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मीरा को महसूस हो रहा था कि इस समय जैसे उसमें एक शक्ति आ गई थी। पहले जो कमज़ोरी लग रही थी वह अब नहीं थी। हॉल में टंगी घड़ी में सुबह के चार बजकर पाँच मिनट हुए थे। मीरा ने देखा कि हॉल में एक तरफ ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां हैं। उसके बाईं तरफ मेनडोर था। उसे याद आया कि वह यहीं से अंदर आई थी। उसके कमरे के ठीक सामने सीढ़ियों के बगल में एक दूसरा कमरा था। मीरा ने हॉल में देखा उसे कोई फोन दिखाई नहीं पड़ा। उसने दूसरे कमरे में जाकर देखने का फैसला किया।
वह उस कमरे की तरफ गई। दरवाज़ा खोला। अंदर अंधेरा था। उसने हल्की रौशनी में देखा कि कमरे में एक बेड था। लेकिन बेड पर कोई नहीं था। वह कमरे में घुस गई। उसने लाइट जलाई। उसने देखा कि कमरे में एक टेबल और कुर्सी पड़ी थी। टेबल पर उसे एक मोबाइल दिखाई पड़ा। उसने वह मोबाइल उठा लिया। उसका स्क्रीन लॉक्ड नहीं था।
अंजन परेशान था इसलिए रात में बड़ी देर से नींद आई थी। इसलिए देर से सोकर उठा था। इस समय पौने ग्यारह बज रहे थे। फ्लैट में वह अकेला था। कहीं बाहर निकल नहीं सकता था। प्रवेश गौतम से भी कोई मदद की उम्मीद नहीं थी। वह इन सबसे बुरी तरह उकता गया था। कुछ ना कर सकने की खीझ मन को बेचैन कर रही थी।
बेडरूम से निकल कर वह हाल में आ गया। शीशे की दीवार के पार सूरज की रौशनी में चमकती ईमारतें दिखाई पड़ रही थीं। वह सोचने लगा कि सबकुछ जैसा पहले था वैसे ही चल रहा है। बस उसकी अपनी ज़िंदगी में उथल पुथल मची हुई है। ना जाने कब ज़िंदगी दोबारा ढर्रे पर आ पाएगी। पहले दोबारा सबकुछ हासिल कर लेने का जो आत्मविश्वास उसमें था वह बुरी तरह कमज़ोर पड़ गया था। इस समय उसकी हालत यह थी कि कुछ भी स्पष्ट नहीं था।
वह सोफे पर बैठ गया। अपना मन बदलने के लिए उसने टीवी खोल लिया। टीवी पर प्रोग्राम उसे समझ नहीं आ रहे थे। वह बस चैनल बदलता जा रहा था। चैनल बदलते हुए वह एक न्यूज़ चैनल पर आया। भाषा समझ नहीं आ रही थी पर जो स्क्रीन पर दिखाई दे रहा था उसने उसके होश उड़ा दिए। स्क्रीन पर प्रवेश गौतम पुलिस के साथ दिखाई पड़ रहा था। उसने ढूंढ़ कर एक अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल लगाया। उसके हिसाब से कोई दो घंटे पहले प्रवेश गौतम पुलिस के हाथ लगा था। उससे पूँछताछ हो रही थी।
अंजन ने टीवी बंद कर दिया। परेशानी में वह हॉल में टहलने लगा। उसे ऐसा महसूस हुआ कि बेडरूम में उसके फोन की घंटी बज रही है। वह बेडरूम में गया। स्क्रीन पर कोई अंजान नंबर था। कुछ सोचकर उसने फोन उठा लिया। फोन उठते ही उधर से मीरा की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह घबराई हुई बोल रही थी,
"अंजन.... अंजन प्लीज़ हेल्प मी। मुझे नहीं पता कि ये लोग कौन हैं पर इन्होंने मुझे कैद कर लिया है। मैं लंदन में ही कहीं हूँ। लेकिन बता नहीं सकती हूँ कहाँ। प्लीज़ तुम किसी तरह आ जाओ।"
अंजन ने उसे तसल्ली देते हुए कहा,
"मीरा तुम परेशान मत हो। मैं तुम्हें बचाने आऊँगा। तुम अपना खयाल रखना।"
"अंजन इन लोगों ने मेरा फ़ोन भी छीन लिया है। बड़ी मुश्किल से चोरी छिपे किसी और के फोन से बात कर रही हूँ। मेरे पास अधिक समय नहीं है। तुम जल्दी आ जाना।"
फोन कट गया। अंजन परेशान हो गया। उसने उस नंबर पर कॉल बैक किया तो एक अंग्रेज़ औरत ने उसे धमकाते हुए कहा कि अब मीरा की खैर नहीं है। उस औरत ने फोन काट दिया। उसके बाद दोबारा फोन नहीं लगा।
अंजन निढाल होकर फर्श पर बैठ गया। उसके बाद वहीं लेट गया। वह इस तरह से फर्श पर लेटा था जैसे कि उसे होश ही ना हो। कुछ समय तक वह बदहवास सा लेटा रहा। उसके मन ने पूरी तरह से हार मान ली थी। यह भाव कि वह किसी भी लायक नहीं रहा उसे कचोट रहा था। मीरा की हालत के बारे में सोचकर उसका कलेजा फट रहा था। वह फोन पर बहुत असहाय लग रही थी। उससे गिड़गिड़ा कर मदद के लिए कह रही थी। लेकिन वह खुद इतना बेबस था कि उसकी कोई मदद नहीं कर सकता था।
उस अंग्रेज़ औरत ने जिस तरह से कहा था कि अब मीरा की खैर नहीं है उससे वह डर गया था। मीरा को लेकर उसके मन में अजीब से खयाल आ रहे थे। वह औरत कमज़ोर और बीमार मीरा को परेशान कर रही है। मीरा हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही है कि उसे छोड़ दे। लेकिन वह ज़ोर ज़ोर से हंस रही है। उसका मन कर रहा था कि किसी तरह भी लंदन पहुँच कर मीरा का उस पर जो भरोसा है उसे सच साबित कर दे।
यह सब सोचते हुए अजय मोहते के लिए उसका मन में गुस्से से भर गया था। वह उठा और अजय मोहते को फोन मिलाया। फोन उठाते ही अजय मोहते ने कहा,
"तो तुमने सोच लिया कि क्या करना है ?"
