My Soil My Field - ( Part - 3 ) in Hindi Moral Stories by ARUANDHATEE GARG मीठी books and stories PDF | मेरी मिट्टी मेरा खेत - ( भाग - 3 )

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मेरी मिट्टी मेरा खेत - ( भाग - 3 )





पानी में भीगने की वजह से अब रामलाल बुखार से तप रहा था । माधुरी और सुशीला ने उसे खाट पर लिटाया और रघु डॉक्टर को बुलाने चला गया । डॉक्टर अभी नया - नया गांव की लोगों की, परेशानियों को हल करने के लिए , भेजा गया था । रघु के साथ डॉक्टर आ गया और उसने रामलाल को चैक किया । उसने रामलाल को चैक करके सभी से कहा ।

मोहित ( डॉक्टर ) - क्या इन्हें कोई टेंशन.... , मेरा मतलब है कोई चिंता है क्या ? क्योंकि इन्हें बुखार सिर्फ बरसात में भीगने से नहीं हुआ है , बल्कि कुछ वजह इनका टेंशन भी है ।

सुशीला - का बताई डॉक्टर साहब ......, खेत की पूरी फसल बर्बाद होई गई है । ओकरे कारण ही , चिंता में हैं । और आज भीग गए हैं , तो नीके से स्वास्थ्य बिगड़ गा ( गया ) है इनका ।

मोहित ( रघु को एक पर्ची थमाते हुए ) - मैंने इसमें कुछ दवाई लिख दी है , सरकारी हॉस्पिटल के पास वाले मेडिकल स्टोर में, ये दवाइयां मिल जाएगी । आप जाकर अभी ले आइए ।

रघु - जी डॉक्टर साहब ।

रघु ने इतना कह कर, तुरंत अपनी सायकल उठाई , और गांव से एक किलोमीटर दूर बने, हॉस्पिटल के पास वाले मेडिकल स्टोर में चला गया । इधर मोहित, माधुरी और सुशीला से बातें कर रहा था । उसे माधुरी थोड़ी समझदार लगी । तो उसने माधुरी से थोड़ा साइड में आकर बात करने के लिए कहा । सुशीला को ये बात थोड़ा हजम नहीं हुई , पर बात रामलाल के स्वास्थ्य को लेकर थी । इस लिए उसने कुछ नहीं कहा । माधुरी मोहित के साथ सुशीला से थोड़ा दूर अपने कमरे में आयी । वहां आते ही मोहित ने माधुरी से कहा ।

मोहित - अंकल जी को, ये खेत को लेकर टेंशन कब से है , और क्या इसके अलावा भी कोई टेंशन है ?

मोहित की बात सुनकर माधुरी ने उसे , रामलाल के चिंताओं के सारे पहलू बता दिए । सब कुछ सुनने के बाद , मोहित ने कहा ।

मोहित - इतना सब आप लोगों के साथ हो गया है और उनका खेत भी उनके पूर्वजों का है । उस नाते इतना नुकसान होने के बाद , टेंशन लेना तो लाजमी है । लेकिन आपको उन्हें टेंशन लेने से रोकना होगा । क्योंकि टेंशन की वजह से उनका बीपी ( रक्तचाप ) बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है । अगर बीपी बढ़ा , तो उन्हें हार्ट अटैक का भी खतरा है । हार्ट अटैक का मतलब तो आपको पता होगा ना ....???

माधुरी - जी ...., पता है ।

मोहित - इस लिए उन्हें टेंशन से थोड़ा दूर हो रखिए । और उनकी दवाइयों का और भोजन का भी ध्यान रखिएगा ।

माधुरी - जी डॉक्टर साहब , हम पिताजी की सेहत का ध्यान रखेंगे ।

मोहित जब माधुरी की बातों से आश्वत हुआ , तो वह फिर से रामलाल और सुशीला के पास आ गया । और तब तक रघु भी दवाइयां लेकर आ चुका था । मोहित ने सारी दवाइयों को देने का समय, माधुरी और रघु को समझाया । और फिर एक दवाई खुद अपने आंखों के सामने रामलाल को दी । अब रामलाल की तबीयत पहले से कुछ ठीक थी । मोहित चला गया । पर अब रामलाल के घर में एक और चिंता की लकीर सभी के माथे पर घिर गई , जो कि रामलाल के स्वास्थ्य से रिलेटेड थी । पांच दिन लगातार बारिश चलती रही । और अब रही - सही उम्मीद भी टूटती सी नज़र आने लगी, खेत को दोबारा सही - सलामत देखने की । अब समस्या ये थी, कि घर में पैसा कैसे आएगा ??? अनाज कैसे आएगा ??? और घर के खर्चे , रघु की पढ़ाई का खर्च और सबसे बड़ी मुसीबत , जो कर्जा लेकर रखा हुआ था , वो सब कैसे निपटेगा ???? पांच दिन बाद गांव के सरपंच जी , रामलाल के घर आए, उसका हाल चाल जानने के लिए । उन्हें भी रामलाल और सुशीला ने उसके पूछने पर , अपनी सारी चिंताएं बताई । तो उन्होंने कहा ।

सरपंच - देखी रामलाल... , एक उपाय है हमरे पास...!!!

रामलाल - बताई सरपंच जी , का उपाय है ? हम करब , ई मुसीबत से निकले के लाने ( लिए ) , हम सब करब ।

सरपंच - तुम जौन साहूकार से , कर्जा लेए लिहिन हो , ओकरे पास , बहुत काम है , तुम्हारे खातिर । पर हां , तुम्हीं वहां मजदूरी करें का पड़ी । का कर पैइहा , तुम उहां मजदूरी ???

