GHOST-WORLD 12 in Hindi Horror Stories by Satish Thakur books and stories PDF | प्रेत लोक - 12

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प्रेत लोक - 12

प्रेत-लोक 12

“रुद्र वो ईंट का टुकड़ा लाकर दो जिसे हम महल से लेकर आये थे” तांत्रिक योगीनाथ ने रुद्र से कहा।

रुद्र उस ईंट के टुकड़े को बैग से निकलता हुआ बोला “योगीनाथ जी हम महल इसलिए गए थे की जिससे हमें कोई ऐसी वस्तु मिल सके जिसे राजकुमार अचिंतन ने उपयोग किया हो पर इस ईंट को देख कर तो ऐसा कुछ नहीं लगता और सबसे बड़ी बात इसका आकर, आखिर आपने इस ईंट को इस खास आकर में काटने के लिए ही क्यों कहा?”

अब आगे: “मुझे पता था रुद्र की तुम अपने जिज्ञासु स्वभाव की वजह से ये सब मुझसे जरूर पूछोगे, सुनो “जब हम भूल-भुलैया के अंदर थे तब कुछ दूर चलते ही मुझे एक अजीव सा अहसास हुआ और जब में उस अहसास को समझने के लिए दीवार के नजदीक गया तो मेरे गुरुदेव की कृपा से दीवार पर हाँथ रखते ही मुझे उस जगह की सभी घटनाएँ स्पष्ट रूप से मेरे आँखों के सामने होती हुई दिखने लगीं, जिससे मुझे इस ईंट के टुकड़े का राजकुमार अचिंतन के साथ का संबंध भी नज़र आया, इसलिए तुमसे इस ईंट के टुकड़े को काटने के लिए कहा” इतना कह कर योगीनाथ जी शांत हो गए।

पर रुद्र पूरी बात से विस्तार से जाने बिना कहाँ मानने वाला था वो योगीनाथ जी से फिर बोला “पर आपने ऐसा वहां क्या देखा जो आपको इस ईंट का संबंध राजकुमार अचिंतन से समझ आया”।

तांत्रिक योगीनाथ हँसते हुए बोले “रुद्र तुम्हारा ये स्वभाव बहुत ही अच्छा है जिसकी वजह से तुम अपने आस-पास हो रही सभी घटनाओं का कारण जाने बिना नहीं रह पाते हो, सुनो में तुम्हें विस्तार से सब कुछ बताता हूँ”।

“संघतारा की मौत के बाद उसने आपने काले जादू के दम पर रायसेन राज्य को धीरे-धीरे कमजोर करना शुरू कर दिया, कुछ ही समय में ये बात दूसरे राज्यों तक पहुँच गई और एक मुस्लिम राजा ने रायसेन के ऊपर आक्रमण कर दिया, रायसेन की पूरी सेना ने सिर्फ दो दिन में ही मुस्लिम सेना के सामने घुटने टेक दिए। उस क्रूर मुस्लिम शासक ने महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ा, उसने खोज-खोज कर रायसेन के राजपरिवार के एक-एक व्यक्ति को मार डाला चाहे वो पुरुष हो या महिला उसने किसी को नहीं छोड़ा” ।

“राजकुमार अचिंतन किसी तरह से बच कर दूसरे राज्य में शरण लेने के इरादे से भूल-भुलैया में पहुंचे पर वहां पर उनका सामना मुस्लिम सैनिकों से हुआ और वो लड़ता हुआ मृत्यु को प्राप्त हुआ, उसकी लाश को वहीं आग के हवाले कर दिया गया, मुस्लिम सैनिकों से लड़ते समय उसका खून भूल-भुलैया की दीवारों पर लगा था, पर सिर्फ इतना ही नहीं उसे जलाने से पहले सैनिकों ने अपनी क्रूरता और लोगों तक अपना डर पहुंचाने के इरादे से उसका सर काटकर उसे वहीं एक ईंट में कील ठोककर लटका दिया था”।

