Christmas tree and wedding in Hindi Moral Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | क्रिसमस ट्री और विवाह

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क्रिसमस ट्री और विवाह

दॉस्तोवस्की की कहानी “द क्रिसमस ट्री एण्ड द वेडिंग” का अनुवाद

एक दिन मैं एक विवाह में गया ….  लेकिन नहीं, मैं तुम्हें विवाह के बारे में नहीं, क्रिसमस ट्री के बारे में बताऊँगा। विवाह समारोह लाजवाब था। मुझे बहुत पसन्द आया। लेकिन दूसरी घटना इससे भी रोचक थी। मैं नहीं जानता कि क्यों विवाह के दृश्य ने मुझे क्रिसमस ट्री की याद दिला दी। लेकिन हुआ ऐसा ही।

ठीक पाँच वर्ष पूर्व, नव वर्ष की पूर्व संध्या पर, व्यापार जगत के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति, जिसके बड़े-बड़ों से सम्बन्ध थे, परिचितों का समूह था, और बड़ी बात, जो साज़िशों-घोटालों के लिए प्रसिद्ध था, ने मुझे बच्चों के एक कार्यक्रम में निमन्त्रित किया था। ऐसा लगता था जैसे कि बच्चों के कार्यक्रम के बहाने उनके माता-पिताओं को इकट्ठा होने तथा आपसी हितों पर अनौपचारिक ढंग से विचार-विमर्श करने का अवसर प्रदान किया गया था।

मैं बाहरी व्यक्ति था, और क्योंकि मेरे पास कुछ विशेष कहने को न था, इसलिए मैं दूसरों से अलग स्वतन्त्र रूप से वह शाम गुज़ार पाया था। वहाँ मेरी ही तरह का एक और भद्र पुरुष था जो इस घरेलू समारोह में अचानक आ टपका था। मेरा ध्यान सर्वप्रथम उसी ने आकर्षित किया। अपने हाव-भाव से वह किसी उच्च परिवार से सम्बन्धित नहीं लगता था। वह लम्बा, लेकिन पतला था और आकर्षक परिधान में गम्भीरता ओढ़े हुए था। प्रकटतया उसकी पारिवारिक जश्न में कोई रुचि नहीं थी। जैसे ही वह एक कोने में गया, उसके चेहरे की मुस्कान लुप्त हो गई और उसकी घनी भौंहें ग़ुस्से में तन गईं। वह मेज़बान के अतिरिक्त किसी को नहीं जानता था, इसलिए बोरियत से घुटन के चिह्न प्रकट होते हुए भी वह निरन्तर दिखाने का प्रयास कर रहा था जैसे कि वह समारोह का पूरा आनन्द ले रहा है। बाद में मुझे पता चला कि वह बाहरी प्रान्त से राजधानी में किसी महत्त्वपूर्ण बिज़नेस के सिलसिले में मेज़बान के नाम सिफ़ारिशी पत्र लेकर आया था और मेज़बान ने बिना किसी उत्साह के उसे अपनी शरण में ले लिया था। औपचारिक शिष्टाचार के नाते ही मेज़बान ने उसे बच्चों के कार्यक्रम में निमन्त्रित कर लिया था।

उन्होंने न तो उसे ताश के खेल में सम्मिलित किया और न ही उसे सिगार भेंट किया। किसी ने भी उससे बातचीत नहीं की। सम्भवतः वे दूर से ही पंछी के पंख देखकर पहचान गए थे। इस प्रकार, यह व्यक्ति कुछ और करने को न होने के कारण शाम का समय मूँछों को ताव देने में ही लगा रहा। उसकी मूँछें, वास्तव में, बहुत सुन्दर थीं, लेकिन वह मूँछों को इतनी लगन से मरोड़ रहा था कि लगता था जैसे मूँछें संसार में पहले आई हों और वह स्वयं उन्हें मरोड़ने के लिए बाद में आया हो!

