नंगा बदन
नंगा बदन पुस्तक मेरी लिखी हुई पाँच कविताओ का संग्रह है, जिसमे समाज मे फैली गरीबी, अराजकता, द्वेष एवं बाल शोषण का जिक्र किया हुआ है। साथ ही साथ सूर्य का भड़कना, नदी का उफान भरना एवं सर्द रातों का रोना के माध्यम से प्रकृति की सुंदरता का भी जिक्र किया हुआ है।
पहली कविता: फुट-फुट कर रोना है... इसमे मैने परिवार के साथ भिख मांगते एक वृद्ध के सब्र का, नंगे कदमो से तेज धुप मे दोड़ती हुई औरत का, फुटपाथ पर सोते हुए बेबस माँ बाप की स्तिथि का वर्णन किया है। साथ ही साथ जिंदगी भर कुर्सी के पिछे भागने वाले भ्रष्ट नेताओ की बेबसी ब्या की है।
दूसरी कविता - सूरज ... मे मैने उगते सूरज का, गिद् को भगाते छोटे-छोटे पक्षियों के झुंड का, सूरज की लालिमा एवं फूलो का सुंदरता से वर्णन किया है।
तीसरी कविता - थमती साँसे... मे मैने उस पूरे दृश्य का वर्णन किया है जो मैने खेतो मे फसल को पानी पिलाते समय बगुले एवं छोटे-मोटे कीड़ों के बीच देखा। राजा शिवि के उदाहरण के साथ जिंदगी एवं पेट के बीच की जंग का अच्छे से ऊलेख किया है।
चौथी कविता - तेरी यादे... मे मैने उन पलो का वर्णन किया है जो एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को उसे छोड़ कर जाते वक्त कहता है।
अंतिम कविता - आज फिर जागा बचपन... मे मैने वर्णन किया है एक बचे का जिसकी माँ को उसके पिता ने तब मार डाला जब उसकी माँ ने शराब पीने के लिए पैसे नही दिये। बचपन मे किस तरह बच्चा सुबह सूरज से पहले उठ जाता है, मज़दूरी करने जाता है और किस तरह सर्द रातो मे मुह को पैरो के बीच सोकर गुजरता है उसका पुरा वर्णन किया है।
कविता-1: फुट - फुट कर रोना है...
आज मुजे कुछ तो लिखना है,
दर्द भरा है कूट- कूट कर,
आज मुझे फुट - फुट कर रोना है।
चेहरे पर ताव देती मुछे,
मुझे उन आँखों की बेबसी बयाँ करनी है,
मुझे उस टूटते सब्र को बयाँ करना है,
आज मुजे कुछ तो लिखना है।
उन नंगे कदमो की कसम,
आज उन फूली, साँसों की धड़कन तुम्हें सुनानी है,
आज मुजे गरम रेत का दर्द बयाँ करना है।
दुनिया बना कर खुद सन्यास ले बैठा,
आज मुझे, उस शिव की बेबसी बयाँ करनी है,
आज मुजे कुछ तो लिखना है,
दर्द भरा है कूट- कूट कर,
आज मुझे फुट - फुट कर रोना है।
पूरी कमाई, बेटो को अमीर बनाने मे लगा दी,
फुटपाथ पर सोते उन माँ-बाप की तरफ देख कर, रोती हुई सर्द रातो को मुझे बयाँ करना है।
हमेशा से नंगे बदन को ढकने वालेवाले,
उन मलिन फ़टे कपड़ो का दर्द बयाँ करना है,
आज मुझे जी भर कर रोना है।
अपना सब कुछ छोड़,
गुमनाम सी जिंदगी जीने वाले मेरे उन शहीदो की कसम,
जिंदगी भर कुर्सी के पिछे भागने वालो की किस्मत पर मुझे रोना है,
आज जी भर, कुछ तो मुझे लिखना है।
दर्द भरा है कूट- कूट कर,
आज मुझे फुट - फुट कर रोना है,
आज मुझे कुछ तो लिखना है।
कविता-2: सूरज...
आज शिकारी को खुद शिकार बनते देखा,
कल तक जो अनेक थे,
उन्हे आज एक होते देखा।
वक्त है सूरज के उगने का,
किसी को सोते, तो किसी को जागते देखा।
कमाल का नज़ारा है, सूरज के उगने का भि
ज़रा काली घटाओ को चिरती लाल लालिमा को तो देखो।
लाल से याद आया,
लाल रंग को देख हर कोई रूक जाता है
अपनी मंजिल से पहले,
हम कहते है ज़नाब एक बार डूबते सूरज को तो देखो,
लाल रंग से भी इश्क़ ना हो जाए तो बताना।
भाई...