“राजकुमार अचिंतन भी अपनी अकाल मृत्यु की वजह से आज तक भूत बन कर भटक रहा है पर अपने शांत स्वभाव और बदला न लेने की इच्छा की वजह से उसने आज तक किसी को परेशान नहीं किया, साथ ही प्रेत संघतारा के डर की वजह से भी वो सिर्फ उसी ईंट तक सीमित रहा जिस पर उसके सर को लटका दिया गया था, इस बात का आज तक संघतारा को भी पता नहीं था पर जब हमने उस ईंट का एक टुकड़ा निकाला तो प्रेत संघतारा को उसमें अपने आशिक राजकुमार अचिंतन की रूह दिखाई दी, इसी वजह से उसने अपने तिलिस्म का सहारा लेकर हमें वहीं रोकने की कोशिश की पर गुरुदेव की कृपा से वो इसमें कामयाब नहीं हो सका”।

“उस ईंट पर राजकुमार अचिंतन का सर तांगा गया था इस वजह से ही मैंने उस ईंट को कपाल के आकार में काटने के लिए कहा था। इसके आकार कि वजह से ही राजकुमार अचिंतन की आत्मा न चाह की भी इसके मोह में इसके साथ-साथ यहाँ तक आ गई, अब हम अपने मंत्र की शक्ति से उसे अपने वश में कर लेंगे और उसे मजबूरी में प्रेत संघतारा को अपने साथ लेकर प्रेत-लोक जाना होगा”। तांत्रिक योगीनाथ जी ने पूरी बात को विस्तार से बता कर रुद्र की ओर देखा।

रुद्र के चेहरे के भाव से ये स्पष्ट है वो अब पूछने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं है, योगीनाथ जी चौंक के पास बिछे लाल कपड़े पर बैठकर सभी को बैठने का इशारा करते हैं और सभी निर्धारित जगह पर रखे लाल कपड़ों पर बैठ जाते हैं, ईंट के उस टुकड़े को लकड़ी की चौंकी पर बिछे काले कपडे के ऊपर रखा जाता है और फिर तंत्र क्रिया प्रारंभ की जाती है।

तांत्रिक योगीनाथ जी सिंदूर, कुमकुम, काले तिल, जों और राई को बारी-बारी से चौंकी पर डालते जाते हैं और मंत्र पढ़ते जाते हैं, काफी समय तक इसी तरह से मंत्र के उच्चारण करते रहने के बाद तांत्रिक योगीनाथ जी अग्निकुंड को सजाने लगते हैं और कुछ ही देर में अग्निकुंड हवन की लकड़ियों से सज जाता है, कुछ कपूर और शक्कर की मदद से योगीनाथ जी हवन कुंड में अग्नि को जलाते हैं।

धीरे-धीरे ईंट का रंग बदलने लगा, वो लाल से काली होने लगी और उसके अन्दर से एक काली परछाई धुएँ के रूप में बाहर आने लगी, कुछ ही समय में वो परछाई लकड़ी की चौंकी के ऊपर मंडराने लगी, तांत्रिक योगीनाथ जी अब और अधिक जोर से मंत्र का उच्चारण करने लगे और साथ ही पास रखे पानी के लोटे के अंदर तर्जनी उँगली घुमाने लगे, कुछ समय बाद योगीनाथ जी ने उस लोटे के पानी को अपने हाँथ में लेकर मंत्र पढ़ते हुए उस पानी को काली परछाई पर छिड़क दिया।

उस परछाई ने एक जोर की कराह के साथ तांत्रिक योगीनाथ से कहा “योगीनाथ जी आप जो चाहते हैं में वैसा ही करूँगा पर आप कृपया अपनी मंत्र शक्ति का प्रयोग बंद कर दीजिये क्योंकि मैंने आज तक कभी किसी को परेशान नहीं किया पर पता नहीं क्योंकि फिर भी आप ने मुझे यहाँ कैद कर के रखा है और कुछ भी कहे बिना मुझे मंत्रों से प्रताड़ित कर रहो हो, कृपया आप बताइए आप क्या चाहतें है में वो कुछ भी करने को तैयार हूँ जो में कर सकता हूँ”।

अगला भाग क्रमशः- प्रेत-लोक 13

सतीश ठाकुर