Betrayal (Season-2)--Part (4) in Hindi Fiction Stories by Saroj Verma books and stories PDF | विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(४)

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विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(४)

सुबह होने को थी,हल्का हल्का उजाला हो चला था,अनवर चाचा रेलगाड़ी के डिब्बे के भीतर पहुंचे , करन को अपनी गोद में लेकर करके बैठ गए और परेशान होकर खिड़की से बाहर देखने लगे कि कहीं विश्वनाथ उनका पीछा करता हुआ वहां तो नहीं आ पहुंचा ,तभी एक सेठ जी जैसे दिखने वाले सज्जन भी डिब्बे में घुसे.....
तभी करन की आंख खुली और बोला____
मुझे पानी पीना है,अनवर चाचा!
अब वहां पानी कहां से आए, फिर रेलगाड़ी चलने का भी वक़्त हो गया था और बाहर विश्वनाथ का भी खतरा था,अनवर चाचा मुसीबत में पड़ गए कि इतने छोटे बच्चे को कैसे समझाऊं कि अभी पानी ना मांगे।।
तभी करन फिर से बोल पड़ा___
मेरी मां यहां होती तो मुझे फौरन पानी पिला देती, लेकिन मेरी मां कहां है अनवर चाचा! बताइए ना! वो और दीदी हमारे साथ क्यों नहीं आईं?
करन के सवालों के अनवर चाचा के पास कोई जवाब ना थे, कैसे समझाए बच्चे को तेरी मां नहीं रहीं,रात में तेरी जिन्दगी में ऐसा तूफ़ान आ गया है कि तू अपनों से अब पिछड़ चुका है,तब अनवर चाचा ने करन को तसल्ली देते हुए कहा___
करन बेटा! रेलगाड़ी चलने वाली है,अगले स्टेशन पर पानी पिला दूंगा।।
लेकिन करन है कि जिद़ लेकर बैठ गया कि पानी बस अभी पीना है___
तभी दूसरी सीट पर बैठे हुए सेठ जी ने कहा___
महाशय! बच्चे को परेशान मत कीजिए,मेरे पास थरमस है, मैं बच्चे को पानी पिला देता हूं।
बहुत शुक्रिया सेठ जी, अल्लाह ताला आपको हमेशा खुश रखें,अनवर चाचा बोले।।
करन ने पानी पिया और शांत हो गया,तभी खिड़की से अनवर चाचा को विश्वनाथ दिखा__
अनवर चाचा ने सेठ जी कहा___
सेठ जी! इस बच्चे की हिफ़ाज़त अब आपके हाथों में हैं,ये धर्मवीर और मनोरमा का बेटा है,एक दरिन्दा इसकी जान के पीछे पड़ा है और मैं आपको कुछ नहीं बता सकता, मैं जा रहा हूं,अगर लौट आया तो ठीक, नहीं तो आप इस बच्चे को पुलिस में दे दीजिएगा,इस बच्चे को अपने मां बाप का नाम पता है और इसी शहर में रहते थे,इसके मां बाप,अब मैं जाता हूं।।
इतना कहकर अनवर चाचा रेलगाड़ी से बाहर आ गए और जानबूझकर विश्वनाथ के सामने पड़ कर स्टेशन से दूर भागने लगे ताकि विश्वनाथ ,करन को ना पकड़े,जब वो स्टेशन के बाहर आ गए तब वहीं रूककर विश्वनाथ का इंतजार करने लगे___
विश्वनाथ ने अनवर चाचा के पास आकर पूछा__
बच्चा कहां है?
