Betrayal(Season-2)--Part(10) in Hindi Fiction Stories by Saroj Verma books and stories PDF | विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(१०)

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विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(१०)

गिरधारीलाल जी अनवर चाचा को देखकर कुछ सोच में पड़ गए.....
गिरधारी लाल जी के कुछ बोलने से पहले ही अनवर चाचा उनसे पूछ बैठे....
सेठ जी! क्या इन्सपेक्टर करन ही मेरा करन है? बोलिए ना....बताइए ना...!
जी! हाँ!मैने आपको पहचान लिया है आप वहीं हैं ना जो किसी मजबूरी बस रेलगाड़ी में करन को मेरे हवाले कर गए थे,जी आपका करन अब इन्सेपेक्टर करन ही है,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
ओह....सेठ जी! मैं आपका एहसानमंद हूँ,मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ? आपने करन को पालपोसकर बड़ा किया और इस काबिल बनाया,आज मैं बहुत खुश हूँ कि मेरा करन मिल गया,अनवर चाचा ये कहते कहते बहुत ही भावुक हो उठे।।
इसमें एहसान कैसा? आपने एक जिम्मेदारी मुझे सौपीं थी,वो मैने निभाई ,इसमें मेरा भी तो स्वार्थ था,मेरे कोई सन्तान नहीं थी लेकिन करन को पाकर मैं और मेरी पत्नी की जिन्द़गी में बहार आ गई,करन के आने बाद हमारी जिन्द़गी में हमारी बेटी सुरेखा भी आ गई और हमारा परिवार पूरा हो गया लेकिन कुछ दिनों बाद मेरी पत्नी भागवन को प्यारी हो गई,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
बहुत दुख हुआ आपकी पत्नी के बारें में जानकर,अच्छा! सेठ जी! ये बातें तो होतीं रहेंगीं,अभी अस्पताल चलिए करन के पास,अनवर चाचा बोले।।
जी! हाँ! चलिए,जल्दी अस्पताल चलते हैं,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
और सेठ गिरधारीलाल जी ,अनवर चाचा के साथ अस्पताल पहुँचे।।
अनवर चाचा ने तब धर्मवीर को बताया कि इन्सपेक्टर करन ही हमारा करन है,सेठ जी ने अच्छे संस्कार देकर इसे इस काबिल बनाया है और सेठ जी को भी धर्मवीर का परिचय दिया,ये सुनकर धर्मवीर की आँखों से आँसू बहने लगे और उसने फौरन अपने बेटे को सीने से लगा लिया और करन भी अपने पापा के गले लगकर द्रवित हो उठा,दोनों बाप बेटे कुछ देर तक ऐसे ही एकदूसरे के सीने से लगे रहे।।
तब करन को तो याद नहीं था लेकिन सेठ जी को करन ने बचपन में बताया था कि उसकी माँ,दीदी और पापा हैं,तब सेठजी ने पूछा.....
धर्मवीर जी! आपकी पत्नी और बेटी कहाँ हैं?
जी! मैं आपको सब बताता हूँ,अनवर चाचा बोले।।
और अनवर और चाचा ने सारी कहानी कह सुनाई,ये सुनकर करन खुद को सम्भाल नहीं पाया और बोला....
