सागर रूठा हुआ था, क्योंकि तब जब मैं उसकी आहट सुनते ही बालकनी में आ खड़ी हुई थी, उसने नजरें उठाकर मुझे देखा भी नहीं था | मैंने इधर-उधर नज़रें बचाकर उसपर गुलाब का फूल फेंका लेकिन उसने अनदेखा कर दिया था |
हे भगवान!!!! इतना गुस्सा!!!!
खैर जो भी हो!! अपने सागर को मैं मना ही लूँगी |
मैं यूँ ही उसके घर पहुंची पर उस वक़्त वो घर पर नहीं था |
दादी केर-सांगरी का अचार बना रही थी |
अरे दिव्या बेटा!! जरा रसोई में से मसाले के डिब्बे तो लेकर आ |
जी दादी!! अभी लाई |
दादाजी कहीं गए हुए है क्या? मसाले के डिब्बे देते हुए मैंने पुछा
हाँ बेटा, वो अपने किसी दोस्त के यहाँ गए हुए हैं, ये कहकर दादी फिर से अपने काम में व्यस्त हो गई |
सागर के बारे में उन्होंने कुछ कहा नहीं था |
मैं बेचैन हो रही थी | बार-बार मेरी नज़रें सागर के कमरे की ओर ही जा रही थी | क्या दादी आपने दादाजी के बारे में तो बता दिया मुझे, पर जिसके लिए मैं यहाँ आई हूँ, मेरे सागर से मिलने, उसके बारे में तो कुछ कहा ही नहीं आपने, मैंने मन ही मन कहा |
क्या हुआ बेटा? कुछ कहा तुमने |
नहीं, नहीं, दादी.......कुछ नहीं |
अरे!! एक चीज तो मैं भूल ही गई |
वो क्या दादी?
चिरोंजी तो खत्म ही हो गई |
तो रामू काका से कह दो |
अरे वो घर पर होता तब ना |
कोई भी नहीं है क्या |
हाँ सब बाहर गए हुए हैं | सागर भी हरमन के घर गया हुआ है |
तो इसका मतलब सागर घर पर नहीं है और मैं मायूस सी हो गई |
बेटा तू ले आएगी क्या चिरौंजी | वो क्या है ना सागर को केर सांगरी का अचार बहुत पसंद है | ख़ास उसी के लिए ही तो बना रही हूँ मैं |
अच्छा!! सागर को केर सांगरी का अचार बहुत पसंद हैं, मैं ख़ुशी से उछाल पड़ती लेकिन दादी के सामने अपने आपको संयत किया |
आप चिंता ना करें दादी मैं अभी लेकर आई |
दादी से सागर को और क्या क्या पसंद है ये सब पूछ लूँगी, मैं डिब्बे में से चिरौंजी निकलते वक़्त खुद से कह रही थी |
ये तू अपने आप से क्या बातें कर रही है, दीदी, नैना ने रसोई में आते हुए पूछा | उसके हाथ में चॉकलेट थी |
कुछ नहीं........मैं गाना गा रही थी |
अच्छा!! वैसे ये चिरौंजी का क्या करेगी तू, चॉकलेट खाते हुए ही नैना ने पूछा |
कितने सवाल करेगी तू? दादी को चाहिए | वो सागर के लिए अचार बना रही है |
और ये चॉकलेट किसने दी तुझे ?
सागर भैया ने |
अच्छा!! मेरी आँखें ख़ुशी से चमकी |
कब?
अभी ही |
फिर तो मेरे लिए भी दी होगी | ला मुझे भी दे |
नहीं!!
क्यों?
क्योंकि उन्होंने कहा है की ये चॉकलेट्स सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए है और किसी को देना नहीं |
क्या? हे भगवान!! तो इतने नाराज है हमसे.....हमारे सागर मियाँ पर हम भी ढीठ है उनको मनाकर ही दम लेंगे |
फिर मैं चिरोंजी लेकर दादी के पास पहुँची |
कैसे शुरू करूँ? कहाँ से शुरू करूँ.........की सागर को क्या-क्या पसंद है |
देख ना बेटा!! ठीक तो बना है ना |
हाँ दादी...........बहुत स्वादिष्ट है, मैंने थोड़ा सा चखकर देखा |
अब तो सर्दियाँ शुरू हो गई है दादी, अब तो आप काफी चीजें बनाओगी ना |
हाँ सब चीजें सागर की ही पसंद की बनेगी | उसके दादाजी मजाकिया लहजे में शिकायत कर रहे थे की सागर के आने के बाद तो आप हमारी फरमाइश भूल ही चुकी हो, दादी हँसकर बोली |
तो क्या-क्या बनाओगी आप?
अब चूँकि सर्दियां आ गई है..........पापड़, गोंद के लड्डू, बाजरे की खिचड़ी और चूरमा, गाजर का हलवा ये सब बनेगा | वैसे तो सब चीजें सागर को पसंद है पर सबसे ज्यादा पसंदीदा है......... गाजर का हलवा | अगर वो रूठा हुआ है तो बस उसका पसंदीदा गाजर का हलवा बना दो वो फ़ौरन मान जायेगा |
अच्छा, ख़ुशी से मेरा चेहरा खिल उठा था | अब मुझे उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी थी |
ठीक है दादी, तो मैं चलती हूँ |
घर जाकर सबसे पहले मैंने मम्मी की रेसिपी डायरी को खंगालना शुरू किया | मम्मी ने बहुत सारी खाने पीने की चीजों की रेसिपी की कटिंग अपनी इस डायरी में सजाकर रख रखी थी | मैं अपने काम की चीज ढूंढने में लगी थी की इतने में मम्मी आ गई |
दिवू, क्या देख रही है बेटा?
कुछ नहीं मम्मी............वो गाजर का हलवा बनाना है मुझे |
क्यों?
आपको पता नहीं है क्या...........मैंने होम साइंस लिया है तो मुझे हर तरह का खाना बनाना आना चाहिए |
ओह अच्छा............फिर मम्मी ने वो पेज निकाल कर दिया मुझे जिसमें गाजर के हलवे की विधि थी | मम्मी सब बताकर चली गई थी |
करीब दो घंटे का समय लगा मुझे हलवा बनाने में |
इधर हरमन के घर पर...................