क्यों तुझे बच्चा मन्दिर में नहीं मिला?अनवर चाचा बोले।।
कमीने!झूठ बोलता है,अब देखना मै तेरा क्या हस्र करता हूं? विश्वनाथ बोला।।
चल... चल ....जा...जा... जब तक वो ऊपर वाले की मेहर मुझ पर है तू मेरा और बच्चे का कुछ नहीं बिगाड़ सकता,अनवर चाचा बोले।।
अच्छा!तो तेरी ये औकात, कुत्ते ! मेरे सामने भौंकता है, विश्वनाथ बोला।।
कम से कम मैं वफ़ादार कुत्ता तो हूं,तूने तो जिस घर की रोटी खाई,उस घर के लोगों को ही काट लिया,अनवर चाचा बोले।।
ए... ज्यादा बकवास मत कर,सीधी तरह बता बच्चा कहां है! विश्वनाथ ने फिर पूछा।।
मुझे नहीं मालूम! अनवर चाचा बोले।।
लगता है तू ऐसे नहीं बताएगा, विश्वनाथ ने ऐसे कहते ही अनवर चाचा की कॉलर पकड़ ली,तभी वहां खड़े लोग बीच बचाव करने लगे,तभी रेलगाड़ी की सीटी सुनाई दी,अनवर चाचा यही चाहते थे और उन्होंने विश्वनाथ से बहस फिर शुरू कर दी, फिर से उससे उलझ पड़े और वो बहस तब तक करते रहे जब तक कि रेलगाड़ी रेलवे स्टेशन से रवाना ना हो गई।।
रेलगाड़ी स्टेशन से रवाना होते ही,अनवर चाचा ने कहा कि मैं जा रहा हूं,मेरा पीछा मत करना।।
विश्वनाथ बोला___
लेकिन मैं बच्चे को तो जरूर ढ़ूढ़ कर रहूंगा।।
अनवर चाचा को पता था कि विश्वनाथ उनका जरूर पीछा करेगा, इसलिए वो भागकर अपने गांव चले आए,गांव में भी उनका कोई नहीं था,बेग़म शादी के तीन साल बाद ग़ुजर चुकीं थीं और बच्चे थे नहीं,वो अपनी बेग़म से बहुत मौहब्बत करते थे इसलिए दूसरा निकाह भी नहीं पढ़वाया,जब बीवी और बच्चे नहीं होते तो रिश्तेदार भी दूर ही भागते हैं, इसलिए शहर चले गए और उन्हें वहां धर्मवीर के पिता जी ने अपना ड्राइवर रख लिया।।
कभी कभी गांव आ जाते थे और घर की सफाई करके चले जाते थे,घर से ही लगी हुई कुछ जमीन थी जो ऐसे ही सूखी पड़ी हैं,गांव आ तो गए लेकिन मन तो करन में लगा हुआ था, विश्वनाथ भी उनका पीछा करते-करते गांव तक पहुंच गया, लेकिन जब उसे वहां करन का कोई नामोनिशान ना मिला और अनवर चाचा को भी करन से मिलते ना देखा तो वापस लौट गया, क्योंकि अब बारी थी धर्मवीर के बंगले, फार्म-हाउस और बिजनेस पर कब्जा जमाने की और वो सफ़ल भी हो गया।।
फिर एक दिन विश्वनाथ के गांव से वापस आने के बाद उधर अनवर चाचा ने फिर से शहर जाने का सोचा, क्योंकि उनका मन धर्मवीर को सारी सच्चाई बताने के लिए फड़फड़ा रहा था और वो धर्मवीर के पास जेल में पहुंचे___
कैसे हो लल्ला? अनवर चाचा ने धर्मवीर से पूछा__
आप! और यहां,मेरे साथ इतना बड़ा विश्वासघात करके अपना मुंह कैसे दिखाने चले आए, धर्मवीर गुस्से से बोला।।
ऐसा ना कहो लल्ला! मैं और तुम्हारे साथ विश्वासघात,भला कैसे कर सकता हूं, सालों तुम्हारे घर में रहकर तुम्हारा नमक खाया है, तुमसे और नमकहरामी,ये तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकता, अनवर चाचा ने जवाब दिया।।