एक और अतिथि था जो मुझे अच्छा लगा। लेकिन वह अलग स्वभाव का था। वह एक पात्र था। उसका नाम जूलियन मस्तकोविच था। प्रथम दृष्टि में कहा जा सकता था कि वह एक सम्मानित अतिथि है और मेज़बान के साथ उसका वही सम्बन्ध है जो मेज़बान का मूँछों वाले व्यक्ति के साथ था। मेज़बान और मालकिन बहुत ध्यान से उसे प्रभावित करने के लिए उसकी प्रशंसा कर रहे थे और अतिथियों को उसका परिचय करवा रहे थे, लेकिन उसे कहीं ओर नहीं जाने दे रहे थे। मैंने मेज़बान की आँखें नम होते देखीं जब जूलियन मस्तकोविच ने कहा कि उसने ऐसी आनन्ददायक शाम शायद ही गुज़ारी हो! न जाने क्यों, इस पात्र की उपस्थिति में मैं स्वयं को सहज महसूस नहीं कर रहा था। अत: हमारे मेज़बान के पाँच स्वस्थ एवं प्रसन्न बच्चों के साथ कुछ देर तक मस्ती करने के बाद मैं एक ख़ाली पड़े छोटे से कमरे में चला गया और एक कोने में बैठ गया जो कि एक भंडार-कक्ष था और आधे से अधिक भरा हुआ था।

बच्चे बहुत प्यारे थे। माताओं तथा दाई-माँओं के लाख प्रयत्नों के बावजूद वे अपने बड़ों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते थे। पल भर में, उन्होंने क्रिसमस ट्री की शाखाओं को मिठाइयों से मरहूम कर दियाऔर आधे से अधिक खिलौनों को तोड़-मरोड़ दिया था यह जाने बिना कि कौन-सा खिलौना किसका था।

उनमें से एक बच्चा काली आँखों और घुंघराले बालों वाला विशेष रूप से सुन्दर था, जो अपनी लकड़ी की बंदूक़ से निरन्तर मुझ पर निशाना साध रहा था। लेकिन उससे अधिक जिस बच्चे ने मेरा ध्यान आकर्षित किया वह थी लगभग ग्यारह वर्षीय उसकी बहन, जो अप्सरा जैसे सौन्दर्य की मूर्ति थी। चौड़ी तथा सपनीली आँखों वाली वह बच्ची बहुत ही शान्त तथा गम्भीर थी। बच्चों ने उसे किसी तरह नाराज़ कर दिया था और वह उनसे अलग होकर उसी कमरे में चली आई थी जिसमें मैं था। वह अपनी गुड़िया के साथ एक कोने में बैठ गई।

“उसके पिता बहुत ही समृद्ध व्यापारी हैं,” अतिथि एक-दूसरे को गुप-चुप ढंग से बतिया रहे थे, “उसने उसके दहेज के लिए तीन लाख रूबल अलग रखे हुए हैं।”

जिस जन-समूह से यह बात निकली थी, जैसे ही मैंने उस तरफ़ देखा कि मेरी नज़रें जूलियन मस्तकोविच की नज़रों से टकराईं। वह अपने हाथ पीठ पीछे किए तथा सिर एक तरफ़ किए इस बातचीत को बड़े ध्यान से सुन रहा था।

इस दौरान मैं हमारे मेज़बान द्वारा उपहारों के वितरण में बरती जा रही सूझबूझ को प्रशंसनीय दृष्टि से देख रहा था। दहेज की हक़दार नन्हीं बालिका को सर्वाधिक सुन्दर गुड़िया दी गई और अन्य उपहारों को मूल्य की दृष्टि से बच्चों के माता-पिताओं के घटते हुए जीवन-स्तर के अनुसार दिया गया। अंतिम बच्चे, जो कि दस वर्ष का मरियल-सा भूरे बालों वाला बालक था, के हिस्से में बिना चित्रों वाली एक छोटी-सी प्रकृति से सम्बन्धित कहानियों की पुस्तक आई। वह आया का बच्चा था। उसकी माँ गरीब विधवा थी और बच्चा फटे-पुराने कपड़ों में बहुत ही दब्बू-सा लग रहा था। उसने प्रकृति से सम्बन्धित कहानियों की पुस्तक ली और अन्य बच्चों के खिलौनों की ओर ललचाई नज़रों से देखने लगा। वह उनसे खेलने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। लेकिन उसकी ऐसा करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। आप समझ सकते हैं कि वह अपनी औक़ात जानता था।

