मीरा को घर छोड़ने के बाद,
स्वप्निल ने एक कॉल लगाया,
फिर तुरंत कट कर दिया।
कुछ देर इंतजार किया,
फिर वही नंबर लगाया।
सामने से पहली घंटी में तुरंत फोन उठाया गया। " हैलो।"
" आप सोएं नही अब तक ? ११ बज चुके है।" स्वप्निल ने पूछा।
" नही। हम इंतजार कर रहे थे।"
" आपको पता था मैं कॉल करूंगा। आपने फिर से मेरे पीछे जासूस छोड़े।" स्वप्निल ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा।
" जब आपका इकलौता आपसे रूठा हूवा हो। तो किसे नींद आएगी ?"
" पा..... सच में इतने सीरियस।" स्वप्निल ने मुस्कुराते हुए कहा।
" हा हा हा …..... मतलब हमारे जासूस सच कह रहे थे। तुम्हारा गुस्सा उतर चुका है। बताओ कैसे हो तुम ? इतने दिनो बाद याद आई। इतना गुस्सा अपने बाप पर।" स्वप्निल के पिता ने पूछा।
" बाप पर नहीं। अपने आप पर था वो गुस्सा। मुझे माफ कर दीजिए। इतने दिन हिम्मत नही जुटा पाया, आपसे बात करने की।" स्वप्निल।
" यहीं तो समझे नही तुम। बच्चों को माफी मांगने की जरूरत नही होती। आप लोगो को बस अपने माता पिता को एक बार पुकारना है। फिर देखिएगा, हम तुरंत आप के लिए वहा होंगे।" उसके पिता की आखों में आसूं थे।
" अगर आपको ऐसे ही इमोशनल डायलॉग देने है। तो मैं फोन रख देता हु, फिर आप आराम से रो लिजिए।" स्वप्निल।
" तो मतलब बात सही थी। " स्वप्निल के पिता ने कहा।
" कौनसी बात ?" स्वप्निल।
" यही, के तुम्हारा दिल तुम्हारे पास नही है। वरना अपने पिता से ऐसी बाते भला कौन करता है?" मिस्टर पाटील।
" शीट..... वाउ। आप बिलकुल नहीं बदले। " स्वप्निल।
" हम तो कभी नही बदले थे बच्चे। तुम बदल गए थे। लेकिन हमे अपनी परवरिश पर पूरा भरोसा था की तुम जरूर वापस आओ डीगे।" मिस्टर पाटील।
" हा सही कहा। अब जब आपसे बात कर रहा हूं, तो लगता है मुझे ही कुछ हों गया था।" स्वप्निल।
" हा..... आप पर चुड़ैल का साया था। अब उतर गया।" मिस्टर पाटील।
" पा.... आप भी ना" स्वप्निल ने मुस्कुराते हुए कहा।
" ठीक है। मज़ाक छोड़िए। बताएं किसी खास काम से कॉल किया ?" मिस्टर पाटील।
" आपके जासुसोने काम नही बताया? " स्वप्निल।
" बताया। लेकिन हम अपने बेटे के मुंह से सब जानना चाहेंगे।" मिस्टर पाटील।
" आपका खाना हो गया ?" स्वप्निल।
" अरे तुम बात क्यों बदल रहे हो।" मिस्टर पाटील।
" हा हा .... बात नही बदल रहा। सच मैं पूछ रहा हूं।" स्वप्निल।
" हा हो गया। दस बजे ही खा लिया था और तुमने ?" मिस्टर पाटील।
" अभी बैठा हूं। खाना खाने आइए।" स्वप्निल।
" मुझे अब भी समझ नही आता, तुम्हे उस छोटी सी कंपनी में काम करने की जरूरत क्या है? ना खाने का वक्त , ना सोने का । तुम यहां आ जाओ। अपनी मां के हाथो का गरम गरम खाना खाओ। गाडियां है, दोस्त हैं। घूमो, मज़ा करो। हमारी सात पुश्ते बैठ कर खाएं इतना कमाया है तुम्हारे दादाजी और पिता ने। फिर भी तुम्हे अपनी पहचान चाहिए।" मिस्टर पाटील।