तो करन कहां है? और आपने उस रात विश्वनाथ का साथ क्यों दिया?उसकी हां में हां क्यों मिलाई?तो क्या ये विश्वासघात नहीं था।।
ना लल्ला ना!मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करो,अनवर चाचा बोले।।
तो बताइए भला! ऐसी कौन सी मजबूरी थी आपकी जो आप उस कमीने का साथ दे रहे थे,पता है आपको मैंने मनोरमा का अन्तिम संस्कार इन्हीं हथकड़ी लगे हाथों से किया है,उस दिन मैं कितना रोया,एक ही रात में मेरी सारी दुनिया उजड़ गई,पता नहीं मैंने भगवान का क्या बिगाड़ा था,जो उसने मेरे साथ ऐसा किया, धर्मवीर रोते हुए बोला।।
ये सब उस कमीने विश्वनाथ का किया कराया है,मैं आपको सारी बात बताता हूं कि उस रात क्या-क्या हुआ था और अनवर चाचा ने उस रात की सारी घटना कह सुनाई__
तो क्या मेरी लाज भी मुझसे दूर हो गई? धर्मवीर ने पूछा।।
हां... लल्ला! उस कमीने ने सारे फार्म हाउस को मेरे सामने आग लगा दी,अनवर चाचा बोले।।
मैं उस कमीने को नहीं छोड़ूंगा, मैं उसकी जान ले लूंगा, धर्मवीर बोला।।
जरा सब्र से काम लो लल्ला! उसके किए की सज़ा हम उसे जरूर देंगें,अनवर चाचा बोले।।
तो आप पहले मेरे करन को ढ़ूढ़िए,इस पापी को सजा हम बाद में देंगें, धर्मवीर बोला।।
लेकिन उस सेठ का कुछ अता पता मुझे नहीं मालूम,अनवर चाचा बोले।।
लेकिन फिर भी आप ढूंढ़ने की कोशिश कीजिए, धर्मवीर बोला।।
ठीक है लेकिन अगर आप का जुर्म साबित हो गया तो आपको कड़ी सजा मिलेगी, लेकिन मैं ऐसा होने नहीं दूंगा, मैं गवाही दूंगा कि बहुरानी का ख़ून आपने नहीं किया,अनवर चाचा बोले।
इधर धर्मवीर पर मुकदमा चला, लेकिन जिस दिन अनवर चाचा अपनी गवाही देने वाले थे तो विश्वनाथ ने उन्हें अगवा करवा लिया,जब अदालत ने अपना फैसला सुना दिया तो विश्वनाथ ने उन्हें छोड़ दिया, धर्मवीर को पन्द्रह सालों की सख्त सज़ा सुनाई गई___
अनवर चाचा के हाथ में अब कुछ ना रह गया था,वो अब जेल पहुंचे और धर्मवीर से बोले___
माफ़ करना लल्ला! मैं गवाही देने ना आ सका___
मुझे पता है उस कमीने विश्वनाथ ने फिर कोई चाल चली होगी, धर्मवीर बोला।।
हां,उसने मुझे अगवा कर लिया था और वो मुझे मार इसलिए नहीं रहा कि उसे पता है कि मेरे साथ करन का राज भी खत्म हो जाएगा, बहुत ही अफ़सोस है कि मैं ना आ सका,अनवर चाचा बोले।
अब कुछ नहीं हो सकता,अब जैसे भी हो आप करन को ढ़ूढ़िए, धर्मवीर बोला।।
मैं आपको तो ना बचा सका, लेकिन अब करन को ढ़ूढ़ना मेरी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है और मैं उसे ढूंढ़कर रहूंगा, ऐसे ही अनवर चाचा और धर्मवीर की मुलाकातें होतीं रहतीं,
अब अनवर चाचा किसी और के यहां ड्राइवर हो गए थे और वो जितने भी पैसे बचाते वो करन को ढ़ूढ़ने में ख़र्च कर देते,वो ढूंढ़कर थक गए लेकिन उन्हें करन कहीं ना मिला...
