Anokha Jurm - 9 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | अनोखा जुर्म - भाग-9

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अनोखा जुर्म - भाग-9

सलाम नमस्ते,


‘मौत का खेल’ उपन्यास पहले लिखना शुरू किया था. इस बीच मन में ‘अनोखा जुर्म’ का प्लाट भी तैयार हो गया. इसलिए उसे भी लिखना शुरू कर दिया. पाठकों की शिकायत है कि उनके मन में दोनों कहानियां गडमड हो रही हैं. मुझे भी दोनों कहानियां एक साथ लिखने में दिक्कत हो रही है.


अगर आप लोगों की इजाजत हो तो ‘अनोखा जुर्म’ को ‘मौत का खेल’ उपन्यास पूरा होने तक रोक दिया जाए. उसके बाद ‘अनोखा जुर्म’ के आखिर के छह पार्ट को फिर से रिराइट करके अनोखे अंदाज में लिखा जाए.


कुमार रहमान


एनकाउंटर


इंस्पेक्टर कुमार सोहराब एक दीवार की आड़ ले कर खड़ा था। वह कम से कम गोलियां खर्च कर रहा था। इसके विपरीत बदमाशों की ज्यादा से ज्यादा गोलियां बर्बाद कराने पर तुला हुआ था। उसने सर पर लगाई हैट को माउजर की नोक पर टांग लिया। वह हैट को दीवार से थोड़ा सा बाहर कर देता और फिर बदमाशों की गोलियों की बौछार आ जाती। नतीजा यह निकला कि कुछ देर में दूसरी तरफ से फायरिंग बंद हो गई। शायद उन की गोलियां खत्म हो गई थीं।

यह बदमाशों का हरबा भी हो सकता था। वह इस बहाने सोहराब को बाहर लाना चाहते हों, इसलिए इंस्पेक्टर सोहराब बहुत मोहतात था। उसने सबसे पहला काम यह किया कि स्ट्रीट लाइट के बल्ब का निशाना लेकर ट्रिगर दबा दिया। नतीजे में अब हर तरफ अंधेरा था। इसी के साथ उसने बहुत तेजी से अपनी पोजीशन बदली थी।

अब वह जीप के तीनों एंगल को देख सकता था। अंधेरे में उसने महसूस किया कि एक साया धीरे-धीरे जीप की तरफ जा रहा था। सोहराब के माउजर से आग का गोला निकला। एक बहुत भयानक चीख हवा में गूंज कर विलीन हो गई। इस के बाद कुछ कदमों के भागने की आवाज आई। कदमों की आवाज धीरे-धीरे दूर होती जा रही थी।

सोहराब बहुत एहतियात से गोली लगने वाले बदमाश के करीब पहुंचा। उसने जेब से टार्च निकाल कर उस पर मारी। एक बदमाश खून से लथपथ जमीन पर पड़ा हुआ था। उसके पेट से ताजा खून उबल रहा था। वह एक विदेशी था। सोहराब ने उसकी नब्ज टटोली। वह मर चुका था।

इंस्पेक्टर सोहराब वहां से आकर कार में बैठ गया और उस की हेड लाइट्स जला दीं। फिर बदमाशों की जीप की हेड लाइट्स भी जला दीं। इस से चारों तरफ उजाला हो गया।

इसके बाद उसने हाशना को जीप से नीचे उतार लिया। हाशना बड़े जिगरे की लड़की थी। उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं थी। सोहराब ने उसके हाथ खोल दिए। इसके बाद हाशना ने अपने मुंह में ठुंसा हुआ कपड़ा निकाल दिया।

तभी सोहराब ने एक आदमी को कोठी से निकल कर तेजी से भागते हुए देखा। सोहराब ने दहाड़ते हुए कहा, “जहां हो वहीं रुक जाओ नहीं तो गोली मार दूंगा... और अपने दोनों हाथ ऊपर उठा लो।”

सोहराब की धमकी का तुरंत असर हुआ और वह आदमी जहां था वहीं दोनों हाथ ऊपर उठा कर रुक गया। सोहराब ने उस आदमी से दोबारा कहा, “इसी तरह से कार की हेडलाइट्स के सामने आकर खड़े हो जाओ।”

उसकी बात का तुरंत पालन हुआ था। यह आदमी भी विदेशी ही था। कोठी के अंदर सोहराब ने जिस आदमी के पेट पर लात मारी थी। यह वही था, लेकिन सोहराब उस वक्त उस का चेहरा नहीं देख सका था। इंस्पेक्टर सोहराब उसे लात मारने के बाद सीधे बदमाशों के पीछे भागा था।

“आप इसे पहचानती हैं?” इंस्पेक्टर सोहराब ने नर्म लहजे में हाशना से पूछा।

हाशना ने उस आदमी को ध्यान से देखते हुए कहा, “नहीं मैंने इसे पहले कभी नहीं देखा।”

