Betrayal--(Season-2)--Part-(13) in Hindi Fiction Stories by Saroj Verma books and stories PDF | विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग-(१३)

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विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग-(१३)

करन के एक्सीडेंट की खबर सुनकर सेठ गिरधारीलाल,धर्मवीर,अनवर चाचा सभी दौड़े आए.....
परेशान होकर सेठ गिरधारी लाल जी बोले...
बेटा! अब तू ये पुलिस की नौकरी छोड़ दे,अपना इतना बड़ा व्यापार है उसे सम्भाल,ये तेरा रोज रोज खून बहते हुए मैं नहीं देख सकता।।
डैडी! ये कैसीं बातें कर रहे हैं आप!नौकरी छोड़ना तो बुजदिली होगा,करन बोला।।
और ये तेरा रोज रोज घायल होकर बिस्तर पकड़ लेना,ये क्या ठीक है? सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
लेकिन डैडी! ये सब तो पुलिसवालों के साथ अक्सर होता रहता है,करन बोला।।
भला हो उस लड़की का जिसने तुझे समय पर अस्पताल पहुँचा दिया,लेकिन वो थी कौन?धर्मवीर बोले।।
पापा,मैं नहीं जानता और मैने तो उसका नाम भी नहीं पूछा,करन ,धर्मवीर से बोला।।
अरे,कैसे पुलिस वाले हो भाई! जो नाम भी नहीं पूछा,अनवर चाचा बोले।।
मैं तो भूल ही गया,करन बोला।।
बताओ,हम उस लड़की का शुक्रिया भी अदा नहीं कर सकते,गिरधारीलाल जी बोले।।
अब कैसै पता करेंगें कि वो कौन थी? धर्मवीर बोले।।
अरे,जब वो मुझे अस्पताल लाई होगी तो उसने यहाँ अपने साइन और पता लिखा होगा,उसी रजिस्टर में होगा उसका नाम,करन बोला।।
ये सही कहा,मैं अभी देखकर आता हूँ,धर्मवीर इतना कहकर रेसेप्सन पर रजिस्टर देखने चले गए और थोड़ी देर बाद वो लौटे और सबसे कहा कि उसका नाम शर्मिला थापर है।।
अच्छा ! तो उसका नाम शर्मिला था,करन बोला।।
मैं शर्मिला के घर जा कर उसका शुक्रिया अदा कर दूँगा लेकिन ये बताओ तुम्हें इस बार अस्पताल में और कितने दिन रहना पड़ेगा,गिरधारीलाल जी बोले।।
वो तो डॉक्टर साहब ही बताऐगें,करन बोला।।
तभी डाक्टर साहब ,करन के कमरें में आए और पूछा....
इन्सेपेक्टर साहब अब कैसा लग रहा है?
अब तो पहले से बेहतर हूँ,करन बोला।।
अच्छा! डाक्टर साहब ! अभी करन को अस्पताल में कब तक रहना होगा? गिरधारीलाल जी ने पूछा।।
जी बस,एक दो दिन और ,थोड़ा आब्जर्वेशन पर रखना पड़ेगा,इसके बाद करन घर जा सकता है।।
उस रात अनवर चाचा ,करन के पास अस्पताल में रूके,गिरधारीलाल जी और धर्मवीर घर आ गए,
गिरधारी लाल जी घर पहुँचे ही थे कि सुरेखा बोली....
डैडी! करन भइया का एक्सीडेंट हो गया और आपने मुझे बताना भी मुनासिब ना समझा।।
मैने सोचा तू नाहक ही परेशान होगी इसलिए नहीं बताया,मैं देखकर आ रहा हूँ वो अब बिल्कुल ठीक है,भला हो उस लड़की का जो उसने करन को समय पर अस्पताल पहुँचा दिया,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
वैसे कौन थी वो लड़की? सुरेखा ने पूछा।।
उसका नाम शर्मिला है,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
कहीं शर्मिला थापर तो नहीं,सुरेखा बोली।।
हाँ,यही नाम तो था उसका,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
अरे,वो तो मेरी सहेली है,अभी कुछ दिन पहले ही विलायत से लौटी है,मैं उस दिन सुबह सुबह उसी को लेने तो एयरपोर्ट गई थी जब उस लड़के से मेरी झड़प हो गई थी ,वो स्टार नाइट क्लब के मालिक की बेटी है,मैं उसे बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ,सुरेखा बोली।।
ये तो बहुत अच्छी बात है तब तो ,अच्छा तो तुम उसे टेलीफोन करके घर बुला लेना,उसे शुक्रिया कहना है,गिरधारीलाल जी बोले।।
ठीक है डैडी! यही ठीक रहेगा,सुरेखा बोली।।
चल मैं रामू को बोल दूँ कि अस्पताल जाकर खाना पहुँचा आए,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
ठीक है डैडी ! मैं तब तक टेबल पर खाना लगवाती हूँ,इतना कहकर सुरेखा चली गई।।

