Risky Love - 57 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | रिस्की लव - 57

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रिस्की लव - 57



(57)

मीरा नींद से जागी तो कमरे में अंधेरा था। उसे अनुभव हुआ कि वॉशरूम जाने की ज़रूरत है। उसने खुद उठने की कोशिश की। लेकिन वह उठ नहीं पाई। उसे बहुत कमज़ोरी महसूस हो रही थी। कुछ देर वह उदास पड़ी रही। फिर उसने बेड के पास लगी बेल का बटन दबाया। नर्स के आने की राह देखती रही। एक दो मिनट के अंतराल के बाद भी जब नर्स नहीं आई तो उसने दोबारा बेल बजाई। इस बार पामेला अंदर आई। कमरे की लाइट जलाकर बोली,
"क्या काम है ?"
पामेला ने उसी रुखाई से कहा जैसे पहले बात कर रही थी। मीरा को बहुत गुस्सा आया। उसका मन किया कि डांटकर भगा दे। लेकिन अपनी मजबूरी समझ रही थी। वॉशरूम जाना ज़रूरी था और वह उठ भी नहीं पा रही थी। उसने कहा,
"मुझे वॉशरूम जाना है।"
पामेला ने उसे घूरकर देखा। फिर आगे आकर उसकी उठने में मदद की। उसे वॉशरूम के ‌अंदर छोड़ कर बाहर खड़े होकर उसका इंतज़ार करने लगी। निवृत्त होकर मीरा वॉश बेसिन में हाथ धोने लगी तो दीवार पर लगे आइने में अपनी शक्ल देखी। उसके लिए खुद को पहचान पाना मुश्किल हो रहा था।‌ उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। पर वह अधिक खड़ी नहीं रह पा रही थी। उसने आँखें धोईं नर्स को आवाज़ लगाई।
पामेला ने उसे दोबारा बिस्तर पर लाकर लिटा दिया। उसके बाद बोली,
"कुछ और चाहिए ?"
"मुझे कुछ खाने को चाहिए। मेरे सामान में मेरी दवाएं होंगी। उनका भी वक्त हो गया है।"
पामेला बिना कुछ बोले कमरे से चली गई। कुछ देर बाद खाने का सामान लेकर आई। मीरा को सहारा देकर बिस्तर पर बैठाया। ट्रे उसके सामने रखकर जाने लगी। मीरा ने उसे रोककर कहा,
"मिस्टर संजय मेहरा नहीं आए। मुझे मेरा फ़ोन चाहिए।"
"वो नहीं आए ?"
यह सुनकर मीरा चिढ़कर बोली,
"कब आएंगे ?"
"मुझे नहीं पता। मुझे जो कहा गया है वह कर रही हूँ। कुछ देर में आकर दवाएं खिला जाऊँगी।"
यह कहकर पामेला कमरे से चली गई।
कमरे से निकल कर पामेला सीधे दिनकर प्रधान के पास गई। उसे सारी बात बताई। दिनकर प्रधान ने उसे जाकर अपना काम करने के लिए कहा। कुछ देर सोचने के बाद उसने समय देखा। रात के नौ बज रहे थे। उसने अंदाज़ लगाया कि इस समय मुंबई में रात के लगभग डेढ़ बजे होंगे। उसने अजय मोहते को फोन करने का खयाल स्थगित कर दिया।
अपने कमरे में खाना खाते हुए मीरा बेचैन हो रही थी। अब उसे इस बात का यकीन हो गया था कि उससे भूल हो गई है। उसे यहाँ मदद करने के लिए नहीं लाया गया है। संजय मेहरा ने उससे झूठ बोला था। वह दिमाग दौड़ाने लगी कि उसे कौन यहांँ लेकर आया होगा और क्यों ? पर उसकी कुछ समझ नहीं आ रहा था।
खाना छोड़कर उसने एक बार फिर बेल बजाई। कुछ देर बाद पामेला दवाओं के साथ कमरे में आई। यह देखकर कि अभी खाना पूरा नहीं खाया है वह बोली,
"क्यों बुलाया ? अभी तो खाना भी खत्म नहीं किया।"
"मुझे किसी भी तरह मिस्टर संजय मेहरा से बात करनी है।"
"मैंने भी कह दिया है कि मुझे कुछ नहीं पता। यह मेरा काम नहीं है। खाना खत्म हो जाए तो मैं दवाएं खिला दूँगी।"
मीरा ने गुस्से में कहा,
"आखिर बात क्या है ? मुझे यहाँ क्यों लाया गया है ?"
पामेला ने कहा,
"मुझे यह सब नहीं मालूम। मुझे जो आदेश मिला है मैं वह कर रही हूँ।"
उसने दवाएं मीरा के पास रखकर कहा,
"खाने के बाद दवाएं खा लेना।"
यह कहकर वह कमरे से निकल गई। एक बार फिर वह दिनकर प्रधान के पास गई। उसने कहा,
"मुझसे वह लड़की नहीं संभलेगी। बार बार परेशान कर रही है। संजय मेहरा से मिलना है इस बात की ज़िद कर रही है। मुझसे यह काम नहीं होगा।"
दिनकर प्रधान ने पामेला को घूरकर देखा। वह बोला,
"मुंह मांगा पैसा मिल रहा है तुम्हें। बेकार की बात मत करो।"
"मैं इस तरह नर्स की एक्टिंग नहीं कर सकती। जो कर सकती हूँ वह कराओ।"
"पहले क्यों तैयार हो गई थी ?"
दिनकर प्रधान ने गुस्से से कहा। पामेला कुछ नहीं बोली। दिनकर प्रधान जानता था कि अभी उसकी ज़रूरत है। कुछ नर्मी के साथ बोला,
"पामेला....वो बीमार लड़की है। तुम्हें बस उसकी थोड़ी बहुत मदद करनी है। पैसे तुम्हारे मन के हिसाब से हैं। कर लो। बस कुछ दिनों की बात है।"
पामेला ने गुस्से से कहा,
"बार बार वो अपने फोन और संजय मेहरा के लिए परेशान कर रही है। वह मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा।"
दिनकर प्रधान ने कुछ सोचकर कहा,
"ठीक है उससे मिलकर उसे चुप करा देता हूँ। तुम जाओ।"
पामेला चली गई। कुछ देर तक मन में विचार करने के बाद दिनकर प्रधान मीरा से मिलने गया।

