हर युग का ज्ञान कला देती रहती है
हर युग की शोभा संस्कृति लेती रहती है
इन दोनों से भूषित बेशित और मंडित
हर नारी प्रतिभा एक दिव्य कथा कहती है।
कला और संस्कृति को अपने आंचल में संजोए प्रत्येक भारतीय नारी युगों युगों से अनेक दैवीय एवं मानवीय मूल्यों की धरोहर को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करती रही है। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह उत्थान के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचने की कामना को साकार कर सकी है। आचार्य मनु ने कहा है
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।
अर्थात जहां नारी की पूजा की जाती है या सम्मान किया जाता है वहां देवता भी निवास करते हैं । परंतु किसी व्यक्ति को समाज यूं ही सम्मान नहीं देता। सम्मान प्राप्त किया जाता है--- अपने गुणों से ,अपने आदर्श सिद्धांतों से, अपने श्रेष्ठ चरित्र से, और अपने उत्तम कार्य व्यवहार से। परंतु खेद की बात यह है की आधुनिक नारी उत्थान की परिभाषा को ही भुला बैठी है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में वह अपने उत्थान पथ से दिग्भ्रमित हो, भूल वश पतन के मार्ग पर चल पड़ी है। यही कारण है कि विश्व में गौरवान्वित भारतीय नारी दीन हीन होकर केवल पुरुष भोग्या बन कर रह गई है।
युग परिवर्तन के साथ ही तथाकथित आधुनिक कहलाने वाली नारी में जागृति की लहर दौड़ गई। वह भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने की होड़ में लग गई और उत्थान के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने की कामना करने लगी। यद्यपि आधुनिक नारी ने सभी क्षेत्रों में पदार्पण कर एक कुशल चिकित्सक अच्छी निर्देशक योग्य वकील कुशाग्र अध्यापिका उत्तम खिलाड़ी एक महान नेता श्रेष्ठ मंत्री तथा प्रधानमंत्री जैसे महान पदों पर भी कार्य कर, उत्थान की दिशा में ,न केवल अपनी अद्भुत क्षमता का परिचय दिया है बल्कि आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनकर पुरुषों को भी चुनौती दे रही है।
परंतु दूसरी ओर अत्याधुनिक बनने की होड़ में नारी अपने महिमामंडित अतीत को भुला बैठी है । अधिक से अधिक अपने अंगों का नग्न प्रदर्शन कर पुरुषों को आकर्षित करना है उसकी आधुनिकता की परिभाषा बनकर रह गई है । इतना ही नहीं वह अपने शरीर का दुरुपयोग धन कमाने के लिए भी करने लगी है। उसके ना कोई आदर्श धांत है और ना ही कोई जीवन मूल्य। येन केन प्रकारेण धन कमाकर भोडा फैशन कर अपने आप को आधुनिक नारी कहलाने की अंधी दौड़ में लगी हुई है। उसका ना कोई चरित्र है और ना ही नारी जन्य गुण। किसी भी व्यक्ति शोभा उसके वाहे सौंदर्य या क्षणिक वैभव संपन्नता से नहीं होती यह तो केवल उसके क्षणिक आकर्षण का केंद्र हो सकते हैं उसकी वास्तविक शोभा तो उसके आंतरिक गुणों तथा उसके उत्तम चरित्र से होती है। अपने आदर्शों एवं चारित्रिक गुणों से डिग् जाने के कारण ही आधुनिक नारी दिन प्रतिदिन पतन के गर्त में गिरती जा रही है
आधुनिक नारी यदि वास्तव में उत्थान की इच्छा रखती है तो उसे उत्थान के वास्तविक अर्थ को समझना होगा। यदि वह अपने गौरवशाली पद को सदैव ही महिमामडित बनाए रखना चाहती है तो उसे अपने चरित्र को उत्तम बनाना होगा अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहना होगा तथा जीवन मूल्यों को सदैव संजोए रखना होगा। जीवन के साधना पथ पर कर्तव्य आरुढ होकर उसे अपने उत्थान के उस शिखर तक पहुंचना होगा जहां खड़ी होकर वह समस्त विश्व को चुनौती दे सके । उसे पुरुष के आकर्षण का केंद्र नहीं अपितु सम्मान का पात्र बनना है। उत्थान की दिशा में उसे यह पहचानना होगा कि वह शक्ति की स्रोत है, जगत धात्री जननी है, वह अपने कर्तव्य समझती है---- इसलिए देवी है , वह त्याग करना जानती है ---इसीलिए साम्राज्ञी है संपूर्ण विश्व उसके वात्सल्य आंचल में स्थान पा सकता है इसीलिए जगत माता है उसकी महिमामंडित शक्तियों के समक्ष संपूर्ण प्रकृति भी झुकती है, ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां उसके तेज के समक्ष हतप्रभ और नतमस्तक हो सकती है ---यदि नारी अपने वास्तविक उत्थान की ओर अग्रसर हो उठे। किसी कवि ने ठीक ही कहा है
जिसके उज्जवल तप के आगे
झुक जाया करता इंद्रासन।
है कितना गौरवशाली पद
वसुधा में हिंदू नारी का ।
पतन की दलदल में फंसती हुई नारियों ! अब भी समय है, जागो । अंग प्रदर्शन ,धन लोलुपता ,वैभव की चकाचौंध, पुरुष आकर्षण का केंद्र बनने की लालसा, चारित्रिक अवनति, स्वार्थपरता ,मर्यादा हीन एवं संस्कार हीन बनकर आधुनिक कहलाने की लालसा ----यह सभी साधन केवल पतन की ओर ले जाने वाले हैं उत्थान की ओर नहीं। और यदि ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब संपूर्ण समाज पतन के गर्त में होगा और राष्ट्र धराशाई होकर बिखर जाएगा।
अत: उत्थान के पथ की कामना करने वाली नारी को चाहिए कि वह स्वयं संस्कारित हो ,चरित्रवान हो ,जिससे वह संपूर्ण समाज के लिए अनुकरणीय बन सके। उसे परिवार समाज तथा राष्ट्र कल्याण की बागडोर अपने हाथ में संभालनी होगी स्वयं संस्कारित एवं गुण संपन्न होने पर ही नारी महान संस्कार युक्त एवं चरित्रवान पुत्र और भाई के रूप में सु योग्य नागरिक प्रदान कर समाज उत्थान में सक्रिय सहयोग प्रदान कर सकती है। समाज एवं राष्ट्र के उत्थान में ही उसका उत्थान निहित है। समाज में फैले हुए अंधविश्वास ,भ्रष्टाचार ,दुराचार ,जातिवाद आतंकवाद ,नशाखोरी आदि बुराइयों को शासन के नियमों द्वारा नहीं अपितु भावनात्मक रूप से हृदय परिवर्तन कर तथा बुद्धि चातुर्य से ही निपटाया जा सकता है। इतिहास साक्षी है कि समाज परिवर्तन में जब भी पुरुष वर्ग अक्षम रहा है तब नारी ने ही शक्ति और दुर्गा का रूप धारण कर समाज कल्याण का उत्तरदायित्व संभाल कर अपने उत्थान का परिचय दिया है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में
एक नहीं दो-दो मात्राएं
नर से बढ़कर नारी।
इति