Anonymous.... in Hindi Horror Stories by Saroj Verma books and stories PDF | गुमनाम....

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गुमनाम....

अग्रिम ! आधी रात को कहाँ जा रहा है यार! प्रबोध ने अपने दोस्त से पूछा।।
यार!लैब में एक नई डेड बाँडी है उसी का मुआयना करने जा रहा हूँ,देखना चाहता हूंँ कि कितने दिन पहले मरा,किस कारण मरा,अग्रिम बोला।।
यार! कल तो डिससेक्शन के वक्त तो सर सबकुछ बताऐगे ही,तू क्यों अपनी रात मुर्दे संग बिताने जा रहा है?प्रबोध बोला।।
यार! मैं पहले से ही अपनी अटकलें लगा लेना चाहता हूँ कि मैं कितना सही हूँ,फिर डिससेक्शन के वक्त और भी ज्यादा मज़ा आएगा,अग्रिम बोला।।
यार! तेरे अन्दर ना पढा़ई की इतनी हवस है ना! भाई इतनी जिज्ञासा क्यों रहती है तुझे सबकुछ जल्दी जल्दी जानने की,वो मुर्दा है तेरी गर्लफ्रैंड नहीं जो तूझे शोना- बाबू कह के गले जाएगी,तू क्यों अपनी जिन्द़गी से खिलवाड़ करता रहता है,तुझे तो सोना ही नहीं होता है,तू तो बस पढ़ता रहता है लेकिन भाई मुझे तो सोने दे,मुझे अपनी जान और अपनी नींद दोनों प्यारे हैं,प्रबोध बोला।।
तो तू सो जा ना! मै कहाँ रोकता हूँ?पता नहीं कैसा मेडिकल स्टूडेंट है,डरपोक कहीं का,अग्रिम बोला।।
हाँ,भाई! मैं तो डरपोक हूँ,तू जा और मुझे सोने दे,लेकिन कुछ हुआ ना तो फिर ना कहिओ कि मैने रोका नहीं था,प्रबोध बोला।।
हाँ...हाँ...जा..जा...सोजा...चुप करके,मैं लैब होकर आता हूँ,अग्रिम बोला।।
भाई आ जइओ लौट के ,काहे से वो मुर्दा है,जिससे तू मिलने जा रहा है,प्रबोध बोला।।
कित्ते बार बोलेगा कि मुर्दा है...मुर्दा है....पहली बार थोड़े ही जा रहा हूँ,पहले भी तो जा चुका हूँ,अग्रिम बोला।।
ठीक है जा,दो घण्टे का अलार्म लगाकर रख रहा हूँ,तू दो घण्टे में नहीं आया तो सबको इनफार्म कर दूँगा,वैसे कैसे जाएगा ? तुझे पता है ना हाँस्टल से लैब की दूरी ही बहुत ज्यादा है,प्रबोध बोला।।
प्यून की साइकिल का जुगाड़ कर लिया है और उसी से चाबी भी ले ली है लैब की,अग्रिम बोला।।
यार ! तू इतना गिर सकता है एक मुर्दे से मिलने के लिए ये मैं सोच भी नहीं सकता था,अब तू मरना ही चाहता है तो मैं क्या करूँ? प्रबोध बोला।।
अब ज्यादा ज्ञान मत झाड़ चुपचाप सोजा,मैं जाता हूँ ये कहते हुए अग्रिम ने कमरे का दरवाजा बन्द किया ,साइकिल उठाई और चल पड़ा लैब की ओर.....
रात का अन्धेरा अग्रिम ने लैब के बाहर साइकिल खड़ी की टार्च जलाई,अपना डिससेक्शन बाँक्स लिया और टार्च जलाकर लैब का दरवाज़ा खोलकर ताला दरवाजे पर अटका दिया फिर लैब की लाइट का स्विच आँन किया,दरवाज़ा बन्द किया,डेड बाँडी के पास पहुँचा,डेड बाँडी सफेद कपड़े से ढ़की हुई थी,उसे थोड़ा सा डर लगा लेकिन उसने डेड बाँडी के चेहरे पर से कपड़े को हटाया तो चेहरा एकदम जला हुआ था जो बहुत ही भयानक लग रहा था,जली हुई डेड बाँडी देखकर उसका मन खराब हो गया इसलिए उसने लैब से जाने का सोचा क्योंकि पहले कभी ऐसे केस का उसने विच्छेदन नहीं किया था ।।
उसने अपना डिससेक्शन बाँक्स और टार्च उठाई और जैसे उसने लैब की लाइट स्विच आँफ की किसी ने उसे आवाज दी.....
ठहरो...मत जाओ मुझे छोड़कर।।
अब तो अँधेरे में अग्रिम की डर के मारे रूह काँप गई,उसने पूछा ....
कौन है भाई?
मैं वही हूँ जिसका तुम मुआयाना करने आए थे...
मतलब लाश़....अग्रिम ने डरते हुए पूछा....
हाँ...वही हूँ मैं!!
तुम तो मरे हुए हो,तुम बोल कैसे सकते हो? अग्रिम ने पूछा।।
