Pyar ki Nishani - 2 in Hindi Fiction Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्यार की निशानी - भाग-2

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प्यार की निशानी - भाग-2

भाग-२

धीरे धीरे जिंदगी पटरी पर आने लगी। मंजू अब फिर से स्कूल जाने लगी थी। वह अपने भाइयों पर भी पूरा ध्यान देती। जिसके कारण अब उसके भाइयों ने इधर उधर आवारागर्दी करने की बजाए अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना शुरू कर दिया था।
मंजू के पापा जितना हो सकता, उतना काम खुद करते । मंजू की दादी व मंजू उनकी पूरी मदद करवाते। वह तो मंजू से मना भी करते।
कहते “बेटा तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें। अपना सपना पूरा कर। मैं नहीं चाहता घर के कामों की वजह से तेरी पढ़ाई में किसी तरह की बाधा आए। काम तो होते रहेंगे लेकिन तेरी यह पढ़ाई तेरे भविष्य का आधार है। तेरी मां भी तो यही चाहती थी।
वह तो नहीं रही लेकिन तेरे पापा अभी जिंदा है । तू जैसे अपनी मां के सामने घर के कामों से बेफिक्र अपनी पढ़ाई करती थी, वैसे ही अब भी कर । बाकी मैं संभाल लूंगा।“

“पापा आपकी मदद करवाने से मेरी पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं आ रही। हर समय तो नहीं पढ़ सकती ना इसलिए जब समय मिलता है तो दादी की मदद करवा देती हूं। दादी भी तो बूढ़ी है और आप नौकरी के साथ-साथ घर का भी कितना काम करते हो। मुझे अच्छा नहीं लगता पापा ! आपको भी तो आराम की जरूरत है!”

“अरे, आराम करने के लिए पूरी रात है ना! नौकरी पर भी जब काम नहीं होता तो आराम ही करता हूं। तू ज्यादा दादी अम्मा मत बन। वैसे देख रहा हूं, आजकल तू अपनी सहेली मंगला के घर नहीं जाती। तेरा झगड़ा हो गया क्या उससे!” मंजू के पापा हंसते हुए बोले।
मंजू को बहुत अच्छा लगा, अपने पापा को हंसता हुआ देखकर। वह भी उनकी हंसी में शामिल होते हुए बोली “अरे, नहीं पापा। उससे झगड़ा क्यों करूंगी। वह तो मेरी पक्की सहेली है। मैं नहीं जाती, पर वह अक्सर यहां आ जाती है। हम दोनों यहीं बैठकर एक साथ पढ़ाई कर लेते हैं!”
“ वैसे मुझे पता है, मेरी बिटिया बहुत ही समझदार है। उसे कुछ समझाने की जरूरत नहीं । तू अपना अच्छा बुरा सब जानती है। बस बेटा, अपने भाइयों का थोड़ा ध्यान रखा कर। उनका पढ़ाई में मन कम ही लगता है। पहले तेरी मम्मी थी तो सब देख लेती थी। मैं नौकरी पर चला जाता हूं तो डर रहता है कि कहीं वह रास्ता ना भटक जाए। वह तेरा कहना मानते हैं। बस प्यार से उनको समझाया कर।“

“ पापा आप बेफिक्र रहें ‌। मैं उन पर नजर रखती हूं। वैसे वो दोनों खुद भी अब अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने लगे हैं। “
मंजू अपने पापा को आश्वस्त करते हुए बोली।

“यह तो अच्छी बात है। अब तू पढ़ ले। मैं भी थोड़ा आराम कर लूं ।“ कहकर मंजू के पिता चले गए।
कह तो वो आराम की रहे थे लेकिन अब आराम कहां! जबसे मंजू की मां गुजरी है, उनकी तो नींद ही गायब हो गई
थी । सबके सामने तो हंसते मुस्कुराते लेकिन अकेले में अंदर ही अंदर घुलते जा रहे थे और अक्सर बीमार रहने लगे थे। थोड़ा सा काम करते ही उन्हें थकावट हो जाती।

