उस दिन कुछ ज्यादा ही अंधेरा हो गया था । गांव के रास्ते शाम होते ही सुनसान हो जाते हैं तथा जिस कच्चे मिट्टी के रास्ते से गोपाल जा रहा है उसके आसपास थोड़ा झाड़ी व जंगल जैसा है । खेत पार करके थोड़ा आगे जाने पर एक जलाशय है उसी के थोड़ा आगे से घना बांस झाड़ी शुरू होता है । बांस झाड़ी को पार करते ही कुछ दूरी पर गोपाल के पिता का दुकान दिखाई देता है । गोपाल खेत के रास्ते को पार करके जलाशय के पास वाले रास्ते से जा रहा था उसी वक्त उसके नाक में सड़ते मांस जैसा दुर्गन्ध आया । उसने मन ही मन सोचा शायद कुछ मरा हुआ सड़ रहा है उसी का यह दुर्गंध है । लेकिन साधारण सड़ते मांस के साथ कुछ और भी मिला हुआ है । ऐसी दुर्गंध किससे आ सकता है इस बारे में उसे नहीं पता ।
आसमान में आज चाँद थोड़ा और बड़ा हुआ है । चारों तरफ के सन्नाटे में झींगुर की आवाज बिना रुके सुनाई दे रहा है । गोपाल आसमान की तरफ देखते हुए थोड़ा रुक गया । आसमान में इस चाँद को देखना उसे बहुत ही पसंद है । अभी कुछ दिन पहले ही वह अपने घर के आंगन में बैठकर सुंदर गोल चाँद को देख रहा था । गोल चाँद को ध्यान से देखने पर उसपे काले धब्बे दिखाई देते हैं जो उसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है । गोपाल सोचता है कि शायद यह चाँद उसका दोस्त है क्योंकि जब भी वह चलता है तो चाँद भी उसके साथ ही साथ चलता है लेकिन बीच-बीच में एक काला अंधेरा चाँद को ढक देता है । अपनी मां से उसने पूछा था कि यह शैतान काला अंधेरा क्यों चाँद को ढक देता है ? माँ ने कहा था कि यही प्रकृति का नियम है , इसे अमावस्या कहते हैं ।
आज सुनसान रास्ते पर खड़े होकर चांद को देखते हुए गोपाल यही सब सोच रहा था । अब सामने देखकर फिर से चलना शुरू कर दिया ।
वो सभी छः भाई हैं । गोपाल उनमें सबसे छोटा है । गांव के एक जगह पर उसके पिता का छोटा किराने का दुकान है इसीलिए सप्ताह के 6 दिन उनमें से एक - एक भाई को प्रतिदिन पिता के लिए खाना लेकर जाना पड़ता है । रात को चोरी - डकैती के डर के कारण उनके पिता दुकान पर ही सोते हैं । आज गोपाल की बारी है इसीलिए आज वह खाना लेकर जा रहा है ।
चांद के बारे में सोचते हुए वह दुर्गंध को लगभग भूल ही गया था । झींगुरों का झीं - झीं चलता ही जा रहा है मानो उन्हें कोई थकान नहीं । बीच-बीच में रात को घूमने वाले एक-दो पक्षी की आवाज सुनाई दे रही है । गोपाल इसी रास्ते से अपने पिता के लिए खाना लेकर जाता है । पहले भी वह कई बार गया है लेकिन कोई समस्या नहीं आई ।
जलाशय को पार करके अब वह बांस झाड़ी के तरफ चल पड़ा । लंबे बांस झाड़ी के कारण आसमान यहां थोड़ा ढका हुआ है इसीलिए लालटेन की रोशनी को तेज करके वह तेजी से चलने लगा । एक बार फिर दुर्गंध आने लगी लेकिन इस बार कुछ ज्यादा । बांस झाड़ी के साथ अंधेरा भी यहां कुछ ज्यादा है । गोपाल गांव का लड़का है जंगल - झाड़ी में वह अकेला ही घूमता रहता है इसीलिए उम्र में छोटा होने पर भी वह डरपोक नहीं है । लेकिन फिर भी आज उसका धड़कन थोड़ा तेज हो गया । वह थोड़ा और तेजी से पैर चलाकर कुछ ही देर में अपने पिता के दुकान पर पहुंच गया । दुकान से घर लौटते वक्त वहाँ मांस सड़ा दुर्गंध नहीं था । घर लौटकर उसने अपनी मां से कुछ नहीं पूछा लेकिन अपने बड़े भाइयों से पूछने के बारे में सोचा कि क्या उन्हें वहाँ कोई सड़ा हुआ दुर्गंध मिल रहा था या नहीं ।
