story of houses in Hindi Moral Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | कहानी घरों की

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कहानी घरों की

बन्द दरवाजों के पीछे घरों में तमाम कहानियां पलती हैं।अभी मिसेज वर्मा ने उसके यादों के समंदर में कंकड़ फेंककर तरंगे उत्पन्न कर दी थीं।उन्होंने तो बड़े सामान्य भाव से बताया था कि उनकी बहू मायके गई हुई है, मैंने उसके कमरे की तलाशी ली,लेकिन बड़ी चालाक है वह,अपनी अलमारी में ताला लगाकर रखा हुआ है।काम्या ने कहा कि इसमें गलत क्या है, सभी को अपने सामान की सुरक्षा का अधिकार है।आखिर आप भी तो अपने कमरे को लॉक कर ही बाहर जाती हैं।उन्होंने बुरा सा मुँह बनाकर कहा कि अभी सालभर भी नहीं हुआ उसे आए और हमें तो दसियों साल लग गए थे।
खैर, वे तो चली गईं, लेकिन काम्या अपनी जिंदगी में 22 वर्ष पहले की घटनाओं में खो गई।विवाह के पश्चात जितने तो आंखों में सपने नहीं होते, उससे अधिक शंकाए औऱ चिंताऐं होती हैं आंखों में।पता नहीं कैसे लोग होंगे, कैसा उनका व्यवहार होगा,एडजस्टमेंट में कितनी परेशानी आएगी….इत्यादि।फिर दूसरे परिवार में रीति-रिवाज, तौर- तरीके सब भिन्न होते हैं।नई बहू की तरफ सबकी निगाहें गड़ी रहती हैं, सहयोग कम मिलता है, अपेक्षाएं ज्यादा होती हैं।सबकी कसौटी पर खरा उतरना आसान तो कतई नहीं होता।
काम्या बड़ी थी ससुराल में,एक छोटा देवर,एक ननद।घर की पूरी बागडोर सास के हाथों में थी।ससुर की दुकान थी, पति बाहर नौकरी करना चाहते थे लेकिन बदकिस्मती से पढ़ाई पूरी होने से पहले ही उनका देहावसान हो गया।अभी सारी जिम्मेदारी बाकी थी,अतः मन मारकर दुकान को सम्हाल लिया।पति एक आदर्श बेटे की तरह सुबह से रात तक की सारी कमाई मां के हाथों में रख देते थे।किसको क्या पेमेंट करना है, क्या समान आना है, सब वे ही देखती आईं थीं, तो बेटे के विवाह के बाद भी कुछ बदलने का सवाल ही नहीं उठता था, वैसे भी अभी दो बच्चों का विवाह इत्यादि करना था।
काम्या पढ़ी लिखी युवती थी।अपनी जिम्मेदारियों को पूर्णतया ईमानदारी से निर्वाह करने में विश्वास रखती थी।वह पति को पूर्णतः सहयोग करती थी लेकिन उसे अपनी निजी आवश्यकताओं के लिए भी सास के आगे हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता था।एक बार पति से दबी जबान से कहा भी था कि हजार रुपए आप अपने व्यक्तिगत खर्च के लिए रख लिया करो,तो पति ने क्रोधित होकर कहा था कि अभी से घर में तुम दरार डालने का प्रयास कर रही हो।काम्या ने 4-6 महीनों में ही समझ लिया था कि सास देवर के पक्ष में हैं।वह डरती थी कि कहीं बाद में उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल बाहर न किया जाय।अक्सर लोग अतिविश्वास में ही मारे जाते हैं, या विश्वास के तले ही धोखा दिया जाता है,किंतु पति यह न समझते थे, न मानना चाहते थे।
8-9 माह पश्चात वह मायके गई थी पति के साथ।सुरक्षा के नाम पर ससुराल से चढ़े जेवर सास ने अपने पास रख लिए थे,बस गले की चेन और अंगूठी छोड़कर।पति दो दिन बादउसे छोड़कर लौट आए थे।लौटने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके कमरे की तलाशी ली गई है।शायद पता चलता भी नहीं, लेकिन किसी बात पर सास ने क्रोध में कहा था कि अभी से तुम अपनी पत्नी के कहे में चलने लगे हो,तुम्हारी आलमारी में ताला लगा हुआ था।पति दुःखी तो बहुत हुए थे लेकिन पूछ नहीं पाए कि आप वहाँ क्या खोजना चाहती थीं।मायके से लौटने पर सारी बात पति ने उसे बताई थी।काम्या ने पति से कहा कि आपको इतना जबाब तो देना चाहिए था कि आप अपने कमरे में ताला लगाती हैं, छोटा भाई भी अपनी आलमारी में ताला लगाता है तो गलत नहीं है और हमनें लगा दिया तो अपराध कैसे हो गया ?