अब विश्वनाथ की खैर नहीं,वो अब बचकर नहीं जा पाएगा,जिसने मेरी माँ,दीदी और पापा का ये हाल किया है,वो अब सुकून से नहीं जी पाएगा।।
करन बेटा! पहले तुम ठीक हो जाओ,फिर देखते हैं कि क्या करना है? सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।।
हाँ ! बेटा! ये समय जल्दबाजी से नहीं धीरज से काम लेने का है,धर्मवीर बोला।।
हाँ,करन! सालों से वो अपराध करके शान से जी रहा है,अब वक्त आ गया है कि उसे उसके कर्मों की सजा मिलनी चाहिये,लेकिन इसके लिए हमें योजना बनानी होगी,तभी हम उसे उसके किए की सजा दे पाऐगें,अनवर चाचा बोले।।
हाँ! लेकिन अभी ये सब छोड़ो और तुम ये बताओ कि क्या तुम लाज से नहीं मिलना चाहोगे?धर्मवीर ने करन से पूछा।।
हाँ! मैं दीदी से मिलना चाहता हूँ,करन बोला।।
तो ठीक है,मैं अभी बिटिया के पास घर जा रहा हूँ,वो अकेली है,सुबह आते वक्त उसे भी लेता आऊँगा,लल्ला ! आप रात को करन के पास रूको,अनवर चाचा बोले।।
हाँ! यही सही रहेगा,धर्मवीर बोला।।
ना!...ना!..धर्मवीर जी! आप भी घर जा सकते हैं,मैं हूँ ना अस्पताल में,मैं रुकता हूँ यहाँ,आप चिन्ता मत कीजिए,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
लेकिन,करन इतने सालों बाद मिला है,मैं सोच रहा था कि रात को मैं रूक जाता,धर्मवीर बोला।
जी! मै समझ सकता हूँ,आपके दिल की बात,आप भी तो मेरी तरह एक पिता हैं लेकिन आप आराम से घर जाइए,मैं यहाँ सब सम्भाल लूँगा,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
हाँ! पापा! अभी आप घर जाइए,देखिए आपके कपड़े भी तो खराब हो गए हैं खून के धब्बे लग चुके हैं,मैं बिल्कुल ठीक हूँ और यहाँ मैं अपनी सुरक्षा के लिए कुछ हवलदारों को भी तैनात करवा देता हूँ,आप घर जाकर आराम कीजिए,करन बोला।।
ठीक है! तुम कहते हो तो मैं भी घर चला जाता हूँ और इतना कहकर धर्मवीर और अनवर चाचा घर चले आए.....
घर पहुँचे ,लाज ने दरवाज़ा खोलते ही पूछा....
बड़ी देर कर दी आपलोगों ने,मैं तो डर ही गई थी कि ना जाने क्या बात हुई जो आप लोंग अभी तक नहीं आए...?
अरे,बिटिया! पहले मुँह मीठा करवाओ,तुम्हारे लिए खुशखबरी लाएं हैं,अनवर चाचा बोले....
खुशखबरी.....कैसी खुशखबरी? लाज ने आश्चर्य से पूछा।।
अरे,वो इन्सपेक्टर करन ही हमारा करन निकला,अनवर चाचा बोले।।
सच....अनवर चाचा! लाज ने खुश होकर पूछा।।
हाँ....बिटिया...हाँ! वो ही हमारा करन है,लेकिन अभी बेचारा अस्पताल में है,इसलिए तो हम दोनों को आने में देर हो गई,अनवर चाचा बोले।।
अस्पताल.....लेकिन कैसे? लाज ने फिर पूछा।
फिर धर्मवीर ने सारी कहानी कह सुनाई.....
ओह....तो सुबह मैं भी उससे मिलने जाऊँगी,लाज बोली।।
हाँ...हाँ...हम सब साथ में चलेंगें...अनवर चाचा बोले।।
फिर सबने खाना खाया लेकिन जब सब बिस्तर पर गए तो सबकी आँखों से मारे खुशी के नींद गायब थी....
सुबह हुई,अनवर चाचा और लाज ने मिलकर नाश्ता बनाया ,सब तैयार होकर करन से मिलने अस्पताल रवाना हो गए....
सबके अस्पताल पहुँच जाने पर गिरधारीलाल जी घर चले गए,करन को देखकर लाज कुछ देर मौन, बस खड़े होकर उसे देखती रही फिर कुछ देर बाद बोली.....
अरे,तू तो बहुत बड़ा हो गया रे! तू तो पढ़ाई में बहुत गधा था,इन्सपेक्टर कैसे बन गया?
ये सुनकर सब हँस पड़े और लाज ने करन को अपने गले से लगा लिया,मारे खुशी के उसके दो आँसू भी टपक गए,यही हाल करन का भी था।।
आज सबने करन के संग ही नाश्ता किया,आज का दिन उन सबके लिए बहुत खुशी का था क्योंकि सालों बाद पूरे परिवार ने एक साथ मिलकर नाश्ता किया था।।
कुछ देर सबने बातें की तभी अनवर चाचा ने धर्मवीर से कहा....
लल्ला! आप अपने काम पर जाओ,क्यों अपने काम का हर्ज करते हो, मैं और लाज है ना करन के पास,शाम को फिर आ जाना....
ठीक है तो आप कहते हैं तो मैं चला जाता हूँ,दो चार घंटे टैक्सी चलाकर मैं आ जाऊँगा,धर्मवीर बोला।।
हाँ,पापा! आप मेरी चिन्ता मत किजिए,करन बोला।।
और धर्मवीर काम पर चला गया,दोपहर का खाना गिरधारीलालजी और सुरेखा लेकर आए,सुरेखा भी अपने बड़े भाई से मिलने आई थी,करन ने लाज को सुरेखा से मिलवाते हुए कहा.....