मीरा को यकीन हो गया था कि वह मुसीबत में है। उससे खाना भी नहीं खाया जा रहा था। लेकिन वह कुछ कर नहीं सकती थी। उसका शरीर कमज़ोर था। वॉशरूम तक जाने के लिए भी उसे सहारे की ज़रूरत पड़ रही थी। उसे किसी भी तरह अपनी ताकत बनाए रखनी थी। इसलिए वह जैसे तैसे खाना खा रही थी। खाना खाने के बाद उसने अपनी दवाएं भी खाईं। वह एक बार फिर बेल बजाकर नर्स को बुलाना चाहती थी। पर तभी कमरे का दरवाज़ा खुला। मीरा ने देखा संजय मेहरा उसके सामने खड़ा था। मीरा ने कहा,
"मुझे यहाँ छोड़कर आप कहाँ चले गए थे ? मेरा फ़ोन भी नहीं मिल रहा है। शायद हॉस्पिटल में रह गया। जो नर्स आपने रखी है वो बहुत ही बदतमीज़ है।"
दिनकर प्रधान चुपचाप एक कुर्सी लेकर उसके पास बैठ गया। बड़ी ही शांति से बोला,
"नर्स ने बताया ना कि वो वही कर रही है जो उससे कहा गया है।"
यह सुनकर मीरा समझ गई कि नर्स सारी बातें उसको बता रही थी। उसने कहा,
"वो आपसे बात कर रही थी। लेकिन मैंने कितनी बार उससे कहा कि मुझे आपसे बात करनी है। लेकिन उसने नहीं कराई।"
"क्योंकी उससे ऐसा करने को नहीं कहा गया था।"
मीरा कुछ देर तक उसके चेहरे को घूरती रही। फिर बोली,
"मिस्टर संजय मेहरा सच सच बताइए कि मुझे यहाँ क्यों लाया गया है ?"
दिनकर प्रधान ने उसी तरह शांति से कहा,
"मैं संजय मेहरा नहीं हूँ। ना मैं अंजन को जानता हूँ और ना ही उसने मुझे तुम्हारी मदद के लिए भेजा था।"
मीरा यह सुनकर सन्न रह गई। कुछ देर तक उसके मुंह से आवाज़ भी नहीं निकल रही थी। दिनकर प्रधान ने कहा,
"तुमको एक खास काम से रखा गया है। क्या काम है जानने की ज़रूरत नहीं है। चुपचाप यहाँ रहो। काम होने पर तुम्हें छोड़ देंगे। हमारे साथ सहयोग करो। क्योंकी कुछ और करके इस स्थिति में अपनी मुसीबत को बुलाओगी। तुम्हारा फोन हमारे पास है। जब यहाँ से जाओगी मिल जाएगा।"
दिनकर प्रधान उठकर कमरे से बाहर चला गया। मीरा सकते में थी। कुछ देर बाद पामेला अंदर आई। बेड से खाने की ट्रे हटाई। मीरा को लिटाकर बोली,
"रात में ज़रूरत पड़े तो बेल बजा देना।"
पामेला जाते हुए कमरे की लाइट बुझा गई। मीरा की ज़िंदगी में छाया अंधेरा और गहरा हो गया था।

