" तुम्हारे पास लाइसेंस है क्या ?" जूही ने वीर प्रताप से पूछा।
" जब मैं अपनी नई पहचान बनाता हुं, उसी के साथ सारे जरूरी दस्तावेज भी बना लेता हु। उसमें ड्राइविंग लाइसेंस भी आता है।" वीर प्रताप।
" वैसे तुम्हारा नाम क्या है ?" जूही के इस सवाल को सुन वीर प्रताप ने गाड़ी रोक दी और उसे घूरने लगा। " अगर तुम नही बताना चाहते तो कोई परेशानी नहीं है। मैने सोचा मुझे जिसकी दुल्हन बनना है, उसका नाम तो कम से कम पता होना चाहिए। "
" वीर प्रताप सिंग " उसने उसे देखते हुए जवाब दिया। " मैं चौक गया क्योंकि आज तक किसीने मुझसे नाम पूछने की हिम्मत नहीं की।"
" ओ..... इस साल काफी कुछ पहली बार हो रहा है तुम्हारे साथ।" वीर प्रताप अभी भी अपने पास बैठी जूही को घुरे जा रहा था। " शुरू हो गया।"
" क्या ?" उसने पूछा।
" सिग्नल।" जूही ने सामने की तरफ इशारा किया।
" तुमने लंच किया ?" वीर प्रताप।
" नही।" जूही।
" करना है ?" वीर प्रताप।
" तुम मुझे लंच डेट पर ले जाना चाहते हो। तो साफ साफ बता दो। मुझे कोई परेशानी नहीं है। " जूही।
" नही खाना तो रहो भूखी।" वीर प्रताप।
" ऐसी कोई बात नहीं है। खाना है। चलो चलो।" जूही।
" ठीक है।" वीर प्रताप ने अपने घर के बाहर गाड़ी पार्क की।
" हम तो घर आ गए।" जूही।
" तुम क्यों भूल जाती हो की तुम किसके साथ हो।" वीर प्रताप गाड़ी से बाहर उतरा, और जब उसने जूही के लिए दरवाजा खोला वो दोनो कैनेडा पोहोच चुके थे।
" वाउ कैनेडा। फिर से। क्या हम दोनो हनीमून पर है।" जूही ने उसका हाथ पकड़ते हुए पूछा।
" मैं वापस जा रहा हूं, तुम यहीं रहो।" वीर प्रताप ने वापस जाने का नाटक किया तभी फिर जूही ने उसका हाथ पकड़ा।
" सॉरी सॉरी। मज़ाक नही प्लीज़।" वीर प्रताप ने जूही को एक नजर देखा। उसे होटल ले गया।
" हम हर बार यही खाना खाने क्यो आते है ?" जूही ने खाते हुए पूछा।
" क्यों की ये कैनेडा का बेस्ट होटल है।" वीर प्रताप के जवाब में जूही ने हा में गर्दन हिलाई। " मुझे तुमसे कुछ पूछना था।"
" हा। पूछो ना।" जूही।
" मुझे जरा बताओ, की तुम्हे तलवार के हैंडल पर क्या दिख रहा है?" वीर प्रताप का सवाल सुन जूही गुस्सा हो गई।
उसने गुस्से में छुरी मास पर चलाई, मानो वो वीर प्रताप को वार्निंग दे रही हो। " तुम्हे अब भी मुझ पर भरोसा नहीं है क्या ? क्या ये लंच एक तरह की रिश्वत है ?"
