Mai fir aaungi - 6 in Hindi Horror Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | मैं फिर आऊंगी - 6 - बदला

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मैं फिर आऊंगी - 6 - बदला

सुबह होते ही सुभाष उठा और नहा धोकर नाश्ते के लिए बैठ गया, माँ नाश्ता लेकर आई, आज सुभाष को काफी अच्छा महसूस हो रहा था नींद भी अच्छी आई थी लेकिन जब उसने मां को चेहरा देखा तो बोला, "क्या हुआ तुम बहुत परेशान लग रही हो, रात को ठीक से नींद नहीं आई क्या"?
माँ - "नहीं बेटा.. मैं ठीक हूं, बस तू आज कैसे भी करके महाकाल बाबा के पास चल, तुझे कुछ हो जाएगा तो मैं…" |
ये कह कर माँ रोने लगी, सुभाष ने मां को पास बिठाया और बोला, "ठीक है, जैसा तुम कहो.., आज मैं हॉस्पिटल नहीं महाकाल बाबा के पास जाऊंगा, अब तुम यहां बैठो और मेरे साथ नाश्ता करो और हां यह बताओ तुमने अपनी दवा रात को खाई या नहीं"|
माँ चुपचाप बैठी रही और कुछ सोच कर बोली, "खा लूंगी बेटा" |

सुभाष उठा और बोला, "नहीं आप बैठो, पहले नाश्ता करो मैं दवा लता हूँ "|
वो माँ के कमरे में चला गया और कमरे से आवाज लगाई," कहां रखी है दवाई माँ "|
माँ ने कहा- वहीं देख बेटा, शीशे के सामने रखी होगी" |
दवाई को उठाने के लिए सुभाष ने जैसे ही हाथ बढ़ाया उसने शीशे मे देखा कि रज्जो अपने बाल खोले उसको घूर रही थी | सुभाष ने गर्दन घुमाकर देखा तो कोई नहीं था फिर उसने शीशे में देखा तो वो उसे घूर रही थी सुभाष में फिर गर्दन घुमाकर देखा तो बिल्कुल उसके चेहरे के पास सामने रज्जो खड़ी थी, उसकी तेज़ सांसें चल रही थी जो आग से कम नहीं थी | सुभाष हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए बोला, " मुझे छोड़ दो, तुम मेरे पीछे क्यों पड़ी हो, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है" | शोर सुनकर माँ दौड़ी दौड़ी कमरे में आई और बोली, "छोड़ दो वरना.." |
रज्जो - "वरना क्या करेगी.. बेवकूफ बुढ़िया, अरे खुद के कमरे में भभूत डालना भूल गई, मैं सारी रात तेरे कमरे में बैठी यही सोचती रही कि कब ये तेरा बेटा इस कमरे मे आए, हाहा हाहा हाहा.. तूने मेरी बेज्जती की, इलाज करने से इनकार किया, बहुत घमंड है तुझे, हां… बोल, अरे बोल ना… " माँ जी उठकर बाहर भाग गई तो कमरे का दरवाजा बंद हो गया | सुभाष की चीखों से पूरा घर थर्रा उठा, फिर कुछ देर बाद पूरे घर मे सन्नाटा फैल गया तभी माँजी दौड़ते दौड़ते बाहर से आई और चिल्लाने लगी," सुभाष बेटा.. दरवाजा खोल.. खोल बेटा.. "|
तभी सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज आई, "जय काली कपालिनी, जय काली कपालिनी.. बहुत धूर्त है यह आत्मा, दुष्ट प्रवृत्ति की जो प्रतिशोध की भावना में जल रही है, तुम्हारा बेटा ठीक हो जाएगा, रो मत" | माँ दरवाजे के सामने से हट गई और महाकाल बाबा दरवाजे के सामने खड़े हो गए, उनकी जटाएं उनके घुटनों को छू रही थी, शरीर पर शमशान की राख, माथे पर केसरिया रंग और आंखों में क्रोध की अग्नि सुलग रही थी, उन्होंने देर न करते हुए अपनी आंखें बंद की और कुछ मंत्र से पढ़ने लगे तभी दरवाजा खुल गया, माँजी जल्दी से अंदर घुसी तो चीख पड़ी |