मुझे बच्चों को देखना अच्छा लगता है। उन्हें अपनी मौलिकता दिखाने के लिए प्रयास करते हुए देखना और अच्छा लगता है। मैं अनुभव कर रहा था कि भूरे बालों वाले बालक के मन में अन्य बालकों की चीजों के प्रति चाहना थी, विशेषकर खिलौना-नाट्यशाला, जिसमें भाग लेने के लिए वह इतना उत्सुक था कि उसने दूसरे बच्चों की चापलूसी करने की भी ठान ली। वह मुस्कुराया और बच्चों के साथ खेलने लगा। उसने एक गोलमटोल बालक जिसकी जेबें पहले से ही मिठाइयों से भरी हुई थीं, को अपना एकमात्र सेब भी दे दिया और एक अन्य बच्चे का पिट्ठू बैग भी उठाया। यह सब उसने इसलिए किया ताकि वह खिलौना-नाट्यशाला में भाग ले सके।

लेकिन कुछ ही क्षणों में एक शरारती बालक ने उसे गिरा दिया और उसकी पिटाई की। वह रोने का साहस भी नहीं कर पाया। आया आई और उसे दूसरे बच्चों की गेम्स में हस्तक्षेप न करने के लिए समझाया और वह उसी कमरे में आ गया जिसमें मैं तथा नन्हीं बालिका बैठे थे। लड़की ने उसे अपने पास बिठा लिया और दोनों क़ीमती गुड़िया को कपड़े पहनाने में व्यस्त हो गए।

मैं भंडार कक्ष के पास बैठा भूरे बालों वाले बच्चे तथा सौन्दर्य की मूर्ति बालिका के बीच हो रही गपशप को आधा-अधूरा सुन रहा था, क्योंकि मैं लगभग ऊँघ रहा था। कोई आधा घंटा गुजरा होगा कि जूलियन मस्तकोविच ने अचानक प्रवेश किया। बच्चों के हल्ले-गुल्ले के बीच वह ड्राइंगरूम से निकल आया था। एकान्त कोने में जहाँ मैं बैठा था, मैं वहाँ से बड़े आराम से देख सकता था कि कुछ क्षण पूर्व वह धनी लड़की के पिता, जिससे उसका परिचय करवाया गया था, से बेसब्री से बातचीत कर रहा था।

कुछ देर तक वह सोचता और बुड़बुड़ाता हुआ खड़ा रहा जैसे उँगलियों पर कुछ गिन रहा हो। “तीन सौ …. तीन सौ …. ग्यारह, बारह, तेरह, सोलह …. पाँच साल में! मान लो चार प्रतिशत … पाँच गुणा बारह … साठ, और इन साठ पर … मान लें कि पाँच साल में ये हो जाएँगे… चलो चार सौ! हूँ…हूँ! लेकिन बुढ़ा लोमड़ चार प्रतिशत पर सहमत नहीं होगा। वह आठ और शायद दस प्रतिशत लेता है। मान लें पाँच सौ, पाँच लाख, हाँ यह ठीक होगा। उसके ऊपर जेब खर्च … हूँ .. हूँ!”

उसने नाक सिडुकी और जैसे ही कमरे से निकलने लगा कि उसकी नज़र लड़की पर पड़ी और वह रुक गया। मैं पौधों के पीछे था, इसलिए उसका ध्यान मेरी नहीं गया। मुझे लगा, वह उतेजना से काँप रहा था। हो सकता है, उसने जो गणना की थी, उसकी वजह से वह उत्तेजित हो। वह हाथ मलते हुए कभी यहाँ, कभी वहाँ घूम रहा था और उसकी उतेजना बढ़ती ही जा रही थी। आख़िरकार, उसने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण किया और एक जगह रुक गया। उसने भावी दुल्हन पर निश्चयात्मक दृष्टि डाली और उसकी ओर जाना चाहा। लेकिन इससे पहले उसने इधर-उधर देखा। तब जैसे उसकी अन्तरात्मा उसे धिक्कार रही हो, वह दबे-पाँव मुस्कुराते हुए लड़की की ओर बढ़ा, नीचे झुका और उसने उसके माथे को चूम लिया।

उसका आना इतना अप्रत्याशित था कि बच्ची चीख उठी।

“प्यारे बच्चे, तुम यहाँ क्या कर रही हो?” उसने इर्द-गिर्द देखते हुए फुसफुसा कर पूछा और उसकी गाल पर चिकोटी भर ली।

“हम खेल रहे हैं।”

“क्या! उसके साथ?” जूलियन मस्तकोविच ने आया के बच्चे की ओर हिक़ारत की नज़र से देखते हुए कहा। “बच्चे, तुम ड्राइंगरूम में जाओ,” उसने बालक को कहा।

बच्चा चुप रहा और हैरानी से उसकी ओर देखने लगा। जूलियन मस्तकोविच ने फिर बड़ी सावधानी से इधर-उधर देखा और लड़की के ऊपर झुक गया।

“प्रिय, देखूँ क्या है तुम्हारे पास, गुड़िया?”

