कहानी अब तक
राजा से हल बैल लाने का गट्टू भाई निश्चय कर लेता है।
अब आगे
गट्टू भाई खेत में से मोटे-मोटे सरकंडे और छोटे-छोटे बॉंस काट कर लाया और उसकी गाड़ी बनाई।
गाड़ी तो बन कर तैयार हो गई, गट्टू भाई के क़द और वजन के अनुसार गाड़ी का आकार भी सही था; लेकिन कौन खींचेगा उस गाड़ी को, किस पशु को उस गाड़ी में जोता जाए यह बहुत बड़ी समस्या थी । इसका भी हल निकाल लिया गट्टू भाई ने । दो मोटे-मोटे चूहे पकड़े और उन्हें गाड़ी में जोत दिया । गाड़ी लेकर राजा के यहाँ जाने को तैयार हो गया गट्टू भाई ।
मॉं से उसने रास्ते के लिए कलेवा माँगा।मॉं ने गठरी बांधकर उसे कलेवा दे दिया, लेकिन वह एक बार फिर बोली—
“बेटा ज़िद छोड़ दे, हम कुछ और उपाय कर लेंगे; लेकिन तू मत जा।”
गट्टू भाई— “मॉं मुझे आशीर्वाद दो कि मैं विजय प्राप्त कर अपने हल और बैल लेकर आ जाऊँ । मॉं तुम्हारा आशीर्वाद मिलेगा तो मैं अवश्य जीत कर आऊँगा । मुझे आशीर्वाद देकर विदा करो।”
भयभीत मॉं ने अपना काँपता हुआ हाथ उसके सिर पर रख दिया, और गट्टू भाई चल पड़े राजा से युद्ध करने ।
रास्ते में कोई पूछता— “गट्टू भाई,गट्टू भाई कहॉं जाता है।”
गट्टू भाई का जबाब होता—
“सरकंडा काटकर गाड़ी बनाया,
चूहा जोता जाता है ।
राजा मेरा हल बैल ले गया,
उससे लड़ने जाता है ।
आसपास के कई गॉंव में यह बात फैल गई, गट्टू भाई राजा से लड़ने जा रहे हैं ।
सभी आश्चर्यचकित थे, मगर गट्टू भाई पूरे आत्मविश्वास के साथ राजा से युद्ध करने के लिए प्रस्थान कर चुके थे ।
रास्ते में गट्टू भाई को ऑंधी मिली । ऑंधी से उनकी गाड़ी हिलने लगी तो उन्होंने ऑंधी से कहा—
“तू मेरे रास्ते में क्यों आ रही है, मैं तुझसे युद्ध करने नहीं आया हूँ ।”
इस पर ऑंधी ने कहा— “तो बता दीजिए गट्टू भाई तुम कहाँ जा रहे हो ?”
गट्टू भाई ने कहा—
“सरकंडा काटकर गाड़ी बनाया,
चूहा जोता जाता है ।
राजा मेरा हल बैल ले गया,
उससे लड़ने जाता है ।”
ऑंधी ने कहा— “आप मुझे भी अपने साथ ले चलो, मैं तुम्हारी सहायता करूँगी ।”
गट्टू भाई ने कहा— “तू क्या करेगी मेरे साथ जाकर ।”
ऑंधी— “मैं तुम्हारी सहायता करूँगी गट्टू भाई ।”
गट्टू भाई— “आजा मेरे कान पर बैठ जा ।”
ऑंधी गट्टू भाई के कान में समा गई, गट्टू भाई की गाड़ी फिर से चलने लगी ।गट्टू भाई की गाड़ी चलती रही, चलती रही ।
रास्ते में गट्टू भाई को एक जगह वर्षा मिली ।
गट्टू भाई ने उससे कहा—
“वर्षा रानी थोड़ा रुक जाओ, मेरे रास्ते में तुम मत आओ मुझे जाने दो ।”
वर्षा— “लेकिन तुम कहाँ जा रहे हो गट्टू भाई ।”
गट्टू भाई ने कहा—
“सरकंडा काटकर गाड़ी बनाया,
चूहा जोता जाता है ।
राजा मेरा हल बैल ले गया,
उससे लड़ने जाता है ।”
वर्षा ने कहा— “मुझे भी अपने साथ ले चलोगे ?”
