वर्षा ऋतु का सुहावना समय था। आकाश में काले काले बादल छाए हुए थे 1 पपीहा पीयू पीयू की पुकार कर रहा था। मोर अपने सुंदर पंखों को फैला कर मस्त होकर नाच रहे थे। प्रकृति अपने पूर्ण यौवन में दिखाई दे रही थी। चारो ओर फैली हुई हरियाली ऐसी लग रही थी मानो प्रकृति रुपी नायिक हरे रंग की चुनरी ओढ़ कर प्रिय मिलन की प्रतीक्षा कर रही हो । ऐसे सुहावने मौसम में भला कौन अपने प्रियतम की याद में न खो जाएगा।
लालिमा भी जो झरोखे में बैठी प्रकृति के मनमोहक दृश्य का आनंद ले रही थी अपने प्रियतम की याद में खो गई। अपने प्रिय की स्मृति को दिल में संजोए वह न जाने कब अपने अतीत के आगोश में समा गई। उसे अपना वो बीता हुआ समय याद आ रहा था जब उसने पहली बार यौवन की देहली पर कदम रखा था और वह अनजाने में है अपने रूप सौंदर्य के प्रति जागरूक हो उठी थी अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद उसने व्याख्याता पद पर नौकरी प्रारंभ कर दी थी। यदि उसके माता-पिता बेटी की नौकरी के पक्ष में नहीं थे परंतु लालिमा ने बचपन से ही एक आदर्श शिक्षक का बनकर नई पीढ़ी को सद्विचार एवं शब्द व्यवहार की शिक्षा देने के सपने देखे थे। आता उसने जैसे तैसे माता पिता को अपनी नौकरी के लिए राजी कर लिया और व्याख्याता पद पर एक राजपत्रित अधिकारी के रूप में कर्तव्य आरुढ हो गई । उन्हें दिनों उसकी शादी की बातें चलने लगे परंतु शीघ्र ही बड़े ही आदर्शवादी विचारों वाले बिना लेनदेन के शादी करने के इच्छुक एक रिटायर्ड अधिकारी ने लालिमा की योग्यता व अच्छी नौकरी को देखकर अपने योग्य पुत्र के लिए उसका हाथ मांग लिया। लालिमा के माता पिता यह सोच कर बहुत खुश थे कितने महान विचारों वाले व्यक्ति के घर में पहुंच कर हमारी बेटी बहुत ही सुख से रहेगी।
लालिमा को अपने जीवन का सबसे बहुमूल्य दिन अभी भी भली-भांति याद है जब वह एक ही रात में शादी की सारी रस्में पूर्ण कर अपने दिल में ढेर सारे अरमान लिए प्रातः भोर की पहली किरण के साथ ही ससुराल जा पहुंची। सास ससुर जेठ जेठानी नंद नंदोई देवर आदि से भरपूर घर को देखकर वह कितने खुश थी उसके दिल में कितनी उमंगे थी उन सब का प्यार पाने के लिए। ससुर जी की ओर से वह पूर्ण आश्वस्त थी क्योंकि उसके ससुर बहू की कमाई न लेने के आदर्श का बयान शादी के पूर्व ही काफी कर चुके थे अतः वह अपने कमाए हुए रुपयों को देवर ननंद एवं जेठानी देवरानी आदि पर खर्च कर इन सब का प्यार पाने के सपने देख रही थी परंतु यह क्या? शादी के पहले महीने से ही वेतन आने की पूर्व से ही सास ससुर आदि सभी की आंखों में रुपयों को पाने की ललक दिखाई देने लगी। और देखते ही देखते छोटी-छोटी बातों के लिए देवरो और सास के व्यंग बाण सुनाई पड़ने लगे। सास ससुर जो पहले से ही वास्तविकता से अधिक रुपयों को पाने की आशा लगाए बैठे थे अपनी उम्मीद से कम वेतन को पाकर मन मसोसने लगे और व्यंग बाण का क्रम बढ़ता ही गया । 