Sacred Relationship - 2 in Hindi Love Stories by निशा शर्मा books and stories PDF | पवित्र रिश्ता... भाग-२

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पवित्र रिश्ता... भाग-२

अगले दिन सुबह हिमांशु काफी जल्दी ही सोकर उठ गया या कहें कि वो सारी रात सोया ही नहीं ! इस तरह का आकर्षण हिमांशु अपनी ज़िंदगी में पहली बार ही महसूस कर रहा था ।छब्बीस वर्षीय हिमांशु की स्कूलिंग से लेकर कॉलेज तक की शिक्षा-दीक्षा तो ऑनली ब्यॉयज़ संस्थानों में ही हुई थी शायद इसे भी इसके एक बड़े कारण के रूप में देखा जा सकता है और इसके अलावा उसके अंतर्मुखी स्वभाव का भी इसमें काफी योगदान रहा कि आज अपने ऑफिस की न जानें कितनी महिला-सहकर्मियों का तो वो नाम तक भी ठीक से नहीं जानता है ।

रूप-रंग और व्यक्तित्व में जहाँ हमारे हिमांशु जी हर एक लड़की की पहली पसंद पर खरे उतरते हैं वहीं उनके बात करने का अंदाज़ मानो बोलें तो बस फूल ही झड़ते हैं और उनके बुद्धि-विवेक पर तो शायद ही उनके जीवन में शामिल ऐसा कोई शख्स हो, जो कि फ़िदा न हो !

हिमांशु जितनी जल्दी आज जागा था उतनी ही फुर्ती से वो तैयार भी हो गया और आज भी उसनें रोहित के फ्लैट में जाने के लिए सीढ़ियों का ही विकल्प चुना जबकि सोसायटी की लिफ्ट आज बिल्कुल दुरुस्त थी। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए हर एक पायदान के साथ हिमांशु के दिल की धड़कनें तेज़ होती जा रही थीं । वो बस एक चेहरे को अपनी आँखों में बसाये दीवानों की तरह सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा था और इन्हीं ख्यालों में डूबा न जाने कब वो रोहित के फ्लैट तक पहुँच गया शायद इसका एहसास तो उसे खुद भी न हो सका ! वो रोहित के फ्लैट की डोरबेल बजाता इससे पहले ही रोहित नें दरवाज़ा खोल दिया ।

"अरे, तू आज इतनी जल्दी ! देख इसलिए मैं भी आज जल्दी ही रेडी हो गया क्योंकि कल तू तो भईया न जानें किन ख्यालों में डूबा था और बॉस के उस चमचे, राघव की पूरी बकवास मुझ अकेले को ही झेलनी पड़ी तो भईया, आज नो लेट....चल फटाफट !", कहते हुए रोहित नें अपने फ्लैट को लॉक किया और वो दोनों लिफ्ट से सीधे नीचे और फिर सीधे ऑफिस के लिए निकल पड़े ।

अगले तीन-चार दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा । हिमांशु सीढ़ियों के रास्ते रोहित के यहाँ जाता और फिर वो दोनों लिफ्ट से होकर सीधे ऑफिस के लिए निकल जाते ।

"क्या बात है, यार ? आजकल तू बड़ा मायूस सा रहने लगा है,बता न ! घर में कोई परेशानी है क्या ?", रोहित नें लंच करने के बाद कैंटीन में अपने सामने की चेयर पर बैठे हुए हिमांशु के हाथ पर हाथ रखते हुए पूछा ।

एक बार तो जैसे हिमांशु को कुछ सुनाई ही नहीं दिया । रोहित के दोबारा उसका हाथ हिलाये जाने पर हिमांशु की तंद्रा...'हम्म' के साथ टूटी !

"कुछ नहीं यार बस ऐसे ही", हिमांशु नें अपने होठों पर एक फीकी सी मुस्कान बिखेरते हुए कहा ।

"कुछ नहीं क्या साले ? क्या मैं तुझे जानता नहीं ? हमेशा हंसने और हंसाने वाला मेरा यार,आखिर गया कहाँ ? अरे घर में तेरे कुछ दुख-तकलीफ़ है तो वो बता और अगर तेरी कोई पर्सनल बात है तो वो कह दे यार। अच्छा बता कहीं कोई प्यार-व्यार का तो मामला नहीं है न ! !", रोहित नें इस बार ज़रा सख्त लहजे में और हिमांशु को थोड़ा घूरते हुए पूछा ।

"प्यार ! प्यार-व्यार क्या ? तू पागल है क्या ? ऐसा कुछ भी नहीं है, पागल !", हिमांशु नें ज़रा सकपकाते हुए जवाब दिया और फिर वो वहाँ से उठकर ऑफिस की ओर चल दिया !

