Nainam Chhindati Shasrani - 31 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 31

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 31

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सरकारी योजना के अंतर्गत होने के कारण दामले जी सारे आज्ञा-पत्र आदि पहले से ही जमा करवा चुके थे | वे अपने काम को बहुत सुघड़ता से अंजाम देते थे, बहुत पुख़्ता होता था उनका काम-काज ! जेल के अंदर के भाग में जाने की तथा शूटिंग करने की आज्ञा लेकर पूरा काफ़िला उस लोहे के मज़बूत तथा छोटे दरवाज़े की ओर बढ़ चला जिसके आगे से समिधा तथा पुण्या एक बार निकलकर आ चुकी थीं | जेलर वर्मा ने ‘गेट’ तक आए तथा अंदर खड़े संतरियों को उनका ध्यान रखने की हिदायत दी | संतरियों ने एक ज़ोरदार सलाम ठोककर बड़े अदब से भारी दरवाज़ा खोल दिया था | 

“अंदर सब तैयारियाँ हैं न ? ” जेलर ने संतरियों से रौबदार आवाज़ में प्रश्न किया | 

“सर –“कहकर दोनों संतरियों ने एक बार फिर सलाम मारी | 

उस छोटे से गेट में से सबको झुककर निकलना पड़ा | बड़ा गेट था ही नहीं वहाँ पर !जेलर साहब ने रौनक को उनके साथ कर दिया था और माफ़ी माँगते हुए कहा था कि कुछ महत्वपूर्ण काम करके वे उनके पास पहुँच जाएँगे | कैदियों ने अतिथियों के आने की पूरी तैयारी की हुई थी, यह तो दूर से देखने से ही पता चल रहा था | 

रौनक पहले तो चुप बना रहा पर बाद में एकदम खुल गया | पता चला कि वह बहुत बातूनी है | उसने बताया कि उसका नाम तो रोनू है पर मेमसाब कहती हैं कि उसके होने से रौनक हो जाती है इसलिए उन्होंने उसे रोनू से रौनक बना दिया था | 

जेल का यह भीतरी भाग भी काफ़ी बड़ा था जिसके दोनों ओर कमरे बने हुए थे | कमरों के बाहर मोटे लोहे के सींखचे लगे थे, जिनमें से कुछ क़ैदी उत्सुकता से झाँक रहे थे | कुछ लोग भीतरी भाग को सुंदर बनाने में जुटे थे | उस बड़े, खुले हुए स्थान में चारों ओर लगे पेड़ों पर एक-दूसरे क्रॉस में रंग-बिरंगी कागज़ की झंडिया लगी हुई थीं जो हवा में चलने से फर–फर करती हुई नृत्य कर रही थीं | बीच में एक घना बरगद का पेड़ था जिसके नीचे चबूतरा बना हुआ था, उसके नीचे कोई दसेक कुर्सियाँ करीने से लगाकर रखी गईं थीं | 

बरगद की लटकती डालियों को चारों ओर से उठाकर ऐसा सुंदर शेड तैयार किया गया था जो बहुत लुभावना लग रहा था | पूरा स्थान कच्ची मिट्टी पर पानी का छिड़काव करने पर सौंधी सुगंध से महक रहा था | लगभग डेढ़ सौ क़ैदी कतारों में खड़े हुए शालीनता प्रदर्शित कर रहे थे | कौन कहेगा वे अपराधी थे ? समिधा ने मन ही मन सोचा | अधिकांश क़ैदी अपने हाथों को आगे की ओर लटकाए, अपना एक हाथ दूसरे से पकड़कर खड़े थे | सबने धवल कुर्ते, पायजामे व टोपियाँ सिर पर सजाई हुईं थीं जिनमें अधिक नील हो जाने के कर्ण आसमानी रंग छलक आया था | 

रौनक अपनी खिचड़ी भाषा में दोनों महिलाओं का मन लगाने की चेष्टा कर रहा था, वह उन्हें वहाँ के बारे में समझा रहा था | कैदियों की समय-सारणी, उनके काम करने के घंटे तथा वे क्या-क्या काम, किस प्रकार करते हैं ? उनके काम कैसे बँटे रहते हैं ? इस अपराध के लिए उन्हें किस प्रकार की तथा कितने समय की सज़ा से गुज़रना पड़ता है? टीम के सभी सदस्य उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे | दामले साहब अपने एक सहयोगी के साथ मिलकर यह सूचि तैयार कर रहे थे कि उन्हें क्या और कहाँ ? किस प्रकार शूट करना है ? 