लड़की ने भयभीत होते तथा भौंहें सिकोड़ते हुए कहा, “हाँ, श्री मान जी।”

“एक गुड़िया? प्रिय, क्या तुम जानती हो कि गुड़िया किस चीज़ की बनी होती हैं?”

“नहीं, श्री मान जी,” उसने धीरे से उत्तर दिया और सिर झुका लिया।

“प्रिय, फटे-पुराने कपड़ों से इन्हें बनाते हैं। ओए लड़के, तू ड्राइंगरूम में जाकर बच्चों के साथ खेल,” जूलियन मस्तकोविच ने क्रोधित होकर लड़के को कहा।

दोनों बच्चों को ग़ुस्सा आया। उन्होंने एक-दूसरे को पकड़ लिया, लेकिन जुदा नहीं हुए।

“और जानती हो, उन्होंने तुम्हें गुड़िया क्यों दी?” जूलियन मस्तकोविच ने अपनी आवाज़ बहुत धीमी करके पूछा।

“नहीं।”

“क्योंकि तुम सारा हफ़्ता अच्छी, बहुत अच्छी लड़की बनकर रही थी।”

ऐसा कहते हुए जूलियन मस्तकोविच अचानक आवेग-ग्रसित हो गया। उसने अपने आसपास देखा औरबहुत ही धीमी, लगभग न सुनाई पड़ने वाली किन्तु काँपती आवाज़ में कहा, “प्रिय, यदि मैं तुम्हारे माता-पिता से मिलने आऊँ तो क्या तुम मुझसे प्यार करोगी?”

उसने नन्हीं, प्यारी-सी बच्ची को चूमना चाहा, किन्तु भूरे बालों वाले बच्चे ने देख लिया कि वह रोने की कगार पर है और उसका हाथ पकड़कर सहानुभूति में ज़ोर-ज़ोर से सुबकने लगा। इससे आदमी को क्रोध आ गया।

“भागो यहाँ से! भागो! जाओ दूसरे कमरे में अपने साथियों के साथ जाकर खेलो।”

“मैं नहीं चाहती कि वह जाए! मैं उसे नहीं जाने दूँगी। तुम जाओ यहाँ से!” लड़की चिल्लाई। “मुझे अकेला छोड़ दो! अकेला छोड़ दो मुझे!” वह रोते हुए कहने लगी।

तभी दरवाज़े में पदचाप सुनाई दी। जूलियन मस्तकोविच सीधा खड़ा होकर स्वयं को व्यवस्थित करने लगा। भूरे बालों वाला बालक भी चौकस हो गया। उसने लड़की का हाथ छोड़ दिया, दीवार की ओर खिसकते हुए ड्राइंगरूम में से होते हुए भोजन-कक्ष में चला गया।

किसी के ध्यान से बचने के लिए जूलियन मस्तकोविच भी भोजन-कक्ष की ओर चला गया। उसका चेहरा झींगा मछली सा लाल था। दर्पण में स्वयं का चेहरा देखकर उसे परेशानी हुई। शायद उसे अपनी नादानी तथा लालसा पर ग्लानि हुई। मर्यादा और शान को ताक पर रखकर उसे उसकी गणना ने इतना मोहित कर दिया था कि अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए बचकानी हरकत कर बैठा था, यद्यपि अभी तो लक्ष्य तय भी नहीं हुआ था, वह तो पाँच साल बाद की बात थी। मैं भी उसका अनुसरण करते हुए भोजन-कक्ष में पहुँच गया जहाँ अद्भुत नजारा देखने को मिला।

हताशा से भरा जूलियन मस्तकोविच ज़हरीली नज़र से भूरे बालों वाले बच्चे को धमकाने लगा। भूरे बालों वाला बच्चा पीछे हटता गया जब तक कि पीछे हटने के लिए कोई स्थान बाकी नहीं रहा। बेचारे को भय के मारे समझ ही नहीं आ रहा था कि किधर जाए।

“निकलो यहाँ से! यहाँ तेरा क्या काम है? मूर्ख बालक, मैं कह रहा हूँ, निकलो यहाँ से! तू फल चुरा रहा था? ओह, तो फल चुरा रहा था! बदमाश, निकलो यहाँ से, अपने जैसों के पास जाओ!”

