Kajari - 4 in Hindi Fiction Stories by anushka swami books and stories PDF | कजरी - 4

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कजरी - 4

अध्याय - 4
कजरी सब छोड़ कर शहर तो आ गई थी पर ये जगह उसके लिए बिल्क़ुल अनजान थी।वो इस शहर में अपनी माँ से बिछड़े बच्चे की तरह थी,जो इस भीड़ में कहीं खो गया था।कजरी रेल्वे स्टेशन पर दो दिन तक बैठी रही उसे नहीं पता था कि वो कहाँ जाए ।
' ऐ लड़की में कल से देख रहा हूँ तू यहाँ क्यों बैठी है यहाँ ऐसे नहीं बैठ सकते ?' स्टेशन मास्टर ने कहा।
' मेरा यहाँ कोई घर नहीं है बाबा '। कजरी ने रुआसे होकर कहा।
' तो मैं क्या करुँ तुम यहाँ नहीं बैठ सकती, तुम्हें यहाँ से जाना होगा'। स्टेशन मास्टर ने कहा।
कजरी स्टेशन से बाहर आ गई और चारों तरफ देखने लगी। शहर गांव से बिल्क़ुल अलग था यहाँ सड़क पर गाड़ियों की भीड़ थी।सब लोग बिना रुके आगे जा रहे थे। कजरी ने एक रास्ता पकड़ा और चलने लगी।कजरी किस उम्मीद में और कहां जा रही थी ये खुद वो भी नहीं जानती थी।वो बस उस रास्ते पर चली जा रही थी। धीरे - धीरे शहर की चकाचौंध पीछे छूट गई और कजरी एक सुनसान चोराहे पर खड़ी हो गई। रात भी काफी हो चुकी थी और इस जगह लोगो का आना - जाना भी काफी कम था।कजरी सहमी सी वहां खड़ी रही। कुछ देर बाद कजरी के पास एक कार आकर रुकी।जिसे देखकर कजरी और भी ज्यादा सहम गई।उसमें से एक सूट बूट पहने एक आदमी उतरा ।
' ऐ लड़की यहाँ सुनसान जगह पर क्यों ख़डी हो, घरबार नहीं है क्या तुम्हारे '? कार से उतरे आदमी ने कड़क कर पूछा।
' नहीं साहब मैं इस शहर में नई आई हूँ '। कजरी ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
' अच्छा तो घर से भागकर आई है '।उस आदमी ने कहा।
' हाँ साहब '।
' तो मेरे साथ चल तुम्हें में एक ऐसी जगह लेकर चलता हूँ जो तेरे जैसों के लिए ही बनी है।'
कजरी को वो आदमी भला लगा,वो उसकी नियत को समझ नहीं पाई।
वो कजरी को एक कोठे पर ले गया।
' तुम यही मेरा इंतजार करना मैं अभी आता हूँ '।ये कहकर वो अंदर चला गया।
कजरी आसपास का माहौल देख कर समझ गई थी कि वो सही जगह पर नहीं है।कजरी मौका पाकर कार से उतर कर भाग गई। कजरी सड़क पर बदहवासी भागी जा रही थी । उसे कुछ होश नहीं था।इतने में वो एक सब्जी की टोकरी ली हुई एक औरत से टकरा गई।
' ऐ छोरी कहां भागी जा रही है , देख कर न चल सके के। सारी सब्जी गिरा दी '। सब्जी वाली औरत ने सड़क से सब्जी उठाते हुए कहा।
कजरी डरी सी उसके सामने खड़ी रही।उसकी हालत देख कर उस सब्जी वाली औरत ने उसे पानी पिलाया।
' क्या हुआ '? उसने पूछा।
कजरी ने उसे सारी बात बताई ।
' देख तू चिन्ता मत कर मेरा नाम प्रेमा है,और तू मेरे हाथ चल '। प्रेमा ने कजरी के माथे पर हाथ फेरकर कहा।
वो कजरी को अपने घर ले आई।उसने कजरी को खाना खिलाया।
' कल सुबह तू मेरे साथ चलना तुझे मैं काम दिलवा दूंगी,और अब से यही तेरा घर है '। प्रेमा ने कहा।
कजरी ने हाथ जोड़कर उसका आभार व्यक्त किया ।
अब कजरी प्रेमा के साथ रहती है और रोज उसके साथ सब्जी बेचने जाती है।