समिधा की दृष्टि उन कैदियों पर पड़ी जो सींखचे के भीतर से झाँक रहे थे | 

“ये लोग क्यों अंदर बंद हैं ? इन्हें बाहर क्यों नहीं निकाला गया ? ”

“मैडम !ये वे अपराधी हैं जिनको जितनी बार कार्यक्रम के लिए बाहर निकाला गया है, उतनी ही बार इन्होंने या तो झगड़े किए हैं या फिर क़त्ल ! इसीलिए जब कोई भी बाहर से आता है, इन्हें अंदर ही बंद करके रखा जाता है | ”यह उत्तर दमले का था जिन्होंने समिधा का प्रश्न सुन लिया था | 

“अरे!आप तो सारी सूचनाएँ लेकर ही पधारे हैं !”वातावरण में सहजता लाने के लिए पुण्या ने उन्हें चिढ़ाया था | 

“आप तो हमें हमेशा अंडरस्टीमेट करते हैं मैडम !पण ऐसा नहीं है न !” उन्होंने अपनी मराठी मिश्रित भाषा में उत्तर देते हुए एक ज़ोरदार ठहाका लगाया | 

जब कभी दामले अपने वास्तविक मिज़ाज में होते तब अपनी भाषा पर उतर आते | उस समय उनकी भाषा में मराठी, बंबइया और हिन्दी की खिचड़ी घुटने लगती | 

“क्या बात है, बहुत प्रसन्न हैं दामले साहब ?” पुण्या फिर से बिना बोले चुप न रह सकी | 

“हाँ, मैडम ! ये सारे लोग जिनको आप खड़ा देख रहे हैं न, हमारे लिए ‘डांस’करने वाले हैं | देखिए, ये लोग अपने इन्स्ट्रूमेंट्स लेकर आए हैं | आपने ध्यान नहीं दिया ? ”

हाँ, महिलाओं का ध्यान नहीं गया था | अब देखा कुछ लोग अपने तबले और ढोलक, तबले व सारंगी जैसे यंत्रों को पकड़े खड़े थे और कुछ के हाथों में डंडियाँ सी भी थीं जैसे गरबे में रास के लिए प्रयोग में ली जाती हैं | किसी एक के हाथ में मिट्टी की वीणा जैसा यंत्र भी था | 

“है न सारी व्यवस्था बराबर ? ”दामले ने अपने कमीज़ के कॉलर को हाथ से पकड़कर ऊँचा करते हुए रौब झाड़ा | 

“वैसे, मेरी समझ में एक बात नहीं आई कि आख़िर आपने इसमें किया क्या है ? और इन बेचारों को कब तक खड़ा रखा जाएगा ? ”

“मैं ही तो मनाकर लाया हूँ मैडम इन्हें, हम शूट करेंगे न !तैयार नहीं हो रहे थे भाई लोग ! अब अपने जेलर साहब का इंतज़ार कर रहे हैं | ”

दो-चार मिनट बाद ही जेलर साहब ने प्रांगण में प्रवेश किया और अपने नेता के आदेशानुसार सब लोगों ने अपने-अपने यंत्र संभाल लिए | शेष सभी वृत्ताकार बनाते हुए अपनी प्रथा के अनुसार आदिवासी नृत्य करते हुए झूमने लगे | वाद्य-यंत्र बजाने वाले पेड़ के नीचे आकर बैठ गए थे और कमरों के सींकचों में बंद क़ैदी झाँक-झाँककर बाहर का दृश्य अवलोकन करने का प्रयास कर रहे थे | समिधा के मन में बंद कैदियों के प्रति करुणा घिर आई थी परंतु स्थान, समय तथा बात नाज़ुक थी सो वह कुछ न बोल सकी | 

शूटिंग होने लगी थी और वे सारे क़ैदी नाचते हुए बड़े प्रफुल्ल व उत्साहित नज़र आ रहे थे |