Its matter of those days - 30 in Hindi Fiction Stories by Misha books and stories PDF | ये उन दिनों की बात है - 30

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ये उन दिनों की बात है - 30

इस पर सागर को हँसी आ गई, जिसे मैंने शीशे में देख लिया था | उसे हँसते देखकर मुझे और भी गुस्सा आ गया था |
गोविन्द देव जी का मंदिर आते ही मैंने उसे गाड़ी रोकने को कहा |
क्या हुआ?
और जैसे ही उसने गाड़ी रोकी, मैं तुरंत ही नीचे उतर गई |
दिव्या........कहाँ जा रही हो?

मैं कहीं भी जाऊं........तुमसे मतलब!!!!!

मैं सड़क पार कर जाने लगी | सागर भी मेरे पीछे पीछे आ गया |

कहाँ जा रही हो ? बता तो दो !!

प्लीज दिव्या.......सुनो तो सही.....

देखो ऐसे बीच सड़क मुझसे बात मत करो |

नहीं करूंगा......पर बता तो दो, कहाँ जा रही हो ?

गोविन्द देव जी मंदिर !!

मैंने कामिनी से कहा था, मंदिर आ जाना | कामिनी मेरा यहीं इंतज़ार कर रही है | पर मैं तुम्हे क्यों बता रही हूँ, तुम तो हँस रहे थे ना मुझ पर |

सॉरी दिव्या!! आई एम रियली सो सॉरी!!

फिर सागर भी मेरे पीछे-पीछे मंदिर तक आ गया | हमने दर्शन किये, परिक्रमा की | मैं आँखें बंद करके कृष्णा जी से यहीं मनाने में लगी थी कि सब ठीक हो | मुझे कृतिका ने देखा ना हो |

जब आँखें खोली तो सागर को अपनी तरफ ही देखता हुआ पाया, मैंने |

मेरी तरफ ना देखकर भक्ति में ध्यान लगाओ, मैंने आँखों से उसे इशारा किया |

पर उसने भी आँखों से ही ना कह दिया |

दिव्या, दिव्या, सुनो तो सही |

मैं अब भी उससे खफा थी |
मुझे कुछ नहीं सुनना, तुम जाओ ना यहाँ से, परेशान मत करो मुझे |
पहले मुझे माफ़ तो कर दो |
नहीं!! बिलकुल नहीं!!
ठीक है तो मैं भी कहीं नहीं जाऊँगा | यहीं रहूँगा तुम्हारे पास |
एक तो मैं पहले से ही परेशान हूँ ऊपर से ये सागर जले पर नमक छिड़क रहा है |
ठीक है तो ऐसे नहीं मानोगे ना तुम |
ना |

मैंने इधर उधर देखा | एक अंकल थे जो इधर ही आ रहे थे | मैं फ़ौरन उनके पास गई और झूठ-मूठ रोने लगी |
अंकल देखो ना, ये लड़का कबसे मेरे पीछे पड़ा है | मैं तो इसको जानती भी नहीं |
अंकल गुस्से में भर गए और सीधा सागर के पास गए और उसे डांटने लगे |
क्यों रे!!क्यों बच्ची को परेशान कर रहा है? तेरे माँ बाप ने यहीं सिखाया है क्या? राह चलती लड़कियों को परेशान करना और तुम मंदिर किसलिए आये हो, क्या यही सब करने ? तुम जैसे लड़के मंदिर आकर भी नहीं सुधरते |
और काफी कुछ कह सुनाया उन अंकल ने सागर को |
सागर सिर झुकाये चुपचाप सुनता रहा लेकिन उसके मुँह से एक शब्द भी ना निकला |

पहले तो मैं खुश हो रही थी लेकिन सागर का उतरा हुआ चेहरा देखकर अब मुझे थोड़ा अजीब लगने लगा | इतने कामिनी भी वहां आ गयी थी | सागर को डाँटते हुए देखकर वो इशारे में मुझसे पूछने लगी की क्या बात हो गई | मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया |
सॉरी अंकल.......मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई | आइंदा कभी ऐसा नहीं करूंगा, सागर हाथ जोड़कर माफ़ी माँगने लगा |

और फिर वो चला गया |
अंकल मेरे पास आये और बोले, बेटा मैंने उस लड़के को समझा दिया है, आइंदा वो कभी किसी के साथ ऐसा नहीं करेगा |

मैं धम्म से नीचे बैठ गई |
क्या हुआ? मुझे कोई बताएगा |
मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था |
क्या नहीं करना चाहिए था, कामिनी पूछे जा रही थी और मैं बस यही कहे जा रही थी, "मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था" |

कामिनी मैंने गलत कर दिया सागर के साथ | मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था और मैं उसके गले लग कर रोने लगी |
पर बात क्या हुई!! बता तो सही पर पहले ये रोना-धोना बंद कर |
और शुरू से बता, क्या हुआ ?
हम दोनों काफी खुश थे और अपने दिल की बात एक दुसरे से कह भी चुके थे | इतने में मुझे कृतिका दिख गई | उसे देखकर मैं इतना डर गई की मैंने सागर से वापस चलने को कहा | उसने कहा भी मुझे, थोड़ा और रुक जाते है लेकिन मैंने उसकी एक ना सुनी | फिर यहाँ आकर उन अंकल से कहकर उसको डांट पिलवा दी |

अब तूने जख़्म तो दे ही दिया उन्हें तो अब मरहम भी तू ही करेगी, कामिनी ने मुझे समझाया |

हाँ तू सही कह रही है | मैं अपने सागर को ऐसे उदास नहीं देख सकती | उसके होंठों पर मुस्कान लेकर ही रहूंगी जो गलती मैंने की है उसको सही भी मैं ही करूंगी |

उस रात मैं सो ना सकी थी | रह-रह कर उसका वो उदास चेहरा मुझे परेशान कर रहा था | मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था जब वो सिर झुकाये हुए उन अंकल के सामने हाथ जोड़े खड़ा था उसने कोई गलती नहीं की थी |