इधर सेठ जी ने करन को अपना बेटा बनाकर अपने घर रख लिया क्योंकि उनके कोई संतान ना थी,इसके दो साल बाद सेठ जी की पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया,अब सेट जी का परिवार पूरा हो गया था।।
और इस तरह पांच साल बीत गए, विश्वनाथ ने धर्मवीर का सारा कारोबार,घर, ज़मीन जायदाद सब अपने नाम कर लिया,उसने अब स्मगलिंग भी शुरू कर दी थी,उसके की गोरखधंधे चलते थे,ना जाने कालाबाजारी में उसने कितना पइसा कमाया था ,उसके अपने क्लब और कसीनो भी थे, जहां उसने खूबसूरत कैबरे डांसर भी रख रखीं थीं और इन धंधों को सम्भालने के लिए उसने गुण्डो की फ़ौज खड़ी कर रखी थी....
एक दिन वो अपने गुण्डो के साथ कुछ मीटिंग कर रहा था,तभी उसके ऑफिस का टेलीफोन बजा___
विश्वनाथ ने टेलीफोन उठाकर पूछा___
यस! विश्वनाथ स्पींकिंग....
उस तरफ से उसके ही किसी गुण्डे की आवाज आई....
बॉस! हमारे गांजे का ट्रक पकड़ लिया गया है....
रॉस्कल! ऐसा कैसे हुआ? तुम लोग वहां क्या कर रहे थे, विश्वनाथ गरजा।।
वो माइकल ने पुलिस को बताया और पुलिस ने उसे सरकारी गवाह बनाने को कहा है,गुण्डे ने कहा...
ठीक है,तुम टेलीफोन रखो, मैं देखता हूं...
और इतना कहकर विश्वनाथ ने फोन रख दिया....
अब बारी थी, माइकल को सबक सिखाने की___
तो माइकल! मज़ा आया, विश्वनाथ बोला।।
मैं कुछ समझा नहीं ,बॉस !माइकल बोला।।
अरे, पुलिस को ख़बर देने में, विश्वनाथ बोला....
अब तो माइकल की हवा खिसक गई,वो फ़ौरन विश्वनाथ के पैरों पर गिरकर अपनी जान की भीख मांगने लगा___
मुझे माफ़ कर दो ,बॉस! फिर ऐसी गलती कभी नहीं होगी,माइकल बोला।।
अब हम तुम्हें ऐसी गलती दोबारा करने का मौका ही नहीं देंगे, विश्वनाथ बोला।।
क्या मतलब है आपका बॉस !माइकल ने पूछा।।
पीटर.....सूट.....हिम..!, विश्वनाथ बोला।।
और एकाएक पीटर ने माइकल की जिन्दगी का दिया बुझा दिया,___
देखा हमसे गद्दारी का यही अंजाम होगा और इतना कहकर विश्वनाथ अपनी इम्पाला में बैठकर कहीं चला गया___
विश्वनाथ की मोटर किसी बड़े से घर के सामने रूकी,वो मोटर से उतरा और भीतर गया, वहां झूले पर एक औरत अपने पानदान से पान बनाकर खा रही थी, विश्वनाथ ने उससे पूछा___
क्यों शकीला बानो! कैसी हो? लड़की का रियाज तो ठीक से चल रहा है ना!
जी! हुजूर! सब आपकी मेहरबानी है, लेकिन उस इत्ती सी बच्ची पर आप बहुत जूल्म ढ़ाते हैं,शकीला बोली।।
नाच नहीं सीखेगी तो क्या करेंगी? अभी उसे अंग्रेजी डांस भी सिखाना है तभी तो वो एक अच्छी कैबरे डांसर बनेगी, विश्वनाथ बोला।।
हुजूर !वो बच्ची पांच सालों से मेरे पास है,मुझे वो अब अपनी बेटी जैसी लगने लगी है, लेकिन आप उससे इतनी नफ़रत क्यों करते हैं?शकीला ने पूछा।।
वो मेरे दुश्मन धर्मवीर की बेटी है,उसे मैंने दूसरी जगह छिपा दिया था और फार्म-हाउस में आग लगा दी थी, जिससे सबको ये लगे कि वो मर चुकी है, फिर मैंने इसे तुम्हें लाकर दे दिया.....

क्रमशः___
सरोज वर्मा___