अजय मोहते से ‌बात करने के बाद से अंजन की उलझन और बढ़ गई थी। एक तरफ उसका मन कह रहा था कि उसका यकीन नहीं किया जाना चाहिए। वह धोखा देगा। लेकिन दूसरी तरफ उसे लग रहा था कि हो सकता है अजय मोहते सच कह रहा हो। वह उसकी मदद कर दे। अजय मोहते भी तो नहीं चाहता है कि वह पुलिस के हाथ लगे।
प्रवेश गौतम को उसने कई बार फोन मिलाया पर उससे बात नहीं हो पाई। वह समझ नहीं पा रहा था कि प्रवेश उससे बात क्यों नहीं कर रहा है। वह सोच रहा था कि जितना अधिक समय वह यहाँ रहेगा खतरा बढ़ता जाएगा।
उसे बार बार बीमारी की हालत में अजय मोहते की कैद में फंसी मीरा का खयाल आ रहा था। अजय मोहते ने उससे कहा था कि वह उसके आने की राह देख रही है। यह सुनकर उसे लग रहा था कि अगर वह मीरा की मदद नहीं कर पाया तो यह उसके लिए शर्मिंदा होने की बात होगी।
वह सोच रहा था कि उसके लिए कौन सा निर्णय सही होगा। अजय मोहते पर यकीन करना या प्रवेश गौतम से मदद की राह देखना। इस समय वह जिस हालत में था अपने दम पर कुछ करने की बात नहीं सोच पा रहा था।

अजय मोहते अभी सोकर ही उठा था कि दिनकर प्रधान ने फोन कर सारी बात बता दी। उसने कहा कि मीरा की हालत गंभीर है। अगर उसे सही इलाज नहीं मिला तो मर जाएगी। अजय मोहते ने उससे कहा कि जब तक संभव हो मीरा को अपने पास रखे बाद में वह देख लेगा।
अपने स्लिपरर्स पहन कर वह कमरे के बाहर बरामदे में आकर बैठ गया। कल रात लोकेश कुमार ने भी फोन करके उसे बताया था कि निर्भय मदद मांग रहा था। लोकेश कुमार ने उसके नाम पर झूठा आश्वासन दे दिया था।‌
इस समय अंजन को लेकर मुंबई की मीडिया में फिर से बातें होने लगी थीं। एक मराठी अखबार ने अपने लेख में वन विभाग की ज़मीन का मुद्दा भी उठाया था।
अजय मोहते सोच रहा था कि जल्दी ही उसे सारी समस्याओं से निजात पानी होगी।