उस दिन के बाद से हिमांशु जब भी रोहित के सामने होता तो खुद को हमेशा सामान्य दिखाने की कोशिश करता लेकिन अंदर से वो अपने-आप में आये इस बदलाव को स्वयं भी बड़ी ही बारीकी से महसूस कर रहा था ।

आज रविवार है यानि कि हिमांशु की छुट्टी का दिन और हमेशा की तरह आज भी वो अपनी स्टडी-टेबल पर रखी हुई अपनी सीऐ की किताबों के साथ उलझा हुआ है । पढ़ते-पढ़ते वो ही उसका कॉफी बनाना और फिर से चुस्कियों के साथ अपनी पढ़ाई में मशगूल हो जाना,सबकुछ बिल्कुल पहले की तरह ही है । शायद वो आज सचमुच खुद में आयी पिछले कई दिनों की अपेक्षा कुछ कम बेचैनी महसूस कर रहा है । इस बीच एक या दो बार उसकी नज़र उस सामने वाले फ्लैट की खिड़की पर भी गई मगर आज वो बंद है ।

हिमांशु बस अब अपनी पढ़ाई खत्म करके उस जगह से उठने ही वाला था कि तभी अनायास ही उसकी नज़र सामने के फ्लैट की उस खिड़की पर चली गई,जो अब खुल चुकी थी और वो हराभरा पौधा अपने यथास्थान पर रखा हुआ आज भी हिमांशु को एक सुखद एहसास से भरने लगा था ।

हिमांशु उस पौधे को अपलक देख ही रहा था कि तभी वहाँ एक लड़की जिसकी उम्र शायद कोई तेईस या चौबीस वर्ष की रही होगी,उस पौधे के बिल्कुल नजदीक आकर खड़ी हो गई! उसनें हल्के आसमानी रंग की साड़ी पहन रखी थी और उसके कानों के बड़े-बड़े गोल झुमके हिलडुल कर कभी उसके चेहरे पर बिखरी हुई लटों को तो कभी उसके चेहरे को चूम रहे थे ।

हिमांशु की नज़र अब पौधे से हटकर उस लड़की पर जा टिकी थी । उस लड़की का चेहरा इतनी दूर से हालांकि धुंधला ही दिख रहा था मगर फिर भी न जाने क्यों हिमांशु को वो चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था और उसे देखकर उसके दिल को कुछ सुकून सा भी मिल रहा था मगर ये सुकून वहाँ पर चंद पलों का ही मेहमान रह सका क्योंकि अचानक ही वहाँ चली एक धूलभरी हवा के साथ ही उस लड़की नें झट से वो खिड़की बंद कर ली ।

अगले दिन हिमांशु नें अपने ऑफिस से छुट्टी ले रखी थी। दरअसल आज उसकी बड़ी बहन गरिमा और उसका पति माधव उससे मिलने के लिए आने वाले थे । हिमांशु नें बाहर से कई खानेपीने की चीज़े ऑर्डर करने के साथ ही साथ अपने हाथों से अपनी बहन की फेवरेट चावल की खीर भी बनाई थी । हिमांशु नें खिड़की से नीचे अपनी दीदी और जीजा जी की गाड़ी को जैसे ही आते हुए देखा वो तेजी से लिफ्ट से होता हुआ उन्हें रिसीव करने के लिए नीचे पहुँच गया ।

वो पार्किंग-लॉट में खड़ा उन दोनों के गाड़ी से उतरने का वेट कर ही रहा था कि तभी उसकी नज़रों के सामने से होती हुई वो ही सीढ़ियों वाली लड़की लिफ्ट में प्रवेश कर गई और हिमांशु चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया जबकि वो पिछले एक हफ्ते से बेसब्री से दोबारा होने वाले इस दीदार का इंतज़ार कर रहा था और आज जब वो दिखी भी तो इस तरह.... एक बार तो उसनें वहाँ से मुड़ने की कोशिश भी की लेकिन इससे पहले ही उसकी दीदी और जीजा जी उसके पास आकर खड़े हो गए ।

आज एक बार फिर से वो लड़की हिमांशु को बेचैन करके उसकी आँखों से ओझल हो चुकी थी !

आँखमिचौली के इस खेल में शामिल होने के लिए अगला भाग ज़रूर पढ़ें .... क्रमशः
लेखिका...
💐निशा शर्मा💐