" आप ही का बेटा हु ना। आप बैठे क्या दादाजी की दौलत के सहारे ? मैं कैसे बैठ जाऊं। और वैसे भी अब मुझे आपकी दौलत चाहिए किसीको अच्छा खासा सबक सिखाना है।" स्वप्निल।
" कौन है वो ? मुझे नाम और एक तस्वीर भेज दो। आगे मैं संभाल लूंगा।" मिस्टर पाटील।
" हा हा हा ..... बिल्कुल नही। अगले हफ्ते मैं अपने दोस्तो के साथ एक शादी के लिए बाहर जा रहा हूं। लौटते वक्त, घर पर रुकूंगा। मेरे साथ सारे दोस्त होंगे। आप बस सब अरेंज कर के रखिए और मुझे मेरा कमरा चाहिए। अगर आपने उसे बेच दिया होगा तो आप से दस गुना ज्यादा कंपनसेशन लूंगा।" स्वप्निल।
" डील तो कर रखी थी, पर तुमने वक्त पर कॉल कर दिया। चलिए डील कैंसल कर देंगे।" मिस्टर पाटील।
" पा..... आगे की बात आपसे आकर करूंगा।" स्वप्निल।
" मां से बात करनी है ?" मिस्टर पाटील।
" अभी नहीं। वो आपसे भी आगे है। अगले हफ्ते आ रहा हु, सुनकर कल के कल मेरा सामान मंगवा लेंगी। अभी मैं किसी इमोशनल अत्याचार के मूड में नही हु। उन्हे सरप्राइज दूंगा आने के बाद। सो जाइए अब। अपना और मां का खयाल रखिए। बाय।" स्वानिल।
" तुम भी अपना ध्यान रखना। अगले हफ्ते मिलते है।" मिस्टर पाटील।
फोन रखते ही, मिस्टर पाटील को पीछे से किसीने आवाज लगाई।
" सुनिए जी, इतनी रात किसका फोन आया था आप को ?" मिसेज पाटील ने अपने पति से पूछा।
" आपकी सौतन आ रही हैं, अगले हफ्ते। यही बताने के लिए उसने कॉल किया था सरकार।" मिस्टर पाटील।
" हा हा हा। आप भी ना। मतलब नही बताना तो ठीक है। पर ऐसा मज़ाक।" मिसेज पाटील ने मिस्टर पाटील के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। " सोने चलिए।"
" आप चलिए मैं आता हु।" मिस्टर पाटील ने अपनी पत्नी को भेज किसीको कॉल लगाया। " हैलो। हा मेरे बेटे का कॉल आकर गया। जरा पता कीजिए किसकी इतनी हिम्मत हुई की उन्हे परेशान करने की ?"
" हा वो अगले हफ्ते आएगा। लेकिन उसे पता मत चलने देना की हम किसी चीज की जांच कर रहे हैं। उस से दूर रह कर पता करो। हा। गुड नाईट।"
मिस्टर पाटील ने फोन रख दिया।
दूसरे दिन मुंबई में,
" मुझे सच बता दें, तू उनसे कब कब बात करता है ? " स्वप्निल ने समीर से पूछा।
" अरे जब कभी भी तुझे उनकी आवाज सुननि होती है तब। " समीर।
" उसके अलावा कभी तूने खुद से कॉल नही किया?" स्वप्निल।
" बिल्कुल नही।" समीर ने कहा। " बल्कि वो कभी कभी मुझे फोन करते है। तेरी तबियत पूछने। अजीब हो हा दोनो। हर महीने मुझसे फोन करवाते हो पर कभी खुद से एक दूसरे को कॉल नही करेंगे।"
" ह.... अब तुझे हर महीने कॉल करने की जरूरत नही है। मैने बात की उनसे।" स्वप्निल ने अपने सामने पड़ी फाइल बंद करते हुए कहा। " मैं मीरा को किसी किम्मत पे छोड़ने वाला नही हूं समीर। उसके लिए अपनी सारी ताकत लगा दूंगा।"
स्वप्निल की बात सुन समीर को अचंभा हुवा ।" एक बात बता, तू उसे लेकर इतना सीरियस कब हुवा ?"