देखो दीदी! ये मेरी अल्हड़ छोटी बहन,थोड़ी सिरफिरी है लेकिन अच्छी है।।
ये क्या करन भइया? कम से कम दीदी के सामने तो मेरा मज़ाक मत उड़ाओ,सुरेखा रूठते हुए बोली।।
अरे,सुरेखा! इस पागल की बातों का बुरा मत मानो,अब ये तुम्हें सताएगा तो मैं इसके कान खीचूँगी,मैं तो इससे बड़ी हूँ ना!लाज बोली।।
सच दीदी! हाँ ! करन भइया मुझे बहुत सताते हैं,अब हम दोनों बहनें मिलकर इनकी खब़र लिया करेंगें,सुरेखा बोली।।
हाँ,बिल्कुल,लाज बोली।।
फिर सबने मिलकर खाना खाया,फिर शाम होने पर अनवर चाचा गिरधारीलाल जी से बोले....
सेठ जी! आप और सुरेखा बिटिया अब घर जा सकतें हैं,....
नहीं,अभी मै और सुरेखा यहाँ रूकते हैं,रात के खाने के लिए नौकर से कहकर आया हूँ वो दे जाएगा,आप और लाज बिटिया अब घर जाइए,सेठ गिरधारी लाल जी बोले......
जी,ठीक है रात को मैं फिर से आ जाता हूँ,मैं अभी लाज बिटिया को घर छोड़कर आऊँ,अनवर चाचा बोले...
और इतना कहकर अनवर चाचा,लाज के साथ अस्पताल के बाहर आ गए और घर जाने के लिए एक टैक्सी रूकवाई.....
टैक्सी खड़ी हुई,टैक्सीड्राइवर ने कहा...
आइए साहब! कहाँ जाऐगे? लेकिन जैसे ही उसने लाज को देखा तो उसके चेहरें का रंग उड़ गया क्योंकि वो टैक्सी ड्राइवर और कोई नहीं प्रकाश था,उसे देखकर लाज भी एक पल को मौन रही और तभी अनवर चाचा बोले.....
बिटिया! आओ बैठो।।
अनवर चाचा की बात सुनकर लाज सचेत हुई और बोली....
हाँ! अनवर चाचा! बैठती हूँ.....
लाज ने एक सादी सूती सी साड़ी पहनी थी ,लम्बे बालों की चोटी बनाई थी, काजल और सुर्खी से चेहरे को सजा भी नहीं रखा था,उस दिन रात में प्रकाश ने जिस लड़की को देखा था आज वो उसके एकदम विपरीत थी,प्रकाश को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है ? उस दिन तो ये बड़े घर की मालूम होती थी लेकिन आज तो ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा आखिर माजरा क्या है?ये लड़की है या के फिर कोई पहेली।।
और यही सोचते सोचते घर भी आ गया,अनवर चाचा बोले....
बेटा! टैक्सी यहीँ रोक दो,हमारा घर आ गया।।
दोनों टैक्सी से उतरे,अनवर चाचा ने पैसे दिए और प्रकाश ने पैसे लिए और चला गया।।
इधर लाज भी प्रकाश के बारें में ही सोच रही थी कि आखिर वो मेरे बारें में क्या सोच रहा होगा,जो भी हो वो एक अच्छा इन्सान है,पहली बार उसने मेरी मदद की थी और उसके बदले में में उससे दो प्यार के मीठे बोल भी ना बोल सकीं,लेकिन मैं करूँ भी तो क्या? आखिर उसे अपनी सच्चाई किस प्रकार बताऊँ...?
इसी उलझन मे लाज की शाम बीती और फिर रात भी,प्रकाश तो उसे पहली ही मुलाकात में अच्छा लग गया था,उसकी नेकदिली और ईमानदारी ने उसका दिल जीत लिया था,काश मैं उससे अपने बारें में सब बता सकती और यही सोचते सोचते लाज को कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला।।
दो तीन दिन के बाद करन ठीक हो गया और उसे घर जाने की इजाजत मिल गई,सेठ गिरधारीलाल जी ने धर्मवीर और अनवर चाचा से कहा.....
चलिए! अब आप लोंग भी हमारे साथ रहिए,हम सब एक परिवार की तरह एक साथ रहेगें.....