अंजन ने गुस्से में कहा,
"कमीने मुझसे कह रहे थे कि अगर मैं पुलिस को कुछ नहीं बताऊँगा तो मीरा का खयाल रखोगे। यह खयाल रखा तुमने। बेचारी बहुत परेशान है।"
उसकी बात सुनकर अजय मोहते ने कहा,
"बात क्या हुई जो आपे से बाहर हो रहे हो ?"
अंजन ने उसी तरह गुस्से से कहा,
"मैं तो वैसे भी बर्बाद हो गया हूँ। लेकिन तुम्हें भी बर्बाद कर दूँगा। अभी तक तुम मुझे धमकी दे रहे थे। अब मैं कह रहा हूँ। मीरा को सही इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती करवाओ। मुझे खबर दो। नहीं तो मैं खुद को पुलिस के हवाले कर दूँगा। तुम्हारे सारे कारनामे उन्हें बताऊँगा।"
"बकवास मत करो अंजन.... पुलिस के पास जाओगे तो तुम भी मुसीबत में पड़ जाओगे।"
"मैंने कहा ना कि मैं बर्बाद हो चुका हूँ। अब तुम्हें भी बर्बाद कर दूँगा। ऐसा नहीं होने देना चाहते हो तो मीरा को हॉस्पिटल में भर्ती करवाओ।"
अजय मोहते कुछ क्षण शांत रहने के बाद बोला,
"देखो मैं मीरा की मदद करूँगा। पर तुम कोई बेवकूफी मत करना। मैं तुम्हें भी वहाँ से निकलवाने का प्रबंध करता हूँ। बस तुम कहाँ हो बता दो। मैं तुम्हें सुरक्षित सिंगापुर से निकलवा दूँगा।"
अंजन ने कहा,
"मैंने अभी तक अपने आप को पुलिस से दूर रखा है। इसलिए तुम मीरा की मदद करो। जितनी जल्दी हो सके इस बात के सबूत भेजो कि वह हॉस्पिटल में है। नहीं तो फिर मैं वो करूँगा जो मैंने कहा था।"
यह कहकर अंजन ने फोन काट दिया। फोन काटने के बाद उसका दिमाग काम करने लगा। प्रवेश गौतम पूँछताछ में उसके बारे में बता देगा। उसे यहाँ से निकलना होगा। उसके दिमाग में सागर खत्री का फार्म हाउस आया। वह वहाँ जा चुका था। फिलहाल उसके पास कहीं और जाने की जगह नहीं थी। निर्भय का मकान अजय मोहते के आदमी ने देख लिया था। उसने फार्म हाउस जाने का फैसला किया।
वह फौरन उठा। प्रवेश गौतम उसे कुछ पैसे दे गया था। उन्हें जेव में रखा। इसके अलावा प्रवेश गौतम उसे एक कार की चाभी दे गया था। जो नीचे पार्किंग में थी। उसे भूख लग रही थी। पर खाने का समय नहीं था। वह फ्लैट से निकल कर लिफ्ट से नीचे चला गया।
अंजन पार्किंग में पहुँचा। अपनी कार की तरफ जा रहा था कि सीनियर इंस्पेक्टर राजेंद्र सेल्वाराज सामने आ गया। उसकी गन अंजन पर तनी हुई थी। कुछ ही देर में दूसरे पुलिस वालों ने भी उसे घेर लिया। अंजन गिरफ्तार हो गया।
एक दूसरे से संतुष्ट होने के बाद पामेला और दिनकर प्रधान कुछ देर तक एक दूसरे के आगोश में बंधे पड़े रहे। कुछ देर बाद पामेला उठकर खड़ी हो गई। उसने अपने कपड़े पहने और नीचे चली गई। जब वह अपने कमरे में पहुँची तो उसने देखा कि मीरा उसके फोन से किसी से बात कर रही थी। पामेला बहुत गुस्से वाली पागल औरत थी। मीरा ने उसके फोन से अंजन से बात की थी। इस बात पर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने अपना फोन छीनकर कॉल काट दी। वह मीरा पर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी। शोर सुनकर दिनकर प्रधान अपने बिस्तर से उठा। जब वह नीचे आया तो पामेला अंजन को फोन पर धमकी दे रही थी कि अब मीरा की खैर नहीं है।
दिनकर प्रधान ने उसे समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी। गुस्से में उसने मीरा के बाल पकड़े और उसका सर ज़ोर से दीवार पर दे मारा। सर फट गया। खून निकल रहा था। मीरा फर्श पर गिरी हुई थी। कुछ क्षणों में उसके प्राण निकल गए। यह देखकर दिनकर प्रधान परेशान के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। कुछ देर तक वह अपना सर पकड़े पामेला के बेड पर बैठा रहा।
पामेला भी घबरा गई थी। लेकिन वह पक्की खिलाड़ी थी। जल्दी ही उसने खुद को संभाल लिया। उसने दिनकर प्रधान से कहा कि जितनी जल्दी हो सके इस लाश को जंगल में जाकर फेंक आते हैं।
दिनकर उसकी मदद के लिए तैयार हो गया।