" अरे । तुम गलत समझ रही हो। ऐसा कुछ भी नहीं है मैं बस तुम्हे और जानना चाहता हूं। और चाहता हूं की तुम भी मेरे बारे में ज्यादा जानो।" वीर प्रताप को यकीनन काफी सालों का अनुभव था औरतों को संभालने में जो उसे ऐसे वक्त काम आता था।
जूही ने तुरंत उसकी मीठी बातों पर यकीन कर लिया। " सच में ?" वीर प्रताप ने बस गर्दन हिला कर हां में जवाब दिया। " ओह....... तुम्हारे तलवार के हैंडल पर..." जुहिने उसके सीने की ओर ध्यान से देखा। " ओ ये तो टाइगर है। दौड़ता हुआ टाइगर।"
" हां, बिल्कुल सही। टाइगर ये एक सफेद बाघ है। जानती हो ना वो कितने अनोखे होते है। ये उनके भगवान की तलवार है।"
" वाउ...... क्यूट।" जूही ने मुस्कुराते हुए कहा। जूही के साथ इस तरीके से हसी मज़ाक करते हुए, वीर प्रताप ने पूरी पुष्टि कर ली।
हा तुम ही अनोखी दुल्हन हो। मेरी दुल्हन। जिसने इतनी सदियों बाद जन्म लिया है। वो भी सिर्फ मेरे लिए। वीर प्रताप ने सोचा।
" अब हम कहा जाएंगे?" जूही ने पूछा।
" कहा जाना है तो बताओं।" वीर प्रताप एक बगीचे में जूही के साथ बैठा था।
" तुम यही इंतेजार करो मैं आती हु। मेरे आने तक इसे पढ़ो।" उसने अपनी बैग से एक कविताओं की एक किताब निकाली और वीर प्रताप के हाथ में थमा दी।
" ठीक है।" वीर प्रताप को फिक्र नहीं थी, उसे यकीन था की उसके आस पास जूही को बिलकुल भी तकलीफ नहीं होगी।
जूही उस होटल गई, जहा वीर प्रताप उसे पहली बार ले गया था। उसने एक पेपर लिया उसमें कुछ लिखा और पास ही में रखे पोस्ट बॉक्स में डाल दिया। फिर वो वीर प्रताप के पास जाने के लिए निकली। वीर प्रताप सामने बगीचे में बैठा था। जूही रास्ते पर गाड़ियों के रुकने का इंतजार कर रही थी। जूही ने जैसे ही रास्ते पर कदम रखा, रास्ते पर रंगबेरंगी लकीरें बन गई। जैसे ही जूही ने उन लिकिरो पे कदम रखे वो रोशनी से जगमगाने लगी। जूही को मज़ा आ रहा था। वो खुश थी। बेजिझक मुस्कुराए जा रही थी। उसका चेहरा खिला हुआ था।
उसे देख वीर प्रताप सोच में पड़ गया।
" न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम कहता है, की जो भी चीज इस धरती पर जन्मी है। उसके वस्तुमान जितनी चीजों को अपनी तरफ खींचती है। गलत बिल्कुल गलत, फूलो की पंखुड़ी जितनी लड़की मुझे सूरज की किरणों से भी ज्यादा तेजी से अपनी तरफ खींच रही है। मैं भी उसकी ओर चलता जा रहा हु, बिना रुके। हां ये वही है। वही चेहरा वोही आंखे। मैं समझ कैसे नही पाया। ये चेहरा मैने अपने इंसानी रूप के आखरी दिन खेतो में पड़ी उस रोशनी के बीच देखा था। मेरी आखरी उम्मीद, जिसके लिए मैं इतने साल जिया हूं। तुम ही तो हो।"
" क्या सोच रहे हो ?" जूही ने वीर प्रताप को उसकी सोच से बाहर निकाला। " वो तुम्ही थे ना, जिसने रास्ते पे अभी इंद्रधनुष बनाया। वाउ कितना अच्छा था। मुझे सेलेब्रिटी वाली फीलिंग आ रही थी। क्या ये मेरा तुम्हारी जिंदगी में रखा पहला कदम था?"
" ये किस तरह की बचकानी बाते करती हो तुम ?" वीर प्रताप ने पास ही के फव्वारे से पानी ले कर उस पर डाला। " होश में आ जाओ ।"
जूही चौक गई, " अच्छा तो अब ये हमारी पहली लड़ाई है, वो भी पानी की। ठीक है।" जूही ने पानी लिया और उस पर डाला। लेकिन वीर प्रताप तुरंत उसके पास से गायब हो कर फव्वारे के पास पोहच गया। जूही ने फिर पानी भरा , जैसे ही डालने की कोशिश की वीर प्रताप गायब। " ये तो गलत है। तुम हर बार अपनी शक्तियोका इस्तेमाल नहीं कर सकते।"
" कर सकता हू।" वीर प्रताप ने फिर पानी ले कर जूही पर उड़ाया।
" अब मुझे पता चला, पति पत्नी के बीच की लड़ाई को पानी से काटना क्यो कहते है। " जूही रूठ कर उसके पास बैठ गई।
" गलत। ऊसे पानी को काटना नही कहते । इसे कहते है।" वीर प्रताप ने फव्वारे से अपनी जगमगाती तलवार निकाली।
जूही फिर चौक गई। " वाउ,,,, वो.... तुम कितने कुल हो पता है। तुम कितने हैंडसम लग रहे थे।"
जूही से अपनी तारीफे सुन वीर प्रताप के चेहरे पर गुलाबी लाली छा गई।