सुशीला - ये का कही रहे हैंन सरपंच जी , अपना ??? हमरे घर से आज तक कोनो , मजदूरी नहीं करिस है । और अपना का ( आप ) इन्हीं , बीमारी की हालत मा मजदूरी करें के खातिर कहीन रहन हैं ....????

रामलाल - कोनो बात नहीं ....., सरपंच जी हमरे भले के खातिर कही रहे हैं । हम करब , अपना घर के , बच्चन के खर्चा चलाए के खातिर हम मजदूरीयो करब और जो - जो हमी अपन खेत और बच्चन के लाने सही लगी , उ सब करब हम ।

सुशीला उसकी बात से निः शब्द थी । वह अपने पति की बात टाल नहीं सकती थी । लेकिन उन्हें जाने भी नहीं दे सकती थी । उसने और माधुरी ने बहुत कोशिश की , रामलाल को मजदूरी करने से रोकने के लिए । पर रामलाल ने दोनों की एक भी न सुनी । तो सुशीला और माधुरी ने भी उसके साथ मजदूरी पर जाने का निर्णय लिया ।

अगले दिन रामलाल ने साहूकार से जा कर बात की । तो उसने अपना फायदा देख कर , उन्हें काम दे दिया । पर उसने उनकी मजदूरी का , आधा पैसा कर्जा के रूप में काटने के लिए कहा । रामलाल को इस बात ये कोई ऐतराज नहीं था । ये सोच कर , कि धीरे - धीरे कर्जा भी निपट जाएगा । उसने सहमति दे दी , तो साहूकार ने उसे अगले दिन से अपने खेतों में काम करने के लिए कहा ।

तीनों ही अगले दिन से खेतों में काम पर लग गए। मजदूरी तो वैसे हर दिन के हिसाब से , ढाई सौ रुपए थी । पर चुंकी इन लोगों को , पैसा कट कर मिलना था । इस लिए इन्हें सिर्फ सौ रुपए की मजदूरी दी गई । साहूकार का खेत , रामलाल के खेत के बगल में ही था , पर उसके खेत पचास एकड़ से भी ज्यादा जमीन में फैले हुए थे । जिसकी वजह से साहूकार को नुकसान होने के बाद भी , ज्यादा फर्क नहीं पड़ा था ।

हर दिन, तीनों उसके खेत पर काम करते और जितना भी पैसा मिलता , उसे एक साथ रख देते । क्योंकि वो पैसे अब घर खर्च के लिए और रघु की पढ़ाई के लिए उपयोग में लाए जाने थे । पैसे बहुत तो नहीं थे , पर तब भी उनके लिए, न से तो बेहतर ही थे । रामलाल हर दिन मजदूरी करने से पहले अपने खेत को एक नजर भर देखता , साथ ही घर लौटते वक्त भी अपने खेत को नज़र भर देखता । लेकिन उसकी आंखों में हर बार अपने खेतों को देख कर , नमी तैर जाती । क्योंकि वह अपने खेतों की रखवाली नहीं कर पा रहा था । साहूकार ने जिस हिसाब से मजदूरी तय की थी , उस हिसाब से पैसे बहुत कम दे रहा था , वहां पर काम करने वाले मजदूरों को । और अधिकतर रामलाल की तरह के ही लोग थे , जिनके खेतों की फसलें खराब हो चुकी थी , तो सब साहूकार के खेतों पर मजदूरी कर रहे थे । एक दिन साहूकार के यहां गांव का एक आदमी आया , और उसने साहूकार से कहा ।

आदमी - का बात है , सेठ जी । तुम तो , अच्छन - अच्छन का , अपने खेत पर काम करे के लाने लगाए दिए हो ।

साहूकार ( असमंजस की स्थिति में ) - केखर ( किसकी ) बात करी रहन हैन , अपना कैन ???

आदमी - अरे उ , रामलाल का । आजकल उ और ओकरा परिवार भी तुम्हरे यहां मजदूरी करी रहा है , सुने हैंन हम ।

साहूकार ( ठहाका मार कर हंसते हुए ) - उ ......, अरे उ तो खुद आया रहा , हमरे पास । काम मांगे की खातिर । हम भी लगाई दिए , ऊका अपना खेत मा । वैसे बहुते मजा आए रहा है हमें , ऊका अपना खेत में काम पर लगाई के । काहे कि, रामलाल का बहुत घमंड चढ़ा रहा है, अपने खेतन का लइके । उ कभी भी कोनो के यहां , मजदूरी करें की खातिर नहीं गवा है । लेकिन अब उ हमरे यहां , अपना घमंड का छोड़ी के , मजदूरी करी रहा है । ऊका देख के , आनंद आय रहा है हमका ।

उसकी बात सुनकर , वो आदमी भी हंस दिया । रामलाल ने कभी भी , झुक कर रहना नहीं सीखा था। वह हमेशा ही अपनी खेती खुद से करता था और उसी से अपने घर के सदस्यों का पेट पालता था । जबकि बाकी के गांव वाले , अपने खेत के काम के साथ - साथ , दूसरे खेतों की भी मजदूरी करते थे। पर अभी तक कोई भी रामलाल से मजदूरी नहीं करवा पाया था । पर अब , प्रकृति की मार के चलते , रामलाल को नीचा दिखाने का , सभी गांव वासियों को मौका मिल गया था ।

क्रमशः