में तो दिवाना हु,
डूबते सूरज को देखने के लिए,
कभी वक्त मिले तो,
घर लौटते पंछीयों की कतार तो देखो।
ना तुमने उगते सूरज को देखा,
ना डूबते सूरज को देखा,
हम तो कहते है ज़नाब
जरा खिलते फूल को देख कर, उसकी धड़कन तो महसूस करो,
हर एक चेहरे से इश्क़ ना कर बेठे
तो हमे कहना, शायरी करना बंद कर देंगे।
कविता-3: थमती साँसे...
ना छुपने, ना छुपाने
की कोई आड़ थी
मैने सूखे खेतो मे,
मासूमो को जान गवाते देखा।
ना वे दुश्मन थे, ना कभी दोस्त
पहली मुलाकात मे जंग करते देखा।
एक तरफ डूबने का डर,
तो दूसरी और दबोचे जाने का,
थमी साँसों से,
मैने थमती साँसों को देखा।
मुझमे भला कहा हिम्मत थी
इतिहास दोहराने की,
मैने खुले आसमान मे ईश्वर से पूछा :-
" भला तूने क्या सोच कर ये दुनिया बनाई, जब-जब भी भूख लगी,
भूख के आगे ना दुश्मन ना दोस्त देखा "
ना अपनो के साथ,
ना कभी खुले आसमान मे उड़ते देखा,
मैने तो भला उन्हे जब- जब भी देखा,
टक टकी लगाए, लम्बे पहर से
सूखे खेतो मे, दोडते पानी के बीच देखा।
ये भला ना जाने किसकी किस्मत,
किसकी बद किस्मत थी,
मैने तो उन्हे जब-जब भी देखा
जिंदगी और पेट के बीच जंग करते देखा।
कविता-4: तेरी यादे...
तू जिंदा है,
तो तेरी यादों मे जी लूँगा,
सिने से लगा कर तो ना सही,
सिने मे छुपा कर जी लूँगा।
माना की साथ गुजारे वो लम्हे तो काफि नही,
पर यादों मे रात गुजार लूँगा।
तू साथ ना रहे, तो भी सही
तेरे होने के एहसास मे जी लूँगा।
किसी ने जो पूछा तेरे बारे मे,
तो तेरी तारीफों मे, तेरे मेरे साथ होने का एहसास करा दूँगा।
तू बगावात करे तो भी मेरी जीत है,
तू मुहबत करे तो भी मेरी जीत है,
तेरे सिर्फ होने से ही हर पल मेरी जीत है।
ये जीत ना किसी जंग के मैदान की है,
और नाही इस दुनिया से है,
ये जीत है तो बस तेरी खुशबू,
तेरी यादों मे जिंदा रहने की
और हर पल तुझसे मुहबत करने की जीत है।
कविता-5: आज फिर जागा बचपन...
सोच कर तराई भर आई,
बचपन ना जाने कहा गुमशुदा हुआ।
रूह यू कांपने लगी,
पहली तगारी जब सिर पर उठाई।
भड़क उठा सूरज आज,
लेट वो एक बच्चे से हुआ,
मुंह छुपा कर वापिस घर को वो भागा,
झुके शीश का आदर जो पाया।
जी भर कर रोने लगा बचपन आज,
मज़दूरी ना दी मालिक ने,
रूह यू कांपाने लगी,
याद किया जो पिता को।
किया याद माँ को,
जब पैसे ना दिये पीने को शराब,
खाल पूरी उधेड़ दी,
पर आवाज ना आई रोने की।
माँ यू ही छोङ गई,
थमा कर तगारी सिर पर।
रोटी भी खुद से यू शरमाने लगी,
गले मे जा फंसने लगी,
मिला ना पानी पीने को,
शराब गले से उतरने लगी।
सर्दी ठहाके लेकर हँसने लगी,
देखो सब डर रहे है मुझसे,
मन्द-मन्द वो रोने लगी,
जब देखा नंगा बदन,
देखा मुंह छुपा है, पैरो के बीच।
मिली ना चादर ओढ़ने को,
दाढ़ी अब थीतुरने लगी।
दांत आपस मे लड़ने लगे,
शोर वो मचाने लगे,
रूह अब धीरे-धीरे जमने लगी।
गुट शराब का उतरने लगा,
आज नशे मे बचपन जा खड़ा हुआ नदी तट को।
उफान भरा नदी ने,
करदु मे सब कुछ तबाह,
बच्चे को गोद वो लेने लगी।
आज सरकार सोई है,
इसलिए फिर एक और बचपन जागा है,
उठायें तगारी,
जिस छत के निचे वो सोये है, उसी के सामने।
अब सूरज नही भड़केगा बचपन पर,
भड़केगा तो हम पर,
अब जो उफान भरा नदी ने,
तो गोद लेगी हमे।
तो जागो ए मेरे दोस्तो,
नही तो एक नया बचपन फिर खड़ा होगा,
उठायें तलवारें, उठायें बन्दुक।
अब वो नही थामेंगा तगारी,
थमवाएगा हमे,
नही तो दागेगा गोली सिर मे।