My Soil My Field - (Part - 4) in Hindi Moral Stories by ARUANDHATEE GARG मीठी books and stories PDF | मेरी मिट्टी मेरा खेत - ( भाग - 4 )

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मेरी मिट्टी मेरा खेत - ( भाग - 4 )




लगभग एक महीना बीत गया , तीनों को साहूकार के खेतों में काम करते हुए । पर घर में पैसों की बचत के नाम पर , सिर्फ दो सौ रुपए बचे थे । जिससे आज की महंगाई में, सिर्फ कुछ मिर्च मसाले और कुछ तरकारी ( सब्जी ) आ सकती थी । खैर, तब भी वो लोग मन लगा कर लगन से , काम कर रहे थे । और साहूकार , उनकी इसी लगन और मजबूरियों के चलते , खूब काम कराए जा रहा था । पर उनका मजदूरी का पैसा , नहीं बढ़ा रहा था।

एक दिन सुशीला के छोटे भाई का, उसके पास कॉल आया । फोन पुराने जमाने का खूब सारे बटनों वाला था । जिसमें हमेशा सुशीला को समझने में दिक्कत होती थी । खैर उसने फोन उठाया और अपने कान से लगा लिया । उसके भाई ने उसे प्रणाम कहा और उसका हाल चाल पूछा और कहा ।

सत्यप्रकाश ( सुशीला का भाई ) - जिज्जी ....., अपनी माधुरिया के लिए एक रिश्ता देखेन हैन । लड़का बहूते सुगुन और संस्कारी है । घरौ - बार ( घर - बार ) बहुते नीक है । अगर अपना का कही , तो बात चलाएं का उनखर से ...???

सुशीला ने जब उसकी बात सुनी तो उसे अपने घर की स्थिति - परिस्थिति से अवगत कराया। उसकी बात सुनकर उसके भाई ने कहा ।

सत्यप्रकाश - चिंता ना करा जिज्जी .....। अपने भनेंजन ( भांजी ) के शादी का खर्चा , हम खुद करब ।

सुशीला - लेकिन सत्या भाई ....., हम कइसन तुम्हीं येतना परेशानी मा डाली सकत हैन !!!! जबकि इ परेशानी हमार ही । तुम ना चिंता करा, जब हमरी बिटिया के भागे ( भाग्य ) मा होई , तब हुई जई ओकर ब्याह ।

सत्यप्रकाश - अइसन बोलिके , अपना का हमी पराया बनाए रहा है जिज्जी । मधुरिया हमरी भी बिटिया जैसी है । उकरे मामा होई के खातिर हम इतना तो करी सकत हैं । और दहेज वगेरह का चिंता न करा , उन्हीं कुछु नहीं चाहि । बाकी जो - जो, शादी - ब्याह मा लगी , सब हम करब ।

सुशीला - येकरा बारे मा , हमी तुम्हरे जीजा जी से बात करें का पड़ी ।

सत्यप्रकाश ( मुंह में चाशनी घोलते हुए ) - बिल्कुल जीज्जी...... , कर लिहा अपना के जीजा जी से बात । और हमका जल्दी बताया । का है कि लड़का वालन का , हम अपनी मधुरिया की तस्वीर दिखाई दिए हैन ।

सुशीला ने उसकी बात पर हामी भरी और रामलाल से इस बारे में बात की । रामलाल इस बात के लिए राजी नहीं हुआ । पर सुशीला के समझने पर वह किसी तरह राज़ी हो गया ।

पंद्रह दिन बाद , माधुरी की शादी थी । उसकी शादी के लिए रामलाल और सुशीला के पास पैसे नहीं थे । दोनों ही एक तरह से सत्यप्रकाश पर निर्भर हो गए थे। ये एक तरह से रामलाल के स्वाभिमान पर चोट थी , कि वह खुद से अपनी बेटी की शादी नहीं कर पा रहा था । पर परिवार की मर्ज़ी के आगे वह चुप था । खुद से कुछ देने के लिए , सुशीला ने अपने कान के सोने के बूंदे , मंगलसूत्र और उसकी शादी की बड़ी - बड़ी पायल, जो उसके बाबू जी ने उसे शादी में दी थी । वो सब उसने बेंच दिए और खुद नकली, छोटे - मोटे गहने पहन लिए । उन पैसों से सुशीला ने माधुरी के लिए कुछ कपड़े और कुछ चांदी के छोटे - छोटे गहने बनवाए । माधुरी को ये सब देख कर अच्छा तो नहीं लग रहा था , पर वह अपनी मां की ममता के आगे चुप थी ।

ख़ैर शादी का दिन आया । सत्यप्रकाश ने थोड़ी बहुत खाने - पीने का इंतजाम कर दिया था और घर की सजावट भी करवा दी थी । एक तरह से उसने ठीक - ठाक व्यवस्था कर दी थी लड़के वालों के लिए । लड़के वाले आए , वरमाला हुई , फेरे हुए , मांग भरी गई और मंगलसूत्र पहनाया गया। सब कुछ ठीक तरह से निपट गया । अब विदाई का समय आया । विदाई के समय सुशीला , माधुरी को घर की दहलीज से बाहर लाई । और माधुरी, अपने मां बाप भाई के गले लग कर खूब रोई । तभी लड़के के पिता ने देखा , कि दहेज के नाम पर उन्हें कुछ भी नहीं दिया जा रहा है । तो उसे बहुत गुस्सा आया । उसने वहीं खड़े रामलाल से कहा।

जगमोहन ( लड़का का पिता ) - इ सब का है रामलाल ?

