Mai fir aaungi - 5 in Hindi Horror Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | मैं फिर आऊंगी - 5 - याद है ना...

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मैं फिर आऊंगी - 5 - याद है ना...




" बेटा सुभाष...उठो कब से जगा रही हूं, तुम ठीक तो हो" माँ ने घबराते हुए पूछा |
सुभाष एकदम से हड़बड़ा कर उठा और मां को देखकर उसकी जान में जान आई, उसके अतीत में हुई सारी घटनाएं आज उसे सपना बनकर दिख गईं, उसने एक ठंडी सांस ली और बोला "हां मां मैं ठीक हूं, तुम नाश्ता तैयार करो, मैं नहा धोकर आता हूं, आज कुछ अर्जेंट केस है" |
माँ ने नाराज होते हुए कहा, "तू आज कहीं नहीं जाएगा, आज मैं तुझे महाकाल बाबा के पास ले चलूंगी, तू घर में ही रहेगा " |
सुभाष ने मां को समझाते हुए कहा- "अरे मां, मुझे याद है मैं दोपहर तक वापस आ जाऊंगा"|
यह कहकर सुभाष नहाने लगा, सच तो यह था क्यों से कोई अर्जेंट काम नहीं था वह बस अतीत में हुई घटनाओ के बारे में और ज्यादा जानना चाहता था क्योंकि उसे यकीन हो गया था कि हो ना हो उसके साथ होने वाली है डरावनी चीजें उसके अतीत से जुड़ी हुई हैं | हॉस्पिटल आकर सुभाष जल्दी से अपने केबिन में कुछ पुरानी फाइल ढूंढने लगता है, फिर उसे याद आता है कि रज्जो का तो इलाज ही नहीं हुआ था तो फाइल कहां से बनेगी, तभी निहाल सुभाष के पास आता है और पूछता है,"क्या ढूंढ रहे हैं सर"?
सुभाष - निहाल क्या तुम्हें याद है एक बार यहां पर एक किन्नर इलाज के लिए आया था जिसका मैंने इलाज किया नहीं था", निहाल -"अरे हां सर, वही जिसने आपका बड़ा मजाक… लेकिन सर क्या हुआ"?
सुभाष -" हां.. यही तो जानना था कि क्या हुआ?
निहाल -" सर उस दिन वह किन्नर रज्जो न जाने क्यों एकदम से अस्पताल से भाग गई और फिर उसके बाद उसके साथ वाले भी दोनों भाग गए, फिर एक या दो दिन बाद मैंने सुना था कि उस रज्जो ने मर्डर कर दिया है, और सारे किन्नरों के रुपए, जेवर सब चोरी करके कहीं भाग गई, उसके बाद पता नहीं सर, मैंने ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया कि वह खूनी पकडी गई या नहीं, अरे सर अच्छा ही रहा जो आपने उसका ट्रीटमेंट नहीं किया वरना कुछ प्रॉब्लम हो जाती तो वो हमारा भी जीना हराम कर देती "|
सुभाष के कानों में बार-बार निहाल के ये आखिरी शब्द गूंजने लगे, अच्छा रहा जो आपने उसका ट्रीटमेंट नहीं किया वरना कुछ प्रॉब्लम हो जाती तो यह हमारा भी जीना हराम करती…

उसे अब एक और अनजान सा दर सताने लगा तभी निहाल बोला " सर क्या हुआ? मैं आपके लिए पानी लाता हूं" |