और उधर जब धर्मवीर घर पहुँचा तो उसने भी लाज को करन के एक्सीडेंट की बात बताई तो वो भी परेशान होकर बोली...
पापा! आप अकेले चले गए,मै भी उसे देख आती कि वो कैसा है?
अरे,अब ठीक है वो,अनवर चाचा रात को उसी के पास रहेंगें और फिर बहुत बहादुर है हमारा करन उसे आसानी से कुछ होने वाला नहीं है,तू कल चली जाना उससे मिलने,धर्मवीर बोला।।
ठीक है लेकिन डर तो लगता ही है ना! चलिए आप हाथ मुँह धो लीजिए ,मैं खाना लगाती हूँ,लाज बोली।।

और उधर शर्मिला के घर पर,शर्मिला अपनी बालकनी में डिनर करने के बाद टहल रही थी,तभी उसने देखा कि एक बड़ी सी मोटर उसके बंगले के पास आकर रूकी और उसमें से एक आदमी उतरकर भीतर आया.....
और दरबान से पूछा.....
थापर घर पर है या कहीं बाहर गया है।।
जी,साहब ! घर पर हैं ,मैं उन्हें बुलाए देता हूँ,दरबान बोला।।
उसकी कोई जुरूरत नहीं है,मैं खुद ही बुलाए लेता हूँ और इतना कहकर वो आदमी बंगले के भीतर घुस गया...
रूकिए साहब! ऐसे मत जाइए,मेरी नौकरी चली जाएगी,मुझे साहब को सूचित करने दीजिए,दरबान बोला।।
तू दो कौड़ी का आदमी,तेरी इतनी जुर्रत कि मुझे भीतर जाने सै रोकता है,वो आदमी बोला।।
साहब! मैं तो बस अपनी ड्यूटी निभा रहा हूँ,दरबान बोला....
वो आदमी नहीं माना और थापर....थापर....कहाँ है तू बाहर निकल,ऐसा कहता हुआ बंगले के भीतर तक चला गया.....
उसकी आवाज सुनकर हरदयाल थापर बाहर आया और पूछा....
कौन है?
मैं हूँ थापर विश्वनाथ! वो आदमी बोला।।
आइए....आइए...विश्वनाथ साहब! कहिए कैसे आना हुआ? हरदयाल थापर ने पूछा।।
मैं यहाँ खातिरदारी करवाने नहीं आया हूँ,तुझे हिदायत देने आया हूँ कि अब से तूने मेरे मामलों में दख़ल दिया तो मुझसे बुरा कोई ना होगा,विश्वनाथ चीखा।।
लेकिन मैने ऐसा तो कुछ नहीं किया,हरदयाल थापर बोला।।
तूने नहीं लेकिन तेरी बेटी ने दखल दिया है उसे समझाकर रखना,वरना तेरे और तेरी बेटी के लिए ये अच्छा ना होगा,विश्वनाथ फिर से चिल्लाया।।
लेकिन ऐसा उसने क्या किया है? थापर ने पूछा।।
तेरी बेटी की वजह से आज वो इन्सेपेक्टर करन दोबारा मेरे हाथों से बच गया,नहीं तो आज करन की जान चली गई होती,विश्वनाथ बोला।।
ये तो उसने गलती से कर दिया होगा,थापर बोला।।
इसलिए उसे और तुझे आज छोड़ता हूँ लेकिन याद रख अगर आगें से कुछ ऐसा हुआ ना तो तेरी खैर नहीं,और इतना कहकर थापर वहाँ से चला गया।
ये सब शर्मिला ने भी सुना लेकिन अपने पिता से कुछ भी ना पूछ सकी और थापर भी उस समय अपनी बेटी से कुछ ना कह पाया क्योंकि वो भी तो विश्वनाथ के लिए ही काम करता था,लेकिन उसे ये पता नहीं था कि शर्मिला ने सब सुन लिया है और सब समझ भी गई है।।
और सारी रात शर्मिला सो ना सकी,वो करन से मिलकर उसे विश्वनाथ के बारें मे सब बताना चाहती थी।।

