Noukrani ki Beti - 29 in Hindi Human Science by RACHNA ROY books and stories PDF | नौकरानी की बेटी - 29

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नौकरानी की बेटी - 29

कृष्णा ने कहा हां बेटा तुम जरूर कामयाब होगी एक अच्छे काम के लिए जा रही हो।
आनंदी ने कहा मां अपना ख्याल रखना।
आनंदी गाड़ी से निकल गई।
इन्दौर से 5.55 से निकल कर दिल्ली 7.35 तक पहुंच जायेगी।।।ये अंकित ने कहा।

फिर आनंदी एयरपोर्ट पहुंच गई और फिर हवाई जहाज पर बैठ गई।
8बजे तक दिल्ली पहुंच गई।

समर्पण एनजीओ में सीधे पहुंच गई।।
आनंदी ने कहा अन्वेशा कहा है?
पुजा ने कहा अरे मैम आप?
आनंदी ने कहा हां मैं, अन्वेशा कहा है।।
पुजा ने कहा वो सो रही है।
आनंदी ने कहा कल सुबह उसे तैयार कर देना।

पुजा ने कहा हां ठीक है मैडम।।
फिर आनंदी ने एक दो फोन किया। मां को भी फोन कर दिया।
कुछ देर बाद अन्वेशा उठ कर खेलने लगी।
आनंदी ने धीरे से कहा अन्वेशा।
अन्वेशा ने देखा और देखते ही खुश हो गई और दौड़ कर आ गई।
आनंदी ने कहा मेरे पास रहोगी ना।।
अन्वेशा ने कहा हां, आप कहां चली गई थी।
आनंदी ने कहा मैं हमेशा के लिए तुम्हें लेकर जाऊंगी। अन्वेशा पांच साल की बच्ची थी और उसे कुछ नहीं पता था कि उसके माता-पिता कहा है?

दूसरे दिन सुबह आनंदी अन्वेशा को लेकर मेजिस्ट्रेट आफिस पहुंच गई।
वहां पर अपने सारे दस्तावेज जमा करवा दिया और अन्वेशा का भी जो, जो कागज़ था वो जमा करवा दिया।
फिर दोनों का फोटो,हाथ का स्कैन करवाया गया।
फिर सभी कानूनी रूप से सब कुछ हो गया और नैना को अबआनंदी की सन्तान के रूप में घोषित किया गया।
आनंदी आज बहुत ही खुश थी क्योंकि उसे एक बच्ची की परवरिश करने का मौका मिला है।
आनंदी अन्वेशा को लेकर पहले एक मंदिर गई और फिर वहां से शापिंग मॉल गई जहां पर नैना के लिए सुन्दर सुन्दर फ्राक लिया और उसका छोटा सा सूटकेस, मैचिंग जूता, मैचिंग हेयर बैंड और भी सभी जरूरी समान ख़रीदा। क्योंकि दूसरे दिन सुबह आनंदी को वापस इन्दौर आना था। और नैना को साथ लेकर जाना था।

आनंदी एक रात समर्पण में ही बच्चों के साथ बिताना चाहती थी। इसलिए उसने बहुत सारा समान बच्चों के लिए भी खरीदा।
केक, चाकलेट,बिसकूट, चिप्स,मैंगो जूस और बहुत सारी खिलौना, किताबें, कापियां, पेंसिल, रबड़,बाक्स आदि।
पुजा ने सारा सामान रखा और फिर आनंदी ने कहा सभी बच्चो को बांट दो।
सबसे पहले अन्वेशा के हाथों दिलाओ।
सभी बच्चो ने खुशी खुशी सामान लेकर अपने अपने अलमारी में रख दिया।
फिर सभी को केक, चाकलेट, बिस्कुट, चिप्स,मैंगो जूस बांट दिया गया।

और फिर स्मार्ट क्लास में एनिमेशन फिल्म जंगल बुक दिखाया गया।

आनंदी को बहुत ही अच्छा लग रहा था सभी बच्चो को लेकर।
फिर सभी बच्चे सो गए।
आनंदी ने अन्वेशा का छोटू सा सूटकेस पैक कर दिया। अगले दिन सुबह 5.35की फ्लाइट थी। आनंदी अन्वेशा को लेकर समय से पहले ही एयरपोर्ट पहुंच गई और फिर हवाई जहाज पर नैना को लेकर बैठ गई।
पांच साल की अन्वेशा ने शायद कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आयेगा। कहा इस छोटे छोटे हाथों से घर घर में काम करती थी और कहा अब हवाई जहाज पर सवार होकर एक नई उड़ान भरने वाली थी।
उस मासूम को तो कुछ भी पता नहीं कि आनंदी ने उसको अपनी बेटी बना लिया है।
तभी आनंदी ने कहा अन्वेशा अब मुझे मां बोलना हां।।
अन्वेशा ने बड़े प्यार से देखा और फिर बोली मां।।
मां शब्द सुनते ही आनंदी का कलेजा कांप उठा।।
कहते हैं कि एक औरत जन्म देने से ही मां होती है पर आनंदी ने ये दिखा दिया कि एक बच्चे को जन्म देने से ही वो मां नहीं बन जाती बल्कि सही मायने में तभी बनती है जब कोई अनाथ या बेसहारा बच्चों को अपना नाम देकर सदा के लिए अपना लें।।
अगर आनंदी जैसा हर कोई सोचे तो कोई भी बच्चा अनाथ और बेसहारा नहीं रहेगा।।