यादव बस्ती में एक जागृत काली मंदिर है । गांव के लोगों की दुख - दुर्दशा उस मंदिर में जाकर बोलने पर सभी का मानना है कि देवी की कृपा दृष्टि से सब कुछ ठीक हो जाता है । गोपाल कभी-कभी शाम के वक्त उस मंदिर में जाता है । हालांकि उसके जीवन में कोई दुख नहीं है । वह अभी छोटा है दुःख - सुख अभी उसके समझ से परे है लेकिन मंदिर में जाकर उसे शांति का अनुभव होता है । शाम के हल्के अंधेरे में धूप - अगरबत्ती की सुगंध और उसके साथ मंत्र पाठ का यह माहौल उसे बहुत ही पसंद है । प्रतिदिन मंदिर के बाहर सीढ़ी पर बैठकर वह सभी दृश्यों को आँखों में समाहित करता है ।
उस दिन भी एकटक देवी मूर्ति को देखते हुए वह बैठा हुआ था । शाम हो गई है तथा मंदिर की संध्या आरती भी शुरू हो गया है । हालांकि आज वह संध्या आरती को अंत तक नहीं देख पायेगा क्योंकि उसके बाकी बड़े भाई आज किसी दूसरे कार्यों में व्यस्त होने के कारण उसे आज फिर पिता के लिए खाना लेकर दुकान पर जाना होगा ।
वह उठने ही जा रहा था कि कोई बोला ,
" सुनो छोटू "
शाम के हल्के रोशनी में गोपाल ने देखा । एक आदमी जो हल्के भगवा रंग का वस्त्र पहना हुआ , चेहरा बड़े - बड़े दाढ़ी व मूंछ से भरा , शरीर का रंग काला तथा पूरे शरीर पर राख लगा हुआ । एक बार देखकर कोई भी कहेगा कि यह एक पागल है ।
उस आदमी ने फिर बोला ,
" छोटू बेटा हाँ तुमसे ही कह रहा हूं । इधर आओ । "
गोपाल की मां ने सिखाया था कि अगर कोई अनजान आदमी बुलाए तो पास बिल्कुल मत जाना इसीलिए वह दूर ही खड़ा रहा ।
" अरे डरो नहीं मेरे पास आओ । मैं पागल नहीं हूं । "
उस आदमी के आँखों में एक दिव्य भाव हैं । वेशभूषा गंदा है परन्तु गंभीर गले का स्वर उनके सुदृढ़ चरित्र की वर्णना कर रहा है । उनको देखकर गोपाल के मन में एक श्रद्धा - भक्ति की उत्पत्ति होने लगा । वह धीरे-धीरे उस आदमी के पास गया ।
" मैं देखता हूं कि तुम अक्सर मंदिर में आकर बैठे रहते हो । बाकी लोग तो यहां पर अपने दुख दुर्दशा को दूर करने के लिए आते हैं तो बताओ इस उम्र में तुम्हें क्या दुख है ? "
" मुझे कोई दुख नहीं है और मैं कुछ मांगने भी नहीं आता । "
" फिर "
" मुझे वो धूप - अगरबत्ती की सुगंध के साथ घंटे की ध्वनि और देवी मूर्ति को देखना अच्छा लगता है । बस इसीलिए मैं यहां पर आता हूं । "
अब वह आदमी थोड़ा सा हंसा , उनके चेहरे पर संतुष्टि की रेखा साफ है ।
" तुम बहुत ही अच्छे लड़के हो । रुको मैं तुम्हें कुछ देता हूं । "
यह बोलकर उस आदमी ने एक छोटी कागज की पोटली
गोपाल के तरफ आगे बढ़ा दिया ।
" क्या है यह ? "
आदमी ने एक हाथ गोपाल के कंधे पर रखते हुए बोला,
" इसे रखो । इसके अंदर राख भरा हुआ है । यह तुम्हारे काम आएगा । "
" राख से मैं क्या करूंगा ? "
" इसे रखो अपने पास मान लेना यह देवी माता का प्रसाद है । जब तुम्हें बहुत ही ज्यादा डर लगे तब इस पोटली को सीने के बीच में दबाकर देवी काली को याद करना । "
गोपाल ने अब उस आदमी के हाथ से छोटी पोटली को लेकर उसे इधर उधर से देखने लगा ।
" अब तुम घर जाओ क्योंकि तुम्हारी मां प्रतीक्षा कर रही है । तुम्हें अपने पिता के लिए खाना जो लेकर जाना है । अब मैं चलता हूं । "
यह बोलकर वह आदमी मंदिर के पीछे वाले जंगल की ओर जाने लगे । इधर अंधेरा धीरे-धीरे बढ़ रहा है इसीलिए गोपाल की आँखे ज्यादा दूर तक उनका पीछा नहीं कर सकी । गोपाल को ऐसा लगा कि वह आदमी मंदिर के पीछे वाले जंगल के अँधेरे में कहीं गायब हो गया । पैंट के जेब में छोटी कागज की पोटली को रखकर वह घर की तरफ चल पड़ा ।
जाते वक्त अचानक उसे याद आया कि वह अपने पिता के लिए खाना लेकर जाएगा इस बारे में उस आदमी को कैसे पता चला । कहीं वह आदमी मन की बातों को तो नहीं पढ़ लेता ? गोपाल रास्ते पर ही खड़ा हो गया और जेब से कागज की पोटली को निकाला । अपने अनजाने में ही उस आदमी के लिए उसके मन में एक श्रद्धा भाव उत्पन्न हुआ है । अब उसने पोटली को माथे से लगाकर मन ही मन उस आदमी को सोचकर प्रणाम किया ।...
अगला भाग क्रमशः....