रामलाल ( असमंजस की स्थिति में ) - काहे की, बात करी रहन हैन अपना के , समधी जी ??? हम कुछु समझे नाही ।

जगमोहन - समझना का है रामलाल ??? दिख ही रहा है सब कुछु। तुम अपनी बिटिया के ससुराल वालेन का , ना नीके से स्वागत - सत्कार किए हो और ना ही अपने दामाद का कुछु दिए हो । और दहेज के नाम मा , फूटी कौड़ी नहीं जुड़ी है तुम्हारे हाथ से, रामलाल । इ कैसी शादी निपटाए हो तुम पंचे???

रामलाल ( सत्यप्रकाश को देखकर ) - इ का कही रहन हैन , अपना का ??? हमार सार ( पत्नी का भाई , साले साहब ) कहीन रहें हैं , कि अपना के दहेज नहीं लेईहा ( लेंगे ) । फेर इ सब ......????

सत्यप्रकाश ( रामलाल की बात बीच में काटते हुए ) - इ का कही रहे हैं आप जीजा जी ??? हम कब अइसन कहे हैन? उल्टा हमरा जाने कितना खर्चा होई गवा है । और आप हम पर ही इल्जाम लगाए रहे हैन..... ।

सुशीला - कइसन बात करी रहे हैन तुम, सत्या भाई??? तुमहिन तो कहे रहन है , उ दिन फोनवा मा । कि सब खर्चा तुम करीहा , और लड़कवन वालेन का कुछ नहीं चाहि दहेज मा ।

सत्यप्रकाश ( साफ मुकरते हुए ) - नहीं जीज्जी , हम अइसन काहे कहब ??? हम अइसन कुछ नहीं कहें हैन ।

उसकी बात सुनकर , रामलाल और उसका पूरा परिवार हैरान था ।

जगमोहन - इ तुम ठीक नाहीं करी रहे हो रामलाल । हम तब तक तुम्हरी बिटिया का अपने घर की बहू ना बनाऊब, जब तक तुम तीन लाख रुपिया , हमरी हथेली में नहीं रखिहा ।

रामलाल ( जगमोहन के सामने हाथ जोड़ते हुए ) - इ का कही रहे हैं अपना का समधी जी ? हमरे पास इतना पैसा - कौड़ी नहीं है । अगर अपना के हमरी बिटिया का , अपन घर की बहुरिया नहीं बनईहा, तो हमरी बिटिया की ज़िन्दगी बर्बाद होई जई । हमरी इज्जत नहीं बचीहे, इ पूरे गांव - समाज मा । एकरे अलावा बताई हम का करी सकत हैन । इकरे अलावा , अपना के जो मागब, हम सब देई का तैयार हैन ।

रामलाल की बात सुनकर , सत्यप्रकाश जगमोहन के कान में कुछ कहता है । जिसे सुनकर जगमोहन के चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आ जाती है । जबकि माधुरी , आस भरी नजरों से अपने पति को देखती है, जिससे अभी - अभी उसकी शादी हुई थी । पर उसका पति माधुरी को देख कर मुंह फेर लेता है और अपने पिता को ये सब करने से ना ही रोकता ही और ना ही कुछ कहता है । जगमोहन रामलाल से कहता है ।

जगमोहन - अगर अईसन बात है , तो तुम अपने खेत का, हमरे बिटवा का नामे कर दया । हमका तुम्हरे खेत के जमीन के अलावा और कुछु नहीं चाहि ।

जगमोहन की बात जब , रामलाल और उसके परिवार ने सुनी, तो हतप्रभ होकर वे जगमोहन को देखने लगे । जबकि सत्यप्रकाश उनकी इस हालत पड़ मुस्कुरा रहा था । सच कहते हैं लोग , अपने पीठ पर छुरा घोपने वाला और कोई नहीं , बल्कि अपना ही होता है । क्योंकि अपनों को ही , हमारे सारे रहस्य , कमियां और खामियां पता होती हैं । जिसका फायदा किसी बाहर वाले से पहले , अपने ही उठाते हैं । सत्यप्रकाश ने जगमोहन को कहा था , कि वह खेत की मांग, दहेज के रूप में करे । फिर उस खेत का आधा हिस्सा जगमोहन का और आधा हिस्सा सत्यप्रकाश का होगा । यही सोच कर जगमोहन और सत्यप्रकाश उससे , उसकी खेत की जमीन , हड़पना चाहते थे ।

क्रमशः