ननद के विवाह में सास एवं देवर ही सर्वेसर्वा थे।पति एवं काम्या तो मात्र एक कार्यकर्ता की भांति थे,न उनके सुझाव की कोई अहमियत थी,न ही अधिकार,पति का काम पैसा कमाकर देना और काम्या घर के कामों में जुटी रहती।खैर,एक जिम्मेदारी पूर्ण होने का सुकून बस उनके अख्तियार में था।काम्या को अपने लिए परायापन उतना नहीं अखरता था,जितना पति के लिए बुरा लगता था, क्योंकि वह तो बाहर से आई थी लेकिन पति ने तो परिवार और कर्तव्यों की पूर्ति के लिए अपने सपने कुर्बान कर दिए थे।कितना दुःखद था कि कर्तव्य हमारे नाम और निर्णय का सारा अधिकार छोटे भाई के पास।
अब देवर के विवाह की बात चलने लगी थी।लड़की वालों से फोन पर बात भी देवर बड़े भाई बनकर स्वयं कर लेते थे।जब लडक़ी वाले घर पर आते तो बुत की तरह बड़े बेटे को उपस्थित रहना होता था।सास छोटे बेटे का प्रतिनिधित्व करते हुए सारी बातें करती थीं।जब लड़की देखने की बात आई थी तो देवर का कहना था कि भीड़ ले जाकर क्या करेंगे और मां-बेटे अकेले जाकर देख आए थे, क्योंकि काम्या और उसके पति भीड़ का हिस्सा थे।गोदभराई में जाते समय आर्टिफिशियल ज्वेलरी पहनकर काम्या गई थी,वह तो जिद में केवल वह चेन पहनकर ही जाना चाहती थी लेकिन पति ने अपनी इज्जत का वास्ता देकर पहनने को विवश कर दिया था।फंक्शन के पश्चात कन्या पक्ष ने विदाई में सभी को चांदी के सिक्के दिए।सास ने काम्या एवं उसके पति के नाम के सिक्के यह कहकर ले लिए कि तुम तो घर के हो,नन्द को देने के काम आएंगे।जब जरूरत होती तो घर के मान लिए जाते,जब आवश्यकता नहीं होती तो बाहरवाले क़रार कर दिए जाते।
वैवाहिक कपड़े-साड़ियां भी मां-बेटे स्वयं ले आए,बहाना था कि छोटे बच्चे को लेकर वह परेशान हो जाएगी।विवाह में अपने 4 माह के बेटे के साथ काम्या खटती रही,एक खाना बनाने वाली भी नहीं रखा सास ने।तब छोटे बच्चे का ख्याल नहीं आया किसी को।उसी गर्मियों में देवरानी मायके गई थी और देवर ऑफिस।सास किसी कार्य से 4-5 घँटे को कहीं गईं थीं कि तभी पुराना कपड़ा ढूढ़ने के प्रयास से उनके गोदाम के ताले की चाभी काम्या के हाथ लग गई थी।काम्या उनके गोदाम की छान-बीन करने से स्वयं को न रोक सकी।एक बार तो मन में भय हुआ भी था,किन्तु अपने कमरे की तलाशी की घटना ने बल प्रदान किया।देवरानी के लिए सारे जेवर नए बने थे, इसलिए काम्या को उसकी चूड़ियां तो दे दी गईं थीं लेकिन गले के दो सेट,सोने के 32 सिक्के, किलो भर चांदी के सिक्के और 3-4 लाख रुपये,मकान,जमीन के कागजात उनके गोदाम में रखे हुए थे।
देवर की शादी के कुछ माह बाद ही सास का आदेश जारी हो गया कि अब तुम लोग अपना देख लो।मेरे पास कुछ खास नहीं है तुम लोगों को देने के लिए।चूंकि दुकान तुम देख रहे हो, इसलिए घर के खर्चे की जिम्मेदारी तुम्हारी है।दुकान के आधे समान का पेमेंट कर दो छोटे को।मतलब दुकान के किराए के रूप में घर खर्च उठाना था।इतने सालों बाद जिंदगी कर्ज के साथ नए सिरे से शुरू करनी थी। जिंदगी के जो 7 अमूल्य वर्ष दिए थे परिवार को, सब सिफर रहा।चूंकि उसे सास के पास के रखे समान ज्ञात थे,इसलिए उसे बेहद दुख हुआ था, वह बस इतना ही कह सकी थी कि भगवान करें जो आपने कहा है वह सच हो कि आपके पास कुछ भी नहीं है।
काम्या और उसके पति को महीनों लग गए थे अपनों के दिए इस सदमे से उबरने में।ऐसा नहीं है कि ज्यादती सिर्फ बड़े के साथ भी होती है।कहीं छोटों के साथ बड़े अन्याय कर देते हैं।लेकिन काम्या के मन में यह बात बुरी तरह बैठ गई थी कि दो बेटे या दो बेटियां नहीं होनी चाहिये,माता-पिता समान व्यवहार नहीं कर पाते हैं।एक बेटा,एक बेटी हों तो दोनों का अपना अलग महत्व होता है।जब दूसरी बार काम्या गर्भवती हुई तो वह बेटी चाहती थी।पति से कहा कि टेस्ट करवा लेते हैं, उन्होंने मना कर दिया कि यदि करना है तो ईश्वर पर छोड़ दो,जो प्रदान करें, खुशी-खुशी स्वीकार करो।खैर, भगवान ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली एवं बेटी देकर परिवार पूर्ण कर दिया।आज दोनों बच्चे बाहर रहकर उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
एक विचार काम्या के मन में कौंध रहा था कि क्या वह भी बहू के आने पर ऐसी ही मनोवृत्ति का शिकार हो जाएगी।"मैं ऐसा नहीं होने दूंगी,"सोचते हुए काम्या अपने मस्तिष्क से फ़ालतू के विचारों को झटककर अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गई।
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