Pyar ki Nishani - 6 in Hindi Fiction Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्यार की निशानी - भाग-6

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प्यार की निशानी - भाग-6

प्यार की निशानी भाग-6

मंजू के पिता की तबीयत अब ज्यादा सही ना रहती । हां उसके दोनों भाइयों ने अपनी पढ़ाई खत्म कर ली थी। और अपनी पढ़ाई के हिसाब से छोटी मोटी नौकरी भी करने लगे थे। जिससे घर का खर्च निकल रहा था।

समय बीतता रहा। मंगला का कोर्स पूरा हो गया और उसकी नौकरी भी लग गई। नौकरी लगने के थोड़े दिनों बाद ही उसके माता-पिता ने उसकी शादी कर दी। मंजू उसकी शादी में गई थी। धीरे धीरे दोनों सहेलियां अपनी अपनी गृहस्थी में इतनी ज्यादा व्यस्त हो गई कि अब मिलना तो दूर फोन पर भी बात नहीं हो पाती थी।
वैसे भी मंगला के पिता नौकरी से रिटायर हो गए थे और उन्होंने दूसरी जगह मकान ले लिया था। अब दोनों का मिलना भी लगभग खत्म ही हो गया था।

मंगला को आज भी याद है, वह मनहूस दिन। जब सुबह-सबह उसकी मम्मी का फोन आया और उन्होंने समीर के इस दुनिया में ना रहने की खबर उन्हें सुनाई।सुनकर मंगला के पैरों तले से जमीन खिसक गई। उसे अपने कानों पर विश्वास ही ना हुआ कि ऐसे कैसे हो गया। कब हुआ, यह सब!
तब उसकी मम्मी ने हीं उसे बताया था कि एक महीना हो चुका। एक रोड एक्सीडेंट में समीर बुरी तरह घायल हो गया था। एक सप्ताह जिंदगी मौत से लड़ने के बाद आखिरकार वह मौत से हार गया।
कितना रोई थी, मंगला। वह मंजर याद कर आज भी उसके आंसू निकल आए।
वह उसी दिन अपनी मम्मी के साथ मंजू से मिलने उसके घर पहुंची। मंगला को देखते ही उसकी सास ने उसे कहा “बेटा तू आ गई। जा अपनी सहेली को संभाल ।जब से समीर गया है बिल्कुल पत्थर सी हो गई है। कोई सुध बुध नहीं है उसे अपनी। मैं तो उसे समझा कर हार चुकी कि वह अब आने वाला नहीं। अगर ऐसे ही रहेगी तो इस नन्ही सी जान का क्या होगा । पिता को तो यह खो ही चुका है और मां होते हुए भी इससे मुंह मोडे बैठी है। इसे तो अभी अच्छे से कुछ समझ भी नहीं।“ मंजू की सास अपने आंसू पोंछते हुए बोली।
मंगला, मंजू के कमरे में गई तो उसकी सूना माथा और कलाइयां देख उसका कलेजा मुंह को आ गया। बिल्कुल पत्थर सी हो गई थीं वह। देख कर लग रहा था जैसे शरीर में प्राण ही ना हो।
मंगला को देख वह उससे लिपट जोर-जोर से दहाड़ मार कर रोने लगी। मंगला भी कहां खुद को संभाल पाई थी। फिर भी किसी तरह से अपने आप पर काबू करते हुए उसने मंजू को संभाला और बोली “मंजू क्या हाल बना रखा है तूने अपना। संभाल अपने आपको। जीजा जी कहीं नहीं गए, वह तेरे पास ही है। तेरी हर याद में और हर सांस में। देख ना अपने बेटे की ओर । यह भी तो तुम दोनों की ही निशानी है। अपनी सास के बारे में सोच। तेरा पति गया है तो उसका भी तो बेटा गया है। मैं मानती हूं, मंजू यह सब कहना आसान है लेकिन जिस पर बीतती है, वही दुख जान सकता है लेकिन तुझे इस दुख से उबरना होगा। अपने बेटे और सास को संभालना होगा। हम औरतों को भगवान ने सब दुख सहने की क्षमता दी है।
जीजा जी को क्या अच्छा लगता होगा, तुझे इस हालत में देखकर। ऐसे तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। तुम उनसे सच्चा प्यार करती थी तो पोंछ ले ये आंसू और आगे बढ़। अपना घर परिवार संभाल। जीवन रुकने का नाम नहीं चलने का नाम है। भगवान ने इतनी अच्छी सास तुझे दी है। बेटा दिया है, उनकी ओर देख ।अब तुम तीनों ही एक दूसरे का सहारा हो। “ मंगला, मंजू के आंसू पोंछते हुए बोली।