1 वर्ष भी नहीं बीत पाया था किं ससुर जी ने खुले तौर पर अश्लील गालियों के प्रहार प्रारंभ कर दिए। बेचारी लालिमा के कोई भाई भी तो ना था जो कभी ससुराल में उससे मिलने आता या उसकी तरफदारी में उसके ससुर को कुछ समझा पाता। हां जब कभी मायके जाकर अपने माता-पिता से सुख दुख की बात कर मन हल्का कर लिया करती थी। परंतु उसके पिता को उसके ससुर को समझाने के बदले में गालियां खानी पड़े यह लालिमा को कदापि मंजूर नहीं था । बहु होने के नाते ससुर के अप शब्दों को सुनना उस के भाग्य की विडंबना है परंतु उसके माता-पिता को कोई अपशब्द कहे यह उसको स्वीकार न था
नौकरी करते समय घर का काम करने के साथ ही ससुर की अब शब्दों को सुनने कि उसे आदत सी बन गई थी उसे आज भी याद है जब उसके पति नौकरी की तलाश में दिल्ली गए हुए थे और उसे मायके छोड़ दिया गया था। बहुत दिनों तक पति के कुशल समाचार ना पाकर जब वह ससुराल में पति की कुशलता जाने पहुंची तब ऐसा ही बरसात का एक दिन था । वहां पहुंचकर जब से पता चला कि उसके पति तो आकर , 2 दिन रह कर पुनः वापस चले गए हैं लालिमा हतप्रभ सी रह गई उसने पहली बार महसूस किया कि वह बिल्कुल अकेली है। वह अंदर से टूट सी गई। पति ने कुशल समाचार क्यों नहीं भेजा? वह आकर भी मुझसे क्यों नहीं मिले? 1 वर्ष से उनकी ट्रेनिंग आदि का पूर्ण खर्च मेरे द्वारा बहन किए जाने पर भी उन्होंने नौकरी की खुशखबरी मुझे देना उचित क्यों नहीं समझा? आदि विभिन्न विचारों में खोई हुई लालिमा के कानों में अचानक ससुर जी की तेज आवाज सुनाई दी जो घर की नौकरानी को लालिमा को घर से निकालने का आदेश दे रहे थे । नौकरानी बहू को घर से निकालने के आदेश का पालन करें उससे पूर्व ही लाल मात्र इलाज बचाती हुई बरसते पानी में घर से बाहर निकलने पर मजबूर थी। उसके पैरों तले जमीन खिसक रही थी। वह आंसू बहाती हुई सड़क पर आ गई और अपने आंसुओं को दुनिया की नजरों से बचाने के लिए मुंह पर अवगुंठन का सहारा ले मायके की ओर चल दी।
एक कुलीन घर की पुत्री व वधू होने के कारण लालिमा अपने दिल के अनेक धावों को अपने अंदर ही छुपाए रहती और घर के बाहर व सहेलियां आदि के द्वारा पूछे जाने पर सदैव ससुराल वालों की प्रशंसा ही करती परंतु यदा-कदा उसके ससुर जी उसके विद्यालय में भी पहुंच जाते और प्राचार्य आदि से उसकी बुराई करने से नहीं चूकते और तब स्टाफ सदस्य भी एक और ससुर द्वारा बहू की बुराई और दूसरी ओर बहू द्वारा ससुर तथा ससुराल वालों की प्रशंसा करना इस विरोधाभास से हतप्रभ रह जाते विरोधाभास के इसी क्रम के चलते लालिमा ने मायके में ही एक पुत्री व बाद में एक पुत्र को जन्म दिया। मायके में रहते हुए लालिमा को पति के आवागमन वह प्यार का लाभ तो मिलता रहा परंतु बाबा दादी को अपने पोते पोतन को देखने की कोई लालसा ना रही । पति की नौकरी समीपस्थ स्थान पर होने के कारण लालिमा को पति के पास जाकर रहने के लिए शुभ अवसर प्राप्त होते रहे। बड़ों की ओर से चाहे कितनी भी उपेक्षा क्यों ना हो छोटों को अपने कर्तव्य नहीं भूलना चाहिए यही सोचलालिमा मिमा एवं बच्चों के मुंडन व कथा आदि के शुभ अवसर पर ससुराल वालों को बुलाना ना भूली । उसे खुशी इस बात की थी किंतु अवसरों पर ससुर को छोड़कर अन्य सभी सदस्य सम्मिलित हुए और यथा योग्य वस्त्र आभूषण भेंट आदि पाकर खुश भी हुए।
