GAON ME LOUDSPEAKER in Hindi Moral Stories by Anand M Mishra books and stories PDF | लाउडस्पीकर

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लाउडस्पीकर

वैसे हमारे घर में शादी-विवाह में लाउडस्पीकर नहीं बजता है। इसका कारण मुझे जो समझ में आया वह यह कि हमारे घर में सभी जोर-जोर से बोलते हैं। मुंह दाब कर बोलना हमलोगों की आदत में नहीं है। हमारे घर के क्षेत्र को ‘फुलवारी’ कहा जाता है। इसी फुलवारी से पूरे गाँव की सहायता की जाती रही है। सहायता का अर्थ यहाँ हर प्रकार की सहायता से है। इसमें अन्न, जल भी शामिल है। शरणागत की रक्षा करना कोई हमारे घर से सीखे।

लेकिन हमारे गाँव में शादी-विवाह, कीर्तन या पूजा-पाठ या अन्य कोई भी कार्यक्रम हो तो लाउडस्पीकर जरुर बजता है। ऐसा लगता है, मानो किसी भी आयोजन में बिना लाउडस्पीकर के जान नहीं आती है। गाँव में प्रायः सभी जाति के लोग रहते हैं। किसी भी आयोजन में लाउडस्पीकर बजने लगता है।

शादी वाले घर में दरवाजे पर बहुत चहल-पहल थी। घास फूस छील-छाल कर मिट्टी बराबर कर दी गई थी। गोबर और पीली या गोरंटी माटी से चौखट से लेकर सड़क तक लिपाई की गई थी। देखते ही लगता था कि कोई बड़ा यज्ञ वाला घर है। सभी लोग काम में लगे थे। लड़कियाँ दीवालों पर पर रंग मिलाकर चित्र बना रही थीं। लौकी बाबा ( असली नाम नहीं पता) दरवाजे पर पड़ी एक चौकी पर दो-तीन बुजुर्गों के साथ बैठे बातचीत कर रहे थे।

उसी समय बगल के गाँव (नयागांव या ऊँचागाँव) से लाउडस्पीकर वाला आ गया। उसे देखते ही लौकी बाबा बोले – “अरे ओ विनोद! कितना टाइम लगा दिए? लाउडस्पीकर बजता है तो न लगता है कि जग का घर है। चलो जल्दी शुरू करो।"

लौकी बाबा का मतलब लाउडस्पीकर पर गीतों की रिकॉर्डिंग बजाने से था। विनोद के पास लाउडस्पीकर सेट था। उसे वह भाड़े पर चलाता था। यही उसकी कमाई का मुख्य साधन था।

"दादा आप ही तो देरी से आदमी भेजे हैं। एक साइकिल पर सब सामान आ जाता तो मैं कब का ले आया होता।" अपनी साइकिल के कैरियर पर से उसने लकड़ी का बक्सा उतार कर एक ओर रख दिया, दूसरी साइकिल पर बंधा लाउडस्पीकर खोलने लगा। "दादा एक बाँस मंगवा दीजिए।"

लौकी बाबा बोले- "हाँ! पहले ही फुलवारी से मंगवा दिए हैं, देखो ऊ का रखा है उत्तर तरफ। रामेसर खींचो इस तरफ बाँसवा को।" रामेसर बाँस खिसका लाया। विनोद ने अपनी साइकिल के हैंडल से दोहरे तारों का वृत्ताकार बंडल उतारा और खोल कर उसके सिरों को लाउडस्पीकर से निकले तारों से जोड़ दिया।

"रामेसर भाई। खंती लाकर एक-डेढ़ हाथ गहरा मियान खोद दो बाँस खड़ा करने के लिए। तब तक मैं इसे बाँधता हूँ।" लाउडस्पीकर की ओर संकेत कर विनोद ने कहा। लाउडस्पीकर को फुनगी की तरफ मजबूती से बांध विनोद तार को बाँस में लपेटते हुए जड़ की ओर लाया। रामेसर गड्डा खोद चुका था। उसकी सहायता से बाँस को खड़ा किया। लौकी बाबा बोले- "अरे चोंगे का मुँह झरहरिया गाँव की तरफ करो, फुलवारी वाले को को गाना सुनाओगे का!"

