच सके?
गोली चलाने वाले कौन लोग थे?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...