प्लाज्मा की पति भी धीरे-धीरे वास्तविकता से परिचित होने लगे थे । वे अपने पिता के सामने उनकी अनुचित बातों पर भी एक आज्ञाकारी पुत्र के समान बोल तो नहीं पाते थे परंतु मन ही मन कुंठित रहने के कारण शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार अवश्य रहने लगे थे। सत्य का पक्ष लेने पर उन्हें भी अनेक व्यंग वालों का प्रहार सहना पड़ता था। ऐसी ही एक भयानक रात आज भी स्मृति पटल को छू जाती है जब लालिमा के पति ने उसे अपने घर ले जाने का साहस जुटाया था रात्रि के 10:11 बजे का समय था और पिताजी ने बहू को घर से बाहर निकालने का आदेश दे दिया था पति द्वारा इसका विरोध करने पर उन्हें पिता भाई यहां तक किं बहनोई तक के अनेक व्यंग बाणों को सहना पड़ा था। बेशर्म निर्लज्ज जोरू का गुलाम और न जाने कितने ही विशेषण से सुशोभित कर रेल से कट मरने के निर्देश प्राप्त हो गए थे। परंतु उस दिन सौभाग्य वश सासु जी ने यदि उनका साथ ना दिया होता तो शायद आधी रात को ही उन दोनों को घर से प्रस्थान करना पड़ता।
परिस्थितियां बिगड़ती ही चली गई 1 दिन अनायास पति की बीमारी वह अन्य परिस्थिति वर्ष नौकरी छोड़ देनी पड़ी पति मानसिक रूप से बहुत परेशान थे इन परिस्थितियों में भी वे पुनः अपने माता पिता के पास ही रहने हेतु व्याकुल थे। शायद में मां-बाप के प्यार की शीतल छाया में मानसिक शांति पा लेना चाहते थे। परंतु लालिमा को पुनः उन्हीं बदनसीब परिस्थितियों से गुजारना पड़ेगा यह सोच कर परेशान थे। पति को देवता के समान मानने वाली लालिमा पति के सुख में ही अपना सुख मानती। इसी कारण पति की नौकरी के अभाव में स्वयं का पूरा वेतन ससुर को देने का आश्वासन देकर पति के साथ घर लौटने को तैयार हो गई परंतु धन लोलुप ससुर को उसमें भी संतुष्टि नहीं हुई। बेटे की बिगड़ी हुई मानसिकता का तो जैसे उन्हें ध्यान ही ना था। नौकरी के अभाव के कारण पिताजी के अनेक व्यंग बाण का प्रहार लालिमा बॉस की पत्ती को सहना पड़ता। बड़े भाई के बच्चे तथा अपने बच्चों के बीच में पिता के भेदभाव पूर्ण व्यवहार को स्वयं प्रत्यक्ष देखकर पति और भी अधिक विचलित हो उठते। उनकी शारीरिक और मानसिक बीमारी बढ़ने लगी लालिमा भी सिरदर्द से परेशान रहने लगी। लालिमां के दहेज का सामान भी बेच दिया गया अचानक एक दिन ससुर द्वारा लालिमा को घर की किसी भी वस्तु से हाथ ना लगाने के निर्देश दे दिए गए। बहू भोजन में जहर आदि मिलाकर ना खिला दे इस आशंका के कारण रसोई घर में काम करने का भी अधिकार छीन लिया गया।