सुभाष केबिन में बैठा अपने साथ होने वाली अजीबो गरीब घटनाओं के तार उस किन्नर से जोड़ रहा था क्यूंकि उसको डराने वाली आत्मा कोई और नहीं रज्जो की ही थी तभी सुभाष का फोन बजा, फोन उठाते ही माँ सुभाष पे बरस पड़ी, आज उसे महाकाल बाबा के पास जो जाना था |
सुभाष -" माँ फोन रखो, मैं बस निकल रहा हूं" | सुभाष ने फोन रखा और सीट से उठने लगा तभी निहाल आया और बोला, "यह लीजिए सर गर्मागर्म कॉफी पीजिए" |
सुभाष ने सवाल की तरह पूछा "लेकिन तुम तो मेरे लिए पानी लेने गए थे" |
निहाल - "हां सर पानी लेने गया था फिर सोचा आपके लिए एक अच्छी कॉफी बना दूं, जिसको पीकर आप उस किन्नर को भूल सके" |
सुभाष कॉफी पीते हुए बोला, "नाइस कॉफी" तभी निहाल सुभाष के सामने एक कुर्सी डालकर बिल्कुल सुभाष के पैरों से पैर जोड़कर बैठ गया |
सुभाष गुस्से में बोला -" निहाल... यह क्या बदतमीजी है, मैं तुम्हें नौकर नहीं समझता इसका मतलब यह नहीं कि तुम अपनी मर्यादा भूल जाओ " इतना सुनते ही निहाल ने सुभाष का हाथ पकड़ लिया और बोला, “अरे इतनी क्या जल्दी है डॉक्टर साहब, कॉफी तो पी लो और वैसे भी आजकल मेरे बारे में ही सोचते रहते हो ,अब जब मैं यहां आ गई तो उठ कर चल दिए गलत बात है" |
निहाल की आंखें बिल्कुल लाल और बदले से भरी हुई लग रही थी, उसने सुभाष को कुर्सी पर गिराया और फिर कहा," कॉफी पी ले डॉक्टर.. बड़े प्यार से बनाई है और घबरा मत मैं तुझे यहां मारने नहीं आई "|
सुभाष डर डर कर कॉफी पीने लगा और बाहर देखने लगा बाहर देखकर तो उसका दिल और ज्यादा डर गया, केबिन में लगे शीशे से डॉक्टर अमित और अन्य डॉक्टर, मरीज और न जाने कितने लोग सब सुभाष को घूर रहे थे लेकिन उनके चेहरे पर सिर्फ एक बड़ी सी आंख थी |
निहाल किन्नर वाली तालियां बजाने लगा, सुभाष ने कॉफी के आखिरी घूंट पिए और कप देखा तो चिल्लाकर कप फेंक दिया और उल्टी करने लगा |
सुभाष चिल्लाते हुए बोला " क्या था ये, तुमने कॉफी में क्या मिलाया है" , सुभाष के गले में दर्द होने लगा वह गला पकड़े पकड़े चिल्लाने लगा |
निहाल ने कप में से कुछ उठाकर एक डरावनी मुस्कान के साथ कहा, "इसे नहीं पहचानता? कैसा डॉक्टर है रे तू? आंखें नहीं पहचानता, मैंने बस एक आंख तेरी कॉफी में मिलाई है हाहा.. हाहा.. हाहा.. "|
सुभाष बार बार उल्टी करने की कोशिश करता, उसकी आंखों से खून बहने लगा उसका गला चोक होने लगा |
निहाल उसके पैर फैलाकर पैरों के बीच बैठ गया और उसके चेहरे के बिल्कुल पास जाकर बोला "तूने मेरा इलाज नहीं किया था ना, अब तुझे कौन बचाएगा, कौन करेगा तेरा इलाज हाहा हाहा हा.., "|

सुभाष की आंखें बंद होने लगती हैं वो बाहर देखता है तो केबिन के शीशे से देखने वाले भी सब लोग हंसने लगे, उनकी एक आंख बार-बार हिलती तभी सुभाष का गला फट गया, उसकी दोनों आंखें पिघल गई, वो दर्द से चिल्ला पड़ा, और तभी सुभाष के गले के अंदर से एक बड़ी सी आंख निकली और वो चिल्ला उठा |

"अरे सर.. क्या हुआ, अरे सर आप चिल्ला क्यों रहे हैं? आप जमीन पर क्यों लेटे हैं? अमित और निहाल ने सुभाष से कहा |
सुभाष एकदम चकरा गया उसने अपने चारों ओर देखा, केबिन के बाहर देखा, सब कुछ सामान्य था | वह बिना बोले भाग खड़ा हुआ और कार में बैठ गया | निहाल और अमित भी हैरान थे कि सुभाष को क्या हुआ |

घर पहुंचते ही मां सुभाष को बिना देखे ही चिल्लाने लगी क्योंकि सुभाष को आने में बहुत देर हो गई थी और महाकाल बाबा से मिलना इतना आसान नहीं था, सुभाष अपने कमरे में जाकर लेट गया | मां ने हनुमान अष्टक मंदिर से लाइ भभूत पूरे कमरे में छिड़क दी और जब सुभाष सो गया तो उसके पूरे शरीर पर डाल दी | मां सुभाष के लिए बहुत दुखी थी और सारी रात अपने कमरे में बैठी सोचती रही कि इस दुष्ट आत्मा से कैसे पीछा छुड़ाया जाए |