“मंगला, भगवान मेरी ओर कितनी परीक्षाएं लेगा। पहले मां को छीन लिया। फिर पिता को ऐसी बीमारी दे दी । उनको सुख देने के लिए ही तो मैंने शादी की थी । मां की कमी सास ने पूरी कर दी। इतना अच्छा घर परिवार मिला मुझे। इतना अच्छा पति जिसने कुछ सालों में ही मुझे जीवन भर का प्यार दे दिया लेकिन उनका यूं अचानक चले जाना और वह भी इतनी जल्दी! बता कैसे सब्र करूं मैं। कैसे रहुंगी उनके बिना । उनके बिना जीने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती। मैं जीना नहीं चाहती। मंगला मैं जीना नहीं चाहती! भगवान मुझे भी उठा ले।“ मंजू रोते हुए बोली।

“तू इतनी स्वार्थी कब से बन गई मंजू। सिर्फ तू अपना दुख देख रही है। अरे, अपनी सास के तो बारे में सोच। जो तुझे ज्यादा दुख ना हो इसलिए अपने आंसुओं को अंदर ही अंदर पी रही है
उनकी उम्र तो देख। बेटे के जाने का गम उनको भी है। उनका तो वही सहारा था। तेरे पास तो अभी तेरा बेटा है और उनके पास, उनके पास तू ही तो है । उन्हें संभाल। जीजा जी की जिम्मेदारी अब तुझे पूरी करनी है। मुझे पता है, मेरी सहेली कभी हार नहीं मान सकती। “ मंगला उसे गले लगा तसल्ली देते हुए बोली।

उसकी बात सुन मंजू बोली “तू सही कह रही है मंजू। तू सही कह रही है। हां ,मैं सिर्फ अपने बारे में ही सोच रही थी। मांजी के बारे में नहीं । अपने दुख के आगे तो मैं सब कुछ भूल ही बैठी थी लेकिन अब नहीं। आज के बाद मेरी आंखों में आंसू नहीं आएंगे । मैं अपना परिवार बिखरने नहीं दूंगी। मुझे अपना परिवार सहेज कर रखना है। हां, समीर की जिम्मेदारी मैं निभाऊंगी।“
तभी मंजू की सास भी अंदर आ गई। मंजू की बातें सुन, उसने मंजू को गले लगा लिया।
“ बहू, हम दोनों को एक दूसरे का सहारा बनना होगा। हम अपने विहान को दुनिया भर की खुशियां देंगे। अब तुझे ही इसके मां पिता दोनों की जिम्मेदारी निभानी है।“

“बस मां आप सदा यूं ही मेरे साथ रहना। वादा करो ,आप समीर की तरह मुझे बीच रास्ते में छोड़कर नहीं जाओगे। “
“वादा है मेरा बहू। तेरी मां अपनी आखिरी सांस तक, तेरा साथ निभाएगी।“

तभी घंटी की आवाज और बच्चों का शोर सुन मंगला वर्तमान में लौट आई। आधी छुट्टी हो चुकी थी और बच्चे लंच करने के लिए बाहर चले गए थे। वह मंजू की क्लास ढूंढती हुई उसके पास पहुंची।

दोनों ही सहेलियां कई साल बाद मिल बहुत खुश थी।मंगला खुश होते हुए बोली “ मंजू कभी सोचा भी ना था कि हम दोनों फिर से कभी एक साथ ऐसे मिलेंगे। और बता तू कैसी है! तेरी सास और बेटा कैसा हैं!”

“हां मंगला, मुझे तो बहुत खुशी हो रही है कि हम दोनों फिर से एक साथ। सच स्कूल कॉलेज का समय याद आ गया। बेटा और सास दोनों ही सही है। तू बता अपने परिवार के बारे में!”
“मेरी एक बेटी है । जिसने अभी स्कूल जाना शुरू किया है। सास ससुर गांव में रहते हैं ।यहां तो हम दोनों ही हैं।“

“लेकिन मंगला मैंने बीच में सुना था, तू दूसरे शहर में शिफ्ट हो गई है फिर !”