मंजू की दादी सब समझती थी । वह अपने बेटे की हालत देखकर अक्सर दुखी हो जाती और उसे समझाती लेकिन कोई फायदा नहीं।
क्योंकि हर बार मंजू के पिता का एक ही जवाब होता इसलिए अब मंजू की दादी ने भी कहना ही छोड़ दिया था और सब कुछ किस्मत के सहारे छोड़ दिया।
समय गुजरता गया। मंजू ने 11वीं और उसके बाद 12वीं बहुत ही अच्छे नंबरों से पास की। मंगला का रिजल्ट भी बहुत बढ़िया आया।
अपनी बेटी का रिजल्ट देख, मंजू के पिता का खुशी का ठिकाना ना रहा। शाम को वह मिठाई लेकर आए। घर में जश्न का माहौल सा था। मंगला व मंगला के पिता भी वही थे। मंजू के पिता उनसे बोले
“देखा भाई साहब, लड़कियों ने हमारा कैसे नाम रोशन किया है । कौन कहता है, लड़कियां लड़कों से कम है। सच में हमारी बेटियों ने हमारा सीना चौड़ा कर दिया। भगवान जल्दी दोनों का सपना पूरा करें।"
मंगला के पिता भी कम खुश ना थे। सब कुछ बढ़िया से चल रहा था। खूब हंसी ठहाके लग रहे थे कि अचानक से
मंजू के पिता को बेचैनी महसूस होने लगी। वो एकदम से पसीनों से लथपथ हो गए। उनकी हालत देख सभी घबरा गए। दादी व मंजू तो रोने ही लगी थी। मंगला के पिता ने किसी तरह उनको संभाला और एंबुलेंस बुलाकर उन्हें हॉस्पिटल लेकर गए।
सब हैरान थे कि अचानक से उन्हें क्या हो गया। वह कैसे बेहोश हो गए। सब डॉक्टर का इंतजार कर रहे थे। डॉक्टर ने उनका इलाज व चेकअप करने के बाद बताया कि उन्हें हार्ट अटैक आया था।
सुनकर मंजू की दादी माथा पकड़ कर बैठ गई और रोने लगी। रोते हुए बस भगवान से बार-बार यही कहती कि “भगवान ! यह तू किस जन्म का बदला ले रहा है। बहू को तो तूने बुला ही लिया और अब बेटे को यह बीमारी दे दी। अरे, कुछ करना ही है तो मुझ बुढिया को उठा ले। लेकिन मेरे बेटे को सही कर दे। उसके बच्चों से उनकी खुशियां व सहारा मत छीन ।“
मंगला की मां ने किसी तरह उन्हें सांत्वना दी और चुप कराते हुए बोली “ चाची , धीरज रखो। सब सही हो जाएगा। डॉक्टर ने कहा है, वह खतरे से बाहर है ।दो-तीन दिन में उन्हें छुट्टी मिल जाएगी। आप अपने को संभालो। अगर आप ऐसे टूट जाओगी तो उन बच्चों का क्या होगा। उन्हें तो अभी पता भी नहीं कि उनके पिता को क्या हुआ है! भगवान इतना निर्दयी नहीं। वह सब की सुनता है। “

