उजाले की ओर ----संस्मरण
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सस्नेह नमस्कार मित्रों
देख रहे हैं कैसा समय है ! आज के युग में एक हाथ दूसरे पर भरोसा नहीं कर पा रहा |
आख़िर क्या कारण है? हम सभी इस दुनिया के बाशिंदे हैं ,हमें इसी समाज में रहना है ,हमें इन्हीं परिस्थितियों में भी रहना है ---फिर ?
प्रश्न यह है कि हम सहज क्यों नहीं रह पाते ?क्योंकि एक होड़ हमारे भीतर पनपती रहती है |
हम भी दूसरे के दृष्टिकोण से देखने लगते हैं|
कोई हर्ज़ नहीं ,दूसरे की बात पर ध्यान देना यानि उसका सम्मान करना है |
यदि कोई हमें सलाह दे रहा है तो हमारा हितैषी ही होगा किन्तु सलाह देते समय क्या वह हमारी सभी भीतरी परिस्थितियों से भिज्ञ है ?
वह अपनी सोच ,अपने अनुभवों ,अपने दृष्टिकोण के अनुसार सलाह देगा किन्तु अपने मस्तिष्क से काम न लेना भी तो बुद्धिमत्ता नहीं है |
नकल अथवा दूसरों के कथनानुसार हम इतना ही चल सकते हैं जो हमें परेशान न करे अथवा हमारी कुछ ऐसी हानि न कर दे जिससे हमें पछताना पड़े |
अरे भाई !कोई बुराई नहीं है किसी की सलाह में किन्तु हमें अपने रास्ते तो खुद ही चुनने होते हैं न !
बरसों से एक ही कॉलोनी में रह रहे हैं ,सब्जियों के कटोरे-कटोरियों का लेन -देन हो रहा है और अचानक रिश्तों में दरार आ जाए !
वो भी किसी बेकार सी ही बात पर !
दिल तो टूटता ही है ,भविष्य के लिए भी विश्वास की गुंजाइश कम रहती है |
उस दिन नीरा बड़ी परेशान थी ,काफ़ी दिनों से उसकी पंद्रह वर्षीय बिटिया बड़ा परेशान कर रही थी | कहने लगी ;
"दीदी ! आप ही समझाइए न डॉली को ,मेरा कहना तो मानती ही नहीं है |"
"क्यों ,क्या हुआ ?डॉली तो बड़ी प्यारी बच्ची है---"
"अरे ! दीदी ,थी जब थी प्यारी ! अब तो नाक में दम कर रखा है उसने !हर बात पर ज़िद करती है | आप तो जानते हैं विकास कितने स्ट्रिक्ट हैं लड़की के लिए !"
"क्यों ?केवल डॉली के लिए ?भाई के लिए क्यों नहीं ?" मुझे यह बात अच्छी नहीं लगी |
"अब दीदी ! वो तो लड़का है न !रात को घर देर में आए तो चलेगा न लेकिन ये तो----"
"क्यों चलेगा ?"
"विकास का कहना है कि लड़कियाँ घर के बाहर देर तक खेलती हुई अच्छी नहीं लगतीं --लड़कों का क्या --?"
"हम यहीं तो मर खा जाते हैं ,अपनी बेटियों को सुदृढ़ बनाने की जगह हम उन्हें कमज़ोर बनाते रहते हैं --"
"मिसेज़ जोशी भी कह रही थीं कि ज़माना कोई भी हो ,लड़कियों को तो भाई तमीज़ में ही रखना ठीक है ,सो मैंने डॉली को समझाने की कोशिश की पर वह तो मुझे उल्टे जवाब ही देने लगी |"
"कभी बेटे को भी समझाया है तुमने ?वो कितन बदतमीज़ हो गया है "मैंने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया |
"आप भी ऐसा कहती हैं दीदी --मेरी तो कुछ समझ नहीं आता --"वह सच में काफ़ी दुखी थी |
"यह कोई इतनी मुश्किल बात भी नहीं है जो तुम्हारी बुद्धि में नहीं आ रही --"मुझे वास्तव में उस पर खीज हो रही थी |
"मिसेज़ जोशी के कहने से तुमने बिटिया को दुत्कार दिया ,अपनी बुद्धि प्रयोग में नहीं ली --शिक्षित हो ,किसीकी बात उतनी ही मानो जो तुम्हें मन से ठीक लगे "
"पर विकास भी तो ---"
"तुम्हारी ड्यूटी है ,समझाओ उन्हें भी ----जब तक तुम खुद नहीं समझोगी तब तक किसीको कैसे समझाओगी ?"
"जब तक हम भाई-बहन को एक सी ही दृष्टि से नहीं देखेंगे ,तब तक मुश्किलें बढ़ेंगी ही ---"
नीरा की समझ में कुछ आया लेकिन मिसेज़ जोशी जिनके साथ उसका दिन-रात का उठना ,बैठना था --कटोरियों का आदान-प्रदान था,
वे बुरा मान गईं थी और उन्होने नीरा से बिलकुल बात करनी बंद कर दी थी |
नीरा इस बात से बहुत दुखी थी किन्तु उसे अपनी गृहस्थी,बच्चों को ठीक से आगे बढ़ाना था | उसने किसी की भी बेकार की बात पर ध्यान देना बंद कर दिया था |
एक दिन मुझसे बोली ;
"आज मैंने मिसेज़ जोशी को बहुत करारा जवाब दे दिया !"
"अरे! इतने रूखे बनने की भी ज़रूरत नहीं होती ---"
"नहीं ,दीदी ! पलटकर जवाब देना गलत बात है ,मैं समझती हूँ लेकिन जब लोग अपने बोलने की हदें भूलने लगें तब ----?"
मैं उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दे पाई |
आपकी मित्र
डॉ. प्राणव भारती