Pyar ki Nishani - 3 in Hindi Fiction Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्यार की निशानी - भाग-3

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

प्यार की निशानी - भाग-3

प्यार की निशानी भाग-3
रात को जब सब सो गए, मंजू बिस्तर में लेट कर बहुत देर तक सबसे छुप आंसू बहाती रही। उसने अपने सपने को आंसुओं में बहा दिया और पक्का निश्चय कर लिया कि वह अपने पापा की इच्छा जरूर पूरी करेगी।
मंगला व उसके परिवार को जब यह पता चला तो सभी बहुत हैरान हुए। मंगला को तो बहुत गुस्सा आया लेकिन उसके मम्मी पापा, मंजू के पिता के दिल की हालत समझते थे इसलिए उन्होंने बस इतना ही कहा “बेटा इसमें भी तेरा भला ही छुपा होगा क्योंकि मां बाप अपने बच्चों का कभी बुरा नहीं सोच सकते। हमें यह तो पता था, तू समझदार है लेकिन इस बुरे समय ने तुझे और परिपक्व बना दिया है। भगवान तुझे जीवन भर की खुशियां दे।“

मंजू के पिता ने रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया और जल्दी ही उन्हें मंजू के लायक एक लड़का व अच्छा घर बार मिल गया।
लड़का पढ़ा लिखा सरकारी नौकरी में था। घर में लड़के के अलावा बस उसकी मां थी। लड़केवालों की कोई मांग ना थी। मंगला को देखते ही लड़के की मां ने हां कर दी और शगुन के पैसे उसके हाथ में रख दिए।

हां, देखने के लिए लड़का नहीं आया था । मंजू के पिता ने जब इस बारे में बात की तो वह हंसते हुए बोली “भाई साहब हमारा लड़का थोड़ा शर्मीला है और वैसे भी उसने पहले ही कह दिया था कि मां जो लड़की आप पसंद करोगी, मैं उसी से शादी करूंगा इसलिए नहीं आया।“

“वाह बहन जी, आज के समय में ऐसे बच्चे कम ही मिलेंगे जो अपने मां-बाप का इतना मान करें। अच्छा लगा सुनकर।“
लेकिन वहां मंजू मन ही मन कुढ रही थी कि पता नहीं कैसा लड़का है। अरे, एक बार आ जाता। मिल लेता, कम से कम एक दूसरे के बारे में कुछ तो जान समझ लेते। पर वह अपने मुंह से कुछ कह भी तो नहीं सकती थी। स्त्री लज्जा जो आड़े आ रही थी इसलिए मन मसोसकर रह गई।

सारी रस्में पूरी करने के बाद लड़के की मां ने मंजू के पिता से कहा “भाई साहब, मैं जल्दी ही मंजू को अपनी बेटी बना कर ले जाना चाहती हूं इसलिए हम शादी जितनी जल्दी हो सके शादी करना चाहेंगे।“
“बहन जी, यह तो आपने मेरे मन की बात कह दी। मैं आपसे यही कहने वाला था। आपको तो मैंने पहले ही बताया था कि मेरी तबीयत सही नहीं रहती इसलिए मैं जीते जी कन्यादान करना चाहता हूं। वैसे भी आपसे मिलकर लग रहा है कि मेरी बेटी की सास नहीं , मानो मां मिल गई हो। बस बहनजी ,हमने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं। आपके सामने तो हमारी औकात ही क्या है लेकिन फिर भी जितना बन पड़ेगा हम अपनी तरफ से देने की कोशिश करेंगे। मेरी बेटी पढ़ने लिखने में भी बहुत होशियार है। अगर हो सके तो इसे अपनी पढ़ाई जारी रखने देना। विनती है मेरी आपसे।“
“भाईसाहब, बेटी से बढ़कर कोई धन नहीं। हमें कोई दान दहेज नहीं चाहिए। आप बेफिक्र रहें, इस बारे में। जहां तक पढ़ाई जारी रखने की बात है। आपकी बात सही है लेकिन हमारे यहां किसी चीज की कमी नहीं। एकलौता ही बेटा तो है मेरा। भगवान की दया से वह सरकारी नौकरी में है। इसके पिता भी काफी कुछ छोड़ गए हैं तो क्या जरूरत है मंजू को आगे पढ़ने की । फिर भी इस बात पर हम विचार जरूर करेंगे।“ कहकर उन्होंने विदा ली।

मंगला को अपनी सहेली की पढ़ाई छूटने का दुख तो था लेकिन यह भी खुशी थी कि उसे इतना अच्छा घर बार मिला है। मंजू ने भी अपने पिता के घर पर सबको इस रिश्ते से खुश देखकर अपने दिल को तसल्ली दे दी थी।
वैसे उसने आगे पढ़ाई का विचार भी छोड़ ही दिया था क्योंकि उसे पता था शायद ही कोई आगे पढ़ाई करवाए इसलिए अपने सपनों को उसने अपने सीने में दफन कर लिया।
2 महीने बाद ही मंजू की शादी समीर से हो गयी। शादी में उसके ससुराल वालों ने उसे काफी गहने दिए। यहां तक की उन्होंने मंजू के पिता से किसी भी तरह का दान दहेज लेने से साफ मना कर दिया। समीर देखने में बहुत ही आकर्षक
व खूबसूरत नौजवान था। सब मोहल्लेवाले व रिश्तेदार मंजू व मंजू के पिता की किस्मत की दाद दे रहे थे।

