Usually nothing happens - Defense in Hindi Book Reviews by राजनारायण बोहरे books and stories PDF | सहसा कुछ नहीं होता-रक्षा

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सहसा कुछ नहीं होता-रक्षा

सहसा कुछ नही होता-रक्षा

स्त्री पीड़ा का अधिकृत आख्यान:
सहसा कुछ नही होता
राजनारायण बोहरे

रक्षा ऐसी कवियत्रीयों में से हैं जो परंपरागत शिल्प और काव्य आधानों पर कविता न लिखकर सर्वथा मौलिक उपादानो और नवीन शिल्प संधान करके कविता लिखती हैं ।
रक्षा की बड़ी विनम्रता है कि वे खुद को कवयित्री नहीं बताती, अचरज तो यह है कि वर्षों से स्त्रियों और बच्चों के लिए काम करने के बाद भी अपने को समाज सेविका नहीं कहती। ऐसी विनम्र और अहंकारहीना स्त्री कवयित्री की कविताएं बड़े सहज सरल ढंग से पाठकों के सम्मुख आती रही हैं और प्रदेश के अखिल भारतीय मंचों पर उन्हें बड़े ध्यान से सुना जाता रहा है ।
अब उनकी कविताओं का एक सशक्त संकलन "सहसा कुछ नहीं होता" के नाम से बोधि प्रकाशन से हमारे सम्मुख आया है। यह सँग्रह रक्षा को समग्र रूप से प्रस्तुत करता है। काव्य संकलन को पढ़ते हुए पाठक की पल पल मनोदशा बदलती जाती है। कुल 168 पृष्ठों के इस कविता संग्रह में मात्र दो कविताएं 4 पेज की हैं, तो महज एक कविता 3 पेज की ,जबकि मात्र 35 कविताएं दो पेज या डेढ़ पेज तक की है ,बाकी सब छोटी कविताएं यानी एक पेज या आधे पेज तक की हैं। इस तरह इस संग्रह में लघु कविताओं की अधिकता है ,जो आकार में लघु हैं और कहने में विस्तृत।
इस संग्रह में "दफ्तर में औरतें" सबसे बड़ी कविता है ,जो 4 पेज में है, तो सबसे छोटी कविता का नाम "आख्यान" है जो इस तरह है -
प्रेम
घृणा के
प्रतिपक्ष में
प्रतिरोध का
आख्यान है (पृष्ठ 112)
इस प्रतिरोध के आख्यान पर हिंदी कविता के सुप्रसिद्ध जनवादी कवि राजेश जोशी लिखते हैं " बुरे समय के आख्यान को लिखते हुए रक्षा की कविता यह बताना नहीं भूलती कि घृणा के विरुद्ध प्रेम प्रतिरोध का आख्यान है (पुस्तक के ब्लर्ब से)
संग्रह में अनावश्यक लंबी और उलझे शिल्प की तथा बयानबाजी से भरी कविताएं बिल्कुल नहीं है। स्त्रियों के दैनिक जीवन के दृश्य-अदृश्य चित्र उसके मन के कोने-अंतरे में बैठी कही-अनकही पीड़ा पर इस संग्रह में सबसे ज्यादा कविताएं हैं । प्रेम जीवन का एक जरूरी आल्हादकारी भाव है, रक्षा ने इस संग्रह में 14 प्रेम कविताएं रखी हैं ( छद्म आवरण, प्रेम का सौंधापन, कुछ पल, प्रेम, आख्यान ,रसायन, पूर्णता, सिंफनी, आतुर प्रेम, कहना विदा प्रेम को, कोई तो हो, अनुबंध, प्रेम का ज्वर) तो कविता और कवि पर 9 कविताएं संकलन में ( सियाही, कविता इन दिनों एक ,कविता इन दिनों दो ,कस्बाई युवा कवि, हौसला, भींजना, कविता हो जाना,कवि, सुनो कवि) दी गई हैं। पिता पर लगभग 5 कविताएं हैं ,तो संकलन में माँ पर कुल 3 कविताएं हैं ( मां होना ,अम्मा का झूठ, गृहस्थी )जो बड़ी गहरी हैं ! इसके अलावा धर्म ,राजनीति, समाज और प्रकृति पर भी अनेकों कविताएं इस संकलन में शामिल हैं ।
स्त्री को सदा से पुरुष के आश्रय की विवशता के विवरण सुनाती रक्षा लिखती हैं -
लता ऊपर उठी
एक गहरी जड़ों वाले
मजबूत पेड़ के सहारे
****
फिर एक दिन
औंधे मुंह
जमीन पर गिर पड़ी
क्योंकि
पेड़ की मजबूती
अब
किसी और लता के लिए थी
लता
खुद क्यों नहीं हो जाती पेड़ (पृष्ठ 16 )