सोहराब के लिए इतना काफी था। उसने जेब से रेशम की डोर निकाली और उसके हाथ और पैर बांध कर जमीन पर डाल दिया। सोहराब ने सौ नंबर पर फोन करके घटना की इत्तेला दी। उसने पुलिस फोर्स को एंबुलेंस के साथ भेजने की हिदायत देने के बाद फोन काट दिया।

“आप कार में आराम से बैठ जाइए।” सोहराब ने हाशना से कहा।

हाशना फैंटम की आगे की सीट पर बैठ गई। उसने आंखें बंद कर ली थीं।

इंस्पेक्टर सोहराब ने सिगार केस से एक सिगार निकाली और उस का कोना तोड़ने के बाद उसे सुलगा लिया। वह काफी गंभीर नजर आ रहा था। वह वहां से हट कर गोली से मरे बदमाश की तरफ चला गया।

आबादी के दूसरे मकान कोठी से दूर थे। यही वजह थी कि इतनी गोलीबारी के बाद भी कोई इधर नहीं आया था। शायद उन्हें आवाज न सुनाई दी हो। हालांकि सोहराब के एक बात समझ में नहीं आई थी। हाशना इस वक्त घर पर अकेली क्यों थी? उसे उसके बाबा भी कहीं नजर नहीं आ रहे थे! न ही कोई नौकर-चाकर ही दिखा था! आखिर यह माजरा क्या है?


हरकत


सार्जेंट सलीम ने पार्किंग से मोटरसाइकिल निकाली और गीतिका के ऑफिस की तरफ चल दिया। जब वह वहां पहुंचा तो गीतिका के ऑफिस से निकलने में पांच मिनट बाकी थे। हमेशा की तरह गीतिका ऑफिस छूटने से पहले ही निकल आई। उसके लिए कार तैयार थी। वह कार में बैठ गई और कार वहां से रवाना हो गई। कार के कुछ दूर जाने के बाद सार्जेंट सलीम ने भी मोटरसाइकिल स्टार्ट की और कार के पीछे चल दिया। उसने इस बात पर खास नजर रखी थी कि उसका या गीतिका का पीछा तो नहीं किया जा रहा है।

गीतिका की कार उसके घर के सामने रुक गई। वह कार से उतरी और कार सीधे चली गई। इसके बाद गीतिका ताला खोल कर अंदर चली गई। अंदर लाइट जलने से खिड़की और रोशनदान चमक उठे थे। सार्जेंट सलीम एक बार गीतिका का घर अंदर से देखना चाहता था। उसे यह बड़ा अजीब लगता था कि कोई इतने बड़े घर में अकेले कैसे रहता है! वह भी एक लड़की!

सलीम दूसरी पटरी पर चला गया और वहां अपनी मोटरसाइकिल किनारे लगा कर चाय खाने में जा कर बैठ गया। उसने सिगरेट तलब की और उसे सुलगा कर धुंए के छल्ले बनाने लगा। उसने इलायची वाली चाय का भी आर्डर दे दिया था। वह पूरे इत्मीनान में था।

सार्जेंट सलीम इस केस के बारे में सोचने लगा। कैसा सीधा साधारण सा नजर आने वाले केस कत्ल और हमलों तक पहुंच गया था। सब से अजीब बात यह थी कि इतनी मगजमारी के बाद भी कोई सुराग हाथ नहीं लगा था। मकसद तो बहुत दूर की बात थी। अचानक उसके दिमाग में एक बात आ कर अटक गई। ‘कहीं ऐसा तो नहीं है कि गीतिका ही अपराधी हो? उस पर शक न हो इसलिए खुफिया विभाग से ही मिल बैठी हो? खुफिया विभाग को उलझा कर अपना उल्लू सीधा कर रही हो?’

यह सवाल उसे बुरी तरह मथने लगे। लड़का चाय की प्याली उसके सामने रख कर चला गया। सलीम ने चाय उठाई और उसकी एक जोर की चुस्की ली। चुस्की इस कदर तेज थी कि कुछ लोग उसकी तरफ मुड़ कर देखने लगे। जाने उसने ऐसा क्यों किया था, लेकिन यह हो गया था। उसे बड़ी शर्मिंदगी हुई अपनी इस हरकत पर।


बॉस


सोहराब की गोली से बच गए दोनों बदमाश चंदन के जंगल से भागते हुए मेन रोड पर आ गए थे। वहां एक कार उन का पहले से इंतजार कर रही थी। उन दोनों के बैठते ही कार रवाना हो गई।