मेरी रूह भटक रही है अभी तक,जब तक मेरी इच्छा पूरी नहीं हो जाती,तब तक मेरी रूह ऐसे ही भटकती रहेगी,वो डेड बाँडी बोली।।
तुम मुझसे क्या चाहते हो? अग्रिम ने पूछा।।
मैं गुमनाम हूँ,मुझे कोई नहीं जानता,मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी पहचान दुनिया के सामने लाओ,डेड बाडी बोली।।
लेकिन वो कैसे? अग्रिम ने पूछा।।
मैं डाक्टर रामवचन शुक्ल हूँ,मैं सालों पहले जूलाँजी का प्रोफेसर हुआ करता था,लेकिन मैं कुछ ना कुछ एक्सपेरीमेंट करता रहता था,जिनके बहुत बहुत नोट्स तैयार करके रखे थे,अपने प्रयोगों के शौक को जारी रखते हुए मैने अपने घर के नीचे खुफिया प्रयोगशाला बनवाई,जहाँ मैं दिन रात कुछ ना कुछ प्रयोग करता रहता था,इस वजह से मेरी पत्नी ने भी मुझसे दूरियाँ बना लीं क्योंकि मैं उसे समय नहीं दे पाता था,बाद में पता चला कि उसने किसी और से शादी कर ली है।।
मेरी इन्हीं प्रयोगों ने धीरे धीरे मुझे सबसे दूर कर दिया,ना मेरा कोई रिश्तेदार रहा और ना ही कोई दोस्त रहा,सच कहूँ तो मुझे भी किसी की कमी नहीं खलती थी,मै अपनी प्रयोगशाला में प्रयोगों के संग मस्त रहता था,दिन बीतते गए,महीने बीतते गए,सालों बीतते गए,मैने इतने प्रयोग किए जिनकी कोई गिनती नहीं है,अब जाकर मुझे लगने लगा था कि इन प्रयोगों को मैं दुनिया वालों को दिखाकर शौहरत हासिल कर सकूँ,इतने सालों जो मैने गुमनामी की जिन्द़गी बिताई थी उससे मैं भी तंग आ चुका था।।
मैं अपने सब प्रयोग जब राज जगजाहिर ही करने वाला था तो उसके एक दो दिन पहले मैं रसोई में काफी बनाकर गैस बन्द करना भूल गया,जब दोबारा काफी बनाने लैब से ऊपर बने रसोईघर में आया तो आग जलाते ही धमाका हो गया और मैं जल कर मर गया,लेकिन मेरी रूह को मुक्ति नहीं मिली,जब तक मेरे प्रयोग जगजाहिर नहीं हो जाते मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी,क्योंकि मेरी लाश़ का भी तो पूर्णतः अन्तिम संस्कार नहीं हुआ है इसलिए क्योंकि बहुत समय पहले ही मैने अपने शरीर को मेडिकल काँलेज के लिए डोनेट करने वाले पेपर पर साइन करके डोनेट कर दिया था ,मेरे मरने की सूचना मेरे पड़ोसियों ने पुलिस को पहुँचा दी और मेरी लाश को यहाँ ले जाया गया।।
आज तुम में भी मुझे अपने जैसी ही जिज्ञासा दिखी इसलिए तुमसे अपनी बात कहने का मन हो आया,अगर तुम मेरे सारे एक्सपेरीमेंट दुनिया के सामने ले आओ तो बहुत एहसान होगा मुझ पर,मैं तुम्हें अपने घर का पता और वो जगह बता देता हूँ,जहाँ तुम्हें वो सब मिल जाएगा।।
इतना सुनकर अग्रिम बोला....
मेरे लिए तो ये बहुत बड़ी बात है कि इस काम के लिए आपने मुझे चुना,मैं जरूर आपका काम करूँगा,
ये सुनकर वो रूह बोली....
मैं अभी भी तुम्हारे इर्दगिर्द ही रहूँगा,जिस दिन तुम मेरा काम कर दोगें उस दिन सच में मैं चला जाऊँगा और उसने अपना पता ठिकाना बता दिया,
और तभी अग्रिम की आँख खुल गई,वो शायद कोई सपना देख रहा था लेकिन दूसरे दिन जब वो लैब पहुँचा तो सच में वहाँ डिससेक्शन के लिए जली हुई लाश आई थी और हुबहू वो वैसी ही थी जैसी उसने सपने में देखी थी।।
वो पुलिसस्टेशन गया उसने सारी बात बताई,सब उस पते पर पहुँचे और सच में वहाँ घर के नीचे एक प्रयोगशाला थी और वहाँ नोट्स ही नोट्स भरे हुए थे।।
अग्रिम ने प्रोफेसर रामवचन के नोट्स और प्रयोगों को जगजाहिर करवाया और उन्हें गुमनाम होने से बचा लिया,उनकी लाश कि डिससेक्शन करने के बाद अग्रिम ने उनका अन्तिम संस्कार भी करवाया।।

समाप्त......
सरोज वर्मा......