ससुराल में आज मंजू का पहला दिन था। उसकी सास ने अपनी बहू का बहुत ही भव्य स्वागत किया। वह तो मंजू की
बलाएं लेती ना थक रही थी। साथ ही रिश्तेदार व पड़ोसी भी उसके रूप रंग की बहुत प्रशंसा कर रहे थे।
सबकी बातें सुन व अपनी सास का प्यार देख, मंजू मन ही मन अभिभूत थी।
मुंह दिखाई व अन्य रस्मों से निपटते हुए रात हो गई। मंजू की जेठानी व नंनदो ने हंसी ठिठोली करते हुए, उसे उसके कमरे तक पहुंचाया।
मंजू शरमाई सकुचाई सी अपने पति का इंतजार करने लगी । यह इंतजार तो वह 2 महीने से कर रही थी क्योंकि रिश्ता
होने के बाद कभी भी समीर ने उसे फोन नहीं किया था। आज वह जी भरकर, उससे शिकायत करने वाली थी। हां, प्यार भी!
अपने मधुर मिलन को सोच सोच कर वह मन ही मन कभी शर्माती और कभी खुश होती।
काफी देर हो गई थी लेकिन समीर अभी तक नहीं आया था। अब तो मंजू को नींद भी आने लगी थी क्योंकि शादी की तैयारियों के कारण वह कई दिन से ढंग से सो नहीं पाई थी।
घड़ी में देखा 12:00 बज रहे थे। उसके मन में अनेक आशंकाएं आ जा रही थी। फिर खुद ही उन आशंकाओं को एक तरफ झटक, अपने आपको तसल्ली देती कि शायद अपने दोस्तों में घिरे हो इसलिए आने में देर हो रही होगी।

थोड़ी देर बाद ही उसे दरवाजे पर किसी के आने की आहट सुनाई दी। उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा। देखा तो सामने समीर ही था। उसे देखते ही उसका सारा गुस्सा जाता रहा। वह उसे कनखियों से निहार रही थी। हां, सच ही तो सब कहते थे कि बहुत सुंदर जोड़ी बनाई है हम दोनों की भगवान ने। हां, ऐसा ही जीवन साथी तो मैंने सोचा था।
हां, यही तो उसके सपनों का राजकुमार है!

धीरे धीरे समीर उसी ओर बढ़ने लगा। देख कर उसकी धड़कन तेज हो गई लेकिन यह क्या! वह उसके पास ना आकर पास पड़े सोफे पर जाकर बैठ गया।
मंजू को बहुत अजीब लगा। उसने गौर से समीर की ओर देखा तो वह उसे कुछ चिंतित दिखाई दिया। ऐसा लग रहा था, वह किसी पशोपेश में हो।
एक बार फिर से मंजू के मन में आशंकाओ ने सिर उठाना शुरू कर दिया।
बहुत देर तक कमरे में सन्नाटा पसरा रहा। मंजू के सब्र का पैमाना टूटता जा रहा था। आखिर बात क्या है ! समीर कुछ बोलता क्यों नहीं!
सोचते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गए। तभी उसे समीर की आवाज सुनाई दी।
“मैं, आपसे कुछ कहना चाहता हूं। देखो बुरा मत मानना लेकिन मैं साफ-साफ बता देता हूं कि तुम्हारा मेरा रिश्ता दुनिया की नजरों में पति-पत्नी का है लेकिन मैं तुम्हें पत्नी का दर्जा नहीं दे सकता। मैं किसी और से प्यार करता हूं और उसी को अपनी जीवनसंगिनी के रूप में देखता हूं।“

यह सुनकर मंजू को ऐसा लगा कि जैसे किसी ने पिघला हुआ सीसा उसके कानों में डाल दिया हो। उसकी सारी खुशियों को पल भर में ही आग लग गई।
उसका मन कर रहा था, जोर-जोर से चीखे और उससे पूछे कि जब तुम्हे, मुझे पत्नी रुप में अपनाना ही नहीं था तो शादी कर मेरी जिंदगी बर्बाद क्यों की लेकिन संस्कारों ने उसको ऐसा करने से रोक दिया। उसने बुझे स्वर में उससे पूछा “फिर तुमने मुझसे शादी क्यों की!”