कार तेज रफ्तार से भागी चली जा रही थी। रात का वक्त होने की वजह से रोड सुनसान पड़ी हुई थी। सिर्फ सड़क पर इस कार हेडलाइट्स का घेरा ही नजर आ रहा था। कुछ दूर जाने के बाद कार सिसली रोड की तरफ मुड़ गई। कुछ किलोमीटर बाद कार बांई तरफ एक ढलान पर उतरने लगी। वहां कार एक चौड़ी सी चट्टान पर रुक गई। इसके साथ ही चट्टान नीचे की तरफ जाने लगी। कुछ देर बाद वह चट्टान रुक गई और कार सामने की एक गुफा में चली गई।

कार के गुफा में जाते ही चट्टान फिर ऊपर जा कर अपनी जगह पर फिक्स हो गई। ऊपर से देखने पर सिर्फ चट्टान ही नजर आती थी। चट्टान को देख कर कोई कह नहीं सकता था कि इसके नीचे एक रास्ता भी है।

कार गुफा के दूसरे मुहाने पर पहुंच कर रुक गई। दोनों बदमाश उस से नीचे उतर आए। इसके बाद वह चलते हुए बाईं तरफ मुड़ गए। उन्होंने एक बटन दबाया और दीवार एक तरफ सरक गई। दीवार के उस तरफ एक बड़ा सा हाल था।

इस हाल में रोशनी का पर्याप्त इंतजाम था। कई सारे बल्ब जल रहे थे। एक तरफ एक बड़ी सी मेज के चारों तरफ कई सारी कुर्सियां रखी हुई थीं।

वह दोनों एक तरफ जा कर खड़े हो गए। दोनों ही विदेशी थे। कुछ देर बाद सामने की स्क्रीन पर एक आदमी नजर आया। वह कुर्सी पर बैठा हुआ था। कैमरा कुछ इस तरह से लगाया गया था कि सिर्फ उसके होंठ ही नजर आ रहे थे। बाकी चेहरा स्क्रीन से गायब था।

कुछ देर बाद उसके होंठ हिले और आवाज आई, “रिपोर्ट!”

एक बदमाश ने बताना शुरू किया, “बॉस सब कुछ बहुत आसानी से और प्लान के मुताबिक ही हुआ था, लेकिन वह जाने कहां से अचानक आ टपका और सब गड़बड़ हो गई।”

होंठ फिर हिले और आवाज आई, “बात जारी रखो।”

“बॉस हम जीप पर लड़की को ले कर भागने ही वाले थे कि अचानक एक आदमी जाने कहां से आ गया। उसने जीप के आगे के दोनों टायर पंक्चर कर दिए। हमने उसे घेरने की बहुत कोशिश की लेकिन वह बहुत होशियार निकला। किसी भी तरह काबू में नहीं आया। उसकी गोली से विटसन मारा गया।”

होंठ से आवाज आई, “पिंच भी नजर नहीं आ रहा है?”

इस सवाल पर दोनों बदमाश एक दूसरे का मुंह देखने लगे। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

होठों से फिर आवाज आई, “जवाब चाहिए!”

“बॉस वह हमें कहीं नजर नहीं आया। वह भागते वक्त जीप में भी नहीं था हमारे साथ।”

“ठीक है आराम करो। अगली टास्क जल्द मिलेगी।” होठों ने कहा और स्क्रीन ऑफ हो गई।


गिरफ्तारी


पुलिस मौकए वारदात पर पहुंच गई थी। बदमाश की लाश को एंबुलेंस से सदर अस्पताल के लाशघर भेज दिया गया था। पुलिस ने जाब्ते की कार्रवाई करने के बाद बंधे हुए बदमाश के हथकड़ी लगा दी और उसे जीप में ले कर रवाना हो गई।

बदमाश पुलिस वालों के बीच एक दम शांत बैठा था। पुलिस की गाड़ी तेजी से थाने की तरफ भागी चली जा रही थी। मौकए वारदात पर पहुंचे पुलिस इंस्पेक्टर को समझ में नहीं आ रहा था कि बदमाश को रात भर हवालात में रखना है या फिर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना है। वह यह बातें सोहराब से पूछना भूल गया था। बदमाश के विदेशी होने की वजह से इंस्पेक्टर मौके की गंभीरता को समझ रहा था।

कुछ देर बाद गाड़ी थाने में पहुंच गई। इंस्पेक्टर जीप की अगली सीट से उतर कर अंदर जाने लगा और कांस्टेबल बदमाश को उतार कर हवालात की तरफ ले जाने लगी। तभी बदमाश कटे पेड़ की तरह जमीन पर आ पड़ा। उस ने जरा सी जुंबिश भी नहीं की थी। इसके बाद उसे ले जा रहे पांचों कांस्टेबलों में भगदड़ मच गई।


*** * ***


हाशना की जान क्यों लेना चाहते थे बदमाश?
थाने लाए जा रहे दूसरे बदमाश के साथ क्या हुआ था?

इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘अनोखा जुर्म’ का अगला भाग...