बिमला बोली अरे सहाब बहुत पुराना काम है पन्द्रह साल हो गए।
रमेश अच्छा अब ये बताओ कि वो बच्ची कौन थी?
बिमला ने कहा अरे अनाथ है बिचारी। ये लोग लाये थे अपना बच्चा बना कर पर उसको ही नौकरानी बना दिया।
उमेश बेटा को औलाद ना हुआ तो इसको लेकर आए, पहले सब अच्छा था पर जब बहु रानी मां बनने वाली थी तो इसको नौकरानी बना दिया।
बिचारी नन्ही सी जान घर का सारा काम करवाते हैं इससे।
रमेश ने कहा ओह नो।
मामा जी ने कहा अच्छा क्या बता सकती हो कि बच्ची को कब और कहां से लाये थे?
बिमला ने कहा हां पर अभी नहीं बता सकती अम्मा बुला रही है।
रमेश ने कहा अरे सुनो बिमला।
रमेश पागलों की तरह चिल्लाने लगा।
मामा जी ने कहा सुनो रमेश हम अब चलते हैं कल फिर आयेंगे।
अमित ने कहा हां भाई मामा जी ठीक कह रहे हैं।
हमें जाना होगा।
फिर सभी गाड़ी में बैठ कर निकल गए।
घर पहुंच कर रमेश बहुत रोने लगा सबने मिलकर उसको समझाया।
फिर खाना खा कर सो गए।।
इसी तरह एक दिन बीत गए और रमेश को अम्मा जी ने सपने में वो गले का चेन दिखाया जो उर्मी को रमेश ने उसके पहले शादी के सालगिरह पर दिया था।
रमेश एकदम से उठ कर बैठ गया और बोला अरे अम्मा क्या संकेत दे रही है।
वो चेन तो उर्मी को दिया था।
फिर मामा जी ने सबको चाय पीने को बुलाया और कहा कि अब एक ही रास्ता बचा है हमें अब पुलिस की मदद लेनी होगी।
अमित ने कहा हां मामा जी ये सही है।
फिर सभी नाश्ता करके तैयार हो कर निकल गए।
रास्ते में ही मामा जी ने अपने दोस्त अब्दुल करीम जो कि डीएसपी है उनको फोन पर सारी बात बताई।
एक घंटे में लोग घंटा घर पहुंच गए।
कुछ देर बाद पुलिस कर्मी भी आ गए और दुकानों पर पुछताछ करने लगे।
रमेश ने उमेश जी का दरवाजा खटखटाया और इस बार शायद उमेश ने ही दरवाजा खोला।
रमेश ने कहा आप उमेश है।
उमेश बोला हां पर क्या बात है?
तभी डीएसपी अब्दुल करीम ने अपना कार्ड दिखाया और अन्दर पहुंच गए।
रमेश, अमित और मामा जी अन्दर पहुंच गए।
रमेश ने कहा कि आपने ही एक नवजात शिशु को गोद लिया था पांच साल पहले?
उमेश एकदम से हकलाने लगें।
फिर अब्दुल करीम ने कहा कि सीधे तौर पर
बताओगे या कुछ और।।
उमेश ने कहा हां बताता हु।
एक बार हम हमेशा की तरह अपने पत्नी का रूटिन चेक अप कराने गया था।तो पता चला कि वो कभी मां नहीं बन सकती है।
फिर हम मायुस हो कर जा रहे थे कि आशा नर्स हमसे टकरा गई।
और वो देखते ही बोली कि एक रास्ता है मैं एक नवजात शिशु को दे सकती हुं बदले में मुझे पैसे दो। वैसे भी अनाथ है बिचारी,सारे परिवार के लोग कोलेरा की चपेट में आ गए हैं।
उमेश ने कहा अच्छा ठीक है।मैं कुछ भी पैसा देने को तैयार हुं। क्या मुझे वो बच्ची दिखा सकती हो?