आख़िरी सहारे के लिए भयभीत बालक टेबल के नीचे घुस गया। प्रताड़ित करने वाले ने क्रोधित होकर उसके कुर्ते के कालर को पकड़कर उसे बाहर घसीटा।

यहाँ मैं बताना चाहूँगा कि जूलियन मस्तकोविच मोटी चमड़ी, विशाल काया, उभरी गालों, तोंद और गोलमटोल घुटनों वाला व्यक्ति था। वह पसीने-पसीने हो रहा था तथा हाँफ रहा था। बच्चे के प्रति उसकी घृणा (या कहिए, उसकी ईर्ष्या) इतनी घनी थी कि वह पागलों की तरह बर्ताव कर रहा था।

मैं दिल खोलकर हँसा। जूलियन मस्तकोविच घूमा। वह पूरी तरह विस्मित था। वास्तव में, उस समय वह अपनी महत्ता भूल गया था। उसी समय सामने वाले दरवाज़े से हमारे मेज़बान आए। बच्चा टेबल के नीचे से बाहर आया, उसने अपने घुटने और कोहनियाँ साफ़ कीं। जूलियन मस्तकोविच ने फुर्ती से उसके कुर्ते के कालर, जिसे वह अब तक हवा में लहरा रहा था, को उसकी नाक पर रखा। हमारे मेज़बान ने हम तीनों को संदेह की निगाह से देखा। लेकिन दुनियादारी की अच्छी समझ और परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढाल लेने में सक्षम, उस व्यक्ति ने अवसर का फ़ायदा उठाते हुए अपने माननीय मेहमान को अपने संरक्षण में लिया और जो वह उससे चाहता था, प्राप्त कर लिया।

भूरे बालों वाले बच्चे की ओर संकेत करते हुए उसने कहा,

“यही वह लड़का है, जिसके बारे में मैंने आपसे ज़िक्र किया था। आपके वास्ते ही मैंने इसे बुलाया था।”

“ओह!” जूलियन मस्तकोविच जोकि अभी तक पूरी तरह से संभल नहीं पाया था, ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

हमारे मेज़बान ने बिनती करते हुए कहा,

“यह मेरी आया का पुत्र है। वह एक ईमानदार कर्मचारी की गरीब विधवा है। इसलिए, यदि आपके लिए सम्भव हो तो…”

“असम्भव, असम्भव!” जूलियन मस्तकोविच ने फ़ौरन प्रतिवाद किया। “फिलिप अलेकस्यविच, क्षमा करना, मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैंने इन्क्वायरी करवाई है। कोई भी ख़ाली स्थान नहीं है, और दस तो प्रतीक्षा में हैं, जिनका अधिकार अधिक है, इसलिए मुझे खेद है।”

हमारे मेज़बान ने कहा,

“मुझे अच्छा तो नहीं लग रहा। … यह बिल्कुल शान्त और नम्र स्वभाव का है।”

जूलियन मस्तकोविच ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा,

“मेरे विचार में तो यह बहुत ही शरारती और बदमाश है। लड़के, जाओ यहाँ से। अभी तक भी तू यहाँ है? जाओ, दूसरे बच्चों के पास जाओ।”

स्वयं पर नियंत्रण न रख पाने के कारण, उसने मुझे उचटती नज़र से देखा। मैं सीधा उसकी ओर देखकर हँसा। वह हमारे मेज़बान की ओर मुड़ा। मुझे सुनाते हुए उसने पूछा -

“वह अजीब-सा युवक कौन है?” उन्होंने आपस में कानाफूसी की और मुझे अनदेखा करते हुए कमरे से बाहर चले गए।

मैं ख़ूब हँसा। फिर मैं भी ड्राइंगरूम में चला गया। सभी उपस्थित मेहमान आए हुए माता-पिताओं, मेज़बान तथा मालकिन से घिरी एक महिला, जिससे उसका परिचय करवाया गया था, से आग्रहपूर्वक बातचीत कर रहे थे। महिला ने नन्हीं धनी बच्ची का हाथ पकड़ रखा था और जूलियन मस्तकोविच उसकी प्रशंसा करते अघाता न था। वह बच्ची के सौन्दर्य, उसकी प्रतिभा, सुघड़ता, अत्युत्तम पालन-पोषण पर मुग्ध हुआ जा रहा था। कहने का अभिप्राय: कि वह उसकी माँ को प्रसन्न करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा था जबकि महिला उसे सुनते हुए ख़ुशी के आँसुओं को रोकने में असमर्थ लग रही थी और पिता अपनी प्रसन्नता मुस्कराकर प्रकट कर रहा था।