इसी तरह एक कविता में रक्षा निष्कर्ष देती हैं कि धरती अभी संतुलन में नहीं है,वे लिखतीं हैँ-
वह दिन जब एक
महिला मजदूर
पाए मजदूरी
पुरुष मजदूर के बराबर
वह दिन जब
स्त्री की देह नहीं
बल्कि उसका
परिश्रम और पसीना
बने कविता के लिए
सौंदर्य के उपमान
उस दिन धरती का
अपनी धुरी पर संतुलन
सबसे ज्यादा होगा (पृष्ठ 40)
कवयित्री का कहना है कि औरत ज्यादा कुछ नहीं चाहती -
औरत को चाहिए
बहुत कम
बस इतना ही
कि उसे भी
इंसान समझो तुम (पृष्ठ 106)
औरत सदा से ही पुरुष से ज्यादा सख़्त जान रही है ,यह कहती रक्षा लिखती हैं-
औरतें
होती हैं
बहुत सख्त जान
न जी पाती हैं
न मर पाती हैं
बस जीने की चाहत में
मरती चली जाती हैं

"अच्छी औरतें "कविता में समाज की नजर में अच्छी औरतें मानी जाने वालियों के गुण बताए हैं। रक्षा ने लिखा है -
वे जीवन भर
नहीं सीख पाती
कठोरता से न को न कहना
जिन्हें कोई जरूरत ही नहीं
दृष्टि या दृष्टिकोण की
रीढ़ विहीन
निपट कायर
औरतों की ऐसी खेप
कहलाती है
अच्छी औरतें (पृष्ठ 38)
रक्षा ने समाज के द्वारा चरित्रहीन कही जाने वाली औरतों के बारे में जो कहा जाता है उसे शब्द दिए हैं -
चरित्रहीन होती हैं ऐसी औरतें
बेबाक, बेपर्दा ,बेपरवाह,
निर्भीक, स्वतंत्र ,अकुंठित
वे जो दौड़ती हैं बगैर दुपट्टे की
बच्चों के साथ पार्क में या
हॉकी फुटबॉल के मैदान में
अपनी पुष्ट टांगें दिखाती
एक दूसरे पर गिरती
एक दूसरे को चूमती ( पृष्ठ 33)

पिता को अपनी सारी योग्यताओं के लिए कोसते लोगों के लिए उलाहना देती रक्षा लिखती हैं -
पिता ने नाचने नहीं दिया
पिता ने सजने नहीं दिया
पिता ने गाने नहीं दिया
साहित्यकार औलदें
लिख लिख
भेज रही हैं
दिवंगत पिता को
उलाहने पर उलाहना (पृष्ठ 135)
रक्षा के इस संकलन की पहली कविता पाठक को अपनी जद में ले लेती है-
कहां होंगे इनके पापा
पूछती हैं जब मेरी बिटिया
ट्रैफिक सिग्नल पर
फूल ,गुब्बारे या अखबार बेचती
लड़कियों को देख
जुबान चाहे कर भी खुल नहीं पाती
कि मुश्किल है ढूंढ पाना
इतने पुरुषों में इनका पिता
*****
किसी नीम अंधेरे कोने में
आदिम हवस के
स्खलन की पैदाइश है ये लड़कियां ( पृष्ठ 13)
भाषा, कहन और कथ्य के आधार पर अपनी अलग जगह कायम करती हुई रक्षा दुबे का यह संग्रह निश्चित ही अदीबों और अदब की दुनिया का स्नेह प्राप्त करेगा।

सहसा कुछ नहीं होता कविता संग्रह प्रकाशक बोधी प्रकाशन
प्रश्न 168
मूल्य 175
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