दूसरे दिन सुबह हुई और शर्मिला तैयार होकर नाश्ते की टेबल पर पहुँची,उसने देखा कि उसके डैडी पहले से ही वहाँ मौजूद हैं....
बैठो बेटा! आज तुम्हारी पसंद के आलू के पराँठे बनवाएं हैं,तुझे बहुत पसंद हैं ना! जब तेरी माँ जिन्दा थी तो तू अक्सर उससे जिद करके आलू के पराँठे बनवाती थी ,थापर ने शर्मिला से कहा।।
डैडी! कल रात वो आदमी कौन था? शर्मिला ने पूछा।।
शर्मिला का सवाल सुनकर थापर सन्न रह गया और बात को टालते हुए बोला.....
कोई नहीं था,मेरा पार्टनर है ,व्यापार में कुछ घाटा हो गया है इसलिए आया था , क्योंकि उसका पैसा ज्यादा लगा था और वो पैसा डूब गया ,इसलिए उसका इतना गुस्सा होना जायज ही था,
अच्छा! तो ये बात थी,शर्मिला बोली।।
हाँ! बेटा! बस इतनी सी बात थी,थापर बोला।।
लेकिन शर्मिला तो समझ ही गई थी कि उसके डैडी झूठ बोल रहे हैं,मामला तो कुछ और ही है लेकिन उसने अपने डैडी से ये नहीं कहा कि उसने सब सुन लिया था,वो चुपचाप नाश्ता करती रही।।

शर्मिला दिनभर सोचती रही कि उसे अपने डैडी की सच्चाई इन्सेपेक्टर करन से बतानी चाहिए या नहीं,इसी उधेडबुन में दोपहर हो गई लेकिन अब शर्मिला फैसला ले चुकी थी कि वो इन्सेपेक्टर करन को सब कुछ बता देगी और उसने अस्पताल जाने की सोची।

और इधर अनवर चाचा अस्पताल से घर लौट आए थे , खाना खाकर आराम करने ही जा रहे थे कि तभी लाज ने उनसे कहा....
चाचा! दरवाजा बन्द कर लीजिए, मैं करन से मिलने अस्पताल जा रही हूँ,खाना भी उसी के संग खाऊँगी।।
ठीक है बिटिया! लेकिन खाना मत ले जाओ,खाना तो सुरेखा बिटिया लाने वाली थी और वो तो अब तक पहुँच भी गई होगी,मेरे आने से पहले सेठ जी पहुँच गए थे इसलिए मैं घर आ पाया,अनवर चाचा बोले।।
ठीक है तो मैं जाती हूँ खाना नहीं ले जाऊँगी, और इतना कहकर लाज घर से बाहर आ गई....
वो थोड़ी दूर पैदल चली लेकिन उसे कोई टैक्सी ना दिखी....
वो सड़क के किनारे टैक्सी के इन्तज़ार में खड़ी ही थी कि तभी एक टैक्सी रूकी और टैक्सी वाला बोला...
बैठिए मोहतरमा! कहाँ जाएंगी? और वो प्रकाश था।।
अरे,तुम! यहाँ,ये इत्तेफाक है या तुम मुझ पर नज़र रखते हो,लाज बोली।।
सारी बातें सड़क पर ही करेंगीं या टैक्सी में भी आएंगी,प्रकाश बोला।।
तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया,लाज बोली।।
ये इत्तेफाक नहीं है,दो तीन चक्कर तो यहाँ के लगा ही लेता हूँ इसलिए कि कहीं आप दिख जाएं,प्रकाश बोला।।
चक्कर लगाना क्या इतना जरूरी है? लाज ने पूछा।।
इश्क़ में तो लोंग क्या क्या नहीं कर जाते ? हम तो केवल आपकी गली के चक्कर ही लगाते हैं मोहतरमा! ,प्रकाश बोला।।
आपको क्या लगता है कि आप मेरी गली के चक्कर लगाऐंगें और मुझे आपसे मौहब्बत हो जाएगी,लाज बोली।।
दिल तो यही कहता है,प्रकाश बोला।।
आपका दिल बिल्कुल गलत कहता है जनाब! कोई भ्रम मत पालिए,लाज बोली।।
हमें तो यकीन है कि आप यूँ मिलतीं रहीं तो एक ना एक दिन आपको हमसे इश्क़ हो ही जाएगा,प्रकाश बोला।।
अच्छा जी! बडा यकीन है आपको खुद पर,लाज बोली।।
यकीन है तभी तो कहता हूँ,प्रकाश बोला।।
चलिए....चालिए....ज्यादा बातें मत बनाइए,देवकी देवी अस्पताल की ओर टैक्सी ले लीजिए,लाज बोली।।
क्यों ? कोई बीमार है क्या?प्रकाश ने पूछा।।
हाँ! कल करन पर किसी ने हमला किया था,उसे किसी लड़की ने अस्पताल पहुँचाया,लाज बोली।।
ठीक तो है ना वो,प्रकाश बोला।।
हाँ! खतरे से बाहर है,भला हो उस लड़की का जो उसने समय से करन को अस्पताल पहुँचा दिया,लाज बोला।।
चलिए,भगवान भला करें उस लड़की का ,प्रकाश बोला ।।
और इसी तरह बातों ही बातों में दोनों अस्पताल पहुँच गए....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा......