Betrayal (Season-2)--Part (9) in Hindi Fiction Stories by Saroj Verma books and stories PDF | विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(९)

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विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(९)

और इधर अनवर चाचा घर पहुँचे,काफ़ी देर हो जाने के कारण जूली ने पूछा....
अनवर चाचा! बहुत देर कर दी आपने!
हाँ!बिटिया!पुलिसचौकी जाना पड़ गया,अनवर चाचा ने जवाब दिया।।
पुलिसचौकी...लेकिन क्यों?,जूली ने चौंकते हुए पूछा।।
एक चोर मेरा बटुआ चुराकर भाग रहा था,लोगों ने पकड़ लिया,मैने सोचा बेचारे गरीब की ये लोंग पिटाई कर देंगें इसलिए सबको पुलिसचौकी चलने को कहा,खुशकिस्मती से थानेदार अच्छा इन्सान निकला,उस गरीब को काम देने के लिए कहा....फिर थानेदार ने अपना नाम बताया तो मुझे थोड़ा अजीब सा लगा और मैं चला आया,अनवर चाचा बोले।।
क्यों ?आपको अजीब क्यों लगा थानेदार का नाम सुनकर,जूली ने पूछा।।
क्योंकि उसका नाम करन था,अनवर चाचा दुखी मन से बोले।।
ये सुनकर जूली भी चौंक गई फिर अनवर चाचा से आगे कुछ और ना पूछ सकी।।
क्यों बिटिया? ये ना पूछोगी कि करन कौन है?अनवर चाचा बोले।।
होगा कुछ आपका निजी मामला,अब मैं क्या पूछूँ?जूली बोली।।
अब तुझसे क्या छुपाना बिटिया? करन अपने लल्ला का बेटा है जो सालों पहले कहीं गुम हो गया,सालों से उसे ढूढ़ रहा हूँ लेकिन अब तक ना मिला,इतना कहते कहते अनवर चाचा रूआँसे हो उठे।।
कोई बात नहीं अनवर चाचा!करन मिल जाएगा,अच्छे लोगों का वो ऊपर वाला भी बहुत इम्तिहान लेता है,जूली बोली।।।
सही कहती हो बिटिया! अनवर चाचा बोले।।
अब ज्यादा उदास मत होइए,चलिए खाने की तैयारी करते हैं,चाचा जी भी आने वाले होगें,जूली बोली।।
लल्ला तो कल की तरह देर से ही आएगा क्योंकि उसने सोचा है कि कुछ और आमदनी होने लगे तो एक और टैक्सी लेकर वो भाड़े पर दे देगें,अनवर चाचा बोले।।
लेकिन क्यों चाचा? आप दो लोंग ही हो और इतने में तो आपलोगों का खर्चा पूरा पड़ जाता होगा,जूली बोली।।
नहीं बिटिया! खर्चे वाली बात नहीं है,लल्ला के ऊपर खून का झूठा इल्जाम लगा था,वो भी उनकी पत्नी मनोरमा बहु का,उस विश्वनाथ ने मेरी आँखों के सामने ही पिस्तौल बेहोश लल्ला के हाथ में थमाई थी,बहु की खून से लथपथ लाश वहीं फर्श पर पड़ी थी,ये देखकर मैं करन को रातोंरात ले भागा,उसे सुरक्षित हाथों में सौपने के चक्कर में वो मुझसे बिछड़ गया,फिर विश्वनाथ ने लाज को फार्महाउस के तलघर में बन्द करके फार्महाउस मे आग लगा दी,हमारी लाज भी हमें छोड़ कर चली गई और लल्ला को बहुरानी के खून के जुर्म में पन्द्रह साल की सजा हो गई,मुझे ऐन मौके पर विश्वनाथ ने अगवा कर लिया और मैं विश्वनाथ के खिलाफ गवाही ना दे सका,इसका मुझे बहुत अफसोस हैं,ये सब उस विश्वनाथ ने किया है और हम उसे उसके कर्मों की सजा दिलवाना चाहते हैं और बिना रूपयों के ये मुमकिन नहीं,अनवर चाचा ने सारी कहानी कह सुनाई।।
ये सुनकर जूली फूट फूटकर रो पड़ी और बोली....
तो क्या ये सब विश्वनाथ का किया धरा था?
तुम क्या विश्वनाथ को जानती हो बिटिया?अनवर चाचा ने पूछा।।
हाँ! क्यों नहीं जानूँगीं अनवर चाचा!मैं आपको भी जानती हूँ और पापा को भी क्योंकि मैं ही आपकी अभागी लाज हूँ,जूली ने भावों में बहकर सब उगल दिया।।
सच! बिटिया! तो तुमने सारी सच्चाई कल रात को ही क्यों ना बताई?अनवर चाचा बोले।।
मैं डर गई थी अनवर चाचा! जूली बोली।।
लेकिन क्यों? तुम्हें किस बात का डर? अनवर चाचा बोले।।
क्यों कि मैं क्लब में कैबरे करती हूँ? कुछ मजबूरियों ने मुझे ऐसा करने पर मजबूर कर दिया,जूली बोली।।
ऐसी क्या मजबूरी थी बिटिया? अनवर चाचा ने पूछा।।
अनवर चाचा! मुझे शकीला बानो नाम की एक औरत ने पालपोसकर बड़ा किया है,मैं उन्हें खालाज़ान कहती हूँ,उन्होंने मुझे पालने पोसने का काम किसी के दबाव में किया और मुझसे क्लब में कैबरे करने के लिए भी उसी आदमी के दबाव में कहा,लेकिन आज तक ना मैं उस आदमी से मिली और ना उसका चेहरा देखा,जब आप सबसे बिछड़ने के बाद होश में आई थी तो मेरे पास सिर्फ शकीला खालाज़ान हीं थीं,जूली बोली।।
तो इसका मतलब है कि हो ना हो वो आदमी विश्वनाथ ही है,उसी के इशारे पर शकीला बानो ऐसा कर रही है,अनवर चाचा बोले।।
अब तो मुझे भी ऐसा ही लग रहा है,लाज बोली।।
लेकिन इसका पता करने के लिए तुम्हें फिर से शकीला के पास लौटना होगा,अनवर चाचा बोले।।
नहीं चाचा! मुझे फिर उस नरक मे मत भेजिए,बड़ी मुश्किल से छुटकारा मिला है,लाज बोली।।
कोई बात नहीं बिटिया! अभी नहीं पहले लल्ला को आ जाने दो,वो ही बताएंगे कि क्या करना है? अनवर चाचा बोले।।
जब धर्मवीर आया तो पहले लाज जीभर के अपने पापा के गले लगकर रोई, ये देखकर धर्मवीर को कुछ समझ नहीं आया तब अनवर चाचा ने पूरी बात बताई,अब तो बाप और बेटी की आँखों से गंगा जमुना बह निकली,दोनों तब तक रोते रहे जब तक सालों का दुख आँखों से बह ना गया,खाना खाकर सबने सोचा कि अब आगें क्या करना है?
धर्मवीर बोला,लाज बेटा! अभी तुम कुछ दिन हमारे साथ ही बिताओ,फिर देखते है कि क्या करना है?
ठीक है पापा! लाज बोली।।
इसी तरह खुशी खुशी दिन बीतने लगे,लाज डर के मारे घर से नहीं निकलती थी,सबको डर था कि कहीं विश्वनाथ के गुण्डे उसे खोज ना लें,उसने अब घर सम्भालना और खाना बनाना भी सीख लिया था,अब उसे खुशियों का भण्डार जो मिल गया था।।
इसी तरह एक दिन इन्सपेक्टर करन को कहीं से पता चला कि गांँजे से भरे सिगार कोई आदमी किसी मोटर से हाइवे वाले रास्ते से लाने वाला है,जो वो काँलेज के स्टूडेंट्स के बीच बेचेगा,ये खबर पुलिस के किसी ख़बरी ने दी थी,उसने बताया कि इसके पीछे विश्वनाथ का हाथ है,वो इस शहर का सबसे बड़ा तश्कर है,वो ना जाने किन किन चीजों की तश्करी करता है और इस शहर के पुलिसकर्मियों को वो रिश्वत देकर खरीद लेता है।।
करन ने सोच लिया कि वो इस बार इन गाँजे से भरे सिगार को जरूर पकड़ेगा नहीं तो काँलेज के बच्चों का क्या होगा? उन्हें नशे की लत लगने से बचाना होगा और करन रातोंरात अपने पुलिस सहकर्मियों के साथ उस हाइवें पर पहुँचा और उस आदमी को धरदबोचा।।
ये ख़बर विश्वनाथ तक पहुँची,इस बात से विश्वनाथ आगबबूला हो गया,लेकिन उसने पहले अपने एक गुण्डे से कहा....
डेविड! जल्द ही उस पुलिस वालें को खरीदने की कोशिश करो,रूपयों से उसका मुँह बन्द कर दो,वो जितना भी माँगें दे दो लेकिन किसी भी हाल में उसे खरीदों।।
विश्वनाथ की बात सुनकर डेविड पुलिसचौकी पहुँचा और करन से बोला......
नमस्ते...इन्सपेक्टर साहब! कैसे हैं?
जी!नमस्ते! मैं तो ठीक हूँ लेकिन मैने आपको पहचाना नहीं,करन बोला।।
जी ! आपके लिए विश्वनाथ साहब ने मिठाई भेजी है और कहा है कि कम पड़े तो बता दीजिएगा वो और भी भेज देंगें,डेविड ने ये कहते हुए रूपयों का सूटकेस करन के सामने खोलकर रख दिया।।
ये देखकर करन आगबबूला होकर बोला.....
तुम्हारा बाँस मुझे रिश्वत देने की कोशिश कर रहा है,समझ क्या रखा है उसने? कि हर पुलिस वाला रिश्वतखोर होता है,जिस दिन वो मेरे हत्थे चढ़ गया ना तो वो मज़ा चखाऊँगा कि उसे नानी याद आ जाएगी,जाओ जाकर कह देना उससे कि मेरा ईमान बिकाऊँ नहीं है....
ये सुनकर डेविड बोला....
बहुत बड़ी गलती कर रहें हैं इन्सपेक्टर साहब! अभी आप हमारे बाँस को जानते नहीं हैं।।
मैं सब जानता हूँ और तुम्हारी इन छिछोरी धमकियों से मैं डरने वाला नहीं हूँ,करन बोला।।
डेविड फिर से बोला....
बहुत पछताओगे इन्सपेक्टर,तुम्हारी सारी हेकड़ी निकल जाएगी....
अरे.....जाओ....जाओ....तुम्हारे और तुम्हारे बाँस जैसे मैने कई देखें हैं,करन बोला।।
इस तरह डेविड ने विश्वनाथ को जाकर सारी बात बता दी....
बाँस ! वो तो बहुत ही अकड़ वाला है आसानी से मानने वाला नहीं है,डेविड बोला।।
कोई बात नहीं डेविड! मैं अपने रास्ते में आने वालें हर रोड़े को हटाना जानता हूँ,इन्सपेक्टर भी ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है,विश्वनाथ बोला।।
तो अब आप क्या करेंगें?डेविड ने पूछा।।
बस देखते जाओ,विश्वनाथ बोला।।
विश्वनाथ अब क्या करने वाला था करन के साथ ये तो बस वो ही जानता था।।

इस तरह एक दिन अनवर चाचा के दाँत में बहुत दर्द उठा,वो दिनभर तो दर्द सहते रहें लेकिन शाम होते होते दाँत का दर्द अब उनके बरदाश्त से बाहर था,जब धर्मवीर शाम को लौटा तो अनवर चाचा की हालत उसे कुछ ठीक नहीं लगी तो उसने अनवर चाचा से कहा.....
अनवर चाचा ! फौरन टैक्सी में बैठिए,पहले डाक्टर के पास चलते हैं,नहीं तो रातभर ऐसे ही तकलीफ़ रही तो आप सो नहीं पाएंगे।।
हाँ! पापा!दिनभर दर्द से कराहते रहें चाचा,लाज बोली।।
इसलिए तो डाक्टर के पास जाना जुरूरी है,धर्मवीर बोला।।
अनवर चाचा को सच में तकलीफ़ थी इसलिए वो बिना किसी नानुकुर के टैक्सी में बैठ गए और धर्मवीर जाते हुए लाज से बोला.....
बेटा! दरवाजा ठीक से बन्द कर लो,हमारी आवाज सुनकर ही दरवाजा खोलना।।
जी! पापा! और इतना कहकर लाज ने दरवाज़ा बन्द कर लिया।।
दोनों क्लीनिक पहुँचे,डाक्टर ने अनवर चाचा का चेकअप किया और बोले....
कुछ नहीं,बस उम्र का तकाज़ा है,इनके मसूड़े कमजोर हो रहे हैं इसलिए दाँत भी मसूडों का साथ छोड़ रहे हैं,कुछ दवाएं दिए देता हूँ,एक खुराक ये लीजिए अभी खा लीजिए और कल या परसों आकर दोबारा चेकअप करवा लीजिए,
अनवर चाचा ने दवा खा ली और धर्मवीर ने डाक्टर साहब की फीस देते हुए कहा....
धन्यवाद! डाक्टर साहब! नमस्ते,कल या परसों दोबारा आते हैं और इतना कहकर दोनों टैक्सी में बैठकर घर को लौट चले।।
रात हो रही थीं दोनों टैक्सी में थे तभी उन्होंने देखा कि सामने से कोई पुलिसवाला अपनी मोटरसाइकिल से चला जा रहा था और किसी ट्रक वाले ने उसे जोर की टक्कर मारी और वो पुलिसवाला दूर जा कर गिरा,ट्रक वाला उसे टक्कर मारकर चलता बना,ये देखकर धर्मवीर ने टैक्सी रोकी....
वहाँ भीड़ तो इकट्ठी हो गई थी लेकिन उस पुलिस वाले को कोई अस्पताल ले जाने को तैयार ना था,धर्मवीर और अनवर चाचा उस पुलिसवाले के पास पहुँचे ,वो पुलिसवाला मुँह के बल जमीन पर बेहोश गिरा पड़ा था और उसके सिर से खून बह रहा था,अनवर चाचा ने उस पुलिस वाले का चेहरा देखा तो बोले....
ये तो इन्सपेक्टर साहब हैं!मैं इन्हें जानता हूँ,लल्ला जल्दी से उठाकर इन्हें अस्पताल ले चलों,लगता है बहुत चोट आई हैं।।
और लोंगो की मदद से दोनों ने उसे अपनी टैक्सी में बिठाया और अस्पताल ले गए,करीब आधे घंटे के इलाज के बाद इन्सपेक्टर साहब को होश आया,उनके सिर पर गहरी चोट आई थी लेकिन हाथ पैर सही सलामत थे,डाक्टर साहब धर्मवीर से बोले....
इन्हें अभी एक दो दिन तक अस्पताल में रहना पड़ेगा,बाद में ये घर जा सकते हैं।।
लेकिन डाक्टर साहब! हम इनके रिश्तेदार नहीं हैं,ये तो हमें सड़क पर घायल मिले,तो इन्हें हम आपके पास ले आएं,धर्मवीर बोला।।
जी,मैं जानता हूँ कि आप इनके रिश्तेदार नहीं हैं,मुझे मालूम है कि ये सेठ गिरधारीलाल जी के सुपुत्र हैं,जिनकी गिनती इस शहर के रईसों में होती है,मैने इनके घर टेलीफोन लगाया था लेकिन शायद इनके घर का टेलीफोन काम नहीं कर रहा अब इनके पिता को इनके एक्सीडेंट की सूचना कौन देगा? डाक्टर साहब बोले।।
जी! मैं देकर आता हूँ,आप मुझे इनके घर का पता बता दीजिए,अनवर चाचा बोले।।
हाँ,यही ठीक रहेगा,जब तक मैं इन्सपेक्टर साहब के पास रूकता हूँ,धर्मवीर बोला।।
तो ठीक है,आप ही चले जाइए,डाक्टर साहब बोले।।
और अनवर चाचा ने सेठ गिरधारी लाल जी के घर का पता लिया और चल पड़े टैक्सी में उन्हें सूचना देने,उनके बँगले के आगें टैक्सी रोकी और दरबान से कहा कि वो सेठ जी से मिलना चाहते हैं,इन्सपेक्टर साहब का एक्सीडेंट हो गया है और वें अस्पताल में हैं....
ये सुनकर दरबान ने फौरन सेठ जी को सूचना दी,सेठ जी भागते हुए गेट की ओर आए और अनवर चाचा सेठ जी को देखकर दंग रह गए....

क्रमशः...
सरोज वर्मा.....