आशा ने कहा हां जरूर।
फिर आशा ने हमलोगो को वार्ड नं १३ में ले कर गई।
वहीं पर देखा कि शायद वो उर्मी ही होगी।लेटी हुई थी और बहुत ही कमजोर लग रही थी पास ही एक नन्ही सी जान सो रही थी।
फिर हमलोग बाहर आ गए।
मैंने आशा को एडवांस दे दिया और वहां से चला गया।
फिर दो दिन बाद ही आशा का फोन आया कि उस बच्ची की मां मर गई है।
वो अनाथ हो गई थी ऐसा आशा ने कहा, फिर हम लोग वहां पहुंचे और फिर आशा ने उस बच्ची को हमारे हवाले कर दिया।
रमेश ने कहा क्या आपने पुछा नहीं की उसकी मां कैसे मरी?
उमेश ने कहा हां पुछा था पर वो पैसे लेकर अन्दर चली गई।
रमेश ने कहा तो क्या आपने उस बच्ची को लेकर घर आ गए।
उमेश ने कहा हां और क्या।।
रमेश ने कहा तो उर्मी को नहीं देखा?
उमेश ने कहा उतना तो नहीं पता पर हां पता चला कि वो औरत मर गई थी और उसे लावारिस हालत में छोड़ दिया गया था।
रमेश ने कहा आप मुझे मेरी परी लौटा दिजिए।
उमेश ने उस बच्ची को बुलाया और कहा ये देखो तुम्हारे पापा।
वो बच्ची दबे पांव आती है और कहती है कि आप कौन हो?
रमेश उसे अपने पास बुलाता है और उसके गले में वो हार देख कर दंग रह जाता है कि ये तो उर्मी को मैंने ही दिया था उसे ज्यादा समझने में देर नहीं लगता है कि ये बच्ची ही परी है।
रमेश पुछता है ये गले में हार।
उमेश ने कहा हां भाई मैं जब इसे लाया था तो ये हार उसके गले में ही था।
रमेश बोला हे भगवान एक बार बोला तो होता।।
कि तुम मां बनने वाली हो? शायद मैं तुम्हें बचा लेता था। क्यों इतना तकलीफ़ झेला तुमने।।
और ये हार तो मैंने ही तुम्हें दिया था पहली सालगिरह पर।
आज अगर परी को वो हार ना पहनाई होती तो मैं कभी नहीं समझ पाता कि परी हमारी बेटी है।
अमित ने कहा हां चलो अब हम वापस चलें।
फिर वही सब रफा दफा हो गया।
परी खुब रो रही थी उसे रमेश ने गोद में उठा लिया।
फिर हम लोग मिलकर अमित के मामा जी के घर लौट आए।
परी को बहुत खुशी हो रही थी।वो खुब उछल पड़ी।
मामी जी ने परी को जल्दी से तैयार कर दिया उसे नये कपड़े पहना दिए।
सभी एक साथ मिलकर खाना खाने बैठे।
अमित बोला भाई रमेश अब हमें वापस जाना होगा।
रमेश ने कहा हां कल हमलोग चलते हैं।
मामी जी ने कहा भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।।
मामा जी बोले अरे हां हमने तो उम्मीद छोड़ दी थी।
रमेश ने कहा हां शायद कुछ तो अच्छे कर्म होंगे जो परी मिल गई।
परी खुश हो कर पुरियां खाने लगीं।
फिर काफी देर तक सब बातचीत करने लगे।
मामा जी ने कहा देखो भाई रमेश तुमको हर साल सभी के लिए पुजा पाठ करवाना होगा क्योंकि कहीं ना कहीं उनकी आत्मा अभी तक अतृप्त है।
रमेश ने कहा हां मामा जी वो हमारे दफ्तर में है एक जिसने कहा है कि एक बाबा से मिलवायेगा।
तभी शान्ति मिलेगी।।
अमित ने कहा हां वो बाबूलाल ने कहा था है ना?
रमेश ने कहा हां दोस्त, अब वापस जाकर एक काम और करना होगा।
चलो परी अब सो जाते हैं।
फिर सभी अपने कमरे में जाकर सो गए।
शायद आज रमेश शुकुन से सो पाएं।
आधी रात परी उठ कर बैठ गई। और रोने लगी।
तभी रमेश भी उठ बैठा और परी को गोद में उठा लिया और प्यार से पूछा क्या हुआ परी?