“हां यार, इनकी कंपनी वालों ने 2 साल के लिए इन्हें बेंगलुरु भेज दिया था। जो प्रमोशन के लिए बेहद जरूरी था। बेटी छोटी होने के कारण मुझे भी छुट्टियां लेकर इनके साथ ही जाना पड़ा अकेले मुझसे मैनेज नहीं होता। अब तू बता ! तू कैसे यहां ! कब की तूने अपनी पढ़ाई पूरी! “ मंगला ने उत्सुकता से पूछा।
“तुझे तो पता ही है मंगला ,समीर के जाने के बाद बिल्कुल टूट गई थी । घर में मन ही नहीं लगता था । कितना भी मन को समझाने की कोशिश करती लेकिन उनकी यादें मुझे चैन न लेने देती। मेरे बेटे की जिम्मेदारी तो पूरी तरह मेरी सास ने संभाल ली थी। उसके लाड़ दुलार में वह तो अपना गम किसी तरह से भुलाने की कोशिश कर रही थी लेकिन मैं क्या करती ! थोड़ी सी हिम्मत बंधी थी, तभी पापा चल बसे और मैं फिर से टूट गई ।
हरदम अकेले रोती ही रहती थी।
तब मेरी सास ने ही मुझे आगे पढ़ने के लिए कहा। मेरा बिल्कुल मन नहीं था लेकिन उन्होंने मुझे हिम्मत बंधाई और कहा “बहू इस बहाने तेरा ध्यान दूसरी और लगेगा। वैसे भी तेरे पापा की बहुत इच्छा थी कि तू आगे पढ़े और नौकरी करें।
लेकिन तुझे तो पता है। यहां आने के बाद परिस्थितियां कैसी बनी। मैं चाह कर भी अपना वादा पूरा ना कर पाई लेकिन अब मैं समधी जी से किया अपना वादा पूरा करना चाहती हूं। तू भी तो आगे पढ़ना चाहती थी ना तो बेटा फिर से अपनी कॉपी किताबों से मन लगा ले। अब यही तेरे जीने का सहारा है। विहान और घर के कामों की तू चिंता मत कर मैं सब संभाल लूंगी।
उनकी बात सुनकर पहले तो मैंने बहुत मना किया लेकिन उनके बार-बार समझाने पर मैं उन्हें मना ना कर पाई और फिर से अपने अधूरे सपने को पूरा करने चली।
सच मंगला मेरी सास नहीं , मां है वो। उनके ही आशीर्वाद से मैंने पढ़ाई पूरी की और उसके बाद एंट्रेंस एग्जाम क्लियर कर, आज मैं तेरे सामने खड़ी हूं।“
“तू सही कह रही है मंजू, देवी है वह। आज के समय में कौन सास अपनी बहू के बारे में इतना सोचती है
उसने तो कदम कदम पर तेरा साथ दिया है। “

“तू सही कह रही है मंगला। समीर की कमी तो कोई पूरी नहीं कर सकता लेकिन हां, मां की कमी उन्होंने पूरी कर दी। समीर के जाने के बाद एक साए की तरह वह मेरे साथ रही है। उनकी हमेशा कोशिश रहती है कि मैं खुश रहूं। विहान तो अपनी दादी की जान है । दोनों एक दूसरे के बगैर बिल्कुल नहीं रह पाते। “
“बहुत अच्छी बात है मंजू यह तो लेकिन मंजू मैं एक बार तेरे घर गई थी। पता चला तुम दूसरी जगह शिफ्ट हो गए और तेरा नंबर भी बदल गया था। उसके बाद मैं तुमसे कांटेक्ट ही ना कर पाई। वैसे तुमने वह घर क्यों छोड़ दिया।“
“मजबूरी थी मंगला। वहां से कॉलेज दूर पड़ता है और फिर विहान का जिस स्कूल में नंबर आया, वह भी वहां से दूर था इसलिए हमने अपने नए वाले फ्लैट में शिफ्ट कर लिया और देख ना मेरा स्कूल भी मुझे घर के पास ही मिला।

“अरे वाह, यह तो बहुत बढ़िया बात है । मैं भी तो यहां थोड़ी दूर जो कॉलोनी है, वहां रहती हूं। अब तो दोनों सहेलियां फिर से पहले वाली मस्ती किया करेंगे।“
“हां मंगला बिल्कुल। एक तू ही तो मेरी सहेली थी। जिससे मैं दिल की हर बात कर पाती थी। तू मेरी जिंदगी में फिर से आ गई, सोचकर ही कितना अच्छा लग रहा है।“
क्रमशः
सरोज ✍️