यह प्रसन्नता संक्रामक सिद्ध हो रही थी, क्योंकि हर व्यक्ति उसी तरह का व्यवहार कर रहा था। यहाँ तक कि बच्चों ने भी खेलना बंद कर दिया था ताकि इस वार्तालाप में व्यवधान न पड़े। वातावरण में आतंक-सा छाया हुआ था। नन्हीं बालिका की माँ, जो हृदय की गहराइयों तक अनुगृहीत अनुभव कर रही थी, को मैंने जूलियन मस्तकोविच से विनम्रतापूर्वक पूछते हुए देखा कि क्या वह उनके घर आकर उन्हें कृतार्थ करेगा। मैंने जूलियन मस्तकोविच को बेसब्री से निमन्त्रण स्वीकार करते हुए भी सुना। तदुपरांत अतिथि कमरे में इधर-उधर हो गए। मैंने सुना, हर व्यक्ति सम्मानपूर्वक ढंग से मेज़बान व्यापारी, उसकी पत्नी, उसकी बेटी और विशेषकर जूलियन मस्तकोविच की प्रशंसा कर रहा था।

मैंने अपने परिचित जोकि जूलियन मस्तकोविच के पास खड़ा था, से पूछा,

“क्या वह व्यक्ति विवाहित है?”

जूलियन मस्तकोविच ने ज़हरीली नज़रों से मेरी ओर देखा।

“नहीं,” मेरी जान-बूझ कर की गई धृष्टता से अचम्भित होते हुए मेरे परिचित ने उत्तर दिया।

॰॰॰॰

कुछ समय पहले मैं …. के चर्च के पास से गुज़रा। वहाँ एक विवाह के लिए एकत्रित लोगों की भीड़ देखकर मैं अचम्भित रह गया। उदासी भरा दिन था। बूँदाबाँदी होने लगी थी। भीड में से रास्ता बनाते हुए मैंने चर्च में प्रवेश किया। दुल्हा अच्छा खाता-पीता, भारी भरकम तोंद वाला, ठिगना और भड़कीली पोशाक में गोलमटोल लग रहा था। वह इधर-उधर घूम-घूम करके चीजों को ढंग से रखने के लिए निर्देश दे रहा था। आख़िर सुना कि दुल्हन आ रही है। मैं भीड को चीरता हुआ आगे बढ़ा और अप्रतिम सौन्दर्य देखा, जिसके मुखारबिंद पर प्रसन्नता की झलक नदारद थी। उसकी आकृति पीलापन लिए हुए उदासीन थी। वह व्यग्र थी। मुझे ऐसा लगा जैसे कि वह अभी-अभी रोई होई हो। उसके चेहरे-मोहरे की प्रत्येक रेखा उसके सौन्दर्य और गरिमा को विशेष रूप प्रदान कर रही थी। लेकिन उसकी गम्भीरता, उदासी भी बच्ची की अल्हड़ता को ही दर्शा रही थी। उसके अंग-प्रत्यंग से अनाड़ीपन, अस्थिरता झलक रही थी, जो बिना कहे भी दया की याचना करती प्रतीत हो रही थी।

लोगों का कहना था कि वह केवल सोलह वर्ष की है। मैंने दुल्हे को ध्यान से देखा। एकाएक मैंने जूलियन मस्तकोविच को पहचान लिया, जिसे मैंने पिछले पाँच वर्षों में कभी नहीं देखा था। तब मैंने दुल्हन को एक बार फिर देखा। हे भगवान्! मैं तेज कदमों से चर्च से बाहर आया। भीड़ में मैंने लोगों को दुल्हन की दौलत के बारे में बातें करते सुना - लगभग पाँच लाख रूबल का दहेज - इसके अतिरिक्त जेब खर्च के रूप में इतना-इतना!

गली में आते हुए मैं सोच रहा था, “तो उसकी गणना सही थी।”

॰॰॰॰॰

लाजपत राय गर्ग, पंचकूला

मो.92164-46527