गट्टू भाई— “तुम जाकर क्या करोगी वर्षा रानी ?”
वर्षा— “चिंता मत करो गट्टू भाई , परेशान नहीं करूँगी,
तुम्हारी कुछ सहायता ही करूँगी ।”
गट्टू भाई— “आजा मेरे कान में बैठ जा।”
ऑंधी, तूफ़ान के साथ वर्षा रानी भी गट्टू भाई के कान में जाकर बैठ गई ।
गट्टू भाई फिर चलने लगे , चलते ही रहे। चलते-चलते उन्हें काफ़ी देर हो गई थी, भूख लग आई थी, तो उन्होंने मॉं का दिया हुआ कलेवा निकाला और खाना प्रारंभ किया; निवाला मुँह में गया नहीं था, तभी याद आया उसके साथ दो अतिथि भी है । उसने ऑंधी,तूफ़ान और वर्षा से कहा—
“ऑंधी तूफ़ान भाई और वर्षा रानी बहिन आ जाओ तुम भी कलेवा कर लो । देखो मॉं का दिया हुआ कलेवा है । बहुत ही स्वादिष्ट है ।”
ऑंधी तूफ़ान और वर्षा ने एक साथ कहा—
“गट्टू भाई भोजन तुम ही खा लो , हम यह भोजन नहीं करते । हम तो सिर्फ़ तुम्हारा साथ देंगे । तुम बहुत बहादुर बच्चे हो , इसलिए हम तुम्हारा साथ देने आये हैं, तुम आराम से कलेवा कर लो।”
गट्टू भाई ने कलेवा समाप्त कर के पानी पीकर फिर से गाड़ी चलाना शुरू किया । थोड़ी दूर जाने के बाद उन्हें बहुत
सारी चींटियाँ मिली । चींटियाँ उनके आसपास भर गई ।
उन्होंने चींटियों से कहा—
“तुम मेरे आसपास क्यों फैल रही हो? मैं तो बस कुछ देर के लिए तुम्हारे साथ हूँ, मैं तो अभी निकल जाऊँगा; इसलिए तुम मुझे परेशान मत करो।”
चींटी— “तुम कहाँ जा रहे हो ?” गट्टू भाई ।
गट्टू भाई —
“सरकंडा काटकर गाड़ी बनाया,
चूहा जोता जाता है ।
राजा मेरा हल बैल ले गया,
उससे लड़ने जाता है ।”
चींटियों ने कहा— “फिर तुम हमें भी अपने साथ ले लो।”
गट्टू भाई ने कहा— “आजाओ मेरे बालों में बैठ जाओ , कुछ मेरे कान में बैठ जाओ ।”
चींटियों ने कहा— “गट्टू भाई हम तुम्हारे कान, बालों में नहीं बैठ सकते;हमें कोई दूसरी जगह बताओ जहॉं हम बैठ जायें ।”
गट्टू भाई— “तुम मेरी गाड़ी में बैठ जाओ ।”
इतना सुनते ही वह सब गाड़ी में बैठ गई । आगे कुछ दूर जाने पर वहाँ मधु मक्खी मिली ।
गट्टू भाई ने कहा मुझे परेशान मत करो ।
मधु मक्खी ने कहा—“गट्टू भाई कहॉं जाता है?”
गट्टू भाई—
सरकंडा काटकर गाड़ी बनाया,
चूहा जोता जाता है ।
राजा मेरा हल बैल ले गया,
उससे लड़ने जाता है ।
मधु मक्खी ने कहा— “हम तुम्हारे साथ चलें क्या?”
गट्टू भाई— “तुम क्या करोगी ?”
मधु मक्खी ने कहा—“ हम तुम्हारा साथ देंगी ।”
गट्टू भाई— “ठीक है मेरी गाड़ी में बैठ जाओ ।”
वह बैठ रहीं थीं तभी धूआँ भी आ गया और वह भी सबके साथ चलने लगा ।
गाड़ी चलती रही, एक जगह रात को विश्राम किया ।वहीं खाना खाकर आराम किया । अगले प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व ही वहाँ से निकल गये, राजधानी जाने के लिए ।
क्रमशः ✍️
आशा सारस्वत