Mid day Meal - 9 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | मिड डे मील - 9

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मिड डे मील - 9

रमा भागते हुए अपने अपने घर पहुँच कमरे में खुद को बंद कर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। आज अगर वो बच्चे न होते तो मेरा क्या होता। यह सोच वह दहाड़े मार रो रही थीं, पर उसे सुनने वाला कोई नहीं था। सब मौसी के बेटे की शादी में गए हुए थे । कहीं उसका परछावा नई दुल्हन पर न पड़ जाए इसलिए उसे साथ लेकर नहीं गए। इनकी बेटी आज हलाल कर काट दी जाती तो भी इन्हें कोई फ़र्क न पड़ता। ऐसे जीवन से मरना भला कहकर उसने चारपाई पर रखी चादर उठाई और छत पर टंगे पंखे से बाँध दीं। और फंदा अपने गले में डाल लिया। जैसे ही, रस्सी थोड़ी कसी तभी किसी ने दरवाजे पर आवाज़ लगाई। और न चाहकर भी वह चादर को गले से निकाल मेज़ से उतर गई। खुद को ठीक कर दरवाजा खोला सामने देखा हरिहर खड़ा था।

उसे देख हैरान हो गई और अपना पल्लू सँभालते हुए बोली, जी आप ? उसे लगा केशव और मनोहर ने सबकुछ बता दिया होगा, तभी हरिहर यहाँ आया हैं। मगर हरिहर ने जब कहा, "आपको रमिया काकी बुला रही हैं, उनकी तबीयत ठीक नहीं है। ज़रा उन्हें देख आओ।" "जी जाती हूँ। आप ठीक हैं न?" उसका पसीने से लथपथ चेहरा, सूजी हुई ऑंखें। हरिहर को ऐसा पूछने पर विवश कर रही थीं। उसका मन किया कि वो हरिहर के पैर पकड़ खूब ज़ोर से रोए और उसे बताये कैसे उसके नन्हें बच्चों ने उसकी लाज रखी हैं और आज वो ज़िंदा भी सिर्फ उसके बच्चों के कारण हैं। मगर वह खुद को समटते हुए बोली। जी ठीक हूँ, आपके बच्चे तो ठीक है न? उसके स्वर में चिंता थीं। हाँ, वो ठीक हैं। स्कूल में हैं। मुझे देर हों रही हैं। कहकर हरिहर चला गया। और वह संतोष की सांस ले, रमिया काकी के यहाँ चल दीं। हे ! भगवन, उन बच्चों की भी रक्षा करना। मन ही मन उसने कहा। उसकी चाल देख लग रहा था कि उसने मरने का इरादा त्याग दिया हैं।
आज तू स्कूल इतनी लेट क्यों आया? बड़े सरजी ने कितनी डाँट लगाई। रघु ने केशव से आधी छुट्टी में पूछा। तेरा खाना कैसे गिर गया? केशव ने उसे सारी बता दीं कि रास्ते में उनके साथ क्या हुआ और उन दोनों भाइयों ने क्या किया। वाह ! तूने सचमुच बहादुरी का काम किया केशव। वो बिरजू भाई, है ही अज़ीब। सारा दिन गॉंव के लड़कों के साथ ताश खेलता रहता हैं। मेरी माँ कभी उससे बोलने नहीं देती थीं। अपना ध्यान रखियो, कहीं तेरे पीछे न पड़ जाए। रघु ने सावधान किया। कुछ नहीं होगा, तू चिंता मत कर। केशव ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा। तूने अपने बापू से बात की? रघु ने फिर पूछा। हाँ, मगर बापू बोले, हमारे हाथ का खाना कोई नहीं खायेगा। रघु कुछ देर चुप बैठा रहा और फ़िर सोचकर बोला कि एक तरकीब हैं, उसने केशव के काम में कहा। तुझे लगता है, यह तरक़ीब काम करेंगी ? हाँ बिल्कुल, कोशिश करने में क्या बुराई हैं। ठीक हैं। कहकर दोनों ने ताली मारी और अपनी-अपनी क्लॉस में चले गए।
घर लौटते वक़्त मनोहर केशव से बोला, आज जो कुछ हुआ उसे बापू को बताने की ज़रूरत नहीं हैं। बेकार में वो परेशां हों जायेंगे और हों सकता है कि हमारे बताने से रमा दीदी भी किसी मुसीबत में न पड़ जाए। मुझे लगता है बापू को बता देना चाहिए, कम से कम उन्हें पता चलेगा कि वो बिरजू कैसा हैं। केशव ने ज़वाब दिया। नहीं, कुछ दिन रुककर बताएँगे। ठीक है, जैसा तुम कहो। केशव भाई की बात मान गया। रात को उन्होंने रमिया काकी का हाल पूछा। और सोते हुए बोला, कल खाना थोड़ा ज्यादा देना, मेरे दोस्त माँग रहे थे । कहकर केशव चादर तानकर सो गया।
कल सुबह स्कूल में आधी छुट्टी के समय रघु अपनी कक्षा के दोस्तों को लाया। एक दोस्त ने केशव के साथ बैठने से मना कर दिया। बाकी दोस्त साथ में खाने लगे। उन्होंने केशव का डिब्बा खाया। खीर-पूरी इतनी स्वाद थीं कि एक बार लेने के बाद सबने बार -बार ली और तो और एक दोस्त ने कहा, मिड डे मील से अच्छा तो केशव का खाना हैं। इनके खाने में कोई स्वाद नहीं हैं। मगर मुझे यह माँ के खाने से भी ज्यादा स्वादिष्ट लगा। यह सिलसिला रोज़ चलता रहा। बच्चों को केशव का डिब्बा पसंद आने लगा। रघु की तरकीब काम कर रही थीं। उन लोगों की दोस्ती देख, कुछ मास्टरों को जलन हुई। ये बच्चे कैसे, उस छोटी जात के केशव का खाना मज़े से खा रहे हैं। कुछ भी कहो, यह केशव है, बड़ा चालाक। अंग्रेज़ी के मास्टर सुधीर ने सामाजिक के मास्टर से कहा तो वह बोले, वो बच्चे हैं, कुछ भी खा सकते हैं। बचपन को ऐसे ही थोड़ी न बेपरवाह कहा जाता हैं। जो भी हों, बड़े सरजी से बात करता हूँ , यह ठीक नहीं हैं। सामाजिक के मास्टर ने ज़वाब दिया, यह भी करके देख लो। तभी सुधीर, दो चार मास्टरों और बहनजी को साथ ले जाकर बड़े सरजी के कमरे में गया। सारी बात सुनकर हरिहर को स्कूल बुलवा लिया गया।