परी ने कहा मुझे मां चाहिए।।
रमेश एकदम मायुस हो कर आंखों में आंसू लेकर बोला अरे बेटा मैं हुं ना!!
फिर एक लोरी के साथ परी हो गई।
रमेश सोचने लगा हे भगवान ये क्या हो गया अम्मा जी और पुरा परिवार मेरा खो गया।
उर्मी देख रही हो ना परी क्या मांग रही हैं मैं उसे मां की ममता कहा से दूं?
ये सोचते हुए रमेश सो गया।
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर सब तैयार हो कर नाश्ता करने लगे
मामी जी ने कहा बेटा गाड़ी के लिए भी खाना दे दिया है। अमित बोलें हां मामी जी अच्छा किया हम तो रात तक पहुंचेंगे।
रमेश जल्दी से परी को खिलाने लगा।
फिर सब आटो रिक्शा में बैठ कर स्टेशन निकल गए।
रमेश की आंखों में एक खुशी झलक रही थी कि उसे उसकी उर्मी का अंश तो मिला। इसके लिए उसने भगवान को बहुत बहुत धन्यवाद दिया।
स्टेशन पहुंच कर रमेश ने अलिगढ का टिकट कटा।
उधर परी के लिए सब कुछ नया जैसा लग रहा था।
वो चुपचाप अपने पापा के गोद में बैठ कर सब देख रही थी।
अमित और रमेश एक एक चाय भी पीए।
कुछ देर बाद गाड़ी आ गई।
रमेश परी को गोद में लेकर चल पड़ा। अमित कुली के साथ हो लिया इनका सामान भी ज्यादा था।
अपनी सीट पर बैठ गए। ये देख परी खुशी से उछल पड़ी और ताली बजाने लगीं।
रमेश और अमित भी बैठ गए।
गाड़ी चल पड़ी। सुबह के ११बज रहें थे जब हुकुलगंज स्टेशन से गाड़ी निकाली।
रमेश ने कहा अमित आज हमारे घर ही रुक जाना भाई।
अमित ने कहा हां, हां क्यों नहीं।
रमेश ने कहा तुमने जो किया उसका कोई मोल नहीं है पर मैं धन्यवाद नहीं दुंगा ये बहुत ही छोटा शब्द होगा पर हां मैं अगर कभी तुम्हारे किसी भी काम आ सका तो खुद को कृतज्ञ मानुगा।
अमित ने कहा अरे भाई तुम शर्मिन्दा कर रहे हो मुझे।
आज मुझे भी शुकुन मिल रहा है क्योंकि मैं तुमने बहुत परेशान देखा है अपने परिवार के लिए रोते हुए देखा है मेरे दोस्त!
अच्छा तो परी कैसा लग रहा है पापा के साथ ये बात अमित ने पूछा?
परी ने कुछ देर बाद कहा अच्छा पर मेरी मां कहा है?
अमित और रमेश एक दूसरे को देखने लगें।
फिर गाड़ी एक एक स्टेशन पर रुक रही थी।
रमेश और अमित ने चाय पिया।
फिर अमित बोला भाई दोपहर का भोजन खिला दो परी को फिर उसे सुला दो।
रमेश ने कहा हां ठीक है।
फिर अमित ने एक बैग में से कागज का प्लेट निकाल कर रमेश के हाथ में दिया और फिर टिफिन के बाक्स में से दो पुरी और आलू दम , साथ में एक काजू की बर्फी दे दिया।
रमेश परी को खिलाने लगा।परी भी खिड़की से बाहर देखते हुए खा लिया।
फिर खाना खाने के बाद परी को सुला दिया।
रमेश ने कहा कि अब हमें भी भोजन कर लेना चाहिए।
फिर रमेश और अमित दोनों खाना परोस कर खाने लगे।
अमित बोला भाई परी को बहुत प्यार की जरूरत है कैसी सहमी हुई सी लगती है।
रमेश ने कहा हां दोस्त मै पुरी कोशिश करूंगा।
क्रमशः