उसकी बात सुनकर मंजू की दादी को कुछ तसल्ली हुई। घर पर बच्चों को जब यह सब पता चला तो उन्हें भी बहुत सदमा लगा। मंजू ने किसी तरह अपने आप को संभाले रखा क्योंकि उसे पता था, वह अगर टूट जाएगी तो उसके भाइयों को कौन संभालेगा। वह चुपचाप घर का काम करती और दादी के खाने-पीने का भी ध्यान रखती।
दो-चार दिन बाद ही मंजू के पिता को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। उन्हें सही सलामत घर आया देखकर, सबके चेहरे खुशी से खिल गए।
मंजू के पिता के चेहरे पर भी कई दिन बाद अपने बच्चों को देखकर एक वात्सलयमयी मुस्कान तैर गई।
उसने अपने तीनों बच्चों को पास बुलाया और फिर उनके सिर पर हाथ रखते हुए, उन्हें अपने गले से लगा लिया। दादी भी उनके पास आ ,बच्चों के सिर पर हाथ रख गीली आंखों से ऊपर देखते हुए, भगवान का शुक्रिया अदा करने लगी।
धीरे धीरे मंजू के पापा की तबीयत में काफी सुधार आ गया था। पापा के कहने से मंजू ने मंगला व उसके पिता के साथ
जाकर बीएलएड कोर्स में एडमिशन ले लिया क्योंकि यह उसके सपने की पहली सीढ़ी थी।
मंजू बहुत मन लगाकर पढ़ाई कर रही थी। अब उसे विश्वास होने लगा था कि उसका सपना जल्दी ही पूरा होगा और वह अपने पापा की मदद कर सकेगी।
अभी साल भर ही हुआ था कि मंजू के पापा को दोबारा से हार्ट अटैक पड़ गया। उनकी हालत देख घर में कोहराम मच गया।
डॉक्टर ने किसी तरह से उसके पिता को बचा तो लिया लेकिन हिदायत दी कि इनका पूरा ध्यान रखना होगा। क्योंकि इसके बाद वह कुछ नहीं कर पाएंगे।

अब तो मंजू के पिता की भी रही सही हिम्मत जाती रहीं। उन्हें लगने लगा था कि अब वह ज्यादा दिन नहीं जियेंगे। सबसे ज्यादा फिक्र उसे मंजू की थी।
अपने बेटे की यह दशा देख, मंजू की दादी तो अंदर से बिल्कुल ही टूट गई थी।
लेकिन अपने आप को किसी तरह से संभाल कर वह हमेशा अपने बेटे को हिम्मत देती रहती।

एक दिन जब सब खाना खा रहे थे तो मंजू के पिता ने उससे कहा “मंजू जो आज मैं तुझसे कहना जा रहा हूं , सुनकर शायद तुझे बहुत दुख हो और तू मुझ पर नाराज भी हो सकती है लेकिन क्या करूं बेटा मेरी मजबूरी है। पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि मेरी सांसे कुछ ही दिन की बची है!
इसलिए मुझे माफ कर देना और इसे अपने पिता की अंतिम इच्छा मानकर पूरा कर देना।
सुनकर दादी की आंखों में आंसू आ गए।
मंजू भी एकदम से घबरा गई और बोली “ पापा, आप ऐसे क्यों कह रहे हो । आप अभी हमारे साथ ही रहोगे। कहीं नहीं जा रहे आप, हमें छोड़ कर और आपने ऐसे कैसे सोच लिया कि मुझे आपकी कोई बात बुरी लग सकती है। आप मेरे पापा हो ।आप जो भी सोचोगे मेरे भले के लिए ही सोचोगे। कहो पापा ,आप क्या कहना चाहते हो। मैं आपकी हर इच्छा पूरी करूंगी।“

“बेटा , मैं तुझे दुल्हन के रुप में देखना चाहता हूं। जाने से पहले तेरा कन्यादान करना चाहता हूं। अगर मैं ऐसे ही चला गया तो मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। एक बाप को उसका यह हक दे दे। मेरी इच्छा पूरी कर दे बेटा। मुझे पता है, मैं तुझसे बहुत बड़ी कुर्बानी मांग रहा हूं लेकिन क्या करूं, मेरे बस में अब कुछ नहीं!”
मंजू सुनकर मौन हो गई। थोड़ी देर तक वह कुछ ना बोली।
अपनी दादी और पापा को अपनी और आस भरी नजरों से देखते हुए वह उनके पास आई और बोली “पापा जैसा आप ठीक समझें । मुझे आपकी हर बात मंजूर है।“ कहकर वह मुस्कुरा दी।
उसके पिता ने उसके सिर पर प्यार से हाथ रखा।
क्रमशः
सरोज ✍️