तभी धर्मवीर बोला.....
नहीं! सेठ जी! हमें हमारा करन मिल गया,हमारे लिए तो यही बहुत बड़ी बात है,आप करन को घर ले जाइए,हम सबका जब भी करन से मिलने का मन किया करेगा तो आ जाया करेगें,क्योंकि अब करन पर हमलोगों से ज्यादा आपका हक़ है और मैं ये हक़ आपसे छीनना नहीं चाहता,करन हमें मिल गया है तो इसका मतलब ये थोड़े ही है कि आपका और सुरेखा का करन के साथ रिश्ता खतम हो गया,करन आपके साथ ही रहेगा और जब भी आप लोगों का मन करें तो आपलोंग भी हमसे मिलने हमारे घर आ सकते हैं,
ये बोलकर आपने तो मेरा बोझ ही हल्का कर दिया,बहुत बहुत धन्यवाद धर्मवीर जी....बहुत बहुत धन्यवाद,गिरधारीलाल जी बोले।।
इसमे धन्यवाद कैसा सेठ जी! मुझे मालूम है कि मेरी अमानत आपके पास ही सुरक्षित रह सकती है,धर्मवीर बोला।।
जी,ठीक है तो हम करन को लेकर चलते हैं,अभी तो उसके सिर की पट्टी खुली नहीं है,अब वो घर पर ही आराम करेगा,सेठ गिरधारीलाल जी बोले.....
जी,सही कहा आपने,अनवर चाचा बोले।।
और सब अपने अपने घर लौट आए....
इस तरह एक महीने होने को आए करन अब बिल्कुल ठीक हो गया है और अब पुलिसचौकी भी जाने लगा,अब धीरे-धीरे लाज के मन से भी कुछ डर खतम हो गया है,इसलिए वो भी कभी कभी बाजार चली जाती है,सब्जियाँ और राशन लेने......
करन की पुलिसचौकी पास में ही है तो लाज उससे मिलने भी कभी कभी चली जाती है.....
इधर प्रकाश ,लाज के ख्यालों में ही डूबा रहता है,वो लाज रूपी पहेली को सुलझाना चाहता है लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा...
तभी उसकी माँ ने आवाज दी....
प्रकाश...ओ..प्रकाश! कहाँ है रे तू?
हाँ,माँ बोलो,क्या बात है? प्रकाश ने पूछा..
बेटा!राशन खतम हो गया है,शाम को लेते आना बेटा! माँ बोली।।
ठीक है माँ! और प्रकाश काम पर निकल पड़ा,शाम को वो बाजार पहुँचा उसने राशन खरीदकर जैसे ही अपनी टैक्सी में रखा तो उसे लाज दिखी,उसने सोचा देखते हैं भला ये कहाँ जाती है और प्रकाश उसके पीछे पीछे जाने लगा....
लाज पुलिसचौकी पहुँची,लाज को देखकर करन बाहर ही आ गया और लाज के गले मिलते हुए पूछा....
कैसी हो दीदी?
मैं बिल्कुल ठीक हूँ रे! और तू कैसा है? लाज ने करन के गाल पर थपकी मारते हुए पूछा।
मैं भी बिल्कुल ठीक हूँ दीदी! करन बोला।।
और दोनों ने वहीं खड़े होकर बातें कीं और करन ने लाज को कुछ रूपए देते हुए कहा....
लो दीदी! रख लो,काम आएंगे।।
नहीं रे! मैं क्या करूँगी? मुझे जुरूरत नहीं है,लाज बोली।।
अरे,दीदी!पापा को देते हुए संकोच लगता है कि कहीं वो मुझे गलत ना समझ बैठें लेकिन अपनी दीदी को तो दे ही सकता हूँ,ले लो ना दीदी!मुझे अच्छा लगेगा,करन बोला।।
करन के इतना कहने पर लाज ने पैसे ले लिए और आते वक्त वो करन से फिर गले मिली....
और ये सब प्रकाश दूर से छिपकर देख रहा था,जब लाज पुलिसचौकी से दूर निकल आई तो प्रकाश उसके पास आकर गुस्से से बोला...
मुझे तुमसे कुछ बात करनी है?
कहो,क्या बात है? मैं सुन रही हूँ,लाज बोली।।
नहीं,यहाँ नहीं! मेरी टैक्सी मे बैठकर बात करते हैं....प्रकाश बोला।।

क्रमशः...
सरोज वर्मा...