गमछे में पसीना पूछते हुए विनोद बोला- " करता हूँ दादा, रुकिए तो।"

रामेसर और विनोद ने बाँस को उमेठकर लाउडस्पीकर का मुंह झरहरिया गाँव की ओर घुमा दिया। बरामदे में एक ओर चटाई बिछाकर उस पर एक चादर डाल दी गई थी। विनोद ने अपना बक्सा दीवार से सटाकर रखा। ताला खोलकर एक-एक सामान निकालने लगा टेप रिकॉर्डर, कैसेट का डिब्बा, एम्लीफायर इत्यादि। बारह वोल्ट की बैटरी का डब्बा अलग था, उसे खोलकर बैटरी निकाली। चोंगे से जुड़ा तार बरामदे में एक खंभे से बांधा फिर उसको एम्पलीफायर से जोड़ दिया और बैटरी से लाइन दे दिया। इतना करते शाम होने लगी थी। परंपरा के अनुसार विनोद ने भजन का कैसेट लगाकर बजा दिया। गाँव में लाउडस्पीकर का संगीत गूंजने लगा।

जब भजन खत्म हुआ तो स्पीकर में विनोद की आवाज आई- 'भाड़े का बाजा, विनोद कुमार, ऊँचागाँव, नयागाँव, जग ब्याह में भाड़े के लिए संपर्क करें।' यह संवाद दो बार बजने के बाद अगला भजन शुरू हो गया। विनोद किसी-किसी कैसेट में बीच-बीच में अपनी ही आवाज में प्रचार की रिकॉर्डिंग कर देता था। उसका बाजा इलाके में सबसे लोकप्रिय था। सभी नई फिल्मों के गीत और डायलॉग के कैसेट सबसे पहले विनोद खरीदता था। लग्न के दिनों में उसकी बहुत पूछ होती थी। एक भी दिन खाली नहीं बैठता था वह । यही कारण था कि और बाजेवाले उससे बहुत चाहते थे।

इस बीच बाबा के आंगन से कोई चिल्ला रहा है – “ कुकुआ रे ऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ...( मगर यह आवाज लाउडस्पीकर की ध्वनि में दब कर रह जाती है. मगर आवाज लगानेवाला आवाज लगाना जारी रखते हैं. तीन बार आवाज लगाने के बाद एक व्यक्ति को ही उसे बुलाने के लिए भेज दिया गया.

भजन खत्म हुआ तो विनोद ने एक फिल्म का कैसेट बजा दिया- उधर मटकोर की तैयारी चल रही थी। कल लौकी बाबा की बेटी की बारात आने वाली है। चारों ओर हँसी-खुशी का माहौल है।

एक प्लेट में उसके लिए दही-चूड़ा और सब्जी का नाश्ता आ गया। बाजेवाले ने नाश्ता किया और बाजा फिर बजने लगा। इसी प्रकार बाजा बजते रहा। बरात आ गयी। सारे मांगलिक कार्यक्रम आयोजित हुए और बाजा बजते रहा। ऐसी ही एक शादी में शामिल होने का अवसर मिला। गाँव की शादी। वारे-न्यारे! पहले आज की तरह शीतल पेय नहीं मिलता था। चीनी का शर्बत निम्बू का रस डालकर मेहमानों को दिया जाता था। उसी शर्बत की लालसा में भी धैर्य से खड़े रहे। शर्बत भी नहीं मिला। पता चला कि बराती के लिए है। मन मसोसकर रह गया। इस घटना के बाद जितने भी बार शीतल पेय मिला है या पीते रहता हूँ – मगर उस घटना की टीस नहीं जाती है।

उस रात कितनों की नींद खराब हुई होगी – नहीं पता। लेकिन एक बात जो देखा कि सभी प्रसन्न थे। किसी को भी परेशानी नहीं थी। ध्वनि-प्रदूषण को मेरे गाँव में शायद की कोई जानता है। ऐसा लगा।

पहले ग्रामोफोन का युग था। अब आजकल के शादी-विवाह में लाउडस्पीकर देखने को नहीं मिलता है। अब तो यूट्यूब पर देख-सुन लेते हैं।

शायद विनोद ब्रास बैंड पार्टी अब ऊँचागाँव में नहीं है। रामेसर ठाकुर है। लाउडस्पीकर अब शायद गाँव में नहीं बजता है।