ससुर की आज्ञा के सामने सास भी लाचार थी। भोजन बनाने का अधिकार जिम जाने पर बहू भला खाना कैसे खाती? 15 दिनों तक लालिमा ना खाना नहीं खाया। ससुर जी बहू को देखते ही गालियों की बौछार प्रारंभ कर देते। अधिकांश समय लालिमा को अपने कमरे के कोने में बैठ कर ही रिपीट करना पड़ता। धीरे धीरे लालिमा को अपने बच्चों से भी कुछ कहने के अधिकार छिनते हुए प्रतीत हुए। जीवन के उस भयानक दिन को लालिमा बुलाए भी नहीं भुला पाती। जब अपनी बेटी को पढ़ने के लिए कहते समय उसे ससुर की गरजती हुई आवाज सुनाई पड़ी और बहू को नग्न कर घर से निकालने का आदेश देते हुए वह कमरे में घुसाने का प्रयास कर ही रहे थे की उसी 4 वर्षीय अबोध बालिका ने दरवाजे में खड़े होकर उन्हें अंदर आने से रोक दिया जबकि पति यह साहस न जुटा सके। लालिमा का नारीत्व कांप उठा और जोर से चीख कर बेहोश हो गई। इन्हें विकट परिस्थितियों में लाचार होकर उन पति पत्नी को घर छोड़ना पड़ा ।
घर की इन विषम परिस्थितियों तथा पति की नौकरी छोड़ जाने की लाचारी दें लाली मां को पागल सा बना दिया था । लालिमा पूर्णत किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुकी थी। लालिम के जीवन में संकट की घड़ी में यह धैर्य और साहस की परीक्षा का समय था। इस परीक्षा की घड़ी में लालिमा ने अपने धैर्य व कुशलता का परिचय दिया वह स्वयं भी तो नौकरी करती थी अतः उसकी गृहस्थी की गाड़ी सकुशल चलती रहे उसने पति को कभी इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वह नौकरी छोड़े हुए हैं परंतु अंदर ही अंदर घुटने के कारण दोनों बीमार रहने लगे थे। लगभग 5 वर्ष की लंबी अवधि व्यतीत करने के बाद लालिमा की पत्ती को अच्छी नौकरी मिल गई जिससे वे संतुष्ट है परंतु दुख इतनी आसानी से मानव का साथ नहीं छोड़ता। जब उन्होंने सोचा कि दुख का समय शायद यकीन हो चुका है उसी समय अचानक लालिमा को डॉक्टर ने कैंसर होने की संभावना से अवगत कराया परंतु शायद बालकों के भाग्य से कैंसर प्रारंभिक स्तर पर होने के कारण बड़ा ऑपरेशन कर उस हिस्से को पूरा निकाल देने से खतरा टल गया।
जीवन में समय कितनी तेज गति से व्यतीत हो जाता है पता ही नहीं लगता। लालिमा भी हर समय यही सोचती रही कि कब दुखों का अंत होगा और वह जिंदगी को खुशी खुशी जी सकेगी और इसी प्रतीक्षा में एक बार मौत भी उसके दरवाजे से लौट गई। जीवन में जब कुछ मानसिक शांति का अहसास हुआ और लाली मान ने जीवन को नए सिरे से जीना चाहा तो उसने देखा की जिंदगी एक नया मोड़ ले चुकी है। उसके पति जीवन की इस ऊहापोह से निकलकर ईश्वर चिंतन और ध्यान का मार्ग अपना चुके हैं शेष समय सद ग्रंथों के अध्ययन में व्यतीत कर देते हैं। परंतु गृहस्थ धर्म का पालन करती हुई लालिमा पति व बच्चों के प्रति अपने कर्तव्य से कैसे मुंह मोड़ सकती है। एक छत के नीचे पति के साथ रहती हुई भी बिरयानी जीवन व्यतीत करने वाली लालिमा अपने कर्तव्य पालन नहीं सुख शांति ढूंढने का प्रयास करती रहती है क्योंकि वह जानती है कि उसके ढेर सारे आंसू भी पति को आध्यात्मिक पथ से विचलित न कर सकेंगे और फिर पति के सुख नही तो उसका सुख है।
हां पूरा हो गया आप पढ़ो करेक्शन करके भेज दे अचानक जैसे अतीत से लालिमा वर्तमान में लौट आई। मैं भूल ही गई कि वह इस झरोखे में न जाने कब से बैठी हुई है। उस दिन देखा कि जिस वर्षा का आनंद लेने वह झरोखे में बैठी थी बरसात तो न जाने कब की बंद हो गई पर उसके नैनो से बरसात अभी भी लगातार हो रही थी।
इति