“मां के कहने से! मां ने धमकी दी थी, अगर मैं उनकी पसंद की लड़की से शादी नहीं करूंगा तो वह जान दे देंगी।“

“अब मेरा क्या!” मंजू के इस सवाल पर समीर मौन हो गया। पूरी रात दोनों ने आंखों में ही काट दी।

सुबह मंजू की सूजी हुई आंखें और उनमें दिख रहे अनेक अनगिनत सवाल रात की कहानी बयां कर रहे थे।
मंजू को देखते ही उसकी सास सब कुछ समझ गई लेकिन घर में रिश्तेदारों की भीड़ होने के कारण ना मंजू ही कुछ कह पा रही थी और ना उसकी सास अपनी बात रख पा रही थी।
अपनी मां को देखकर समीर उनसे नज़रें चुराकर निकल गया।
दोनों को इंतजार था, रिश्तेदारों के जाने का। शाम होते होते सभी रिश्तेदार विदा हो गए।
अब घर में मंजू व उसकी सास ही थे। समीर सुबह का निकला हुआ, अब तक ना लौटा था।
मंजू चुपचाप अपने कमरे में बैठी हुई थी। उसकी सास उसके लिए चाय लेकर आई और उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोली “ पता है मुझे बहू, तेरा मन मुझे धिक्कार रहा होगा। बद्दुआएं निकल रही होगी तेरे मन से मेरे लिए लेकिन ये सब करना मेरी मजबूरी थी!”
“मांजी, मुझे अपने घर से ऐसे संस्कार नहीं मिले, जो अपने बड़ों का अपमान करना सिखाए लेकिन एक बात मैं पूछना चाहूंगी, ऐसी क्या मजबूरी थी। जो आपने एक लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दी। आपके बेटे ने मुझे पत्नी मानने से इनकार कर दिया। बताइए मैं कहां जाऊं। मेरे पिता को पता चलेगा तो वह जीते जी मर जाएंगे !” कहते हुए मंजू की आंखों से टप टप आंसू गिरने लगे।
“तू कहीं नहीं जाएगी बेटा, तू इसी घर में रहेगी। यह तेरा अपना घर है ।“
“लेकिन किस हक से रहूं, मैं यहां पर ! बताइए आप मुझे! जिसकी पत्नी बनाकर मुझे आप लाए थे। वह तो मुझे अपनी पत्नी मानता ही नहीं!”
“बहू, अभी तू मेरी बेटी की हैसियत से यहां रह। थोड़ा सब्र रख। तुझे अपना पति जरूर मिलेगा। वह अभी रास्ता भटक गया है लेकिन मुझे पता है, तेरा धैर्य और प्यार उसे सही रास्ते पर ले आएगा। “
“लेकिन कैसे मांजी! प्यार तो वह किसी और से करता है ! फिर आपने उससे ही अपने बेटे की शादी क्यों नहीं कर दी।
आपके एक गलत फैसले ने तीन जीवन बर्बाद कर दिए!”

“बहू , वह प्यार करता है उससे लेकिन वह लड़की नहीं! अगर वह लड़की सच में उससे प्यार करती तो मुझे उससे समीर की शादी करने में कोई परहेज ना था। मुझे अपने बेटे की खुशियों से बढ़कर कुछ नहीं। लेकिन उसे समीर से नहीं समीर की दौलत से प्यार है। उसने समीर को अपने झूठे प्रेम के जाल में फंसा लिया है और यह पगला!!! उसकी चालबाजी को प्यार समझ बैठा है। बहुत समझाया मैंने लेकिन यह मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं था। तब मुझे बस यही रास्ता सही लगा।। क्योंकि अगर एक बार समीर उससे शादी कर लेता तो मैं अपने बेटे को उसके चंगुल से कभी नहीं बचा पाती। तुझसे शादी हो जाने के बाद वह उससे शादी नहीं करेगा।
झूठ की उम्र लंबी नहीं होती। एक ना एक दिन जरूर उससे पर्दा उठता है। तू भी विश्वास रख। एक दिन उस लड़की के झूठे प्रेम का पर्दाफाश जरूर होगा और वह समय जल्द ही आएगा। तब तक मेरी तरह तू भी सब्र रख।
यह मां तुझसे अपने बेटे के जीवन की भीख मांगती है। उसे बर्बाद होने से बचा ले। यहीं रुक जा। बेटा, तू ही उसे सही राह दिखा सकती है।“ मंजू की सास उसके सामने हाथ जोड़कर गिडगिडाते हुए बोली
मंजू आगे कुछ ना बोल सकी। बोलती भी क्या, उस मां की बेबसी के आगे! एक दिन में ही उसे अपनी सास से मां जैसा
लगाव हो गया था और वह उनका दिल नहीं तोड़ना चाहती थी। वैसे भी इस घर को छोड़कर जाने का अर्थ था ,अपने पिता को समय से पहले मौत के मुंह में धकेलना इसलिए उसने अपनी किस्मत से समझौता कर लिया और अपनी सास की बात मान चुप्पी साध ली।
क्रमशः
सरोज ✍️