MAHAMARI KA PRAKOP in Hindi Human Science by Anand M Mishra books and stories PDF | महामारी का प्रकोप

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महामारी का प्रकोप

जम्बू द्वीप में कोरोना फैला था। उसी द्वीप में एक शांत गाँव है। इस गाँव में बाहर के गांवों से लोगों का आना-जाना लगा रहता है। तो यह शांत गाँव महामारी के प्रकोप से कैसे बचता? सो इस गाँव में भी महामारी कोरोना फ़ैल गयी। जम्बू द्वीप की सरकार काफी सतर्क हो गयी। यातायात के साधनों को बंद कर दिया गया। विद्यालय को बंद कर दिया गया। बच्चों की पढाई बंद हो गयी। बच्चे घर में ही उधम मचाने लगे।

उस गाँव के एक विद्यालय में करुणा बाबू पढ़ाते हैं। सो वे भी घर में बंद हो गए। स्थानीय सरकार ने सभी के लिए कोरोना जांच अनिवार्य कर दिया। सब को जांच कराने के लिए बसों में ठूंस-ठूंस कर अस्पताल लाया जाने लगा। रिहायसी क्षेत्रों में भी अस्पताल के कर्मचारी घूम-घूमकर लोगों के कोरोना जांच में लग गए। एक दिन जांच के बाद यह पता चला था कि करुणा बाबू के शरीर में कोरोना विषाणु के सकारात्मक लक्षण हैं। चूंकि उन्हें बीमारी के हल्के-से लक्षण ही थे, डॉक्टरों ने उन्हें 14 दिनों के लिए घर में ही ‘क्वारंटाइन’ होकर इलाज करवाने को कहा था। उन्हें घर में ही नजरबन्द कर दिया गया। ‘क्वारंटाइन’ नाम उन्होंने कभी नहीं सुना था। अंग्रेजी के इस नाम से ही उन्हें भयानक डर लगता था। अब उन्हें नींद नहीं आती थी। आने से बेचैनी में खुल जाती थी। किसी काम में उनका मन नहीं लगता था। कुछ भी याद नहीं रहता था। दिल में दर्द रहता था। कुछ दिखाई नहीं देता था।

कुल मिलाकर करुणा बाबू की जिंदगी घर के अपने कमरे में ही सिमटकर रह गई थी। घर का कोई अन्य सदस्य उनके कमरे में आता-जाता नहीं था। उनका खाना वगैरह उनके कमरे के बाहर एक मेज पर रख दिया जाता था। दूध का जला छाछ भी फूंक फूंककर पीता है, अब उनको कोरोना हो गया है तो घर के अन्य लोग भी सांस संभल कर लेने लगे। लेकिन सावधानी बरतने से भी घरों में चूहे-कॉक्रोच और मच्छर बिना किसी इजाजत के दाखिल होते हैं, उसी प्रकार तमाम सावधानियों के बावजूद कोरोना का प्रकोप पूरे मुहल्ले में फ़ैल गया। अब उस इलाके में लोग जाने से डरने लगे। उस इलाके को टिन से घेर दिया गया। बाहरी लोगों का प्रवेश निषेध हो गया। अब इस क्षेत्र की समस्यायें शहर के एलआईजी फ्लैट में गांव से आए दूर के उन चाचाजी की तरह हो गए, जो जाने को एक हफ्ते में जा सकते हैं और न जाने का मन बना लें तो कितने भी जतन कर ले, नहीं जाते।

खाना खाकर जूठे बर्तन करुणा बाबू उसी मेज पर रख देते। उनके कमरे में भले ही कोई आता-जाता नहीं था, दिन भर उनका मोबाइल फोन शांत रहता। ऐसा लगा कि मोबाइल फोन को भी कोरोना हो गया है। पडोसी तो अपना घर ही बंद रखता। पडोसी तो इतना डर गया था कि सुबह-शाम हनुमान चालीसा पढ़ते रहता।

करुणा बाबू अपने पोते को देखने के लिए परेशान थे, मगर बहू ने पोते को सख्त ताकीद कर रखी थी कि किसी भी हालत में दादाजी के कमरे की तरफ नहीं जाना है। करुणा बाबू हैरान थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि जहाँ कोरोना होने से पहले लोग उनके पेंशन की रकम के लिए दिन गिनते रहते थे। अब कोई उनके पास भी नहीं आता है। करुणा बाबू क्वारंटाइन के बाकी बचे दिनों को गिनते और उदास होने लगते। उन्हें लगता था कि घर के सदस्य उन्हें फोन ही करें। वे सोच रहे थे कि घर में रहने से यह हाल है यदि अस्पताल में भर्ती हो जाते तो घर के किसी सदस्य को देखने की फुर्सत नहीं मिलती। क्वारंटाइन में वे परिवार के सदस्यों का अपनापन की इच्छा लेकर जीवित थे। केवल अपनी पत्नी के हार लगे चित्र को निहारते रहते।

इधर उनके परिवार के लोग होम्योपैथी, आयुर्वेदिक, यूनानी, बंगाली, झाड़फूंक, टोना-टोटका वगैरह हर प्रकार के इलाज करवा रहे थे। उनके बहू-बेटे केवल इसी काम में लगे थे। उनके रिश्तेदार भी अपनी सुविधानुसार, जेब अनुसार और व्हाट्सएप ज्ञान के अनुसार इलाज बता रहे थे।

जिस तरह सच्चा प्रेमी ब्रेक-अप के बाद भी विरह में तड़पता है, सच्चा शराबी शराब छोड़ने के लिए पुनर्वास केंद्र में हफ्तों गुजारने के बाद भी शराब देखने पर बेचैनी महसूस करता है, उसी तरह कोरोना से संक्रमित होने पर करुणा बाबू परेशान थे। करुणा बाबु को लग रहा था कि यह साधारण वायरल बुखार है और उससे अधिक कुछ नहीं है। उन्हें लग रहा था कि यह बुखार ठीक हो जाएगा। लेकिन उनके सोचने से क्या होता है? उनके लिए तो अभी घर ही जेल बना दिया गया था। बाहर से ताला बंद था। वे चाहकर भी बाहर नहीं निकल पा रहे थे। उनका मोर्निंग वाक बंद हो गया था।

करुणा बाबू का हृदय काँप गया। एक दिन उनके बहू-बेटे आपस में बात कर रहे थे।

बाबूजी की बीमारी ठीक हो जाए लेकिन उसके बाद क्या होगा? महीनों उनके पास कौन जाएगा? हो सकता है कि बाबूजी परेशान करें। ऐसा करो तुम अपनी मायके चली जाओ। बेटा फुसफुसाकर अपनी सहधर्मिणी को बता रहा था।

बहू ने कहा, “न बाबा न! मैं मायके नहीं जाउंगी। वहां पर मेरे बाबूजी – माँ को कोरोना हो गया तो? वैसे बहू अपने पति के दिलफेंक स्वभाव से परिचित थी। “

करुणा बाबू परेशान थे। उन्हें अपने ऊपर ही करुणा आ रही थी। गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी ऐसी सामाजिक अवस्थाएं हैं, जिनका दर्द सिर्फ वो ही समझ सकता है, जिसने इन्हें जीया हो। उसी तरह कोरोना-पीड़ित ऐसी शारीरिक अवस्था है, जिसे सिर्फ वही जान सकता है, जिसने उसे झेला है।

एक दिन तो हद ही हो गयी जब बहू अपने पति से उन्हें सरकारी अस्पताल में भारती करने के लिए कह रही थी। करुणा बाबू माया-मोह का अर्थ अब तक जान चुके थे।