फिर आनंदी अपने गोद में अन्वेशा को सुला दिया।

8 फिर आनंदी इन्दौर पहुंच गई और साथ अपनी बेटी को लेकर एयरपोर्ट से बाहर निकल कर उसके स्वागत के लिए सभी उपस्थित थे और फिर आनंदी को माला पहनाया गया और गुलदस्ता भेंट किया गया और फिर वहां से घर के लिए निकल गई।

घर पहुंच कर कृष्णा वाई ने आरती की थाली सजाकर दोनों की आरती उतारी ‌
आनंदी फुली नहीं समाई।
आनंदी ने कहा अन्वेशा ये तुम्हारी नानी पैर छूकर आशीर्वाद दो।
अन्वेशा ने तुरंत कृष्णा के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। कृष्णा खुशी से झूम उठी और अन्वेशा को गोद में उठा लिया।

कृष्णा ने कहा आनंदी आज बिरयानी बनाईं हूं।
जल्दी से नहा कर आ।
आनंदी ने कहा हां मां, आप अन्वेशा को तैयार कर दो।
फिर कृष्णा अन्वेशा को तैयार कर के डाइनिंग टेबल पर बैठा दिया।
और फिर तीनों मिलकर कर खाना खाने लगे।


अन्वेशा एक नई जगह पर बहुत ही उत्साहित हो रही थी खुश लग रही थी।


फिर कृष्णा ने अन्वेशा को सुला दिया।

आनंदी ने आनलाइन से अन्वेशा के लिए बहुत सारी चीज़ें मंगवा लिया। सभी जरूरी समान और उसके लिए सुन्दर सा बेड रूम भी इंटिरियर से सजवाने को कहा।
आनंदी अन्वेशा को सब कुछ देना चाहती थी और सब कुछ सिखाना चाहती थी। क्या सही है क्या ग़लत है ये सब कुछ आनंदी अपनी अन्वेशा को सिखाने लगी थी।


इसी तरह दिन निकलने लगा। आनंदी का दायित्व और भी अधिक हो गया था घर में अन्वेशा और बाहर पुरा एक आई एस अफसर की जिम्मेदारी थी।

आनंदी को ये सब कुछ रीतू ने बताया था सब कुछ सिखाया था सो आज आनंदी ये सब बखुबी निभायेगी।

फिर आनंदी ने अन्वेशा को घर पर पढ़ाई-लिखाई शुरू करवाया और अन्वेशा जल्दी ही सब सिखने लगी थी फिर आनंदी ने उसका एडमिशन एक बहुत बड़े अंग्रेजी स्कूल में दाखिला कराया।

अन्वेशा की प्रतिभा पर ही उसको दाखिला मिल गया वो कक्षा एक में ‌

आनंदी ने सारी तैयारी कर लिया था अन्वेशा के युनिफॉर्म उसके सारे बुक,कांपी, और जो जरूरी समान था सब खरीद लिया।

आनंदी घर आकर बोली अन्वेशा ये देखो क्या लाईं हुं मैं।
अन्वेशा ने कहा हां मम्मा बहुत ही खूबसूरत है।कल से मुझे स्कूल जाना होगा।
कृष्णा ने कहा देखा आनंदी ये ही बात बचपन में तू भी बोला करती थी।

आनंदी ने कहा हां मां पर मैंने जो सहा है मैं नहीं चाहती कि अन्वेशा को वो सब सहना पड़े। आज अगर रीतू दी नहीं होती तो मैं कभी यहां तक नहीं पहुंच पाती।

कृष्णा ने कहा हां ये बात कभी नहीं भुला सकते हैं।
आनंदी ने कहा अन्वेशा को जो बनना है वो बनेंगी और उसको भी यही सिखाऊंगी की कभी किसी की सहायता करने से पीछे मत हटना क्योंकि तुम अगर किसी की सहायता करोगी तो हो सकता है कि कोई और भी तुम्हारा देख कर किसी और की सहायता करें।


क्रमशः